Sunday, July 10, 2011

अठारहवां अध्याय :मोक्ष संन्यास

-मोक्ष सन्यास -तर्के निजात -

अर्जुन ने कहा - 
ऋषिकेश ,फरमाइए अब ज़रा -है संन्यास और त्याग में फर्क क्या , 
कवी दस्त ,केशी के कातिल मुझे -उसूल इनके क्या हैं बता दीजिये II 1 II 
भगवान ने कहा - 
ये कहते हैं दाना कि ख्वाहिश के काम -उन्हें छोड़ने का है संन्यास नाम , 
मगर त्याग में हो न तर्के अमल -करें सब अमल छोड़ कर उसके फल .II 2 II 
कई मर्दे दाना कहें 'छोड़ काम '-कि कर्मों में पिन्हां जरर है मुदाम , 
कई यूं कहें ,ये समादत न जाए -इबादत ,सखावत ,रियाजत न जाए .II 3 II 
मगर मुझसे भारत के सरदार सुन -मेरा कौल मेरे परस्तार सुन , 
कि इस त्याग के भी हैं इकसाम तीन -गुनों से हुए इसके भी नाम तीन II 4 II 
तू यग और सखावत ,रियाजत न छोड़ -ये तीनों हैं एने सआदत न छोड़ , 
कि यग और सखावत रियाजत के काम -करें पाक ,दाना के दिल को मुदाम .II 5 II 
यही फैसला मेरे नजदीक है -यही राय पुख्ता है और ठीक है , 
कि यग और सखावत ,रियाजत भी कर -तआल्लुक रख इनसे ,न फिक्रे समर .II 6 II 
कि जो काम सर पर बरे फर्ज है -न छोड़ उसको ,ये फर्ज इक कर्ज है ,
ये तर्क इक फरेबे जहालत समझ -ये त्याग इक तमोगुन की सूरत समझ .II 7 II 
वो बुजदिल जो तकलीफ के खौफ से -जो करना हैं काम उसे त्याग दे ,
समझ ले रजोगुन वो तर्के अमल -न हासिल हो इस त्याग से कोई फल .II 8 II 
करे फर्ज को फर्ज अगर जानकर -तअल्लुक हो इस से न फिक्रे समर ,
जो असली है ,अर्जुन यही त्याग है -कि एने सतोगुन यही त्याग है .II 9 II 
जो त्यागी सतोगुन है और होशियार -सुलूक अपने कर दे वो तार तार ,
जो हो कारे -नाखुश तो नाखुश न हो -अगर कारे खुश हो जरा खुश न हो .II 10 II 
कि दुनिया में जितने हैं तन के मकीं -करें तर्क सब काम मुमकिन नहीं ,
है त्यागी वही तारीके -बा अमल -अमल जो करे छोड़कर उसके फल .II 11 II 
जो त्यागी नहीं ,जब वो दुनिया से जाए -तो मर कर वो फल तीन सूरत में पाए ,
बुरे या भले या मुरक्कब समर -जो तारिक हैं ,बच जाएँ इनसे मगर .II 12 II 
जबरदस्त अर्जुन समझ मुझ से अब -कि हर काम के पांच होंगे सबब ,
हो पाँचों की तकमील हर काम की -कहे सांख्य का फलसफा भी यही .II 13 II 
सबब अव्वलीं है अमल का मुकाम -दुवम आमिल ,इसका फिर एजा तमाम ,
चहारुम सबब सई ओ तदबीर है -तो पंजम सबब ,दस्ते तकदीर है II 14 II
कोई काम इन्सां जतन से करे -जुबां से कि तन से कि मन से करे ,
र वा काम या नारवा काम हो -इन्हीं पांच से वो सर अंजाम हो .II 15 II
करीने- खिरद फिर नहीं उसकी बात -जो समझे है ,आमिल फकत उसकी ज़ात ,
हकीकत में है वो हकीकत से दूर -वो मूरख है ,दानिश में किसके फितूर .II 16 II
वो इन्सां जो दिल में न रक्खे खुदी -नहीं जिसकी दानिश में आलूदगी ,
नहीं उसको कर्मों के बंधन से काम -वो कातिल नहीं गो करे कत्ले आम .II 17 II
अमल के मुहर्रिक हैं महफूज तीन -वो हैं आमिलो -इल्मो -मालूम तीन ,
वो अजजा है जिनपर अमल का मदार -है कारिन्दा ,ओ कार ओ आलाते कार .II18 II
जो गुन शाश्तर से करे तू नजर -अमल,आमिल और ज्ञान के राज़ पर , 
जो जिस तरह दुनिया में गुन तीन है -यहीं उसके अक्साम सुन ,तीन हैं .II 19 II 
नजर आये जिस ज्ञान से बरमला -हरेक में वही हस्तीये लाफना , 
जो कसरत में वहदत की पहचान है -तो ऐने सतोगुन यही ज्ञान है .II 20 II 
नजर आये कसरत में कसरत अगर -कि सब हस्तियाँ हैं जुदा सरबसर , 
जो कसरत में वहदत से अनजान है -रजोगुन उस इंसान का ज्ञान है.II 21 II 
अगर जुजू में दिल लगाने लगे -इसी जुजू को कुल बताने लगे , 
तो दानिश वो कोतह ,नजर तंग है -तमोगुन इसी ज्ञान का रंग है.22 II 
अमल वो लाजिम है और बेलगाव -न रगबत ,न नफ़रत का जिसमे सुभाव , 
न हो फल की ख्वाहिश का जिसमे खलल -यही है ,यही है सतोगुन अमल.II 23 II 
मगर वो अमल जिसमे फल का हो शौक -रहे लज्जतो कामरानी का जौक , 
खुदी की नुमायश हो और दौड़ धूप -ये समझो अमल का रजोगुन है रूप .II 24 II 
फरेबे नजर से करें काम अगर -न हो फिक्रे इमकानो -अंजाम अगर ,
न हो जिसमे ईजा औ नुकसां पे गौर -तमोगुन अमल के यही बस हैं तौर .II 25 II 
तअल्लुक से बाला खुशी से बरी-इरादे का मजबूत ,दिल का कवी ,
बराबर है जिसके लिए हार जीत -वो आमिल सतोगुन की रखता है रीत .II 26 II 
जो तालिब है फल का हवसनाक है -जो लोभी है ,ज़ालिम है ,नापाक है ,
खुशी से जो खुश हो ,जो गम से मलूल -वो अमिल रजोगुन के बरते उसूल .II 27 II 
जो चंचल कमीना है जिद्दी कि सुस्त -नहीं काम करने में चालाक चुस्त , 
फरेबी ,शरीर और मगमूम है -वो आमिल तमोगुन से मौसूम है .II 28 II 
अयां अक्ले इन्सां के हों तीन गुन -बताता हूँ अर्जुन तवज्जो से सुन , 
हैं गुन अज्मे दिल के भी तीनों यही -ब तफसील सुन मुझ से ले आगही .II 29 II 
हों तर्के अमल ,खैर हो कि हो शर -निजातो असीरी ,दिलेरी कि डर . 
जो फ़र्को तमीज इनमे समझ आयेगी -सतोगुण वही अक्ल कहलायेगी II 30 II 
बताये न जो साफ़ धर्म और अधर्म -रवा कौन है ,ना रवा कौन कर्म , 
तो अर्जुन नही है सतगुन वो अक्ल -है अपने गुनों से रजोगुन वो अक्ल .II 31 II 
घिरी हो अँधेरे में दानिश अगर -जो शर को कहे खैर ,नेकी को शर , 
हरेक बात उलटी ,हरेक में फितूर -तमोगुन वही अक्ल है बिल्जरूर .II 32 II 
अगर योग से अज्म हो इस्तवार-हवासो -दिलो -दम पे हो इख़्तियार , 
तो अच्छा वही अज्म ,अर्जुन समझ -वही अज्मे -रासिख तमोगुन समझ .II 33 II 
मगर अज्म वो जिस में हो शौके ज़र-फ़रायज से मकसूद हो फिक्रे समर , 
हवा ओ हवस से रहे जिस को काम -रजोगुन है इस अज्म का पार्थ नाम .II 34 II 
है वो अज्मे खाली ,जहालत का बाब -रहे आदमी जिस से पाबंदे ख़्वाब , 
बढे खौफो -रंजो -मलालो गुरूर -तमोगुन वही अज्म है बिल्जरूर .II 35 II 
सुन अब मुझसे भारत के सरदार सुन -कि सुख के बी इन्सां में हैं तीन गुन , 
है पहले वो सुख ,जिस से दुख दूर हो -बसर मश्क से जिसकी मसरूर हो .II 36 II 
वो सुख जिसमे हासिल हो दुख से निजात -वो पहले ज़हर फिर हो आबे हयात ,
वो सुख आत्मा के लिए जान ले -सतोगुन है बेशक ये पहचान ले.II 37 II 
जो महसूस से मेल खाकर हवास -मुसर्रत की लज्जत से हों रूशनाश ,
तो पहले वो अमरित है फिर ज़हर है -रजोगुन मुसर्रत की एक लहर है II 38 II 
हो मदहोश इन्सां जिस आराम में -जो धोका है आगाजो अंजाम में ,
बढे मस्ती ओ गफलतो ख़्वाब से -तमोगुन वो सुख है इसे जानले.II 39 II 
जो माया से पैदा हुए तीन गुन -कोई इनसे बाहर नहीं खूब सुन ,
जमीं पर ,फलक पर या हों देवता -नही कोई इन तीन गुन के बिना II 40 II 
बिरहमन हों क्षत्री हो या शूद्र वैश -सुन अर्जुन हरेक का निराला है कैश ,
फ़रायज जुदा ,सबकी खसलत जुदा -कि फितरत ने कि सबकी तबियत जुदा .II 41 II 
सूकूं,जब्त ,उफूये खता ,रास्ती -खिरद ,इल्मो ईमान पाकीजगी ,
रियाजत ,इबादत के पाकीजा कर्म -ये फितरत ने रक्खा बिरहमन का धर्म .II 42 II 
शुजाअत ,सखावत ,तबात और जमाल -खुदावन्दगारी औ फन में कमाल , 
कभी छोड़ जाए न मैदाने जंग -ये होते है क्षत्री की फितरत के रंग .II 43 II 
जो है वैश्य तबअन तिजारत करे -करे गल्लाबानी ज़राअत करे , 
जो है शूद्र ,सबके वो करता है कार -है फितरत से खिलकत का खिदमत गुजार .II 44 II 
अगर अपने अपने करो कारोबार -तो हो जाओगे कामिल अंजामकार ,
अगर फर्ज की अपनी तामील हो -तो सुन क्यों न इन्सां की तकमील हो .II 45 II
वही जात जिस से खुदायी हुई -जो सारे जहाँ पर है छायी हुई , 
उसी की परस्तिश ,इबादत से गर्ज-है तकमील इन्सान पर उसकी फर्ज .II 46 II 
नहीं मंसबी धर्म तेरा अगर जो खूबी से भी कर सके तो न कर , 
जो है धर्म तेरा वो कर काम आप -बुरा हो भला हो नहीं इसमे पाप .II 47 II 
जो है तबई धर्म उसकी तामील कर -जो नाकिस भी हो उनकी तकमील कर , 
कि कामों में अर्जुन जियां साथ है -जहाँ भी है आतिश धुआं साथ है .II 48 II
जो कामों से मन को लगावट नहीं -हवस तर्क हो ,नफ्स जेरे नगीं, 
तो इस तर्क से पाए रुतबा बुलंद -न कर्मों की बाक़ी रहे कैदो बंद .II 49 II 
सुन अब मुख़्तसर मुझसे कुंती के लाल -कि हासिल जो करता है ओजे कमाल , 
वो फिर ब्रह्म से जाके वासिल हो कब -ये अआला तरीं ज्ञान हासिल हो कब .II 50 II 
हो काबू जिसे नफ्स पर मुस्तकिल -करे पाक दानिश में सरशार दिल , 
न आवाजो महसूस से अश्या से काम -वो रगबत से नफ़रत से बाला मुदाम .II 51 II 


जो खाता हो कम और हो खिल्वत नशीं -हों तन ,मन ,जुबां जिसके जेरे नगीं , 
रहे ध्यान और योग में मुस्तकिल -हमेशा हो बैराग में जिसका दिल .II 52 II 
अहंकार उसमे न बल का गुरूर -तकब्बुर ,गजब ,हिर्सो शहवत से दूर , 
खुदी हो बुरी जिसको ,दिल में सुकूं -वही ब्रह्म का वस्ल पाए न क्यूँ .II 53 II 
हो जब वासिले ब्रह्म दिल शाद हो -गमो ,रंजो .उल्फत से आजाद हो , 
जो समझे है मख्लूक यकसां सभी -नसीब उसको भगती हो आला मेरी .II 54 II 
वो भगती से मेरी मुझे जान ले -कि मैं कौन हूँ ,क्या हूँ ,पहचान ले , 
मेरा ज्ञान जब उसको हासिल हुआ -मेरी जाते आली में वासिल हुआ .II 55 II 
करे जिस कदर उसपे लाजिम हैं काम -मगर आसरा मुझ पे रक्खे मुदाम ,
वो रहमत में मेरी समा जाएगा -मुकामे बका को वो पा जाएगा .II 56 II 
तू मुझपर सभी काम सन्यास कर - इन्हें छोड़ ,दिल से मेरी आस कर .
तू ले अक्ल के योग का आसरा -खयालात अपने मुझी में लगा .II 57 II 
अगर मन में मुझको बिठाएगा तू -तो हर रोग से पार जायेगा तू ,
सुनेगा न मेरी अहंकार से -तबाही में जाएगा ,पिन्दार से .II 58 II 
ये कहना तेरा खुद अहंकार है -कि मुझको लड़ाई से इन्कार है ,
ये सब अज्म काफूर हो जाएगा -तू फितरत से मजबूर हो जाएगा .II 59 II 
बनाया है जो तेरी फितरत ने धर्म -कराएगी फितरत वाही तुझ से कर्म ,
तुझे लाख रोके फरेबे ख्याल -करेगा तू नाचार कुंती के लाल .II 60 II 
सुन अर्जुन खुदा है ,खुदा हर कहीं -खुदायी के दिल में खुदा है मकीं ,
वो सब हस्तियों को घुमाता रहे -वो माया का चक्कर चलाता रहे II 61 II 
पनाह अपनी भारत उसी को बना -उसी की इबादत में हस्ती लगा ,
तू रहमत में उसकी समा जाएगा -सुकूनो बका उस से पा जाएगा .II 62 II 
बताया तुझे मैंने अय पाकबाज -ये ज्ञानों का ज्ञान और राजों का राज ,
तवज्जो से इस राज पर गौर कर -अमल इस पे तू चाहे जिस तौर कर .II 63 II 
सुन अब सर्रे -पिन्हाँ की एक औए बात -बड़े राज की काबिले गौर बात ,
कि अर्जुन तू प्यारा है ,महबूब है-तेरा फ़ायदा मुझको मतलूब है .II 64 II 
लगा मुझमे दिल भक्त होजा मेरा -तू कर यग ,मेरे सामने सर झुका ,
मुझे तुझसे ,मुझसे ,तुझे प्यार है -मेरा वस्ल का तुझसे इकरार है.II 65 II 
तू सब धर्म छोड़ और ले मेरी राह -तू मांग आके दामन में मेरे पनाह ,
तेरे पाब सब दूर कर दूंगा मैं -न गमगीं हो ,मसरूर कर दूंगा मैं .II 66 II 
ये राज उस ने मत कह जो जाहिद न हो -ये राज उस से मत कह जो आबिद न हो 
न उस से ,जो हो बद जुबां,नुक्ताचीं -न उस से ,जो सुनने का ख्वाहाँ नहीं .II 67 II 
मेरा भक्त होकर बइज्जो -नियाज -जो भक्तों से मेरे कहेगा ये राज ,
उन्हें सर्रे आली सिखाएगा जो -मेरा वस्ल बे शुबहा पायेगा वो.II 68 II 
कहाँ उस से बढाकर है इन्सां कोई -करे ऎसी प्यारी जो सेवा मेरी ,
मुरव्वत की आँखों का तारा है वो -मुझे सारी दुनिया से प्यारा है वो .II 69 II 
पढेगा जो कोई बराहे सवाब -हमारे मुक़द्दस सवालों जवाब ,
मैं समझूँगा उसने दिया ज्ञान यग -इबादत में मेरी किया ज्ञान यग .II 70 II 
फकत जो सुने दिल में रखकर यकीं-निकाले न ऐब और न हो नुक्ता चीं.,
गुनाहों से वो मुखलिसी पायेगा -कि नेकों की जन्नत में आ जाएगा .II 71 II 
भगवान ने कहा -
सूना तूने अर्जुन ये मेरा कलम -सुना तबये -यकसू से तूने तमाम ,
बता तेरे दिल से धनंजय कहीं ,फरेबे जहालत ,गया कि नहीं .II 72 II 
अर्जुन ने कहा -
पुकारा फिर अर्जुन ने कि अय लाजवाल -हुआ दूर शक और फरेबे ख्याल ,
पता चल गया ,दिल है मजबूत अब -बजा लाऊंगा आपके हुक्म सब .II 73 II 
संजय ने कहा -
सुना मैंने जो श्री कृष्ण ने जो कहा -जो अर्जुन महा आत्मा ने सुना,
अजब हैरत अंगेज थी गुफ्तगू -खड़े हैं मेरे रोंगटे मूबमू .II 74 II 
सुना व्यास जी की दयासे तमाम -ये श्री कृष्ण योगेश्वर का कलाम ,
खुद उनके लबों से सुना है सभी -यही योग आली ,ये सर्रे खफी .II 75 II 
जो जेशव से अर्जुन हुए हम कलाम -अजब गुफ्तगू है मुक़द्दस तमाम ,
उसे याद करता हूँ मैं बार बार -तो दिल शाद करता हूँ मैं बार बार .II 76 II 
हरी की हुई दीद मुझको नसीब -मेरे सामने है वो सूरत अजीब ,
उसे यद् करता हूँ मैं बार बार -तो दिल शाद करता हूँ मैं बार बार .II 77 II 


जिधर हैं कृष्ण मेहरबां-योगेश्वर हैं खुद जहाँ ,
जिधर है साहबे कमाल अर्जुन जैसा पहलवां,
वहीँ हैं शाद कामियां,वहीं खुश इंतजामियाँ,
वहीं हैं कामरानियाँ वहीं है शादमनियां .II 78 II 


-अठारहवां अध्याय समाप्त -


:-ॐ तत सत इति :-
























सत्रहवां अध्याय :श्रद्धात्रय विभाग

श्रद्धात्रय विभाग -ऐतकादे सहगाना - 

अर्जुन का सवाल - 
जो यग करने वाले हैं ,अहले यकीं-मगर शाश्तर पर जो चलते नहीं , 
तो फरमाइए वो सतोगुन पे हैं -कि आमिल रजोगुन,तमोगुन पे हैं .II 1 II 
भगवान का जवाब - 
कहा सुन के भगवान ने ये सवाल -मुताबिक है फितरत के ईमां का हाल , 
कि ईमां के अन्दर भी हैं तीन गुन-सतोगुन ,रजोगुन ,तमोगुन तू सुन .II 2 II 
कि जो जिसकी फितरत का आहंग है -वही उसके ईमां का रंग है , 
कि इंसां खुद ईमां की तफ़सीर है -अकीदा ही इन्सां की तस्वीर है.II 3 II 
सतोगुन तो पूजें ,खुदा ही को बस -राजोगुन मगर यक्ष और राक्षस , 
तमोगुन के बन्दे है ,सबसे अलग -कि वो भूत प्रेतों को देते हैं यग.II 4 II 
जो ताप में उठाते हैं रंजो -तनब-उलट शाश्तर के करें काम सब , 
वो मक्कार ,खुदबीं हैं और सख्तकोश-भारी उनमे है ,कुव्वते-हिर्सो जोश .II 5 II 
करें वो दुखी पांच तत का बदन -मुझे भी ,जो इस तन में हूँ खेमाजन , 
बजाहिर तो हर चन्द इन्सां है वो -जो अज्म देखो तो शैतां है वो.II 6 II 
गिज़ा जिसके शायक हैं सब ,उसकी सुन -करें फर्क इसमे यही तीन गुन ,
यही गुन इसी तरह देंगे बदल -इबादत ,रियाजत ,सखावत के फल .II 7 II 
गिज़ा जिस से सेहत हो और जिंदगी -बढे जोशो ताकत ,खुशी खुर्रमी ,
मुकव्वी हो ,पुर रोगन ,और खुश गवार -सतोगुन के शायक को है उस से प्यार .II 8 II 
सलोनी हो ,खट्टी कि कड़वी गिज़ा -जली ,चटपटी ,गर्म या बे मजा ,
गिज़ा ऎसी खाएं रजोगुन के लोग -उन्हें रंज हो ,दुख हो ,या तन का रोग .II 9 II 
जो बासी हो ,बूदार गंदी गिज़ा -जो बदजायका हो या जूठी गिज़ा ,
ये खाना तमोगुन के बन्दों का है -कि खाना जो गन्दा है ,गंदों का है.II 10 II 
वही है सतोगुन का यग बिल्जरूर -न हो फल की ख्वाहिश का जिसमे फितूर ,
अमल शाश्तर की रिआयत से हो -इबादत ,इबादत की नीयत से हो .II 11 II 
अगर यग किया फल की ख्वाहिश के साथ -ख्याले नुमूदो -नुमायश के साथ ,
तो,अर्जुन नहीं ये सतोगुन का यग -रजोगुन का है ,ये रजोगुन का यग .II 12 II 
जो करते हैं यग शाश्तर के खिलाफ -न अन्नदान ,जिसमे न मंतर हों साफ ,
न हो दक्षिणा ,औं जौके -यकीं -तमोगुन के यग के सिवा कुछ नहीं.II 13 II 
जो पूजा करे देवताओं की तू-बिरहमन हों ,आलिम हों ,या हों गुरू ,
अहिंसा ,तजर्रुद,सफा ,रास्ती -बदन की रियाजत यही है ,यही II 14 II
सुखन वो जो सच्चा हो ,और बे खरोश -मुफीदे खलायक हो ,फिरदौस -कोश,
मुक़द्दस कुतब की तिलावत मुदाम -जुबां की रियाजत इसी का है नाम .II 15 II
सुकूं दिल में हो ,लब पे हो खामुशी-हलीमी ,ख्यालों में पाकीजगी , 
रहे नफ्स पर जब्त और दिल हो राम -इसी शै का मन की रियाजत है नाम .II 16 II 
जो यकदिल ,यकीं से इबादत करे -वो तन ,मन जुबां से रियाजत करे , 
न हो फल के ख्वाहिश पे आमादगी -सतोगुन की रियाजत यही है ,यही .II 17 II 
रियाजत दिखावे की गर मन को भाए -कि लोगों में इज्जत हो ,पूजा कराये , 
रियाजत वो चंचल है ,नापायदार -कर इसको रजोगुन -रियाजत शुमार .II 18 II 
वो तप जिस में जिद्दी उठाता है कष्ट -वो तप जिसका मकसद हो औरों का कष्ट , 
जहालत का तप का तप उसको गिरदान तू-तमोगुन रियाजत इसे मान तू .II 19 II 
इसे जानकर फर्ज खैरात दें -जो हकदार हो ,जिस से खिदमत न लें , 
मुनासिब हो वक्त और मौजूं मुकाम -सतोगुन सखावत इसी का है नाम .II 20 II 
हो अहसां के बदले की ख्वाहिश अगर -सखावत में फल पर लगी हो नजर , 
अगर बेदिली से कोई दान दे -रजोगुन सखावत उसे जान ले .II 21 II 
अगर नामुनासिब है वक्त और मुकाम -उसे दान दें जिसको देना हराम , 
जो ले उसकी जिल्लत करें ,दिल दुखाएं -तमोगुन सखावत उसी को बताएं .II 22 II 
जो है "ॐ तत्सत "मुक़द्दस कलाम -सह गूना है ये ब्रह्म का पाक नाम , 
इसी से बिरहमन हुए आशकार -इन्हीं से हुए यग्ग और वेद चार .II 23 II 
इबादत ,सखावत ,रियाजत के काम -मुवाफिक जो हैं शाश्तर के तमाम , 
वो सब ब्रह्म दां-मर्दुमे -पारसा -हमेशा करें ॐ से इब्तिदा .II 24 II 
जहां में है मतलूब जिसको निजात -समर से नहीं कुछ इसे इक्तिफात , 
इबादत रियाजत ,सखावत करे -मगर हर्फे "तत"मुंह से पहले कहे .II 25 II 
हकीकत यही है ,हकीकत है "सत"-सदाकत यही है सदाकत है "सत " , 
कि दुनिया में जो भी भला काम है -सुन अर्जुन कि उसका "सत "नाम है .II 26 II 
यही सत समझ उस अकीदत को जो -इबादत ,रियाजत ,सखावत में हो , 
करें उस खुदा के लिए जोभी काम -तो उस काम का भी यही "सत "है नाम .II 27 II 
हवन .दान में हो अकीदत न शौक -रियाजत में ईमां ,अमल में न जौक ,
इन अफआल का फिर "असत "नाम है -यहाँ है न उनका वहां काम है .II 28 II 


-सत्रहवां अध्याय समाप्त -













सोलहवां अध्याय :दैवासुर संपत्ति

-दैवासुर संपत्ति -सिफ़ाते मलकूती व् शैतानी - 

भगवान ने फरमाया -
सुन अर्जुन है क्या देवताई सिफात -दिलेरी ओ इल्मो अमल में सबात ,
सखा ,जब्त ,यग,दिल में पाकीजगी -तिलावत ,रियाजत ,सलामत रवी .II 1 II 
अहिंसा ,सदाकत ,करम ,तर्के ऐश -न फितरत का चंचलपना और न तैश ,
दिले बेहवस ,पुर सुकूं ,तबअ नर्म -न दिल तंग होना ,निगाहों में शर्म .II 2 II 
सबूरी ,सिफ़ा ,जोर ,उफूये खता -हसद से तकब्बुर से रहना जुदा ,
जब इन नेक वस्फों पे मायल है वो -तो इन्सां फरिश्तानुमा कुल है वो .II 3 II 
दोरंगी गुरूर ,औ नुमायश ,गजब -सुखन तल्ख़ ,बातें जहालत की सब , 
इन्हीं से उस इंसान की पहचान है -सदा सेजो   फितरत का शैतान है.II 4 II 
है नेकू खसायल,रिहायी पसंद-शयातीं की खसलत से है कैदो बंद , 
तुझे रंजो गम क्या ,पांडू के लाल -कि फितरत से तू है फ़रिश्ता खिसाल .II 5 II 
ज़माने में जितने भी इन्सां हुए -फ़रिश्ते कोई ,कोई शैतां हुए , 
सुना है मुफस्सिल फरिश्तों का हाल-जो शैतां हैं ,सुन अब उनका हाल .II 6 II 
खबासत के पुतले हैं इन्हें क्या तमीज -ये करने की चीज ,या न करने की चीज , 
न सत इनके अन्दर ,न पाकीजापन -मुअर्रा है शाइस्तगी से चलन .II 7 II 
वो कहते हैं झूठा है संसार सब -न है इसकी बुनियाद ,न कोई रब , 
करें मर्दों जन मिलके जब मस्तियाँ -उन्हीं मस्तियों से हों ,सब हस्तियाँ .II 8 II 
जो हैं इन ख्यालों के बद्कुन बशर -वो खूंखार ,बेरूह ,कोतह नजर , 
उदू बन के दुनिया में आते रहें -जहां में तबाही मचाते रहें .II 9 II 

तकब्बुर ,रिया और बनावट से काम -वो तस्कीं न पायें हवस की गुलाम , 
वो खाएं फरेबे ख्यालाते बद-बड़ी में दिखाएँ सदा शद्दो -मद .II 10 II 
गेम बेहिसाब उनको ,दिन हो कि रात -मिले फिक्रे-दुनिया से मर कर निजात , 
है मकसूद इनका ,हवस रानियां-हैं मद्दे नजर ऐश की सामानियाँ .II 11 II 
उमीदों के फंदों में अटके हुए -गजब और शहवत में लटके हुए , 
बदी से वो दौलत कमाते रहें -जो ऐशो तरब में गंवाते रहें .II 12 II 
वो कहता है 'आज एक पायी मुराद -तो कल दूसरी हाथ आये मुराद , 
ये दौलत है मेरी ,ये धन है मेरा -मेरे पास ही ये रहेंगे सदा II 13 II 
किया एक दुश्मन को मैंने हलाक -करूंगा मैं औरों को जेरे ख़ाक , 
सुखी हूँ ,कवी ,हाकिमे पुर जलाल -मजे ले रहा हूँ ,कि हूँ बा कमाल .II 14 II 
मैं धनवान ,मेरा घराना शरीफ -भला कौन होता है मेरा हरीफ , 
मैं लूंगा मजे यग्य और दान से -'यहीं खाए धोका वो अज्ञान से .II 15 II 

ख्यालों के फंदों में जकडे हुए -तवह्हुम के जालों में पकडे हुए , 
तअय्यश से जी को लगाते हैं वो -तो नापाक ,दोजख में जाते हैं वो .II 16 II 
वो मगरूर ,जिद्दी हैं ,और ख़ुदपरस्त-वो दौलत ने नश्शे में रहते हैं मस्त , 
जो करते हैं यग तो भी बहरे नुमूद -नहीं हैं वो पाबन्दे रस्मो -कुयूद .II 17 II 
वो गुस्ताख ,पुर कीना ओ पुर गुरूर -खुदी मस्तियो तैशो -ताकत में चूर , 
मैं खुद उनंके तन में हूँ ,या गैर के -न खैर उनसे पहुंचे ,सिवा बैर के .II 18 II 
ये हासिद ,कमीने जफाकार लोग -ये जिल्लत के पुतले ,ये खूंखार लोग ,
न जिल्लत से इनको निकालूँगा मैं -शिकम में शयातीं के डालूँगा मैं .II 19 II 
शिकम में शयातीं के होकर मकीं -ये बहके हुए मुझ तक आते नहीं ,
ये ,अर्जुन जनम पर जनम पायेंगे -ये गिरते ही .गिरते चले जायेंगे .II 20 II 
जहन्नुम के हैं तीन दर लाकलाम -तमा ,शहवत और गुस्सा हैं जिनके नाम ,
इन्हें छोड़कर ,इनमे न जाना कभी -न हस्ती को अपनी मिटाना कभी .II 21 II 
जो इनसे बचे वो रहे बे खतर-तमोगुन को जाते हैं ये तीन दर ,
मिले उसको आनंद ,कुंती के लाल -उसी को मयस्सर हो ओजे -कमाल .II 22 II 
जो इन्सां चले शाश्तर के खिलाफ -हवस के हो ताबिअ करे इन्हाराफ ,
मिले उसको राहत ,न ओजे कमाल -रहे दूर उस से मुकामे विसाल .II 23 II 
फकत शाश्तर को बना रहनुमा -कि करना है क्या ,और न करना है क्या ,
बस अब धर्म पर दिल दिए जा तमाम -अमल शाश्तर पर किये जा मुदाम .II 24 II 

-सोलहवां अध्याय समाप्त -







Saturday, July 09, 2011

पन्द्रहवांअध्याय :पुरुषोत्तम योग

-पुरुषोत्तम योग -जाते बरतर - 

भगवान ने फरमाया -
सुन अब ऐसे पीपल का अर्जुन बयां-जड़ें जिसकी ऊपर तने डालियाँ . 
शजर लाफना ,जिसके पत्ते हैं वेद-वो है वेद दां ,पाए जो इसका भेद .II 1 II 
गुनों से बढ़ें डालियाँ ला कलाम -हैं अश्याये -महसूस गुंचे तमाम , 
जड़ें इसकी इन्सां की दुनिया तक आयें -जकड़ कर इसे कर्म से बाँध जाएँ .II 2 II 
तसव्वुर में शक्ल इसकी आये कहाँ -न अव्वल ,न आखिर न जड़ का निशां , 
जड़ें इसकी मजबूत हैं चार सू -ब शमशीरे तजरीद से काट तू .II 3 II 
इन्हें काट कर ढूँढ़ फिर वो मुकाम -जहां जाके फिर तू न लौटे मुदाम , 
तू कह मुझको परमेश्वर की अमां -किया जिसने हस्ती का दरिया रवां.II 4 II 
फरेबो तकब्बुर से पाकर निजात -हवस छोड़कर जो रहे महवे जात , 
तअल्लुक न सुख दुख के इज्दाद हों -मुकामे अबद पाके दिलशाद हों .II 5 II 
जले महरो मह की न मशअल वहां -न हो उस जगह आग शोला फिशां , 
मुकामे मुअल्ला मेरा है वही -पहुँच कर जहाँ से न लौटे कोई .II 6 II 
मेरी आत्मा ही का जरदे कदीम -बने रूह अहले जहाँ में मुकीम , 
जो माया में लिपटे हैं अहले हवास -यही रूह खींचे उन्हें अपने पास II 7 II 
जहां ,ईश्वर यानी जीव आत्मा -हो इक तन में दाखिल और इक से जुदा , 
तो साथ अपने लेजाये मन और हवास -सबा जैसे लेजाये फूलों की बास.II 8 II 
जुबां,कान ,रस , आँखऔर नाक से -इन्हीं पांच ,और मन के इदराक से , 
यही रूह लज्जत उडाती रहे -सदा लुत्फे -महसूस पाती रहे .II 9 II 
मुसाफिर जो आया और आ कर चला -जो लुत्फ़ इन गुनों का उठाकर चला , 
नहीं उसको गुमराह पहचानते-हैं अहले बसीरत फकत जानते II 10 II 
जो योगी रियाजत में कोशां रहें -तो वो भी उसे रूह में देख ले , 
वो मूरख है ,कमजोर जिनके शऊर -करें लाख कोशिश ,न पायें वो नूर.II 11 II 
ये सूरज की ताबिश मेरा नूर है -जहाँ जिसके जलवों से मामूर है , 
रहे चाँद रख्शां मेरे नूर से -तो आतिश दरख्शां मेरे नूर से .II 12 II 
जमीं को जो करता हूँ ,खुद को निहां -तो कुव्वत से मेरी मिले कुव्ते जां , 
बनूँ नूरे महताब की आब मैं -तो करता हूँ पौधों को शादाब मैं .II 13 II 
हरारत हूँ मैं ही ,शिकम में निहां -मैं हूँ जान वालों के तन में तवां , 
दरूनो -बरूं दम में आता हूँ मैं -तो चारों गिजायें पचाता हूँ मैं .II 14 II 
हर इंसान के दिल में पिन्हाँ भी मैं -कि हूँ हाफिजा -इल्म ,निसयाँ भी मैं , 
मैं दाना हूँ ,रौशन हैं सब मुझपे वेद-है वेदान्त मुझसे ,मैं वेदों का भेद .II 15 II 
जहाँ में हैं दो तरह की हस्तियाँ -है फानी कोई और कोई जाविदां ,
जहाँ की है मख्लूक फानी तमाम -अजल से जो बाकी है उसको दवाम .II 16 II 
वो परमेश्वर है ,वो परमात्मा -जो है सब पे छाया हुआ लाफना ,
है बाक़ी ओ फानी से बाला ओ हक़ -कि कायम हुए जिस से तीनों तबक .II 17 II 
जो फानी है ,जात उनसे मेरी बुलंद -जो बाकी है बात उनसे मेरी बुलंद ,
है पुरषोत्तम अपना ज़माने में नाम -यही नाम लें वेददां और अवाम .II 18 II 
जो पुरुषोत्तम इस तरह जाने मुझे -दिले हक़- निगर से जो जाने मुझे ,
तो भारत समझ बा खबर है वही -वो तन ,मन से करता है भगती मेरी .II 19 II 
सिखाया तुझे भारत अय पाकबाज-ये इल्मों का इल्म और राजों का राज ,
जो समझे इसे साहबे होश हो -फ़रायज से अपने सुबुकदोश हो .II 20 II 


-पन्द्रहवां अध्याय समाप्त -










Friday, July 08, 2011

चौदहवाँ अध्याय :गुणत्रय विभाग

-गुणत्रय विभाग -तकसीमे सिफ़ाते सहगाना - 

भगवान का इरशाद -
फिर अर्जुन से भगवान बोले कि,सुन -जो ग्यानों का है ज्ञान सुन उसके गुन ,
मुनी जिसको ये ज्ञान हासिल हुआ -कमले फजीलत से वासिल हुआ .II 1 II 
जो लेते हैं इस ज्ञान का आसरा -वो यकरंग हो जाएँ मुझसे सदा ,
जो पैदा हो दुनिया ,तो आयें न वो -फना हो तो तकलीफ पायें न वो II 2 II 
शिकम है मेरी कुदरते कामिला -जो मैं तुख्म डालूं तो हो हामिला ,
यही है महाब्रह्म अस्ले हयात -कि भारत इसी से हो कायनात .II 3 II 
किसी पेट से कोई पाए जनम -हो अर्जुन कोई शक्ल ,कोई शिकम , 
शिकम है महाब्रह्म ,मैं बाप हूँ -कि बीज उसमे डालता आप हूँ .II 4 II 
नमूदार माया से हों तीन गुन-सतोगुन,रजोगुन,तमोगुन ये सुन , 
जो है लाफना रूह तन में मकीं -ये गुन कैद करते हैं उसको वहीं .II 5 II 
सतोगुन की फितरत है पाकीजा नूर -न ऐब इसमे ,अर्जुन न कोई कुसूर , 
करे रूह को शौके -राहत से कैद -करे रूह को जौके -दानिश का सैद .II 6 II 
रजोगुन की फितरत है जज्बात की -है संगीत से इसकी और तिश्नगी ,
ये जौके अमल का बनाती है जाल -करे रूह को कैद ,कुंती के लाल .II 7 II 
तमोगुन जहालत की औलाद है -कब इस से मकीं ,तन से आजाद है ,
करे कैद धोके से भारत इसे -करे ख्वाबो -गफलत से गारत इसे .II 8 II 
सतोगुन का रहता है सुख से लगाव -रजोगुन का शौके अमल है सुभाव ,
तमोगुन का परदा पड़े ज्ञान पर -तो गफलत मुसल्लत हो इंसान पर .II 9 II 
सतोगुन का जिस वक्त बाला हो दस्त -रजोगुन ,तमोगुन रहें उस से पस्त ,
रजस से सतोगुन ,तमोगुन दबे -तमस से ,सतोगुन ,रजोगुन घटे .II 10 II 
बदन है मकां ,और हवास इसके दर -अगर दर है रौशन तो रौशन है घर ,
अगर ज्ञान का नूर हो जूफिशाँ-सतोगुन के गल्बे का है ये निशाँ .II 11 II 
रजोगुन का गलबा हो अर्जुन अगर -तो हो जाएँ हिर्सो -हवा जोर पर ,
तमन्ना हो ,कोशिश हो ,और पेचो -ताब -राजे शौक किरदार में इज्तिराब.II 12 II 
तमोगुन जब इन्सां में हो जोर पर -तो हो मोह गालिब ,कुरु के पिसर ,
अँधेरा तबीयत पे छा जाएगा -जमूद उसको गाफिल बना जाएगा II 13 II 
सतोगुन जो ग़ालिब हो इन्सान पर -इसी हाल में मौत आये अगर ,
मकीं तन का पाए पवित्तर मुकाम -वो सिद्धों की दुनिया में जाए मुदाम .II 14 II
रजोगुन में इन्सां अगर जान दे -जनम अहले किरदार में आके ले ,
तमोगुन में मर कर जो जिन्दों में आये -दरिदों ,परिंदों ,चरिन्दों में आये .II15 II
जो करता है इन्सां सतोगुन अमल -तो पाता है ,पाकीजा और नेक फल , 
रजोगुन अमल से मिले पेचो -ताब -तमोगुन अमल में ,जहालत का बाब .II 16 II 
सतोगुन से इरफां का पैदा हो नूर -रजोगुन से हिर्सो -हवा का जहूर , 
तमोगुन से धोका भी ,गफलत भी हो -तबीयत पे ग़ालिब ,जहालत भी हो .II 17 II 
सतोगुन से जाएँ सूए आसमां-रजोगुन से लटके रहें दरमियाँ , 
तमोगुन का गुन है ये सबसे रजील -ये पस्ती दे डाले ,ये कर दे रजील .II 18 II 
जो अहले बसीरत हैं अहले नजर -गुनों को समझते हैं कारगर , 
मुझे मानते हैं गुनों से बुलंद -तो वासिल मुझी से हों वो अर्जमंद II 19 II 
बदन का है तीनों गुनों पर मदार -मकीने बदन ,गर करे इनको पार , 
वो चहकता है अमृत ,वो पाटा है सुख -न जीना ,न मरना ,न पीरी का दुख.II 20 II 
अर्जुन का सवाल - 
फिर अर्जुन ने पूछा कि अय कर्दगार-वो इन्सां जो जाता है ,तीनों से पार , 
चलन क्या है उसका ,अलामात क्या -वो तीनों गुनों से हो क्योंकर रिहा .II 21 II 
भगवान का इरशाद -
सुन अर्जुन ,सतोगुन से हासिल हो नूर -रजोगुन से कुव्वत ,तमस से फितूर ,
है कामिल जिसे इनकी चाहत नहीं -जो हों ,तो उसे उनसे नफ़रत नहीं II 22 II 
जो इन्सां गुनों से रहे बेगरज-न बेकल हो इनसे ,न रक्खे गरज ,
जो समझे कि करते हैं गुन ही ये काम -रहे पुर सुकूं खुद में कायम मुकाम .II 23 II 
जो सुख दुख में यकसां ,जो है मुस्तकिल -बराबर जिसे जर हो ,कि मिट्टी की सिल ,
मुसावी पसंदीदा और नापसंद -हो तहसीं कि नफ़रत ,वो सब से बुलंद .II 24 II 


न जिल्लत की परवा ,न इज्जत की भूक -करे दोस्त -दुश्मन से यकसां सलूक ,
गरज त्याग दे ,मुझपे सब कारोबार -समझ लो गुनों से वो होता है पार .II 25 II 
जो खादिम मेरा ही परस्तार है -जो मेरी ही मस्ती में सरशार है ,
हो तीनों गुनों से न क्यों पार वो -है वसले -खुदा का सजावार हो .II 26 II 
मेरी ज़ात ही ब्रह्म का है मुकाम -सबातो बका मुझी में कयाम .
मैं दीने अजल का भी हूँ आसरा -मेरी जाते आली ,मैं राहत सदा .II 27 II 


-चौदहवाँ अध्याय समाप्त -
















Thursday, July 07, 2011

तेरहवां अध्याय :क्षेत्र क्षेत्रज्ञ

-:क्षेत्र क्षेत्रज्ञ  -इम्तियाजे जिस्मो जां-


भगवान ने फरमाया -
तुझे अब बताता हूँ ,कुंती के लाल -कि ये जिस्म इक खेत की है मिसाल , 
है इस खेत का राज जिस पर अयां-कहें खेतरग्य उसको सब राजदां .II 1 II 
समझ खेत का राजदां हूँ तो ,मैं -कि हर खेत के दरमियाँ हूँ ,तो मैं , 
जो ये खेत और खेतरग का है इल्म -मेरी राय में सबसे आला है इल्म .II 2 II 
सुन अर्जुन ,है क्या खेत ,क्या इसके गुन-तगय्युर हों कैसे ,कहाँ से ,ये सुन , 
है कौन ,और क्या ,कुव्व्वते-राजदां-मैं करता हूँ ,अब मुख़्तसर सा बयां .II 3 II 
ये ऋषियों ने गाया कई रंग से -बहुत मीठे छंदों के आहंग से , 
ये ब्रह्म सूत्रों में भी मस्तूर है -यही बा दलील उनमे मजकूर है.II 4II 
अनासिर ,अहंकार ,अक्ले-मुहीत -ये दिल,दस हवास,और ये फितरत बसीत ,
करें जिनको महसूस पाँचों हवास -ये आवाज ,शश जायका ,रंगों -बास .II 5 II 
ये सुख दुख,ये नफ़रत तरगीब भी -खिरद ,पायेदारी भी तरकीब भी ,
ये हैं खेत ,और इनकी तब्दीलियाँ -इन्हीं का है ये मुख़्तसर सा बयां .II 6 II 
मैं करता हूँ अब ज्ञान के गुन शुमार -ये हैं ,रास्ती ,इल्म ,उफू ,इन्किसार ,
अहिंसा भी ,और खिदमत उस्ताद की -दिली पुख्तगी ,जब्त ,पाकीजगी. II 7 II 
न होना सरोकार लज्जात से -किनारा ,अहंकार की बात से ,
यही गौर करना कि,लें छीन सुख -जनम ,मौत ,पीरी ,मरज दर्दो दुख .II 8 II 
न बाबस्तागी रिश्त ओ बंद से -न घर से ,न जन से ,न फरजंद से ,
तवाजन से होना ,सुकूनो करार -गवारा हो सूरत कि हो नागवार .II 9 II 
फकत धारना मेरी भक्ती का योग- दुई का न होना ज़रा दिल में रोग ,
अलग रह के महसूस करना सुरूर -हुजूमे खलायक से होना नुफूर .II 10 II 
ख़याल अद्धियातम का शामो -सहर -हकीकत के मकसद पे रखना नजर,
ये इल्मों का इल्म ,ये ज्ञान है -खिलाफ इसके जो है ,अज्ञान है.II 11 II 
सजावार इरफां है वो पाकजात-कि है इल्म ही उसका आबे हयात ,
वो बे इब्तिदा ,लम यजल,जी हशम-न सत या असत कह सकें जिसको हम .II 12 II 
उसी के हैं सब दस्तो पा चारसू -उसी का रूखे रूनुमा चारसू ,
उसी के नजर ,कान ,सर ,हर तरफ -मुहीते जहां सरबसर हर तरफ.II 13 II 
बजाहिर नहीं गरचे उसके हवास -दरख्शां सिफ़ाते हवास उसके पास ,
वो है बे तअल्लुक मगर सबका रब -गुनों से बरी,और गुन उसमे सब .II 14 II 
किसी शै में जुम्बिश ,किसी में सूकूं -वो मौजूद सब में दरूँ और बरूं ,
लतीफ ऐसा ,एहसास माजूर है -वही है करीब ,और वही दूर है . II 15 II 
मुहाल उसकी तकसीम ,अय जी शऊर -मगर उसका हर शै में हिस्सा जरूर ,
सजावार ईरफां वो परवरदिगार -फना और बका पर उसी का मदार .II 16 II 
वही जात नूरुन -अला नूर है -जो तारीकियों से बहुत दूर है .,
वो ईरफां का हासिल भी मकसूद है -वो ईरफां भी हर दिल में मौजूद है.II 17 II 
तुझे मुख़्तसर तौर पर कह दिया -कि इर्फानो मकसूदे ईरफां है क्या ,
बताया तुझे खेत का मैंने हाल -जो समझे मेरा भक्त पाए विसाल .II 18 II 
ये माया अनादी है ,ला इब्तिदा -इसी तरह ला इब्तिदा आत्मा ,
गुन अश्या के और उनकी शक्लें अनेक -ये माया से जाहिर हुई एक एक .II 19 II 
हवासो बदन जो भी पैदा हुए -ये माया के बाइस हुवैदा हुए , 
जो सुख दुख का होता है अहसास सब -ये अहसास है आत्मा के सबब .II 20 II 
कि माया में जब आत्मा हो मकीं -गुनों से हो माया के लज्जत गुजीं , 
गुनों से जो आलूद हो बेशो कम -बुरी या भली जों में ले जनम .II 21 II 
महापुरुष तन में जो है जल्वागर-वो परमात्मा है ,खुदा ,ईश्वर , 
वो नाजिर भी है कार फरमा भी है -वो लज्जत गुजीं भी सहारा भी है .II 22 II 
अगर आत्मा को कोई जान ले -गुनों और माया को पहचान ले , 
रहे जैसे चाहे वो जिस हाल में -न आये तनासुख के जंजाल में .II 23 II 
कोई ध्यान से मन में डाले नजर -तो देखे वो खुद आत्मा जल्वागर, 
कोई सांख्य के योग से देख ले -कोई देख ले कर्म के योग से .II 24 II 
मगर इनसे है बेखबर भी कई -करें सुन सुना कर वो पूजा मेरी , 
जो सुन लें उसी में वो सरशार हों -फना के समंदर से भी पार हों .II 25 II 
मिले खेत से खेत का राजदां-तो अर्जुन उसीसे हो सब कुछ अयां ,
किसी में है जुम्बिश ,किसी में कयाम -इसी मेल से पाए हस्ती तमाम .II 26 II 
जो है कुछ नजर तो ,उसी की नजर -नजर में रहे जिसकी परमेश्वर ,
है सब ग्यान वालों में ग्यानी वही -कि फानी में है ,गैर फानी वही.II 27 II 
जो उस जाते -मुतालिक पे रक्खे यकीं -कि हर एक मकां में वही है मकीं ,
करे वो न खुद आत्मा को तबाह -कि उत्तम गति कि ये अच्छी है राह .II 28 II 
जो समझे कि दुनिया की सब रेलपेल -है माया का करतब ,माया का खेल ,
है खुद आत्मा पुर सुकूं,बे अमल -नजर है उसीकी ,नजर बे खलल .II 29 II 
जिसे आये कसरत में ,वहदत नजर -कि हर रंग में है वही जल्वागर ,
जो वहदत से कसरत का समझे जहूर -खुदा से हो वासिल वही बिल्जरूर .II 30 II 
मकीं तन के अन्दर है परमात्मा -अनादि ,गुनों से बरी ,लाफना ,
अमल से वो फारिग है ,कुंती के लाल -अमल से न आलूद हो लायजाल.II 31 II 
है आकाश दुनिया पे जैसे मुहीत -मुजल्ला ,मुसफ्फा ,कि है वो बसीत ,
बदन में यूँही आत्मा है मकीं -मगर उस से आलूदा होती नहीं .II 32 II 
हो सूरज से जिस तरह रोशन जहां -चमक जाएँ भारत जमीं आसमां ,
इसी तरह खेतों पे छा जाए नूर -जो हो खेत के राजदां का जहूर .II 33 II 
जो चश्मे बसीरत से करता है गौर -कि खेत औरहै ,राजदां इसका और ,
जो माया से ,दे हस्तियों को निजात -बुलन्दी में हासिल करे वस्ले-जात .II 34 II 


-तेरहवां अध्याय समाप्त -




















Wednesday, July 06, 2011

बारहवां अध्याय :भक्तियोग


भक्तियोग -तरीकते इश्क - 

अर्जुन का सवाल - 


जो इस तरह भक्ति में सरशार है-फकत आपके ही परस्तार हैं 
.वो योगी हैं बेहतर ,कि बातिन परस्त -खफी लम यजल ,जाते आली में मस्त .II 1 II 


भगवान ने कहा -


हुए सुन के भगवान यूँ गुल फिशां -हैं बेहतर वही योग में बेगुमां, 
यकीं से जो भक्ति करें मुस्तकिल -मुझी से जो अपना लगाते हैं दिल.II 2 II 
मगर जो पूजें खफी पाक जात -जो कायम है ,दायम है और पुर सबात, 
ख्यालो ,जहूरो ,बयां से बुलंद -हो हाजिर है ,नजीर है और बेगुजंद .II 3 II 
हवास अपने काबू में रक्खें तमाम -सुकूनो -तवाजन हो दिल में मुदाम ,
हरेक की भलाई से मसरूर हों -मुझी से हों वासिल ,न तहजूर हों .II 4 II 
जो जाते खफी से लगाते हैं दिल -उठाते हैं तकलीफ वो मुस्तकिल ,
कि जाते खफी का है ,मुश्किल शुहूद -खफी को न समझेंगे अहले वुजूद .II 5 II 
जो एमाल सब मुझ पे कुरबां करें -परस्तिश मेरी बा दिलो -जां करें ,
जो मकसूदे आली मुझी को बनाएं -फकत मेरे ही ध्यान में दिल लगायें .II 6 II 
मैं करता हूँ ,अर्जुन उन्हें कामगार -तनासुख के फानी समंदर से पार , 
दिल अपना जो मुझ में लगाते रहें -मुझी से निजात अपनी पाते रहें .II 7 II 
लगाए तो दिल ,अपना मुझ में लगा -मुझी में तू कर मह्व अक्ले रिसा , 
तो फिर इसमे हरगिज नहीं कुछ कलाम -तू पायेगा मुझ में कयामो -दवाम .II 8 II 
जो कायम न तू रख सके मुझ में दिल -न यकसू रहे ध्यान में मुस्तकिल , 
तू अभ्यास से कर तलाशे -कमाल ,-इसी योग से ढूँढ़ अर्जुन विसाल.II 9 II 
तू अभ्यास के न हो काबिल अगर -तो फिर मेरी खातिर सब एमाल कर , 
मेरे वास्ते ही जो आमिल हो तू -तो आमाल से मर्दे-कामिल हो तू .II 10 II 
रियाजत में भी गर तू हेठा रहा -तो ले फिर मेरे योग का आसरा , 
तू रख दिल पे काबू ,किये जा अमल -किये जा अमल ,छोड़ दे इनका फल .II 11 II 
कि अफजल है अभ्यास ,करने से ज्ञान -मगर ज्ञान से बढ़ के होता है ध्यान , 
है तर्के-समर ,ध्यान से भी फुजूँ -कि तर्के समर से हो फ़ौरन सुकूं .II 12 II 


वो इंसां जो सुख दुख में हमवार है -जो हर इक का हमदर्द गमख्वार है ,
किसी का न बैरी हो ,बख्शे कुसूर -खुदी से भी दूर और तअल्लुक से दूर .II 13 II 
वो योगी जिसे खुद पे है इख़्तियार -जो साबिर है ,और अज्म में इस्तिवार ,
दिलो -अक्ल जो मुझ पे कुर्बां करे -वही है मेरा भक्त प्यारा मुझे .II 14 II 
जो दुनिया को आजार देता नहीं -जो दुनिया से आजार लेता नहीं ,
बरी बुग्जो -ऐशो -गमो -खौफ से -वही है मेरा भक्त प्यारा मुझे.II 15 II 
जो चौकस है ,बेलाग और बेनियाज -दुखों से मुबर्रा और पाकबाज ,
जो तर्के जजा इब्तिदा से करे -वही है मेरा भक्त प्यारा मुझे.II 16 II 
मुसर्रत से भी दूर ,नफ़रत से भी दूर -गमो ख्वाहिशो -नेको -बद से नफूर .
हमेशा जो भक्ती में शादां रहे -वाही है मेरा भक्त प्यारा मुझे.II 17 II 
बराबर जिसे दोस्त दुश्मन तमाम -न सुख दुख न इज्जत न दौलत से काम ,
हो सर्दी कि गरमी जिसे एकसी -लगन हो न जिसकी किसी से लगी .II 18 II 
बराबर हों जिसके लिए मदहो जम -वो कम गो न जिसको गमे बेशो-कम ,
कवी दिल का ,आजाद घरबार से -वही है मेरा भक्त प्यारा मुझे .II 19 II 
जो करते हैं कायम ,ये अमृत सा धर्म -यकीं से जो रखते हैं ,सीनों को गर्म ,
जो मकसूदे आला समझ लें मुझे -वाही भक्त है सबसे प्यारा मुझे .II 20 II 


-बारहवां अध्याय समाप्त -










Tuesday, July 05, 2011

ग्यारहवां अध्याय :विश्वरूप दर्शन


विश्वरूप दर्शन -जलाले यज्दानी-
अर्जुन ने कहा - 
कहा फिर ये अर्जुन ने अय मोहतरम -किया आपने मुझपे लुत्फो करम , 
बताया खफी अध्यात्म का राज -गया मोह ,आखें हुई सिल की बाज .II 1 II 
कमलनैन मैंने सुना आपसे -कि एहसाम किस तरह पैदा हुए , 
जो पैदा हुए होंगे क्योंकर फना -तुम्हीं को है अजमत ,तुम्हीं को बका .II 2 II 
किया आपने हाल जो कुछ बयां-वही सच है परमेश्वर बेगुमां, 
है पुरुषोत्तम अब इश्तियाक इस कदर -कि दीदारे हक़ देख लूँ इक नजर .II 3 II 
प्रभू आपका है अगर ये ख्याल - कि दर्शन की है मुझको ताबो मजाल ,
तो योगेश्वर ,लुत्फ़ फरमाइए -मुझे लाफना रूप दिखलाइये .II 4 II 
भगवान ने फरमाया -
कर अर्जुन नजर ,देख मेरे सरूप -मेरे सैकड़ों और हजारों हैं रूप ,
मेरी पाक हस्ती के नीरंग देख -नए रूप देख ,और नए ढंग देख .II 5 II 
वसू ,रूद्र ,आदित्य की सूरतें -दो अश्विन भी ,मारुत की भी मूरतें ,
तू भारत के फरजंद सब देख ले -जो देखा नहीं तूने अब देख ले .II 6 II 
जो कुछ चाहे तू देख तन में मेरे-जहाँ सब है ,अर्जुन बदन में मेरे , 
यहीं सारा आलम नमूदार देख -तू साकिन भी देख और सय्यार देख .II 7 II 
मेरी दीद गर तुझको मंजूर है -तेरी आँख का कब ये मकदूर है , 
मैं देता हूँ तुझको खुदायी बसर-मेरे इस शही योग पर कर नजर .II 8 II 
संजय का बयान - 
महाराज ,अर्जुन से कह कर ये बात -हरी ,यानि योगेश्वर पाक ज़ात , 
दिखाने लगे शाने आली का रूप -तो अर्जुन ने देखा खुदायी सरूप .II 9 II 
अनेक उसकी आँखें तो चहरे अनेक -निगाहें अनेक ,उसमे जल्वे अनेक ,
अनेक उसके पुरनूर जेवर सजे -खुदायी वो हथियार उभरे हुए .II 10 II 
खुदायी वो कंठे ,खुदायी लिबास -खुदायी उबटने,खुदायी वो वास ,
वो ला इन्तहाई खडी रूबरू -जो रुख उसका देखे तो रुख चार सू .II 11 II 
फलक पर निकल आयें सूरज हजार -बयक वक्त मिलकर हैं सब नूरबार ,
तो धुंधली सी समझो तुम इसकी मिसाल -महा आत्मा का था ,इतना जलाल .II 12 II 
जो अर्जुन ने देखा कि जल्वानुमा -है देवताओं का वो देवता ,
उसी के तने -पाक में है अयाँ-गिरोहों के गोलों में सारा जहां .II 13 II 
तो अर्जुन को इस दर्जा हैरत हुई -कि सहमा ज़रा और लगी कपकपी ,
हुजूरे खुदावंद में सर झुका -वो यूं जोड़ कर हाथ कहने लगा .II 14 II 
-अर्जुन की मुनाजात -
तुम्हारे पैकर में देव भगवन ,ये देवता सब समा रहे हैं ,
अनेक रंगों में जीव सारे गिरोह बन बन के आ रहे हैं ,
कमल के आसन पे आप ब्रह्मा विराजमान हैं तुहारे अन्दर ,
ऋषी ये सारे ,नाग आसमानी ,सब अपनी सूरत दिखा रहे हैं .II 15 II 
नेक बाजू ,अनेक चहरे ,शिकम अनेक ,और अनेक आँखें ,
अनंत रूपी तुम्हारे जल्वे ,दशों दिशाओं में छा रहे हैं ,
तुम्हारा अव्वल है और न आखिर ,न दरमियां है कोई तुम्हारा ,
हे विश्व रूपी जहाँ के मालिक ,तुम्हीं में आलम समा रहे हैं.II 16 II 
मकुट है पुरनूर ,गुर्ज पुरनूर ,और इस पे चक्कर है शोला अफशां , 
चमक रहे हैं ,दमक रहे हैं ,जहां को भी जगमगा रहे हैं , 
हो जिस तरह आग ,शोला अफशां ,हो जैसे सूरज का रूए ताबां , 
वो अपनी ला इंतहा चमक से ,जहाँ को खीरा बना रहे हैं .II 17 II 
तुम्हीं हो बरतर भी ,ला फना भी ,तुम्ही सजावारे इल्मो इरफां ,
तुम्हीं हो बे इख्तिता में मख्जन,वो जिसमे आलम समा रहे हैं ,
तुम्हीं कदीमी पुरुष हो भगवन,पुरुष वो जिसको फना नहीं है ,
जो लाफाना धरम है ,उसे भी तुम्हारे अहसां बचा रहे हैं .II 18 II 
न इब्तिदा है ,न इंतिहा है ,न वस्त से वास्ता है तुमको, 
तुम्हारे ला इंतिहा हैं बाजू ,जो जोरे ताकत दिखा रहे हैं , 
तुम्हारी आँखें चाँद सूरज ,तुम्हारा चेहरा हवन की अगनी . 
तुम्हारे जल्वे हैं शोला अफशां ,जो कुल जहां को तपा रहे हैं .II 19 II 
जमीं में जल्वा,समां में जल्वा,और उनके अन्दर खला में जल्वा , 
दशों दिशाओं में ,ईश्वर सब तुम्हारे जल्वे समा रहे हैं , 
महात्मा है तुम्हारी सूरत ,वो जिस से बरसे जलालो हैबत , 
कि तीनों दुनिया के रहने वाले ,लरज रहे ,थरथरा रहे हैं II 20 II 
ये देवताओं के गोल सारे ,तुम्हीं में सब हो रहे हैं शामिल , 
तमाम हैबत से हाथ बांधे ,तुम्हारे गुण गुनगुना रहे हैं , 
तुम्हारी स्वस्ति पुकारते हैं ,महारिशी और सिद्ध मिलकर , 
तुम्हारी तारीफ़ गा रहे हैं ,तुम्हारे नगमे सुना रहे हैं .II 21 II 
वो रूद्र ,आदित्य और वसु सब ,वो साध्या और विश्व अश्वां,
तमाम महबूत हो रहे हैं ,निगाह को हैरत में ला रहे हैं ,
गिरोह पितरों के और मारुत ,वो यक्ष ,गन्धर्व राक्षस सब ,
गिरोह सिद्धों के मिल मिलाकर सभी अचम्भे में आ रहे हैं .II 22 II 
हजारों चहरे ,हजारों आँखें ,हजारों बाजू ,हजारों जानू , 
शिकम हजारों ,कदम हजारों ,बला के दंदां डरा रहे हैं , 
तुम्हारा बेअंत रूप वो है कि हे शहंशाहे जोरो -ताकत , 
मैं खुद भी कांपता हूँ ,जहां भी सब थरथरा रहे हैं .II23II
तुम्हारा ये पुर जलाल कामत जो आसमां से लगा हुआ है , 
अनेक रंग उस पे छा रहे हैं ,जो जैबो जीनत बढ़ा रहे हैं , 
फराख चेहरा खुला हुआ मुंह बड़ी बड़ी शोलावार आँखें , 
न मुझमे ताकत न चैन ,विष्णु ,ये मेरे मन को डरा रहे हैं .II 24 II 
तुम्हारी दाढ़ें उभर रही हैं ,कि आग महशर की जल रही है , 
फना के शोले निकर रहे हैं ,जो इक जहां को जला रहे हैं , 
मेरा सहारा है न ठिकाना ,करम हो मुझपर ,करम हो मुझपर , 
तुम्हारे साए में सारे आलम ,सरों को अपने झुका रहे हैं .II 25 II 
वो धृष्ट राष्ट्र के बेटे ,और उनके साथी जहां के राजा , 
पितामा भीषम ,औ द्रोनाचारज ,वो कर्ण रथवान आ रहे हैं , 
हमारी जानिब के ऊंचे अफसर ,सिपाहसालार नामवाले , 
तम्हारे कालिब में आ रहे हैं ,तुम्हारे तन में समां रहे हैं.II 26 II 
तुम्हारे खूंखार मुंह के अन्दर हैं ,सफ ब सफ हौलनाक दाढ़ें, 
मैं देखता हूँ कि,अहले आलम सब अपनी हस्ती मिटा रहे हैं . 
पहुँच कर जबड़ों की चक्कियों में ,सर उनंके पिस कर हुए हैं चूरा , 
खला में दांतों के इनमे अक्सर फंसे हुए लड़खड़ा रहे हैं .II 27 II 
दहन तुम्हारे चमक रहे हैं ,और उनमे यूं कौंधते हैं शोले ,
जहां के सब शूरवीर ,खुद को ,उन्हीं के अन्दर गिरा रहे हैं ,
वो इस तरह जा रहे हैं ,कि जैसे नदियों के तेज धारे,
किसी समंदर के मुंह के अन्दर सब अपनी हस्ती मिटा रहे हैं .II 28 II 
दहन के शोलों में कूदते हैं ,ये तेज रफ़्तार लोग सारे ,
फ़िदा सभी तुम पे हो रहे हैं ,ये मौत के मुंह में जा रहे हैं ,
नहीं ये इन्सां ,ये हैं पतंगे जो इश्को -मस्ती में वालिहाना ,
अजल के शोलों पे उड़ रहे हैं ,फ़ना से जो लौ लगा रहे हैं .II 29 II 
मजे से लब अपने चाटते हो तुम ,इक जहाँ को निगल निगल कर ,
जुबां से शोले निकल रहे हैं ,हरेक को लुक्मा बना रहे हैं ,
तुम्हारी ताबो -तपिश से विष्णु ,तमाम आकाश है दहकता ,
तुम्हारी किरनों के तेज जल्वे ,जमाने भर को जला रहे हैं .II 30 II 
हो देवताओं के देवता तुम ,तुम्हें नमस्कार ,कुछ बता दो ,
तुम्हारी इस पुर जलाल सूरत में किसके जल्वे समां रहे हैं ,
तुम्हारी हस्ती अजल से पहले ,बताओ मुझको कि कौन हो तुम ,
ये कैसे इसरार हैं तुम्हारे ,जो मुझको हैरां बना रहे हैं .II 31 I
-अर्जुन की मुनाजात ख़त्म -
भगवान का इरशाद - 
कजा हूँ मैं ,कजा हूँ मैं -कि दर पाए फना हूँ मैं , 
जहाँ की हस्तो बुद को -मिटने आ रहा हूँ मैं , 
ये शूरवीर लश्करी -जो मिल रहे हैं जंग पर , 
तो न हो ये सबके सब -हलाक कर चुका हूँ मैं .II 32 II 
तू अर्जुन उठ हो नेकनाम -दुश्मनों को घेर कर , 
ब जोर छीन ताजो तख़्त -हमसरों को जेर कर , 
ये मर चुके ,ये मर चुके -फ़ना मैं इनको कर चुका , 
तू बाएं हाथ वाले उठ -वसीला बन ,न देर कर.II 33 II 
मैं कर्ण भीष्मऔर द्रोण -इन्हें हलाक़ कर चुका ,
ये जयद्रथ ,ये जंगजू -समझ हरेक मर चुका ,
तू जीत जायेगा न डर-उदू से अपने जंग कर ,
तू मार इन्हें ,ये मर चुके -सफ़र जहाँ से कर चुके.II 34 II 
संजय ने कहा -
सुनी जब ये गुफ्तार भगवान की-लगी साहबे ताज को कपकपी ,
जुबां लड़खड़ाई गला रुक गया -झुका ,जोड़कर हाथ कहने लगा .II 35 II 
-अर्जुन की मुनाजात -2 .
ज़माना करता है अय ऋषिकेश ,जिसकी हम्दो सना तुम्हीं हो , 
ख़ुशी से गाते हैं गुन तुम्हारे ,कि सबके परमात्मा तुम्हीं हो . 
तम्हीं से डर डर के राक्षस सब ,दशों दिशाओं में भागते हैं , 
करें नमस्कार सिद्ध मिलकर ,जिसे वो सबके खुदा तुम्हीं हो .II 36 II 
बड़े हो ब्रह्मा से मरतबे में ,कि खुद ही ब्रह्मा के तुम हो मूजिब ,
करें नमस्कार क्यों न सारे कि जाते- ला इंतिहा तुम्हीं हो ,
तुम्हीं हो सत भी तुम्हीं असत भी ,तुम्हीं हो नित भी तुम्हीं अनित भी ,
जगन्निवास और महात्मा तुम देवों के देवता तुम्हीं हो.II 37 II 
तुम्हीं हो बरतर खुदाए अव्वल ,पुरुष कदीमी ,पनाहे आलम ,
तुम्हीं सजावारे इल्मो इरफां,अलीमे राज आशना तुम्हीं हो ,
तुम्हीं से फैला जहान सारा ,तुम्हीं हो सबका मुकामे अफजल ,
है जिस से भरपूर सारी दुनिया ,अनंत रूपी खुदा तुम्हीं हो .II 38 II 
तुम्हीं जहां के हो बाप दादा ,तुम्हीं हो ब्रह्मा तुम्हीं हो यम भी , 
तुम्हीं वरुण हो तुम्हीं हो अगनी ,तुम्हीं हो चाँद और हवा तुम्हीं हो , 
तुम्हें नमस्कार ,फिर नमस्कार ,फिर नमस्कार ,मेरे दाता, 
तुम्हें नमस्कार हों हजारों ,खुदाए इज्जो -अला तुम्हीं हो .II 39 II 
तुम्हें नमस्कार हाजिराना ,तुम्हें नमस्कार गायबाना ,
तुम्हें नमस्कार हर तरफ से कि कुल में जल्वानुमा तुम्हीं हो ,
तुम्हारी कुव्वत की कोई हद है न जोरो ताकत की इंतिहा है ,
तुम्हीं से कायम है सारा आलम ,कोई नहीं दूसरा ,तुम्हीं हो .II 40 II 
कभी कहा मैंने कृष्ण तुमको ,कभी कहा मैंने दोस्त यादव ,
मैं बेतकल्लुफ यही समझता रहा कि यार -आशना तुम्हीं हो ,
इसे समझ लो मेरी मुहब्बत ,इसे समझ लो मेरी जहालत ,
न पहले अफसोस ,मैंने समझा कि शाहे अर्जो-समां तुम्हीं हो .II 41 II 
जो बैठते ,उठते खाते पीते ,जो जागते सोते खेलते में ,
हुई हों गुस्ताखियाँ तो बख्शो कि जाते -ला इंतिहा तुम्हीं हो ,
कभी अकेले ,कभी सभा में ,कहा हो कुछ दिल्लगी में तुमको ,
तो पुरखता की खता को बख्शो ,कि हस्तीए बेखता तुम्हीं हो .II 42 II 
हैं जितने साकित ,हैं जितने सय्यार सभी जहानों के हो पिता तुम , 
तुहीं को शायां है सारी इज्जत ,कि मुर्शिदो -रहनुमा तुम्हीं हो, 
नहीं तुम्हारी मिसाल कोई ,किसे फजीलत है तुम से बढ़कर, 
न जिसकी ताकत का तीनों आलम में है कोई दूसरा ,तम्हीं हो.II 43 II 
इसीलिए सिजदा कर रहाहूँ तुम्हारे आगे झुकाए सर को ,
कि जिसको जैबा है सिजदा करना ,फकत मेरे किब्रिया तुम्हीं हो ,
पिदर नवाजिश करे पिसर पर ,सजन सजन पर ,पिया पिया पर ,
दया करो तुम भी मुझ पे भगवन ,कि बह्रे -लुत्फो -अता तुम्हीं हो.II 44 
तुम्हारा मैंने वो रूप देखा न जिसको देखा था मैंने पहले ,
मैं खुश भी हूँ ,और मैं गमजदा भी ,मुकामे बीमो -रजा तुम्हीं हो ,
मुझे दिखादो ,मुझे दिखादो ,वही वो पहले सी अपनी सूरत ,
जगन निवास ,अब दया हो मुझ पर कि देवों के देवता तुम्हीं हो.II 45 II 
मुकुट लगाया हो ,गुर्ज उठाया हो ,हाथ में हो तुम्हारे चक्कर ,
वो रूप पहले सा देख लूँ मैं ,कि देर से आशना तुम्हीं हो ,
दया करो मुझपे ,फिर दिखाओ वो मूरती चार हाथों वाली ,
तुम्हारे हैं गो हजार बाजू ,कि विश्वरूपी खुदा तुम्हीं हो .II 46 II 
-अर्जुन की दूसरी मुनाजात ख़त्म -


-भगवान ने फरमाया - 
सुन अर्जुन अब मेरी दया कि,ये तुझ पे बिल्जरूर है , 
कि मैंने अपने योग से ,दिखा दिया जहूर है , 
न जिसको देखा आजतक ,किसीने भी तेरे सिवा , 
वो अव्वलीं ,वो दायमी ,ये विश्वरूप नूर है .II 47 II 
कुरु के खानदान में ,मिली है तुझको सरवरी , 
दिखाया तुझको अपना रूप ,है ये बन्दा परवरी , 
न वेद,जप से मिल सके ,दान तप से मिल सके , 
न यग ,न कर्मकांड से ,दिखायी दे सके हरी .II 48 II 


हिरासो खौफ छोड़ दे ,न जार हो ,न जार हो ,
न हौलनाक रूप से ,मेरे तू बेकरार हो ,
ले मेरी शक्ल देख ले ,तू जिस से आशना भी है ,
ये वहमो खौफ दूर कर ,ख़ुशी से हमकिनार हो .II 49 II 
संजय ने कहा -
ये कहकर महा आत्मा ने वहीँ -दिखाई वही पहली सूरत हसीं ,
गया खौफ ,सब आन की आन में -तसल्ली से जान आ गई जान में.II 50 II 


अर्जुन का इकरार -
जो अर्जुन ने देखा ,तो भगवान की-वही पहली सूरत थी इंसान की ,
कहा अब मेरा दिल ठिकाने लगा -मुझे होश भगवान आने लगा .II 51 II 
भगवान का इरशाद -
फिर अर्जुन से भगवान कहने लगे -कि,तूने जो अब मेरे दर्शन किये ,
सदा देवताओं का अरमां रहा -ये दर्शन कहाँ उनको हासिल हुआ .II 52 II 
मुझे तूने देखा है ,जिस तौर से -यही तौर मुमकिन नहीं और से ,
ये दीदार यग से ,न तप से मिले -न दान और वेदों के जप से मिले .II 53 II 
अगर मेरी भगती में यकसू रहे -मेरा ज्ञान हो ,और मुझे देख ले ,
हकीकत का इरफां भी हासिल हो फिर -मेरी जाते -आली में वासिल हो फिर II 54 II 
मेरा भक्त हर काम मेरा करे -तअल्लुक किसी से ,न नफ़रत उसे ,
करे मुझको मकसूद अपना ख्याल -तो अर्जुन वो पाए मुझी से विसाल .II 55 II 


-ग्यारहवां अध्याय समाप्त -














































Monday, July 04, 2011

दसवां अध्याय :विभूति योग


विभूति योग -जलाले यज्दानी 
भगवान का इरशाद 
सुखनसंज भगवान फिर यूं हुए -कि सुन अय कवी -दस्त प्यारे मेरे , 
ये आला सुखन फिर बताता हूँ मैं -भलाई का रस्ता फिर दिखाता हूँ मैं .II 1 II 
हुए देवता महारिशी जिस कदर -मेरी इब्तदा से हैं बेखबर , 
मुझी से है सब देवताओं कि बूद-मिला मुझसे हर महारिशी को वुजूद .II 2 II 
समझता है मुझको जो बे इब्तदा -जनम से बरी ,शाहे अरजो -समा , 
फरेबे नजर से वही पाक है -गुनाहों से आजाद औ बेबाक है .II 3 II 
मुझी से है सुख दुख,दिलेरी ,हिरास -खिरद ,इल्मे कल्ब -हकीकत शनास , 
सदाकत ,सुकूं,ज़ब्त ,उफू औ करम -मुझी से वुजूद ,और मुझी से अदम .II 4 II 
अहिंसा ,कनाअत ,दिले पुर सुकूं - रियाजो सखा ,नामे नेक औ जुबूं , 
गरज जानदारों में जो हैं सिफात -है उन सबकी बिना मेरी पाक ज़ात .II 5 II 
वो सालों मुआज्जिज ऋषि नामदार -मनू और वो चारों कदीमी कुमार , 
जहां वाले सब जिनसे पैदा हुए -वो मेरे ही मन से हुवैदा हुए .II 6 II 
जो कुव्वत मेरे योग की जान ले-हकीकत मुजाहिर की पहचान ले , 
वो कायम रहे योग पर बिल्यकीं-तवाज़न है उसमे तजल्जल नहीं .II 7 II 
मेरी ज़ात है मिब्नाए कायनात -मुझी से हुआ इरताकाए -हयात , 
यकीं इस पे करते हैं ,जो अहले होश -करें मेरी भगती बजोशो खरोश .II 8 II 
मुझी में हैं मन को जमाये हुए -हैं प्राण अपने मुझमे लगाए हुए , 
वो करते हैं आपस में पुरनूर दिल -मेरे ज़िक्र से शादो -मसरूर दिल .II 9 II 
वो रहते हैं यकदम मेरे जौक से -वो करते हैं पूजा मेरी शौक से , 
मैं देता हूँ उनको वो दानिश का योग -की हो जाते हैं मुझसे वासिल वो लोग .II 10 II 
जो रहम उनकी हालत पे खाता हूँ मैं -तो घर उनके दिल में बनाता हूँ मैं ., 
दिखाता हूँ उनको हिदायत का नूर -अन्धेरा जहालत का हो जिस से दूर .II 11 II 
अर्जुन ने कहा - 
तू आली खुदा ,तेरा आली मुकाम -वो हस्ती है तू ,जिसकी अज़मत मुदाम . 
तू माबूदे अव्वल ,तेरी पाक जात -जमम से बरी ,मालिके कायनात .II 12 II 
इसी तरह लें आपके पाक नाम -असित ,व्यास ,देवल ,ऋषी भी तमाम , 
यही देव नारद बताएं सिफात -यही आप अपनी सुनाएँ सिफात .II 13 II 
गरज आपने जो बताया मुझे -यकीं केशौ भगवान आया मुझे , 
न समझा कोई आपकी शान को -कोई देवता हो ,कि शैतान हो .II 14 II 
ऐ खालिक जगत के और ए किब्रिया -सभी देवताओं के हो देवता , 
पुरुषोत्तम ऊंची है बात आपकी -अगर बात जानें ,तो ज़ात आपकी.II 15 II 
करें आप मुझपर मुकम्मिल अयां-जलाले मुक्कदस का वाजिह निशां,
जहां फैज़ से जिसके मामूर है-जमीनों -जमां जिस से पुर नूर है .II 16 II 
बता दीजिये मेरे योगी ज़रा -मिले ध्यान से कैसे ज्ञान आपका ,
करूं किन मुजाहिर में जम कर ख्याल -कि खुल जाए मुझपर हकीकत का हाल .II 17 II 
ज़रा योग अपना बयां कीजिए -जलाल अपना भगवन अयां कीजिए ,
कि बातें वो अमृत सी हैं आपकी -तबीयत नहीं सैर होती कभी .II 18 II 
भगवान का इरशाद - 
हुए सुन के भगवान यूं लबकुशा -हैं अर्जुन मेरे वस्फ़ ला इंतिहा , 
जलाल अपना कुछ कुछ बताता हूँ मैं -सिफ़ाते -नुमायाँ दिखाता हूँ मैं .II 19 II 
सुन अर्जुन हूँ मैं आत्मा बिल्यकीं-जो है जानदारों के दिल में मकीं , 
हूँ मैं मिस्ले जां,अहले जां में निहां -मैं अव्वल ,मैं आखिर ,मैं हूँ दरमियां.II 20 II 
आदित्तियों में है मेरा "विष्णु "खिताब -मैं अश्याये पुर नूर में आफताब , 
"मरीची "मरूतों के अन्दर हूँ मैं -मनाजिल में तारों के "चंदर "हूँ मैं .II 21 II 
समझ मुझको वेदों में तू वेद साम -मेरा देवताओं में "वासु "है नाम ,
हिसों में हूँ मैं मन ,मुझको पहचान तू -तू जां अहले जां की मुझे जां तू .II 22 II 
मैं रुद्रों के अन्दर हूँ "शंकर "दिलेर -जो हैं राक्षस ,यक्ष उनमे कुबेर ,
तो वसुओं में अग्नी ,मुझे तू समझ -सब ऊंचे पहाड़ों में मेरू समझ .II 23 II 
पुरोहित हैं जो ,उनमे ब्रहस्पत हूँ मैं -सुन अर्जुन कि सर करदा प्रोहित हूँ मैं ,
सिकंद अहले लश्कर के अन्दर कहो -तो झीलों के अन्दर समंदर कहो .II 24 II 
भृगू यानी ऋषियों का सरदार हूँ -सुखन में सुखन यानी ओंकार हूँ ,
यगों में हूँ जप यग ,निराला हूँ मैं -जो मुहकम हैं ,उनमे हिमाला हूँ मैं .II 25 II 
दरख्तों में पीपल का हूँ में दरख़्त -मैं ऋषियों में नारद ,अय नेकबख्त ,
हूँ गन्धर्व लोगों में चितरथ मैं -कपिल हूँ मुनी उनमे जो सिद्ध हैं .II 26 
मैं घोड़ों में इन्दर हूँ अस्पेनर -जो अमृत के मंथन में आया नजर ,
मैं फीलों के अन्दर हूँ इन्दर का फील -जो इंसान हैं उनने शहे-बेनदील.II 27 II 
मैं आलाते जंगी में बर्के -तपां-मैं गायों में हूं कामधुक बेगुमाँ,
शहंशाह नागों का मैं वासुकी -हूँ कंदर्प जिस से हों पैदा सभी .II 28 II 
मैं नागों में हूँ शेष लाइन्तिहा -मैं जल वासियों में वरुण देवता ,
मैं पितरों में हूँ अर्यमा जी हशम-मैं दुनिया के फर्मा-रवाओं में यम .II 29 II 
मैं हूँ देत्याओं में पहलाद सुन -मैं वक्त उनमे रखें जो गिनती का गुन,
मैं शेरे बबरसब दरिंदों में हूँ -तो विष्णू का शाही परिंदों में हूँ .II 30 II 
मैं सरसर हूँ उनमे जो हैं तेजगाम -मैं हूँ तेगो शमशीर वालों में राम , 
मुझे मछलियों में मकर जान तू-तो नहरों में गंगा मुझे मान तू.II 31 II 
मैं आगाज़ ओ अंजाम अहले जहां -जो कुछ दरमियाँ है तो मैं दरमियाँ , 
मैं इल्मों में हूँ इल्मे जां अय अकील -दलीलों में अर्जुन मैं हक़ की दलील .II 32 II 
अलिफ़ हूँ ,सुखन जो करे इब्तदा -मैं हूँ अत्फ़ ,लफ्जों के जो दे मिला , 
मैं हूँ वक्त जिसको फना ही नहीं -मुहाफिज हूँ वो जिसका रुख हर कहीं .II 33 II 
कज़ा हूँ जो करती है सबको फना -नयी जिन्दगी की हूँ मैं इब्तदा , 
मैं हूँ सनफे-नाजुक में इकबालो नाम -सुखन ,हाफिजा ,उफू अक्लो कयाम .II 34 II 
सामों में बृहत साम ,अय होशमंद -तो छंदों में गायत्री का मैं छंद , 
महीनों में मुझको अघन कर शुमार -तो मौसम में ,फूलों की हूँ मैं बहार .II 35 II 
जुआ हूँ मैं ,जो चलते हैं चाल -जलाल उनका ,जिनमे है जाहोजलाल , 
इरादा भी मैं ,फतहो नुसरत भी मैं -जो सादिक हैं ,उनकी सदाकत भी मैं .II 36 II 
मैं वृष्णओं हूँ वासुदेव अय मुशीर -कबीले में पाण्डू के अर्जुन अमीर , 
मैं हूँ व्यास ,उनमे हैं जितने मुनी -जो शायर हैं ,उनमे हूँ उशना कवी .II 37 II 
जो हाकिम हैं मैं उनमे ताजीर हूँ -जो फातिह हैं ,मैं उनकी तदबीर हूँ , 
मैं राजों में हूँ ,ख़ामुशी पर्दा पोश -मैं हूँ ज्ञान उनका ,जो हैं इल्मकोश .II 38 II 
करूं खल्के आलम की तरबीज मैं -हूँ अर्जुन हरेक चीज का बीज मैं , 
है साकिन कोई ,याकि सय्यार है -मगर मुझसे बाहर न ज़न्हार है. II 39 II 
परन्तप ,यहाँ गौर कर ले ज़रा -मेरे पास जलवे हैं ला इंतिहा ,
जो थोड़ा सा तुम से बयाँ कर दिया -नमूना सा थोड़ा अयां कर दिया .II 40 II 
नजर आये कुव्वत कहीं या जलाल -शिकोह ,या तजम्मुल कि हुस्नो जमाल ,
समझले कि उसमे है जल्वा फ़िगन -मेरे बेकराँ नूर की इक किरन.II 41 II 
न तफसील में जाके उलझन बढ़ा -कि कसरत से अर्जुन तुझे काम क्या ,
ज़रा ये करिश्मा हुआ है अयां -इसी से मामूर सारा जहां .II 42 

-दसवां अध्याय समाप्त -
























Sunday, July 03, 2011

नौवां अध्याय :राजविद्या राजगुह्य


राजविद्या राजगुह्य -सुल्तानुल उलूम -
भगवान ने फरमाया -
तू अर्जुन नहीं ऐबजू ,नुक्ताचीं-कर अब मुझसे राजे -खाफी दिलनशीं , 
मिलेगा यहीं इल्मो -इर फां ना नूर -इसे जान जाए तो हों पाप दूर .II 1 II 
ये इल्मे शही है ,ये राजे शही-करे पाक हर शै से बढ़कर यही , 
अयां खुद बखुद हो की आसां है ये -फना से बरी ऍन ईमां है ये.II 2 II 
जो इस धर्म पे दिल लगाते नहीं -वो अर्जुन ,कभी मुझको पाते नहीं , 
न वासिल हों ,मुझसे ,वो मुझतक न आयें -जहाने फना की तरफ लौट जाएँ .II 3 II 
खफी से खफी है मेरी हस्तोबूद -मगर है मुझी से जहां की नुमूद , 
मुझी में है मखलूक सारी मकीं -मगर मैं मकीं खुद किसी में नहीं .II 4 II 
न लोगों में मैं हूँ ,न मुझमे हैं लोग -ज़रा देखना ये मेरा राजयोग , 
मेरी आत्मा बाइसे खासो आम -नहीं मेरा लेकिन किसी में मुकाम .II 5 II 
हवा गो चले जोर से सरबसर -इधर से उधर या उधर से इधर ,, 
वो आकाश से बाहर से जाये कहाँ -समझ लो यूँही मेरे अन्दर जहाँ .II 6 II 
जब इक दौर हो ख़त्म ,कुंती के लाल -तो हो मेरी माया में सबका विसाल ,
नए दौर की हो जो फिर से नुमूद -करूं मैं ही पैदा ,सब अहले वुजूद .II 7 II 
इसी अपनी माया से लेता हूँ काम -मैं करता हूँ जांदार पैदा तमाम ,
चलें जौक -दर जौक ,सब बार बार -कि माया के हाथों हैं ,बे ऐतबार .II 8 II 
सुन अय अर्जुन ,साहबे सीमो जर -नहीं ऐसे कर्मों का मुझ पर असर ,
कि रहता हूँ मैं ,बे गरज सरफराज -इन अफआलों -आमाल से बेनियाज़ .II 9II
मैं नाजिर हूँ इसका ये करती है काम -हूँ माया से सय्यारो -साबित तमाम , 
समझ ले इसी तौर ,कुंती के लाल -है चक्कर ही चक्कर में दुनिया का हाल.II 10 II 
जब आता हूँ इन्सां का पहने लिबास -नहीं करते पर्वाह न मेरी शनास , 
मेरी शाने-आली नहीं जानते-शहंशाह मुझको नहीं मानते..II 11 II 
अबस हैं उमीदें अबस हैं अमल -अबस इल्म उनका ,समझ में खलल , 


तबीयत में धोका भी वहशत भी है -भरी शैतनत भी खबासत भी है.II 12 II
वो इन्सां जो खसलत में हैं देवता -जो हैं नेक फितरत अहा आत्मा , 
करें कल्ब यकसू से पूजा मेरी -कि मैं लाफना मब्नाए जिन्दगी II 13 II 
हमेशा वो गुन मेरे गाते रहें -वो अहद अपना जी से निभाते रहें , 
इबादत करें मेहनत और शौक से -करें मुझको सिजदे दिली जौक से.II 14 II 
कई रूप देखे मेरे बेशुमार -वो हों ज्ञान यग से इबादत गुजार , 
वो वहदत कि कसरत हर आहंग में -मुझे पूजते हैं ,वो हर रंग में .II 15 II 
तू यज्ञ और पूजा मुझी को समझ -श्राद्धों का गल्ला मुझी को समझ , 
मैं बूटी हूँ ,मंतर भी ,अगनी ,हूँ ,घी -मैं यग भी हूँ ,और उसके आमाल भी .II 16 II 
मैं सारे जहां का हूँ ,माता पिता-मैं दादा हूँ सबका ,हूँ में आसरा , 
सजावार इरफां हूँ ,पाकीजा भेद -मैं हूँ ओम ,रिक -यजुर साम वैद.II 17 II 
मैं आका ,मैं वाली ,सुखन में गवाह -मैं मंजिल में मसकन ,मैं जाए पनाह , 
मैं आगाज ओ अंजामो -गंजो मुकाम -मैं वो बीज हूँ जो रहेगा मुदाम .II 18 II 
मुझी से तपिश है ,कुंती के लाल -कभी खुश्क साली कहीं बर्शगाल ,
फनाओ बका की मुझी से नुमूद -मुझी से है सत और असत का वुजूद .II 19 II 
जिन्हें तीनों वेदों में है दस्तरस -वो जन्नत के तालिब पियें सोमरस ,
परस्तार मेरे ये मासूम लोग -मिले उनको जन्नत में देवों के भोग .II 20 II 
फिजाओं में जन्नत की खुशियाँ मनाएं -मगर खाली होकर यहीं लौट आयें ,
मुराद अपनी वेदों से पाते रहें -वो आते रहें ,और जाते रहें .II 21 II 
जो करते हैं खालिस इबादत मेरी -जो यक दिल हों जी में न रक्खें दुई ,
करूं हाजतें उनकी पूरी तमाम -वो मेरी हिफाजत में रहें सुबहोशाम .II 22 II 
सनम दूसरे जो मनाते रहें -दिल उनपर यकीं से लगाते रहें ,
करें वो न गो हस्बे दस्तूर काम -परस्तार वो भी हैं मेरे तमाम .II 23 II 
कि यग जितने करते हैं दुनिया में लोग -मैं हूँ उनका मालिक ,खाता हूँ भोग ,
न जाने वो मेरी हकीकत का हाल -इसी वास्ते पायें आखिर जवाल .II 24 II 
मनाएं जो पितरों को ,पितरों तक आयें -जो भूतों को पूजें ,भूतों को पायें , 
समम के पुजारी ,सनम से मिलें -हमारे परस्तार हम से मिलें .II 25 II 
मेरी नज्र देता है जो शौक से-दिले -पाक से ,चाह से जौक से , 
मैं नज्र उसकी करता हूँ बेशक क़ुबूल -वो फल हो कि पानी ,कि पत्ती कि फूल .II 26 II 
फकत मेरी खातिर तू हर काम कर-हवन ,दान दे ,सब मेरे नाम कर , 
तेरा खाना पीना हो मेरे लिए -तेरा तप से जीना हो मेरे लिए.II 27 II 
कटेंगे ये कर्मों के बंधन तमाम -न होगा बुरे या भले फल से काम , 
जो तू पाक दिल से होके संन्यास पाए -तू आजाद होकर मेरे पास आये .II 28 II 
मेरे वास्ते खल्क यकसां है सब -न इससे मुहब्बत ,न उस से गज़ब , 
वो पूजें मुझी को बा सिद्को-यकीं-मैं उनमे हूँ ,और वो मुझमे मकीं .II 29 II 
कोई आदमी गरचे बदकार है -मगर मेरा दिल से परस्तार है , 
उसे भी समझ लो कि साधू है वो -इरादे में नेकी के यकसू है वो .II 30 II 
वो धरमातामा जल्द हो जायेगा -करारो -सुकूं दायमी पायेगा ,
समझ ले ,मेरा भगत ,कुंती के लाल -न होगा फना ,और न पाए जवाल .II 31 II 
बशर पाप का पेट से हो कोई -वो हो शूद्र या वैश्य या स्त्री -
मुझे आसरा जब बनाएगा वो -तो आला मनाज़िल पे जायेगा वो .II 32 II 
मुक़द्दस बिरहमन का रुतबा न पूछ -रिशी राज भगतों का दरजा न पूछ ,
तुझे दुख की दुनियाए फानी मिली -तू कर सच्चे दिल से परस्तिश मेरी .II33 II 
जमा ध्यान मुझमे ,हो मुझ पर फ़िदा -तू यग कर ,तू मेरे लिए सर झुका ,
अगर योग में दिल लगाएगा तू -मैं मकसद हूँ ,मुझको पायेगा तू .II 34 II 
-नौवां अध्याय समाप्त -









Thursday, June 30, 2011

आठवां अध्याय :अक्षरब्रह्म


 अक्षरब्रह्म -हस्तीये लाज़वाल -


अर्जुन का सवाल -
फिर अर्जुन ने पूछा ये बागवान से-कि पुरुषोत्तम ,अब मुझसे फरमाइए , 
है ब्रह्म और अध्यात्म क्या मुद्दआ -हैं कर्म और अधिभूत ,अधिदेव क्या.II 1 II 
अधियग है क्या चीज बतलाइये -मकीं तन में है कौन फरमाइए , 
जिसे दिल पे काबू है मरते हुए -मधूकुश तुम्हे कैसे पहचान ले .II 2 II 
भगवान का जवाब - 
है बाह्म हस्ती आली ,और बेजवाल -तो अध्यात्म अश्या की फितरत का हाल , 
वो कुदरत हुई ,जिससे मख्लूब सब -तो है कर्म ,खल्के -जहां का सबब .II 3 II 
अधिभूत फानी ,वजूदे जहां -पुरुष है अधिदेव रूहे-रवां , 
अधियग ,सुन ऐ फख्रे-अहले वजूद -मैं खुद हूँ ,कि मेरी है तन मन नुमूद .II 4 II 
जब इन्सां जहां से गुजरता हुआ -मेरी ही करे याद मरता हुआ , 
तो फिर इसमे शक का नहीं एहतमाल-उसे मर के हासिल हो मेरा विसाल.II 5 II 
जब इन्सां बदन को करे खैरबाद-करे आखिरी वक्त जिस शै को याद , 
तो अर्जुन ,उसी शै से वासिल हो वो -लगाई थी लौ ,जिस से हासिल हो वो .II 6 II 
मुझे याद अर्जुन ब हर रंग कर -लिए जा मेरा नाम और जंग कर ,
फ़िदा मुझ पे कर दानिशो -दिल तमाम -मेरा वस्ल पायेगा तू लाकलाम .II 7 II 
अगर योग की मश्क हो मुस्तकिल -किसी गैर का जब ख्वाहाँ न दिल ,
हो पुरनूर -आली पुरुष का ख्याल -तो हासी उसी से हो अर्जुन विसाल .II 8 II 
जो करता है यादे खुदाए अलीम -पनाहे जहां ,बादशाहे -कदीम , 
जो सूरज सा पुरनूर ,ज़ुल्मत से दूर - खफी से खफी ,मावराए शऊर .II 9 II 
जो भगती करे योग से मुस्तकिल -जो मरने पे रखता है मजबूत दिल ,
प्राण अपने दो अबरुओं में जमाये-तो पुरनूर आली पुरुष को वो पाए.II 10 II 
सुन अब मुख़्तसर मुझसे वो राहे योग -तजर्रुद में शौक में जिसके योग ,
जहां बे गरज अहले संन्यास जाएँ -जिसे वेद -दां गैर फानी बताएं .II 11 II 
बदन के अगर बंद सब दर करे -जो मन है उसे दिल के अन्दर करे ,
जमे इस तरह योग से उसका ध्यान -कि इन्सां के बस में रहे उसके प्रान.II 12 II 
जिसे 'ओम 'कहते हैं ,नामे खुदा -वो इक रुक्न का हर्फ़ जीता हुआ , 
मेरे ध्यान में जिसका हो इख्तिताम -मिले उसको मरते ही आला मुकाम .II 13 II 
सदा मेरा पैहम जिसे ध्यान है -तो मिलना मेरा उसको आसान है , 
मुझे दिल से अर्जुन भुलाता नहीं- किसी गैर से दिल लगाता नहीं .II 14 II 
महा आत्मा मुझसे पाकर विसाल -रहें पुरसुकूंलेके ओजे कमाल , 
हुलूल औ तनासुख ,न दौरे हयात -फना और मुसीबत से पायें निजात .II 15 II 
कि ब्रह्मा की दुनिया तक अहले जहां -तनासुख के चक्कर में हैं बेगुमां, 
मगर जिसको हासिल हो मुझसे विसाल -बरी है ,तनासुख से ,कुंती के लाल .II 16 II 
जो वाकिफ है राजे -लैलो-नहार -करे वक्त ब्रह्मा का ऐसे शुमार , 
हज़ार अपने युग हों ,तो एक उसका दिन -हज़ार अपने युग की फिर इक रात दिन .II 17 II 
हो ब्रह्मा के दिन जब सहर की नुमूद -तो बातिन से ज़ाहिर हो बज्मे शुहूद , 
मगर जिस घड़ी आये ब्रह्मा की रात -तो बातिन में छुप जाए कुल कायनात .II 18 II 
ये मखलूक पैदा जो हो बार बार -हो गुम ,रात पड़ने पे बे इख्तियार ,
सुन अर्जुन ,जो ब्रह्मा का दिन हो अयां-हो फिर मौजे हस्ती का दरिया र वां .II 19 II 
परे गैब से भी है इक जाते गैब -वो हस्ती ,फना का नहीं जिसमे ऐब ,
किसी की न कुछ बात बाक़ी रहे - फकत इक वही ज़ात बाक़ी रहे .II 20 II 
वो हस्ती जो बातिन है और बेजवाल -करें उसकी मंजिल को आला ख्याल ,
पहुँच कर जहां से न लौटें मुदाम -वही है ,वही मेरा आली मुकाम .II 21 II 
ये दुनिया है जिसकी बसाई हुई -हरेक शै है ,जिसमे समाई हुई '
अगर चाहे तू उस खुदा का विसाल -रख उसकी मोहब्बत का दिल में ख्याल .II 22 II 
सुन ,अय नस्ले भारत के सरताज ,सुन -बताता हूँ अब वक्त के तुझको गुन,
कि कब मर के लौट आयें योगी यहीं -वो मर के कालिब बदलते नहीं .II 23 II 
अगर दिन हो या मौसमे -नारों नूर -उजाले की रातें हों ,मह का ज़हूर ,
हो शश माही सूरज का दौरे शुमाल -मरे इसमे आरिफ तो पाए विसाल .II 24 II 

अन्धेरा हो पाख और धुन्दलका हो खूब -हो शश माह सूरज का दौरे जुनूब , 
कि हो रात का वक्त ,जब जान जाए -तो योगी यही चाँद से लौट आये .II 25 II 
अन्धेरा कभी हो ,उजाला कभी -सदा से जगत के हैं रस्ते यही , 
उजाले में जब जाए वापस न आये -अँधेरे में जाता हुआ लौट आये .II 26 II 
जो इन रास्तों से न अनजान हो -वो योगी परेशां न हैरान हो , 
सुन अर्जुन ,है जब तक तेरे दम में दम -तू रह योग में अपने साबित कदम .II 27 II 
मिले वेद के पाठ करने से पुन्न -हैं बेशक बहुत दान ,यग ,तप के गुन, 
मगर इन से बाला है ,योगी की बात -अजल से वो पाए मुकामे निजात .II 28 II 


      -आठवां अध्याय समाप्त -

















Sunday, June 26, 2011

सातवाँ अध्याय :ज्ञानविज्ञान


ज्ञानविज्ञान -इल्मे मुआरिफत - 


भगवान ने फरमाया - 

सुन अर्जुन अमां मुझमें पाए हुए -मेरी ज़ात में लौ लगाए हुए ,
तुझे योग की मश्क का ध्यान हो -तो सुन किस तरह मेरी पहचान हो .II 1 II 
मैं करता हूँ वह राजे कामिल बयां-करे इल्मो इरफांजो तुझ पर अयाँ,
ये पहचान कर सबको पहचान ले -जो है जानने का ,वो सब जान ले .II 2 II 
हज़ारों में होगा कोई खाल खाल - कि है जिसको फिक्रे हुसूले -कमाल ,
हो उन बा कमालों में कोई बशर -जो मेरी हकीकत की पाए खबर .II 3 II 
ये मिट्टी ,ये पानी ,ये आग और हवा -ये आकाश दुनिया पे छाया हुआ ,
ये दानिश ,ये दिल ,ये ख्याले -खुदी -है इन आठ हिस्सों में फितरत मेरी .II 4 II 
है फितरत तो अदना है ,सुन अय कवी -मगर मेरी फितरत है एक और भी ,
वो फितरत है आला ,बने जो हयात -इसी से तो कायम है कुल कायनात .II 5 II 
इन्हीं फितरतों से है सब हस्तो -बूद -इन्हीं के शिकम से हुए सब वुजूद ,
सो है मुझसे आगाज़े आलम तमाम -मेरी ज़ात में सबका हो इख्तिताम .II 6 II 
सुन अर्जुन नहीं कुछ भी मेरे सिवा -न है मुझसे बढ़कर कोई दूसरा , 
पिरोया है सबको मेरे तार ने -कि हीरे हों जैसे किसी हार में .II 7 II 
मैं पानी में रस,चाँद सूरज में नूर -मैं हूँ "ओम "वेदों में जिसका ज़हूर , 
सिदा मुझको आकाश में कर ख्याल -मैं मर्दों में मर्दी,कुंती के लाल .II 8 II 
मैं मिट्टी के अन्दर हूँ खुशबूए पाक -मैं हूँ आग में शोलए-ताबनाक , 
मैं जानेजहाँ जानदारों में हूँ -रियाज़त,इबादत -गुज़ारों में हूँ .II 9 II 
सुन अर्जुन ,मैं हूँ बीज हर हस्त का -मैं वो बीज हूँ जो न होगा फना , 
मैं दानिश हूँ ,उनकी जो हैं होशियार -मैं ताबिश हूँ उनकी जो हैं ,ताबदार .II 10 II 
मैं हूँ कुव्वतो -जोरे -मर्दे ज़री-मगर हूँ ,हवाओ -हवस से बरी, 
सुन अर्जुन ,मैं ख्वाहिश हूँ इंसान की -जो दुश्मन न हो ,धर्म ईमान की .II 11 II 
मुझी से है फितरत सतोगुन कहीं -मुझी से ,राजोगुन,तमोगुन कहीं , 
मगर मैं बरी इनसे हूँ बिल्यकीं-ये मुझसे हैं ,लेकिन मैं इनसे नहीं .II 12 II 
गुनों से हुए वस्फ़ तीनों अयां-हुए जिससे गुमराह अहले जहां ,
समझते नहीं लोग मेरा कमाल -कि बाला हूँ मैं उनसे ,और बे ज़वाल .II 13 II 
गुनों से जो माया हुई आशकार -ये माया है ,या फितरते -कर्दगार,
कहाँ इससे इन्सां कभी कभी पार हों -फकत पार मेरे परिस्तार हों .II 14 II 
जो गुमराह ,बदकुन हैं और पुर खता -करे ज्ञान गुन उनके माया फना ,
पसंद उनको सीरत है शैतान की -मेरे पास आते नहीं वह कभी .II 15 II 
सुन अर्जुन हैं मेरे परस्तार चार -तलबगार मेरे ,निकूकार चार ,
दुखी शख्स ,या इल्म की जिसको धुन -तलब ज़र की .या हों जिसमे हों ग्यान गुन .II 16 II 
जो ग्यानी है चारों में सरदार है -मुझी में है यकदिल औ सरशार है ,
करे जाते -यकता की भागती सदा -मई प्यारा हूँ उसका ,वो प्यारा मेरा .II 17 II 
परस्तार हर एक गो नेक है -जो ग्यानी है ,मुझसे मगर एक है ,
वो यकदिल है ,और उससे यकदिल हूँ मैं -वो कायम है और ,उसकी मंजिल हूँ मैं .II 18 II 
जनम पे जनम लेके ग्यानी जरूर -पहुँच जाये आखिर को मेरे हुजुर ,
वो जाने "कि सब कुछ है जानेजहाँ -महा आत्मा ऐसा होगा कहाँ .II 19 II 
हवाओ -हवस से जो मजबूर हैं -हुए ज्ञान से उनके दिल दूर हैं ,
करें दूसरे देवताओं से प्रीत -निकालें तबीअत से पूजा की रीत .II20 II 
किसी रूप का भी परस्तार हो -यकीं से इबादत में सरशार हो ,
परस्तार ऐसा भटकता नहीं -मैं करता हूँ ,मजबूत उसका यकीं.II 21 II 
परस्तिश वो जौके यकीं से करे -जिसे देवता मान ले ,मान ले ,
वो पाता है जोरे -यकीं से मुराद -जो दरअस्ल होती है मेरी ही दाद .II 22 II 
जो नादाँ नहीं ज्ञान में होशियार -परस्तिश से फल पायें नापायदार ,
जो देवों को पूजें ,वो देवों को पायें -परस्तार मेरे ,मेरे पास आयें .II 23 II 
मैं चश्मे -जहां से निहां हूँ निहाँ -मगर मुझको नादाँ समझ लें अयां ,
वो मुझको नहीं जानते बे मिसाल -मेरी ज़ात आली है और बे ज़वाल .II 24 II 
कि मैं योगमाया से मस्तूर हूँ -जहां कि नज़र से बहुत दूर हूँ ,
ये मूरख ज़माना नहीं जानता -कि मेरा जमम है ,न मुझको फना .II 25 II 
जो गुजरी हुई हस्तियाँ हैं ,सभी -जो मौजूद हैं अब ,कि होंगीं कभी ,
सुन अर्जुन ,मैं उन सब से हूँ बाखबर -किसी को नहीं इल्म मेरा मगर .II 26 II 
ये धोके की टट्टी है ,इज्दाद सब -ये है शौको नफ़रत कीऔलाद सब ,
इन्हीं से तो ,अर्जुन ये खिलकत तमाम -परागंदा रहती है यूं सुब्हो-शाम .II 27 II 
वो इन्सां ,भले जिनके आमाल हैं -गुनाहों से जो फारिगुलबाल हैं ,
न इज्दाद से उनको धोका न गम -मेरी बंदगी में हैं साबित कदम .II 28 II 
मुझी को समझ कर जो उम्मीदगाह -बुढापे से और मौत से लें पनाह .
उन्हें ब्रह्म की खूब पहचान है-फिर अध्यात्म और कर्म का ग्यान है .II 29 II 
अधिभूत जोलोग मानें मुझे -अधिदेव ,अधियग्य जानें मुझे ,
वो यकदिल हैं ,चित्त उनमे हमवार हैं -दमे नज़अ भी मुझसे सरशार हैं .II 30 II 
        -सातवाँ अध्याय समाप्त -






Friday, June 24, 2011

छठवां अध्याय :आत्मसंयम

-आत्मसंयम -तजकि ए नफ्स -

भगवान ने फरमाया -
सुन अर्जुन जो इन्सां करे सब अमल -फ़रायज बजा लाये ढूँढे न फल , 
वो योगी है ,और संन्यासी जरूर -न वो जो रहे आग किरिया से दूर .II 1 II 
वही जिसको सन्यास कहते हैं लोग -सुन अर्जुन वही है वही खास योग , 
कि खुद योग में मर्दे-कामिल नहीं -जो छोड़े न फिक्रे चुनां ओ चुनीं .II 2 II 
मुनी वो जिसे योग दरकार है -अमल ही अमल जिसका हथियार है , 
मगर योग से जब वो हो कामगार -तो हथियार है उसका सुकूनो करार .II 3 II 
न महसूस अश्या से जिसको लगन -अमल से लगावट न उसमे लगन ,
नहीं जिसको फिक्रे चुनानो चुनीं -कहें योग का उसको मसनद नशीं .II 4 II 
मुनासिब नहीं खुद को इन्सां गिराए -वो खुद को उभारे ,खुद को उठाये ,
कि इन्सान खुद अपना गमखार है -वो खुद अपना बदख्वाहो -गद्दार है .II 5 II 
करे नफ्स को अपने जेरे नगीं-वो ख्वाह अपना गमख्वार है बिल्यकीं,
मगर जिसको काबू नही नफ्स पर -वो दुश्मन है अपने लिए सरबसर .II 6 II 
जिसे नफस पर अपने है इख़्तियार -उसी को परमात्मा में करार , 
हो गरमी कि सर्दी ,हो गम या ख़ुशी -हो इज्जत कि जिल्लत हैं यकसां सभी. II 7 II 
वो सरशार योगी रहे इस्तवार-मिले इल्मो इरफांमें जिसको करार , 
हवास उसके हैं ,जेरे मजबूत दिल -हैं यकसां उसे ,जर हो मिट्टी की सिल .II 8 II 
वो योगी है अफजल जिसे हों सब एक -सगे ,दोस्त ,अहबाब बेलाग नेक , 
हों सालिस कि दुश्मन ,दिल आजार हों -वो धरमातमा हों कि बदकार हों .II 9 II 
जो योगी हैं ,वो योग तन्हा कमाए -अलग रह के दिल आत्मा में लगाए , 
रहे उसके काबू में तन हो कि मन -उमीदो हवस से न हो कुछ लगन .II 10 II 
कुशाघास पर मिरगछाला बिछाए -फिर उस मिरगछाला पे चादर लगाए , 
जमा उस पे आसन करे ऐतकाफ-न ऊंची न नीची जगह पाक साफ़ .II 11 II 
सुकूं चित को दे ,लौ मुझी से लगाए -हवासो तखय्युल को काबू में लाये , 
जमे अपने आसन पे वो मुस्तकिल -करे योग को साध कर पाकदिल .II 12 II 
सरो -पुश्तो -गरदन झुकाए न वो -बदन को हिलाए डुलाये न वो ,
जमाये नज़र नाक की नोक पर -निगाहें न भटकें इधर और उधर .II 13 II 
रहे पुरसुकूं ,बे खतर मुस्तकिल -तजर्रुद पे कायम हो ,काबू में दिल ,
मेरी ज़ात से लौ लगाये हुए -मेरे ध्यान में दिल जमाये हुए .II 14 II 
अगर योग वो यूं कमाता रहे -तो मन उसका काबू में आता रहे ,
सुकूं आत्मा में समा जाएगा -वही मेरा निर्वान पा जाएगा .II 15 II 
न हासिल करे योग बिसयार -खार -न वो जिसका हो भूक से हाल जार ,
बहुत सोनेवाला भी पाए न योग -बहुत जागने से भी आये न योग .II 16 II 
हो योगी के हर काम में ऐतदाल-गिज़ा और आराम में ऐतदाल,
मुनासिब ही जाग ,और मुनासिब ही ख़्वाब -मिटाता है योग ,उसके दर्दो अज़ाब .II 17 II 
अगर उसके काबू में दायम हो मन -फकत आत्मा में कायम हो मन ,
रहे लज्ज़ते -नफ्स से दूर -वो सरशार है योग में बिल्जरूर .II 18 II 
हवा की न हो मौज ,जुम्बा की रौ-तो लरजे कहाँ शम्मे रौशन की लौ , 
यही होगा योगी को हासिल सबात -ख्याल उसके बस में ,तो मन महवे जात .II 19 II 
जहां मन को आये सुकूनो करार -रियाजत करे दिल का दूर इन्तिशार , 
जहां मन में हो आतमा का ज़हूर -करे मुतमइन आत्मा का सुरूर .II 20 II 
जहां बेनिहायत हो राहत नसीब -हिसों से बईद और खिरद के करीब , 
जहां हो हकीकत से इन्सां न दूर -रहे आत्मा में कयामो सुरूर .II 21 II 
जहां उसको मिलने से आये यकीं-कि दौलत कोई इससे बढ़कर नहीं , 
जहाँ इस में जम कर वो आजाये सुख -कि जुम्बिश न दे उसको दुनिया का दुख.II22 II 
जहां गम है बाक़ी न कुछ सोग है -यही योग है ,हाँ यही योग है , 
इसी योग में दिल यकीं से जमाओ -इसी योग से तुम अकीदत दिखाओ .II 23 II 
ख्यालों की औलाद हिर्सो हवा -इन्हें यक कलम दूर करता हुआ , 
हवास अपने हर सिम्त से घेर कर -दिली ज़ब्त से उनका रुख फेर कर .II 24 II 
जिसे अक्ल पर अपनी हो इख्तियार -वो हासिल करे रफ्ता रफ्ता करार ,
करे उसका मन आत्मा में कयाम -न उसको ख्याले दुई से हो काम .II 25 II 
मन इन्सां का चंचल है और बेकरार -रहे दौड़ता ,भागता बार बार ,
वो भागे तो ,बाग़ उसकी झट मोड़ दे -हिफाजत में फिर रूह की छोड़ दे .II 26 II 
वो योगी जिसे मन में आये सुकूं- सतोगुण से दिल जिसका पाए सुकूं ,
खुदा से हो वासिल ,गुनाहों से दूर -उसी को मुयस्सर हो आला सुरूर .II 27 II 
जो योगी रहे योग में इस्तवार-गुनाहों से दामन न हो दागदार ,
उसी को मिले नेमते बेकराँ-की पाए विसाले खुदाए -जहां .II 28 II 
अगर योग में नफ्स सरशार है -तो फिर ये हकीकत नमूदार है ,
की हर शै में है आत्मा की नुमूद -तो हर शै का है आत्मा में वुजूद .II 29 II 
जो हर सिम्त पाता है मेरा ही नूर -मुझी में जो हर शै का देखे ज़हूर ,
कभी मुझ से मुंह मोड़ सकता नहीं -कभी मैं उसे छोड़ सकता नहीं .II 30 II 
जो कसरत में वहदत का देखे समां-जो पूजे मुझे ,हूँ जो सब में अयाँ, 
वो योगी रहे गो किसी ढंग में -मुझी से हो वासिल वो हर रंग में .II 34 II 
सुख औरों का समझे जो अपना ही सुख -दुख औरों का समझे अपना ही दुख , 
जो सबका करे अपने जैसा ख्याल -सुन अर्जुन ,कि योगी है वो बाकमाल .II 35 II 
अर्जुन का सवाल - 
सुकूं का जो मुझको सिखाया है योग -मेरे दिल को भगवान भाया है योग , 
बिना इसकी लेकिन नहीं मुस्तकिल -कि चंचल है ,चंचल है ,चंचल है दिल .II 36 II 
ये भगवान ,बेकल है पुरशोर दिल -कि सरकश है ,मुंहजोर , जिद्दी है दिल , 
न काबू में आये किसी चाल में -हवा बंद होती नहीं जाल में .II 34 II 
भगवान का इरशाद - 
कहा सुन के भगवान ने ,अय कवी -दिल इंसां का पुरशोर चंचल सही , 
है वैराग और मश्क में ये कमाल -दी आजाये काबू में कुंती के लाल .II 35 II 
अगर नफ्स पर जब्ते कामिल नहीं -तो फिर योग इंसां को हासिल नहीं , 
मगर नफ्स पर हो जिसे इख्तियार -मुनासिब वसाइल से हो कामगार .II 36 II 
अर्जुन का सवाल - 
फिर अर्जुन ने पूछा भटकता है जो -इसी राह में सर पटकता है जो , 
मुकय्यद तो है ,जां-फ़िशानी नहीं -अकीदत से पहुंचेगा वो भी कहीं .II 37 II 
कवी दोस्त ,जो मोह में फंस गया -रहे हक़ में जो डगमगाता रहा , 
तो क्या वो यहाँ ,और वहां से गया -जो बादल फटा आसमां से गया .II 38 II 
करें मेरे इस शक को भगवान दूर -तबीयत को हासिल हो इरफांका नूर , 
कोई दूसरा है जहां में कहाँ -करे दूर मेरे जो वहमो -गुमां.II 39 II
भगवान ने फरमाया -
सुन अय प्यारे अर्जुन ,वो इन्सान भी -न दौनों जहाँ में फना हो कभी ,
कि दुनिया में जो नेक किरदार है -तबाही में कब वो गिरफ्तार है .II40 II
ये सच है उसे योग हासिल नहीं -हो नेकों की दुनिया में जाकर मकीं ,
बहुत मुद्दतों में वो ले फिर जनम -वहां हों जहां नेकी और ,न वहम .II 41 II
वो हो वर्ना ऐसे घराने का लाल -हों योगी जहाँ आकिलो -बाकमाल ,
जनम ऐसा मुश्किल मिले अय हबीब -सआदत ये हो सादो -नादिर नसीब .II42 II 
वो दुनिया में पाए जो ताजा हयात -हों सब उसमे पिछले जनम के सिफात , 
करे बढ़ के पहले से कसबे-कमाल -कि तकमील हासिल हो ,जाए जवाल .II 43 II 
इसी साबिका मश्क के जोर से -वो मकसूद की सिम्त बढ़ता चले , 
हुआ योग का इल्म जिसको पसंद -वो वेदों के लिक्खे से जाए बुलंद .II 44 II 
किये जा रहा है जो योगी जतन-तो पापों से हो पाक साफ़ उसका मन , 
जनम पर जनम लेके पाए कमाल -कि हासिल हो आखिर खुदा का विसाल .II 45 II 
तपस्वी से आला है योगी कि शान -बड़ी उसकी ग्यानी से भी आनबान , 
हैं कम उस से जो कर्मकांडी है लोग -फिर अर्जुन है क्या देर ,ले तू भी योग .II 46 II 
वो योगी ,यकीं जो मुझी पर जमाये -मुझी में फकत आत्मा लगाए , 
जो मेरी परस्तिश में शागिल रहे -वो सब योग वालों में कामिल रहे .II 47 II 
- छठवां अध्याय समाप्त -