tag:blogger.com,1999:blog-58840565615886543242024-03-08T16:30:18.388-08:00गीता सरलगीता का सरल उर्दू देवनागरी लिपि में काव्यानुवादबी. एन.शर्माhttp://www.blogger.com/profile/16218522898407806020noreply@blogger.comBlogger23125tag:blogger.com,1999:blog-5884056561588654324.post-39929038422774462852022-10-20T00:06:00.002-07:002022-10-20T00:06:38.928-07:00गीता सरल उर्दू हिन्दी शब्द कोष <p> अंजाम कार -फलस्वरूप</p><p>अंजाम -परिणाम</p><p>अकीदत -श्रद्धा</p><p>अक़ीदा -विश्वास</p><p>अक्ले सलीम - सुमति</p><p>अजज़ा -अंग</p><p>अजमत -महानता</p><p>अज्म -निश्चय</p><p>अत्फ -समास</p><p>अन्दोहनाक -व्यथित </p><p>अफआल -कर्म</p><p>अफआले हिस -इन्द्रीओं के कार्य</p><p>अबस -व्यर्थ</p><p>अम्बारे खाशाक -ईंधन का ढेर</p><p>अयाँ -प्रकट</p><p>अयां -प्रकट</p><p>अरमां -आकांक्षा</p><p>अल अमा -भयानक</p><p>अल्फाज - शब्द</p><p>अश्या -विषय</p><p>अश्याए महसूस -इन्द्रियां</p><p>असीर -बंधा हुआ</p><p>असीरी -बन्धन</p><p>अहद -प्रण</p><p>अहले खदंग -धनुषधारी</p><p>अहले जां -प्राणी</p><p>अहलेयकीं -श्रद्धालु</p><p>आगाज अंजाम -आदि अंत</p><p>आगाज -आरम्भ</p><p>आगाज़ ओ अंजाम -आदि और अंत</p><p>आज़ार -कष्ट</p><p>आतिश =अग्नि</p><p>आतिशे किब्रिया -दैवी अग्नि</p><p>आबे हयात -अमृत</p><p>आमाल -कर्म</p><p>आमिल -उपासक</p><p>आली मुक़ाम -परम धाम</p><p>आलूदा -लिप्त</p><p>आशकार -प्रकट</p><p>आसियान -पाप</p><p>आहंग -प्रकार</p><p>आहंग -भाव</p><p>आहंग -स्वर</p><p>इंकिसार -अमानित्व</p><p>इंतिहा -पराकाष्ठा</p><p>इक रुकुन -एकाक्षर</p><p>इकबाल -कीर्ति</p><p>इक्तिफ़ात -सम्बन्ध</p><p>इक्साम -प्रकार</p><p>इख़्तिताम -समाप्ति</p><p>इख़्तियार -अधिकार</p><p>इजतराब -अशांति</p><p>इजदाद -द्वंद्व</p><p>इज्जो नियाज़ -आदर भक्ति</p><p>इन्हिराफ़ -मनमानी</p><p>इन्हिसार -आधारित</p><p>इब्तदा -आरम्भ </p><p>इमकान -संभावना</p><p>इम्तियाज - भेद अंतर </p><p>इरत काए कायनात -जगत का आधार</p><p>इरफ़ाँ -सत्य ज्ञान</p><p>इल्मे कल्ब -आत्म ज्ञान</p><p>इल्मे शही -राजविद्या</p><p>इल्मो यक़ीं -ज्ञान विश्वास</p><p>इश्तियाक -उत्सुकता</p><p>इसरार =रहस्य</p><p>इस्तिवार -दृढ</p><p>इस्तिवार -स्थित</p><p>ईजा -हिंसा</p><p>उदू -शत्रु</p><p>उफू -क्षमा</p><p>उसूल -नियम</p><p>एतकाफ -एकांतवास</p><p>एतदाल -संयम</p><p>एहतताम -प्रबंध</p><p>एहसाम -भूत जगत</p><p>ऐब -दोष</p><p>ऐमाल -कर्म</p><p>ऐश इशरत -राज भोग </p><p>ऐश ओ तरब -भोग विलास</p><p>कदीम पुरातन</p><p>कनागत -समता</p><p>कम गो -अल्प भाषी</p><p>क़याम -अस्तित्व,विश्राम</p><p>कयास -धारणा</p><p>करम -दया</p><p>क़राबत -निकट सम्बन्धी</p><p>क़रार -संतोष</p><p>क़ल्ब -हृदय</p><p>क़वाए अमल -नियतकर्म</p><p>कवी दस्त -महाबाहु</p><p>कवी दिल -मन का पक्का</p><p>कसरत -अनेकत्व</p><p>कामरानी -सफलता</p><p>कामिल -पारांगत</p><p>कायनात -जगत</p><p>कारिन्दा -कर्ता</p><p>कारे जबूं -दुष्कार्य</p><p>कालिब -शरीर</p><p>किबरीया -जगत का स्रष्टा</p><p>किब्रिआ -महात्मन</p><p>किरदार -कर्म</p><p>कीना -कपट</p><p>क़ुतुब -ग्रन्थ</p><p>क़ुव्वत -ऊर्जा</p><p>कुश्तो खूँ -रक्तपात</p><p>खता -पाप</p><p>ख़फ़ी -गुप्त</p><p>ख़फ़ी -सूक्ष्म</p><p>ख़बासत -असुरत्व</p><p>ख़बासत -राक्षसी वृत्ति</p><p>ख़याले ख़ुदी -अहंकार</p><p>खलकत -प्राणी जगत</p><p>खलायक -जन समुदाय</p><p>खसलत -स्वभाव</p><p>खाम काऱ -अल्पबुद्धि</p><p>खाल -विरला</p><p>खालिक -स्रष्टा</p><p>ख़ालिस -एकमात्र</p><p>खिताब -उपाधि</p><p>खिदमत -सेवा</p><p>ख़िरद -बुद्धि</p><p>ख़िरद -बुद्धिमान</p><p>खुद परस्त -अहंकारी</p><p>खुद बीं -अहंकारी</p><p>खुदाई बसर -दिव्य चक्षु</p><p>ख़ुरसन्द -संतुष्ट</p><p>ख़ुर्रमी -सार युक्त</p><p>ख़ुश्क -शुष्क</p><p>खुसर -श्वसुर</p><p>खूंखार -क्रूर</p><p>ख़ूबतर -उत्तम</p><p>खूशबूये पाक -सुगंधी</p><p>ख़ेमा जन -स्थित</p><p>खैर बाद -त्याग करना</p><p>खैर -भलाई</p><p>ख़्वाहां -इच्छुक</p><p>ख़्वाहिश-इच्छा</p><p>ख्वाहिशे फ़तह - विजय की इच्छा </p><p>गज़ब -क्रोध</p><p>गजब -द्वेष</p><p>गफलत -प्रमाद</p><p>ग़म गुसार -सुहृद</p><p>ग़ारत -विनष्ट</p><p>गिजा -भोजन</p><p>गिजाएँ -भोजन</p><p>गिरदान -समझ</p><p>गुनाह अजीम - महापाप</p><p>गुमराह -भ्रमित</p><p>गुरूर -घमंड</p><p>गैब -परोक्ष</p><p>जफ़ाकार -पापाचारी</p><p>जबरदस्त -महाबाहु</p><p>ज़ब्त -संयम</p><p>जब्रो इकराह -अनिच्छा बलात</p><p>जरर -दोष</p><p>जराअत -कृषि</p><p>ज़लाल -दिव्य तेज</p><p>जल्वाग़र -प्रकाशित</p><p>जल्वे -विभूतियाँ</p><p>जवाल -विनाश</p><p>जहाने फना -नश्वर संसार</p><p>जहालत -अज्ञान</p><p>जहूर - प्रकटीकरण</p><p>जावदानी - सदा के लिए</p><p>जाविदां -अविनाशी</p><p>ज़ाहिल -अज्ञानी</p><p>जिक्र -स्मरण</p><p>जिद्दी -हठी</p><p>जिल्लत -अपमान</p><p>जिल्लत -निंदनीय</p><p>जी एहतराम - आदरणीय</p><p>जी शऊर -विवेकी</p><p>जी हशम -महान</p><p>जुम्बिश -गति</p><p>जुर्मों क़ुसूर -अपराध पाप</p><p>जुल्मत -अंधकार</p><p>जू फ़िशां -प्रकाशित</p><p>जूजू -अंश</p><p>जेरे खाक -मिट्टी में मिलाना</p><p>जेरे नगीं -वश में</p><p>ज़ौक़ -समूह</p><p>जौके यकीं -श्रद्धा</p><p>तकब्बुर -अभिमान</p><p>तकलीद -अनुसरण</p><p>तकसीम -विभाजन</p><p>तख़य्युल -विचार</p><p>तग़य्युर -परिवर्तन</p><p>तग़य्युर -विकार</p><p>तजबजब -संशय</p><p>तजर्रुद -ब्रह्मचर्य</p><p>तदबीर -उपाय</p><p>तदबीर -नीति</p><p>तनज्ज़ुल -पतन</p><p>तनासुख =आवागमन</p><p>तन्हा -एकाकी</p><p>तफ़सीर -व्याख्या</p><p>तफसील -विस्तार</p><p>तबअ नर्म -कोमलता</p><p>तबक -लोक</p><p>तबाह -नाश </p><p>तमन्ना -इच्छा</p><p>तरके आमाल -कर्मत्याग</p><p>तरगीज -प्रबन्ध</p><p>तर्के अमल -कर्म त्याग</p><p>तर्के अमल -संन्यास</p><p>तर्रार =बुद्धिमान</p><p>तलक़ीन =उपदेश</p><p>तल्ख़ -कटु</p><p>तवज्जो -ध्यान</p><p>तवां -शक्ति</p><p>तवाज़न -संयम</p><p>तस्कीं -विश्रांति</p><p>तहजूर -विलग</p><p>ताजीम -आदर</p><p>ताजीर -दण्ड</p><p>ताबनाक -तेज़</p><p>ताबो मजाल -शक्ति सामर्थ्य</p><p>तारिक -त्यागी</p><p>तारीकियां -अंधेरे</p><p>तिजारत -व्यापार</p><p>तिफ़्ले नादाँ -बालबुद्धि</p><p>तिलावत -पठन</p><p>तीरो तबर -बाण और शस्त्र</p><p>तुख्म -बीज</p><p>तैश -क्रोध</p><p>तौहम -भ्रम</p><p>दमे नजअ -अन्तकाल</p><p>दरख्शां -प्रकाशित</p><p>दरमियाँ -बीच में</p><p>दरिंदे -वन्य पशु</p><p>दलील -तर्क</p><p>दवाम -अमरता</p><p>दस्तरस -पहुँच</p><p>दस्तूर -विधान</p><p>दहन खुश्क -मुंह सूख जाना</p><p>दाना -ज्ञानी</p><p>दानिश -बुद्धि</p><p>दायम -अचल</p><p>दायमी -शाश्वत</p><p>दिलबंद - सुहृद</p><p>दिलबस्तगी -लगाव</p><p>दिले नागाहां -दुखित मन</p><p>दीद -दर्शन</p><p>दीदारे हक़ -प्रत्यक्ष दर्शन</p><p>दुबुल -ढोल</p><p>दुरूं से बु रूं -अंदर से बाहर</p><p>दौरे जुनूब -दक्षिणायन</p><p>दौरे शुमाल -उत्तरायण</p><p>नज्र -अर्पण</p><p>नदीम -लज्जित</p><p>नफ़स =इन्द्रिय</p><p>नफ़ूर -त्यागी</p><p>नबर्द आजमा -अनुभवी योद्धा</p><p>नमूदार -प्रकट</p><p>नसीब -सौभाग्य</p><p>नस्ल -वंश</p><p>नाकिस -गुण रहित</p><p>नाकूस -शंख</p><p>नाजिर -द्रष्टा</p><p>नादिर -दुर्लभ</p><p>नापायदार -नश्वर</p><p>नारो नूर =ज्योतिर्मय अग्नि</p><p>निकूकार -सत्कर्मी</p><p>निज़ात -उद्धार</p><p>निजात -मुक्ति</p><p>निहाँ -अव्यक्त</p><p>नीकूकार -उत्तमपुरुष</p><p>नीरंग -आकृति</p><p>नुक्ताचीं -दोषदर्शी</p><p>नुक्ताचीनी -दोष निकालना</p><p>नुफ़ूर -अरति</p><p>नुमायश -दिखावा</p><p>नूर -प्रकाश</p><p>पनाह -शरण</p><p>परस्तार -अनुयायी</p><p>परस्तार -उपासक</p><p>परागन्दा -अशद्ध</p><p>परिस्तार -उपासक</p><p>पशेमाँ -उद्विग्न</p><p>पाक बाज -निष्पाप</p><p>पाकबाज -सच्चरित्र </p><p>पारसा -पवित्र</p><p>पिन्हां =गुप्त</p><p>पिसर कजनिहाद -दुर्बुद्धि पुत्र</p><p>पीऱे दिलेर -साहसी वृद्ध</p><p>पुख्तगी =परिपक्वता</p><p>पुख्ता -पुष्टि</p><p>पुर खता -दुष्कर्मी</p><p>पुर जलाल -ऐश्वर्य युक्त</p><p>पुर शोर -चंचल</p><p>पुर सुकूँ -शांत</p><p>पुरनूर -प्रकाशित</p><p>फजीलत -श्रेष्ठता</p><p>फ़तह -विजय</p><p>फना -विनाश</p><p>फना से बरी -अविनाशी</p><p>फ़रज़न्द -पुत्र</p><p>फ़रायज़ -कर्तव्य</p><p>फ़रेबोफितूर -भ्रम अज्ञान</p><p>फ़लक -आकाश</p><p>फानी -क्षण भंगुर</p><p>फारिग -मुक्त</p><p>फासिक -पतित</p><p>फितरत -स्वभाव</p><p>फितूर -मलीनता</p><p>फ़िदा -समर्पित</p><p>फ़िल्फ़ौर -शीघ्र</p><p>फील -हाथी</p><p>फूजूँ -उत्तम</p><p>फौजे गनीम - शत्रु सेना</p><p>बईद -दूर</p><p>बजाहिर -प्रकट</p><p>बद कुन -नीच</p><p>बद जायका -दुस्वाद</p><p>बदकार -कुकर्मी</p><p>बर्के तपाँ -तड़ित वज्र</p><p>बशर -मनुष्य</p><p>बा सद खरोश -अति उत्साह में भरे</p><p>बाकमाल -कुशल</p><p>बाजिह -स्पष्ट</p><p>बातिन -अव्यक्त</p><p>बाब -द्वार</p><p>बिल्यकीन -निश्चय</p><p>बिस्यार ख्वार -बहुत खाने वाला</p><p>बुग्ज़ -कपट</p><p>बुज़दिल -कायर</p><p>बुर्राक -श्वेत घोड़े</p><p>बे गरज -आसक्ति रहित</p><p>बे जवाल -अविनाशी</p><p>बे दिरंग -निडर</p><p>बे हवस -निष्काम</p><p>बेकरां -असीम</p><p>बेकरार -बेचैन</p><p>बेखतर -निर्भय</p><p>बेगजन्द -व्यापक</p><p>बेगरज =अनासक्त</p><p>बेगुमाँ -निश्चित</p><p>बेनियाज़ -अनपेक्ष</p><p>बेनियाज़ -निष्काम</p><p>बेबाक - निश्चित</p><p>बेलाग -उदासीन</p><p>मकदूर -सामर्थ्य</p><p>मकसूद -लक्ष्य</p><p>मकीं -निवासी</p><p>मखलूक -सृष्टि</p><p>मगरूर -घमंडी</p><p>मग़लूब -ग्रस्त</p><p>मजकूर -वर्णित</p><p>मजबजब -भ्रम</p><p>मतलूब -वांछित</p><p>मदहो जम -स्तुति निंदा</p><p>मदार -आधार</p><p>मफ़हूम -तात्पर्य</p><p>ममात =मृत्यु</p><p>मयस्सर -उपलब्ध</p><p>मरगूब - स्वीकार्य</p><p>मरग़ूबतर -कल्याणकारी</p><p>मर्दे कामिल -योगी</p><p>मलूल -दुःखी</p><p>मश्क -अभ्यास</p><p>मश्क़ -अभ्यास</p><p>मसरूफ जंग -युद्ध रत</p><p>मसरूफ़ -व्यस्त</p><p>मसरूर -संतुष्ट</p><p>मस्कन -निवास</p><p>महदूद -सीमित</p><p>महरूम =वंचित</p><p>महवे जात -परमात्मा में लीन</p><p>माजूर -असमर्थ</p><p>माबूद -उपास्य</p><p>माबूदे अव्वल -प्रथम पूज्य</p><p>मामूर -आलोकित</p><p>मायल -युक्त</p><p>मालिके कायनात -जगत का स्वामी </p><p>मालो जान -धन जीवन</p><p>मासूम -निष्पाप</p><p>मिब्नये जिंदगी -जगत का कारण</p><p>मियाने दो अब्रू -भृकुटि के बीच</p><p>मुअज्जिज़ -आदरणीय</p><p>मुक़द्दस -पवित्र</p><p>मुकम्मिल -सम्पूर्ण</p><p>मुक़य्यद -बंधा हुआ</p><p>मुकव्वी -बल बर्धक</p><p>मुकाम बुलंद -उत्तमस्थान</p><p>मुकाम -स्थान</p><p>मुकीम -केंद्रित</p><p>मुख़्तार -समर्थ</p><p>मुजर्रत -दुःख</p><p>मुजाहिर -प्रकट</p><p>मुतमइन -संतुष्ट</p><p>मुदाम -पूर्णतया</p><p>मुनाजात -स्तुति</p><p>मुनासिब -उचित</p><p>मुफस्सिल -विस्तार सै</p><p>मुबर्रा -विलग</p><p>मुयस्सर -प्राप्त</p><p>मुरक्कब -मिश्रित</p><p>मुराद -इच्छा</p><p>मुशीर -शिष्य</p><p>मुसर्रत -सुख</p><p>मुसर्रत -हर्ष</p><p>मुसावात -समभाव</p><p>मुस्तकिल -स्थिर</p><p>मुहाफिज -रक्षक</p><p>मुहाल -असंभव</p><p>मुहीत -आच्छादित</p><p>मूबमू -रोम रोम</p><p>मेहताब -सूर्य</p><p>मोहकम -स्थावर</p><p>मोहतरम -कृपालु</p><p>मौजूं -उपयुक्त</p><p>यक दिल -एकीभाव</p><p>यकसां -एक जैसा</p><p>यकसू -अनन्य</p><p>यकसू -एकाग्र</p><p>यक़ीं -विश्वास</p><p>र वा -अनुकूल</p><p>रंजो तनब -दुःख कष्ट</p><p>रंजो बीम -दुःख भय</p><p>रग़बत -आसक्ति</p><p>रफ्ता रफ्ता -क्रमशः</p><p>रविश -व्यहवार</p><p>रस्मो कुयूद -विधिविधान</p><p>रहजन -पथ भ्रष्टक</p><p>राज -भेद</p><p>राजदाँ तत्व वेत्ता</p><p>राजेनिहाँ -गुप्त रहस्य</p><p>राहे निजात -मुक्तिमार्ग</p><p>रिया -दम्भ</p><p>रियाजत -अभ्यास</p><p>रियाजत -तप</p><p>रीनहार -अप्राप्य</p><p>रुतबा -पद</p><p>रू शनास -परिचित</p><p>रूनुमा =प्रकट</p><p>रूपोश -लुप्त</p><p>रूबरू -आमने सामने</p><p>रूह -आत्मा</p><p>लज्जत गुजी -भोक्ता</p><p>लज्जात -भोग</p><p>लतीफ -सूक्ष्म</p><p>लफ्ज़ -शब्द</p><p>लब कुशा -बोले</p><p>लश्कर -सेना</p><p>ला इन्तहा -अनन्त</p><p>लाकलाम -बिना कहे</p><p>लाजिम -अनिवार्य</p><p>लाफ़ना -अविनाशी</p><p>लिबास -वस्त्र</p><p>लुत्फ =कृपा</p><p>लैलो निहार -रात दिन</p><p>वक्त -समय</p><p>वजूद -अस्तित्व</p><p>वसाईल -साधन</p><p>वस्त -बीच में</p><p>वस्फ -भाव</p><p>वस्फा -लक्षण</p><p>वहदत -एकत्व</p><p>वहमे खाम -भ्रम संशय</p><p>वहमों गुमां -भ्रम संशय</p><p>विलादत -जन्म</p><p>विसाले खुदा -ईश्वर प्राप्ति</p><p>शगिल -व्यस्त</p><p>शनास -पहचान</p><p>शमशीर -तलवार</p><p>शर -बुराई</p><p>शरीफ -अभिजात्य</p><p>शहूद -साक्षात्कार</p><p>शहे बेनदील -नराधिपति</p><p>शाइस्तगी -उत्तम आचार</p><p>शाद -प्रसन्न</p><p>शादां -प्रसन्न</p><p>शादो मसरुर -प्रसन्न और संतुष्ट</p><p>शायर -कवि</p><p>शाही परिंदा -गरुड़</p><p>शाहे अरजो समा =धरती और स्वर्ग का स्वामी </p><p>शाहे अरजो समां -धरती आकाश का स्वामी</p><p>शिकम -उदर</p><p>शिकम -योनि</p><p>शिकोह -ऐश्वर्य</p><p>शिताब -शीघ्र</p><p>शुमार -गणना</p><p>शेरे जमान - बलवान</p><p>सखावत -दान</p><p>सख्त कोश -घोर कर्मी</p><p>सजावार इरफ़ाँ -ज्ञातव्य</p><p>सदाक़त -सत्यता</p><p>सफ दर सफ -पंक्तिबद्ध</p><p>सफ आरास्ता -पंक्तिबद्ध</p><p>सबात -स्थिरता</p><p>समर -फल</p><p>सय्यार -चलायमान</p><p>सर कर्दा -प्रमुख</p><p>सर ब कफ -हथेली पर सर लिए हुए</p><p>सरफराज -श्रेष्ठ</p><p>सरशार -हर्षित</p><p>सरापा मुसल्लह -अस्त्र शस्त्र युक्त</p><p>सर्रे आली -परम रहस्य</p><p>सलोनी -नमकीन</p><p>सल्फ -मुमुक्षु</p><p>सहर -प्रातः</p><p>साकिन -अचल</p><p>साज़ मन्द -लाभांवित</p><p>साजोसामान -सामग्री</p><p>साबिर -धैर्यवान</p><p>सालार -आगेवान</p><p>सालिस -मध्यस्थ</p><p>साहबे एहतराम -पूज्यनीय</p><p>सिफ़ात -लक्षण</p><p>सिम्त -तऱफ</p><p>सुकूँ जब्त -शांति निग्रह</p><p>सुकूँ -शान्ति</p><p>सुकून -शांति</p><p>सुकूने अबद -परम शांति</p><p>सुखन -वचन</p><p>सुबुक दोश -कृतार्थ</p><p>सुरूर -आनंद</p><p>सूकूनो करार =सुख शान्ति</p><p>सूरते गाद नर -महाबली</p><p>सैद -बद्ध</p><p>सैर -तृप्ति</p><p>हक निगर -सत्यदर्शी</p><p>हक़ शनाश -सत्यप्रिय</p><p>हजीं -व्यथित</p><p>हबीब -प्रिय</p><p>हमवार -समभाव</p><p>हयात -जीवन</p><p>हरसू - प्रत्येक दिशा में</p><p>हरीफ़ -प्रतिद्वंदी</p><p>हर्फ -शब्द</p><p>हलाक -मार डालना</p><p>हवस -आसक्ति</p><p>हवस रानी -कामभोग</p><p>हवास -इन्द्रियाँ</p><p>हस्त -अस्तित्व</p><p>हाकिम -शाशक</p><p>हाफ़िज़ा -स्मृति</p><p>हामिला -गर्भवती</p><p>हासिद -ईर्ष्यालु</p><p>हासिल -प्राप्त</p><p>हिदायत -मार्ग दर्शन</p><p>हिदायत -मार्ग दर्शन</p><p>हिफाजत -संरक्षण</p><p>हिर्सो हवा -कामनाएं</p><p>हिस -इन्द्री</p><p>हिसे दम -प्राणायामं</p><p>हुवैदा -उत्पन्न</p><p>हुवैदा -पैदा हुए</p><p>हेच -तुच्छ </p><p>-----------------------------------------------------------</p>बी. एन.शर्माhttp://www.blogger.com/profile/16218522898407806020noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5884056561588654324.post-49640782253204431052011-07-10T19:14:00.000-07:002011-07-10T19:14:59.205-07:00अठारहवां अध्याय :मोक्ष संन्यास<div style="text-align: center;">-<span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">मोक्ष सन्यास -तर्के निजात -</span></div><br />
<span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">अर्जुन ने कहा - </span><br />
<b>ऋषिकेश ,फरमाइए अब ज़रा -है संन्यास और त्याग में फर्क क्या , </b><br />
<b>कवी दस्त ,केशी के कातिल मुझे -उसूल इनके क्या हैं बता दीजिये II 1 II </b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">भगवान ने कहा - </span></b><br />
<b>ये कहते हैं दाना कि ख्वाहिश के काम -उन्हें छोड़ने का है संन्यास नाम , </b><br />
<b>मगर त्याग में हो न तर्के अमल -करें सब अमल छोड़ कर उसके फल .II 2 II </b><br />
<b>कई मर्दे दाना कहें 'छोड़ काम '-कि कर्मों में पिन्हां जरर है मुदाम , </b><br />
<b>कई यूं कहें ,ये समादत न जाए -इबादत ,सखावत ,रियाजत न जाए .II 3 II </b><br />
<b>मगर मुझसे भारत के सरदार सुन -मेरा कौल मेरे परस्तार सुन , </b><br />
<b>कि इस त्याग के भी हैं इकसाम तीन -गुनों से हुए इसके भी नाम तीन II 4 II </b><br />
<b>तू यग और सखावत ,रियाजत न छोड़ -ये तीनों हैं एने सआदत न छोड़ , </b><br />
<b>कि यग और सखावत रियाजत के काम -करें पाक ,दाना के दिल को मुदाम .II 5 II </b><br />
<b>यही फैसला मेरे नजदीक है -यही राय पुख्ता है और ठीक है , </b><br />
<b>कि यग और सखावत ,रियाजत भी कर -तआल्लुक रख इनसे ,न फिक्रे समर .II 6 II </b><br />
<b>कि जो काम सर पर बरे फर्ज है -न छोड़ उसको ,ये फर्ज इक कर्ज है ,</b><br />
<b>ये तर्क इक फरेबे जहालत समझ -ये त्याग इक तमोगुन की सूरत समझ .II 7 II </b><br />
<b>वो बुजदिल जो तकलीफ के खौफ से -जो करना हैं काम उसे त्याग दे ,</b><br />
<b>समझ ले रजोगुन वो तर्के अमल -न हासिल हो इस त्याग से कोई फल .II 8 II </b><br />
<b>करे फर्ज को फर्ज अगर जानकर -तअल्लुक हो इस से न फिक्रे समर ,</b><br />
<b>जो असली है ,अर्जुन यही त्याग है -कि एने सतोगुन यही त्याग है .II 9 II </b><br />
<b>जो त्यागी सतोगुन है और होशियार -सुलूक अपने कर दे वो तार तार ,</b><br />
<b>जो हो कारे -नाखुश तो नाखुश न हो -अगर कारे खुश हो जरा खुश न हो .II 10 II </b><br />
<b>कि दुनिया में जितने हैं तन के मकीं -करें तर्क सब काम मुमकिन नहीं ,</b><br />
<b>है त्यागी वही तारीके -बा अमल -अमल जो करे छोड़कर उसके फल .II 11 II </b><br />
<b>जो त्यागी नहीं ,जब वो दुनिया से जाए -तो मर कर वो फल तीन सूरत में पाए ,</b><br />
<b>बुरे या भले या मुरक्कब समर -जो तारिक हैं ,बच जाएँ इनसे मगर .II 12 II </b><br />
<b>जबरदस्त अर्जुन समझ मुझ से अब -कि हर काम के पांच होंगे सबब ,</b><br />
<b>हो पाँचों की तकमील हर काम की -कहे सांख्य का फलसफा भी यही .II 13 II </b><br />
<b>सबब अव्वलीं है अमल का मुकाम -दुवम आमिल ,इसका फिर एजा तमाम ,</b><br />
<b>चहारुम सबब सई ओ तदबीर है -तो पंजम सबब ,दस्ते तकदीर है II 14 II</b><br />
<b>कोई काम इन्सां जतन से करे -जुबां से कि तन से कि मन से करे ,</b><br />
<b>र वा काम या नारवा काम हो -इन्हीं पांच से वो सर अंजाम हो .II 15 II</b><br />
<b>करीने- खिरद फिर नहीं उसकी बात -जो समझे है ,आमिल फकत उसकी ज़ात ,</b><br />
<b>हकीकत में है वो हकीकत से दूर -वो मूरख है ,दानिश में किसके फितूर .II 16 II</b><br />
<b>वो इन्सां जो दिल में न रक्खे खुदी -नहीं जिसकी दानिश में आलूदगी ,</b><br />
<b>नहीं उसको कर्मों के बंधन से काम -वो कातिल नहीं गो करे कत्ले आम .II 17 II</b><br />
<b>अमल के मुहर्रिक हैं महफूज तीन -वो हैं आमिलो -इल्मो -मालूम तीन ,</b><br />
<b>वो अजजा है जिनपर अमल का मदार -है कारिन्दा ,ओ कार ओ आलाते कार .II18 II</b><br />
<b>जो गुन शाश्तर से करे तू नजर -अमल,आमिल और ज्ञान के राज़ पर , </b><br />
<b>जो जिस तरह दुनिया में गुन तीन है -यहीं उसके अक्साम सुन ,तीन हैं .II 19 II </b><br />
<b>नजर आये जिस ज्ञान से बरमला -हरेक में वही हस्तीये लाफना , </b><br />
<b>जो कसरत में वहदत की पहचान है -तो ऐने सतोगुन यही ज्ञान है .II 20 II </b><br />
<b>नजर आये कसरत में कसरत अगर -कि सब हस्तियाँ हैं जुदा सरबसर , </b><br />
<b>जो कसरत में वहदत से अनजान है -रजोगुन उस इंसान का ज्ञान है.II 21 II </b><br />
<b>अगर जुजू में दिल लगाने लगे -इसी जुजू को कुल बताने लगे , </b><br />
<b>तो दानिश वो कोतह ,नजर तंग है -तमोगुन इसी ज्ञान का रंग है.22 II </b><br />
<b>अमल वो लाजिम है और बेलगाव -न रगबत ,न नफ़रत का जिसमे सुभाव , </b><br />
<b>न हो फल की ख्वाहिश का जिसमे खलल -यही है ,यही है सतोगुन अमल.II 23 II </b><br />
<b>मगर वो अमल जिसमे फल का हो शौक -रहे लज्जतो कामरानी का जौक , </b><br />
<b>खुदी की नुमायश हो और दौड़ धूप -ये समझो अमल का रजोगुन है रूप .II 24 II </b><br />
<b>फरेबे नजर से करें काम अगर -न हो फिक्रे इमकानो -अंजाम अगर ,</b><br />
<b>न हो जिसमे ईजा औ नुकसां पे गौर -तमोगुन अमल के यही बस हैं तौर .II 25 II </b><br />
<b>तअल्लुक से बाला खुशी से बरी-इरादे का मजबूत ,दिल का कवी ,</b><br />
<b>बराबर है जिसके लिए हार जीत -वो आमिल सतोगुन की रखता है रीत .II 26 II </b><br />
<b>जो तालिब है फल का हवसनाक है -जो लोभी है ,ज़ालिम है ,नापाक है ,</b><br />
<b>खुशी से जो खुश हो ,जो गम से मलूल -वो अमिल रजोगुन के बरते उसूल .II 27 II </b><br />
<b>जो चंचल कमीना है जिद्दी कि सुस्त -नहीं काम करने में चालाक चुस्त , </b><br />
<b>फरेबी ,शरीर और मगमूम है -वो आमिल तमोगुन से मौसूम है .II 28 II </b><br />
<b>अयां अक्ले इन्सां के हों तीन गुन -बताता हूँ अर्जुन तवज्जो से सुन , </b><br />
<b>हैं गुन अज्मे दिल के भी तीनों यही -ब तफसील सुन मुझ से ले आगही .II 29 II </b><br />
<b>हों तर्के अमल ,खैर हो कि हो शर -निजातो असीरी ,दिलेरी कि डर . </b><br />
<b>जो फ़र्को तमीज इनमे समझ आयेगी -सतोगुण वही अक्ल कहलायेगी II 30 II </b><br />
<b>बताये न जो साफ़ धर्म और अधर्म -रवा कौन है ,ना रवा कौन कर्म , </b><br />
<b>तो अर्जुन नही है सतगुन वो अक्ल -है अपने गुनों से रजोगुन वो अक्ल .II 31 II </b><br />
<b>घिरी हो अँधेरे में दानिश अगर -जो शर को कहे खैर ,नेकी को शर , </b><br />
<b>हरेक बात उलटी ,हरेक में फितूर -तमोगुन वही अक्ल है बिल्जरूर .II 32 II </b><br />
<b>अगर योग से अज्म हो इस्तवार-हवासो -दिलो -दम पे हो इख़्तियार , </b><br />
<b>तो अच्छा वही अज्म ,अर्जुन समझ -वही अज्मे -रासिख तमोगुन समझ .II 33 II </b><br />
<b>मगर अज्म वो जिस में हो शौके ज़र-फ़रायज से मकसूद हो फिक्रे समर , </b><br />
<b>हवा ओ हवस से रहे जिस को काम -रजोगुन है इस अज्म का पार्थ नाम .II 34 II </b><br />
<b>है वो अज्मे खाली ,जहालत का बाब -रहे आदमी जिस से पाबंदे ख़्वाब , </b><br />
<b>बढे खौफो -रंजो -मलालो गुरूर -तमोगुन वही अज्म है बिल्जरूर .II 35 II </b><br />
<b>सुन अब मुझसे भारत के सरदार सुन -कि सुख के बी इन्सां में हैं तीन गुन , </b><br />
<b>है पहले वो सुख ,जिस से दुख दूर हो -बसर मश्क से जिसकी मसरूर हो .II 36 II </b><br />
<b>वो सुख जिसमे हासिल हो दुख से निजात -वो पहले ज़हर फिर हो आबे हयात ,</b><br />
<b>वो सुख आत्मा के लिए जान ले -सतोगुन है बेशक ये पहचान ले.II 37 II </b><br />
<b>जो महसूस से मेल खाकर हवास -मुसर्रत की लज्जत से हों रूशनाश ,</b><br />
<b>तो पहले वो अमरित है फिर ज़हर है -रजोगुन मुसर्रत की एक लहर है II 38 II </b><br />
<b>हो मदहोश इन्सां जिस आराम में -जो धोका है आगाजो अंजाम में ,</b><br />
<b>बढे मस्ती ओ गफलतो ख़्वाब से -तमोगुन वो सुख है इसे जानले.II 39 II </b><br />
<b>जो माया से पैदा हुए तीन गुन -कोई इनसे बाहर नहीं खूब सुन ,</b><br />
<b>जमीं पर ,फलक पर या हों देवता -नही कोई इन तीन गुन के बिना II 40 II </b><br />
<b>बिरहमन हों क्षत्री हो या शूद्र वैश -सुन अर्जुन हरेक का निराला है कैश ,</b><br />
<b>फ़रायज जुदा ,सबकी खसलत जुदा -कि फितरत ने कि सबकी तबियत जुदा .II 41 II </b><br />
<b>सूकूं,जब्त ,उफूये खता ,रास्ती -खिरद ,इल्मो ईमान पाकीजगी ,</b><br />
<b>रियाजत ,इबादत के पाकीजा कर्म -ये फितरत ने रक्खा बिरहमन का धर्म .II 42 II </b><br />
<b>शुजाअत ,सखावत ,तबात और जमाल -खुदावन्दगारी औ फन में कमाल , </b><br />
<b>कभी छोड़ जाए न मैदाने जंग -ये होते है क्षत्री की फितरत के रंग .II 43 II </b><br />
<b>जो है वैश्य तबअन तिजारत करे -करे गल्लाबानी ज़राअत करे , </b><br />
<b>जो है शूद्र ,सबके वो करता है कार -है फितरत से खिलकत का खिदमत गुजार .II 44 II </b><br />
<b>अगर अपने अपने करो कारोबार -तो हो जाओगे कामिल अंजामकार ,</b><br />
<b>अगर फर्ज की अपनी तामील हो -तो सुन क्यों न इन्सां की तकमील हो .II 45 II</b><br />
<b>वही जात जिस से खुदायी हुई -जो सारे जहाँ पर है छायी हुई , </b><br />
<b>उसी की परस्तिश ,इबादत से गर्ज-है तकमील इन्सान पर उसकी फर्ज .II 46 II </b><br />
<b>नहीं मंसबी धर्म तेरा अगर जो खूबी से भी कर सके तो न कर , </b><br />
<b>जो है धर्म तेरा वो कर काम आप -बुरा हो भला हो नहीं इसमे पाप .II 47 II </b><br />
<b>जो है तबई धर्म उसकी तामील कर -जो नाकिस भी हो उनकी तकमील कर , </b><br />
<b>कि कामों में अर्जुन जियां साथ है -जहाँ भी है आतिश धुआं साथ है .II 48 II</b><br />
<b>जो कामों से मन को लगावट नहीं -हवस तर्क हो ,नफ्स जेरे नगीं, </b><br />
<b>तो इस तर्क से पाए रुतबा बुलंद -न कर्मों की बाक़ी रहे कैदो बंद .II 49 II </b><br />
<b>सुन अब मुख़्तसर मुझसे कुंती के लाल -कि हासिल जो करता है ओजे कमाल , </b><br />
<b>वो फिर ब्रह्म से जाके वासिल हो कब -ये अआला तरीं ज्ञान हासिल हो कब .II 50 II </b><br />
<b>हो काबू जिसे नफ्स पर मुस्तकिल -करे पाक दानिश में सरशार दिल , </b><br />
<b>न आवाजो महसूस से अश्या से काम -वो रगबत से नफ़रत से बाला मुदाम .II 51 II </b><br />
<b><br />
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<b>जो खाता हो कम और हो खिल्वत नशीं -हों तन ,मन ,जुबां जिसके जेरे नगीं , </b><br />
<b>रहे ध्यान और योग में मुस्तकिल -हमेशा हो बैराग में जिसका दिल .II 52 II </b><br />
<b>अहंकार उसमे न बल का गुरूर -तकब्बुर ,गजब ,हिर्सो शहवत से दूर , </b><br />
<b>खुदी हो बुरी जिसको ,दिल में सुकूं -वही ब्रह्म का वस्ल पाए न क्यूँ .II 53 II </b><br />
<b>हो जब वासिले ब्रह्म दिल शाद हो -गमो ,रंजो .उल्फत से आजाद हो , </b><br />
<b>जो समझे है मख्लूक यकसां सभी -नसीब उसको भगती हो आला मेरी .II 54 II </b><br />
<b>वो भगती से मेरी मुझे जान ले -कि मैं कौन हूँ ,क्या हूँ ,पहचान ले , </b><br />
<b>मेरा ज्ञान जब उसको हासिल हुआ -मेरी जाते आली में वासिल हुआ .II 55 II </b><br />
<b>करे जिस कदर उसपे लाजिम हैं काम -मगर आसरा मुझ पे रक्खे मुदाम ,</b><br />
<b>वो रहमत में मेरी समा जाएगा -मुकामे बका को वो पा जाएगा .II 56 II </b><br />
<b>तू मुझपर सभी काम सन्यास कर - इन्हें छोड़ ,दिल से मेरी आस कर .</b><br />
<b>तू ले अक्ल के योग का आसरा -खयालात अपने मुझी में लगा .II 57 II </b><br />
<b>अगर मन में मुझको बिठाएगा तू -तो हर रोग से पार जायेगा तू ,</b><br />
<b>सुनेगा न मेरी अहंकार से -तबाही में जाएगा ,पिन्दार से .II 58 II </b><br />
<b>ये कहना तेरा खुद अहंकार है -कि मुझको लड़ाई से इन्कार है ,</b><br />
<b>ये सब अज्म काफूर हो जाएगा -तू फितरत से मजबूर हो जाएगा .II 59 II </b><br />
<b>बनाया है जो तेरी फितरत ने धर्म -कराएगी फितरत वाही तुझ से कर्म ,</b><br />
<b>तुझे लाख रोके फरेबे ख्याल -करेगा तू नाचार कुंती के लाल .II 60 II </b><br />
<b>सुन अर्जुन खुदा है ,खुदा हर कहीं -खुदायी के दिल में खुदा है मकीं ,</b><br />
<b>वो सब हस्तियों को घुमाता रहे -वो माया का चक्कर चलाता रहे II 61 II </b><br />
<b>पनाह अपनी भारत उसी को बना -उसी की इबादत में हस्ती लगा ,</b><br />
<b>तू रहमत में उसकी समा जाएगा -सुकूनो बका उस से पा जाएगा .II 62 II </b><br />
<b>बताया तुझे मैंने अय पाकबाज -ये ज्ञानों का ज्ञान और राजों का राज ,</b><br />
<b>तवज्जो से इस राज पर गौर कर -अमल इस पे तू चाहे जिस तौर कर .II 63 II </b><br />
<b>सुन अब सर्रे -पिन्हाँ की एक औए बात -बड़े राज की काबिले गौर बात ,</b><br />
<b>कि अर्जुन तू प्यारा है ,महबूब है-तेरा फ़ायदा मुझको मतलूब है .II 64 II </b><br />
<b>लगा मुझमे दिल भक्त होजा मेरा -तू कर यग ,मेरे सामने सर झुका ,</b><br />
<b>मुझे तुझसे ,मुझसे ,तुझे प्यार है -मेरा वस्ल का तुझसे इकरार है.II 65 II </b><br />
<b>तू सब धर्म छोड़ और ले मेरी राह -तू मांग आके दामन में मेरे पनाह ,</b><br />
<b>तेरे पाब सब दूर कर दूंगा मैं -न गमगीं हो ,मसरूर कर दूंगा मैं .II 66 II </b><br />
<b>ये राज उस ने मत कह जो जाहिद न हो -ये राज उस से मत कह जो आबिद न हो </b><br />
<b>न उस से ,जो हो बद जुबां,नुक्ताचीं -न उस से ,जो सुनने का ख्वाहाँ नहीं .II 67 II </b><br />
<b>मेरा भक्त होकर बइज्जो -नियाज -जो भक्तों से मेरे कहेगा ये राज ,</b><br />
<b>उन्हें सर्रे आली सिखाएगा जो -मेरा वस्ल बे शुबहा पायेगा वो.II 68 II </b><br />
<b>कहाँ उस से बढाकर है इन्सां कोई -करे ऎसी प्यारी जो सेवा मेरी ,</b><br />
<b>मुरव्वत की आँखों का तारा है वो -मुझे सारी दुनिया से प्यारा है वो .II 69 II </b><br />
<b>पढेगा जो कोई बराहे सवाब -हमारे मुक़द्दस सवालों जवाब ,</b><br />
<b>मैं समझूँगा उसने दिया ज्ञान यग -इबादत में मेरी किया ज्ञान यग .II 70 II </b><br />
<b>फकत जो सुने दिल में रखकर यकीं-निकाले न ऐब और न हो नुक्ता चीं.,</b><br />
<b>गुनाहों से वो मुखलिसी पायेगा -कि नेकों की जन्नत में आ जाएगा .II 71 II </b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">भगवान ने कहा -</span></b><br />
<b>सूना तूने अर्जुन ये मेरा कलम -सुना तबये -यकसू से तूने तमाम ,</b><br />
<b>बता तेरे दिल से धनंजय कहीं ,फरेबे जहालत ,गया कि नहीं .II 72 II </b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">अर्जुन ने कहा -</span></b><br />
<b>पुकारा फिर अर्जुन ने कि अय लाजवाल -हुआ दूर शक और फरेबे ख्याल ,</b><br />
<b>पता चल गया ,दिल है मजबूत अब -बजा लाऊंगा आपके हुक्म सब .II 73 II </b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">संजय ने कहा -</span></b><br />
<b>सुना मैंने जो श्री कृष्ण ने जो कहा -जो अर्जुन महा आत्मा ने सुना,</b><br />
<b>अजब हैरत अंगेज थी गुफ्तगू -खड़े हैं मेरे रोंगटे मूबमू .II 74 II </b><br />
<b>सुना व्यास जी की दयासे तमाम -ये श्री कृष्ण योगेश्वर का कलाम ,</b><br />
<b>खुद उनके लबों से सुना है सभी -यही योग आली ,ये सर्रे खफी .II 75 II </b><br />
<b>जो जेशव से अर्जुन हुए हम कलाम -अजब गुफ्तगू है मुक़द्दस तमाम ,</b><br />
<b>उसे याद करता हूँ मैं बार बार -तो दिल शाद करता हूँ मैं बार बार .II 76 II </b><br />
<b>हरी की हुई दीद मुझको नसीब -मेरे सामने है वो सूरत अजीब ,</b><br />
<b>उसे यद् करता हूँ मैं बार बार -तो दिल शाद करता हूँ मैं बार बार .II 77 II </b><br />
<b><br />
</b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: x-large;">जिधर हैं कृष्ण मेहरबां-योगेश्वर हैं खुद जहाँ ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: x-large;">जिधर है साहबे कमाल अर्जुन जैसा पहलवां,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: x-large;">वहीँ हैं शाद कामियां,वहीं खुश इंतजामियाँ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: x-large;">वहीं हैं कामरानियाँ वहीं है शादमनियां .II 78 II </span></b><br />
<b><br />
</b><br />
<div style="text-align: center;"><b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: x-large;">-अठारहवां अध्याय समाप्त -</span></b></div><b><br />
</b><br />
<div style="text-align: center;"><b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">:-ॐ तत सत इति :-</span></b></div><div style="text-align: center;"><b><br />
</b></div><b><br />
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</b>बी. एन.शर्माhttp://www.blogger.com/profile/16218522898407806020noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-5884056561588654324.post-36571569852936616622011-07-10T11:26:00.000-07:002011-07-10T11:26:49.211-07:00सत्रहवां अध्याय :श्रद्धात्रय विभाग<div style="text-align: center;"><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">श्रद्धात्रय विभाग -ऐतकादे सहगाना - </span></div><br />
<span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">अर्जुन का सवाल - </span><br />
<b>जो यग करने वाले हैं ,अहले यकीं-मगर शाश्तर पर जो चलते नहीं , </b><br />
<b>तो फरमाइए वो सतोगुन पे हैं -कि आमिल रजोगुन,तमोगुन पे हैं .II 1 II </b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">भगवान का जवाब - </span></b><br />
<b>कहा सुन के भगवान ने ये सवाल -मुताबिक है फितरत के ईमां का हाल , </b><br />
<b>कि ईमां के अन्दर भी हैं तीन गुन-सतोगुन ,रजोगुन ,तमोगुन तू सुन .II 2 II </b><br />
<b>कि जो जिसकी फितरत का आहंग है -वही उसके ईमां का रंग है , </b><br />
<b>कि इंसां खुद ईमां की तफ़सीर है -अकीदा ही इन्सां की तस्वीर है.II 3 II </b><br />
<b>सतोगुन तो पूजें ,खुदा ही को बस -राजोगुन मगर यक्ष और राक्षस , </b><br />
<b>तमोगुन के बन्दे है ,सबसे अलग -कि वो भूत प्रेतों को देते हैं यग.II 4 II </b><br />
<b>जो ताप में उठाते हैं रंजो -तनब-उलट शाश्तर के करें काम सब , </b><br />
<b>वो मक्कार ,खुदबीं हैं और सख्तकोश-भारी उनमे है ,कुव्वते-हिर्सो जोश .II 5 II </b><br />
<b>करें वो दुखी पांच तत का बदन -मुझे भी ,जो इस तन में हूँ खेमाजन , </b><br />
<b>बजाहिर तो हर चन्द इन्सां है वो -जो अज्म देखो तो शैतां है वो.II 6 II </b><br />
<b>गिज़ा जिसके शायक हैं सब ,उसकी सुन -करें फर्क इसमे यही तीन गुन ,</b><br />
<b>यही गुन इसी तरह देंगे बदल -इबादत ,रियाजत ,सखावत के फल .II 7 II </b><br />
<b>गिज़ा जिस से सेहत हो और जिंदगी -बढे जोशो ताकत ,खुशी खुर्रमी ,</b><br />
<b>मुकव्वी हो ,पुर रोगन ,और खुश गवार -सतोगुन के शायक को है उस से प्यार .II 8 II </b><br />
<b>सलोनी हो ,खट्टी कि कड़वी गिज़ा -जली ,चटपटी ,गर्म या बे मजा ,</b><br />
<b>गिज़ा ऎसी खाएं रजोगुन के लोग -उन्हें रंज हो ,दुख हो ,या तन का रोग .II 9 II </b><br />
<b>जो बासी हो ,बूदार गंदी गिज़ा -जो बदजायका हो या जूठी गिज़ा ,</b><br />
<b>ये खाना तमोगुन के बन्दों का है -कि खाना जो गन्दा है ,गंदों का है.II 10 II </b><br />
<b>वही है सतोगुन का यग बिल्जरूर -न हो फल की ख्वाहिश का जिसमे फितूर ,</b><br />
<b>अमल शाश्तर की रिआयत से हो -इबादत ,इबादत की नीयत से हो .II 11 II </b><br />
<b>अगर यग किया फल की ख्वाहिश के साथ -ख्याले नुमूदो -नुमायश के साथ ,</b><br />
<b>तो,अर्जुन नहीं ये सतोगुन का यग -रजोगुन का है ,ये रजोगुन का यग .II 12 II </b><br />
<b>जो करते हैं यग शाश्तर के खिलाफ -न अन्नदान ,जिसमे न मंतर हों साफ ,</b><br />
<b>न हो दक्षिणा ,औं जौके -यकीं -तमोगुन के यग के सिवा कुछ नहीं.II 13 II </b><br />
<b>जो पूजा करे देवताओं की तू-बिरहमन हों ,आलिम हों ,या हों गुरू ,</b><br />
<b>अहिंसा ,तजर्रुद,सफा ,रास्ती -बदन की रियाजत यही है ,यही II 14 II</b><br />
<b>सुखन वो जो सच्चा हो ,और बे खरोश -मुफीदे खलायक हो ,फिरदौस -कोश,</b><br />
<b>मुक़द्दस कुतब की तिलावत मुदाम -जुबां की रियाजत इसी का है नाम .II 15 II</b><br />
<b>सुकूं दिल में हो ,लब पे हो खामुशी-हलीमी ,ख्यालों में पाकीजगी , </b><br />
<b>रहे नफ्स पर जब्त और दिल हो राम -इसी शै का मन की रियाजत है नाम .II 16 II </b><br />
<b>जो यकदिल ,यकीं से इबादत करे -वो तन ,मन जुबां से रियाजत करे , </b><br />
<b>न हो फल के ख्वाहिश पे आमादगी -सतोगुन की रियाजत यही है ,यही .II 17 II </b><br />
<b>रियाजत दिखावे की गर मन को भाए -कि लोगों में इज्जत हो ,पूजा कराये , </b><br />
<b>रियाजत वो चंचल है ,नापायदार -कर इसको रजोगुन -रियाजत शुमार .II 18 II </b><br />
<b>वो तप जिस में जिद्दी उठाता है कष्ट -वो तप जिसका मकसद हो औरों का कष्ट , </b><br />
<b>जहालत का तप का तप उसको गिरदान तू-तमोगुन रियाजत इसे मान तू .II 19 II </b><br />
<b>इसे जानकर फर्ज खैरात दें -जो हकदार हो ,जिस से खिदमत न लें , </b><br />
<b>मुनासिब हो वक्त और मौजूं मुकाम -सतोगुन सखावत इसी का है नाम .II 20 II </b><br />
<b>हो अहसां के बदले की ख्वाहिश अगर -सखावत में फल पर लगी हो नजर , </b><br />
<b>अगर बेदिली से कोई दान दे -रजोगुन सखावत उसे जान ले .II 21 II </b><br />
<b>अगर नामुनासिब है वक्त और मुकाम -उसे दान दें जिसको देना हराम , </b><br />
<b>जो ले उसकी जिल्लत करें ,दिल दुखाएं -तमोगुन सखावत उसी को बताएं .II 22 II </b><br />
<b>जो है "ॐ तत्सत "मुक़द्दस कलाम -सह गूना है ये ब्रह्म का पाक नाम , </b><br />
<b>इसी से बिरहमन हुए आशकार -इन्हीं से हुए यग्ग और वेद चार .II 23 II </b><br />
<b>इबादत ,सखावत ,रियाजत के काम -मुवाफिक जो हैं शाश्तर के तमाम , </b><br />
<b>वो सब ब्रह्म दां-मर्दुमे -पारसा -हमेशा करें ॐ से इब्तिदा .II 24 II </b><br />
<b>जहां में है मतलूब जिसको निजात -समर से नहीं कुछ इसे इक्तिफात , </b><br />
<b>इबादत रियाजत ,सखावत करे -मगर हर्फे "तत"मुंह से पहले कहे .II 25 II </b><br />
<b>हकीकत यही है ,हकीकत है "सत"-सदाकत यही है सदाकत है "सत " , </b><br />
<b>कि दुनिया में जो भी भला काम है -सुन अर्जुन कि उसका "सत "नाम है .II 26 II </b><br />
<b>यही सत समझ उस अकीदत को जो -इबादत ,रियाजत ,सखावत में हो , </b><br />
<b>करें उस खुदा के लिए जोभी काम -तो उस काम का भी यही "सत "है नाम .II 27 II </b><br />
<b>हवन .दान में हो अकीदत न शौक -रियाजत में ईमां ,अमल में न जौक ,</b><br />
<b>इन अफआल का फिर "असत "नाम है -यहाँ है न उनका वहां काम है .II 28 II </b><br />
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<div style="text-align: center;"><b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">-सत्रहवां अध्याय समाप्त -</span></b></div><b><br />
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</b>बी. एन.शर्माhttp://www.blogger.com/profile/16218522898407806020noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5884056561588654324.post-80137614825958374312011-07-10T04:29:00.000-07:002011-07-10T04:29:06.968-07:00सोलहवां अध्याय :दैवासुर संपत्ति<div style="text-align: center;"><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">-दैवासुर संपत्ति -सिफ़ाते मलकूती व् शैतानी - </span></div><div style="text-align: center;"><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;"><br />
</span></div><div><div><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">भगवान ने फरमाया -</span></div><div><b>सुन अर्जुन है क्या देवताई सिफात -दिलेरी ओ इल्मो अमल में सबात ,</b></div><div><b>सखा ,जब्त ,यग,दिल में पाकीजगी -तिलावत ,रियाजत ,सलामत रवी .II 1 II </b></div><div><b>अहिंसा ,सदाकत ,करम ,तर्के ऐश -न फितरत का चंचलपना और न तैश ,</b></div><div><b>दिले बेहवस ,पुर सुकूं ,तबअ नर्म -न दिल तंग होना ,निगाहों में शर्म .II 2 II </b></div><div><b>सबूरी ,सिफ़ा ,जोर ,उफूये खता -हसद से तकब्बुर से रहना जुदा ,</b></div><div><b>जब इन नेक वस्फों पे मायल है वो -तो इन्सां फरिश्तानुमा कुल है वो .II 3 II </b></div><div><b>दोरंगी गुरूर ,औ नुमायश ,गजब -सुखन तल्ख़ ,बातें जहालत की सब , </b></div><div><b>इन्हीं से उस इंसान की पहचान है -सदा सेजो फितरत का शैतान है.II 4 II </b></div><div><b>है नेकू खसायल,रिहायी पसंद-शयातीं की खसलत से है कैदो बंद , </b></div><div><b>तुझे रंजो गम क्या ,पांडू के लाल -कि फितरत से तू है फ़रिश्ता खिसाल .II 5 II </b></div><div><b>ज़माने में जितने भी इन्सां हुए -फ़रिश्ते कोई ,कोई शैतां हुए , </b></div><div><b>सुना है मुफस्सिल फरिश्तों का हाल-जो शैतां हैं ,सुन अब उनका हाल .II 6 II </b></div><div><b>खबासत के पुतले हैं इन्हें क्या तमीज -ये करने की चीज ,या न करने की चीज , </b></div><div><b>न सत इनके अन्दर ,न पाकीजापन -मुअर्रा है शाइस्तगी से चलन .II 7 II </b></div><div><b>वो कहते हैं झूठा है संसार सब -न है इसकी बुनियाद ,न कोई रब , </b></div><div><b>करें मर्दों जन मिलके जब मस्तियाँ -उन्हीं मस्तियों से हों ,सब हस्तियाँ .II 8 II </b></div><div><b>जो हैं इन ख्यालों के बद्कुन बशर -वो खूंखार ,बेरूह ,कोतह नजर , </b></div><div><b>उदू बन के दुनिया में आते रहें -जहां में तबाही मचाते रहें .II 9 II </b></div><div><b><br />
</b></div><div><b>तकब्बुर ,रिया और बनावट से काम -वो तस्कीं न पायें हवस की गुलाम , </b></div><div><b>वो खाएं फरेबे ख्यालाते बद-बड़ी में दिखाएँ सदा शद्दो -मद .II 10 II </b></div><div><b>गेम बेहिसाब उनको ,दिन हो कि रात -मिले फिक्रे-दुनिया से मर कर निजात , </b></div><div><b>है मकसूद इनका ,हवस रानियां-हैं मद्दे नजर ऐश की सामानियाँ .II 11 II </b></div><div><b>उमीदों के फंदों में अटके हुए -गजब और शहवत में लटके हुए , </b></div><div><b>बदी से वो दौलत कमाते रहें -जो ऐशो तरब में गंवाते रहें .II 12 II </b></div><div><b>वो कहता है 'आज एक पायी मुराद -तो कल दूसरी हाथ आये मुराद , </b></div><div><b>ये दौलत है मेरी ,ये धन है मेरा -मेरे पास ही ये रहेंगे सदा II 13 II </b></div><div><b>किया एक दुश्मन को मैंने हलाक -करूंगा मैं औरों को जेरे ख़ाक , </b></div><div><b>सुखी हूँ ,कवी ,हाकिमे पुर जलाल -मजे ले रहा हूँ ,कि हूँ बा कमाल .II 14 II </b></div><div><b>मैं धनवान ,मेरा घराना शरीफ -भला कौन होता है मेरा हरीफ , </b></div><div><b>मैं लूंगा मजे यग्य और दान से -'यहीं खाए धोका वो अज्ञान से .II 15 II </b></div><div><b><br />
</b></div><div><b>ख्यालों के फंदों में जकडे हुए -तवह्हुम के जालों में पकडे हुए , </b></div><div><b>तअय्यश से जी को लगाते हैं वो -तो नापाक ,दोजख में जाते हैं वो .II 16 II </b></div><div><b>वो मगरूर ,जिद्दी हैं ,और ख़ुदपरस्त-वो दौलत ने नश्शे में रहते हैं मस्त , </b></div><div><b>जो करते हैं यग तो भी बहरे नुमूद -नहीं हैं वो पाबन्दे रस्मो -कुयूद .II 17 II </b></div><div><b>वो गुस्ताख ,पुर कीना ओ पुर गुरूर -खुदी मस्तियो तैशो -ताकत में चूर , </b></div><div><b>मैं खुद उनंके तन में हूँ ,या गैर के -न खैर उनसे पहुंचे ,सिवा बैर के .II 18 II </b></div><div><b>ये हासिद ,कमीने जफाकार लोग -ये जिल्लत के पुतले ,ये खूंखार लोग ,</b></div><div><b>न जिल्लत से इनको निकालूँगा मैं -शिकम में शयातीं के डालूँगा मैं .II 19 II </b></div><div><b>शिकम में शयातीं के होकर मकीं -ये बहके हुए मुझ तक आते नहीं ,</b></div><div><b>ये ,अर्जुन जनम पर जनम पायेंगे -ये गिरते ही .गिरते चले जायेंगे .II 20 II </b></div><div><b>जहन्नुम के हैं तीन दर लाकलाम -तमा ,शहवत और गुस्सा हैं जिनके नाम ,</b></div><div><b>इन्हें छोड़कर ,इनमे न जाना कभी -न हस्ती को अपनी मिटाना कभी .II 21 II </b></div><div><b>जो इनसे बचे वो रहे बे खतर-तमोगुन को जाते हैं ये तीन दर ,</b></div><div><b>मिले उसको आनंद ,कुंती के लाल -उसी को मयस्सर हो ओजे -कमाल .II 22 II </b></div><div><b>जो इन्सां चले शाश्तर के खिलाफ -हवस के हो ताबिअ करे इन्हाराफ ,</b></div><div><b>मिले उसको राहत ,न ओजे कमाल -रहे दूर उस से मुकामे विसाल .II 23 II </b></div><div><b>फकत शाश्तर को बना रहनुमा -कि करना है क्या ,और न करना है क्या ,</b></div><div><b>बस अब धर्म पर दिल दिए जा तमाम -अमल शाश्तर पर किये जा मुदाम .II 24 II </b></div><div><b><br />
</b></div><div style="text-align: center;"><b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">-सोलहवां अध्याय समाप्त -</span></b></div><div style="text-align: center;"><b><br />
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</div></div>बी. एन.शर्माhttp://www.blogger.com/profile/16218522898407806020noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5884056561588654324.post-40685885923360780742011-07-09T06:55:00.000-07:002011-07-09T06:55:38.165-07:00पन्द्रहवांअध्याय :पुरुषोत्तम योग<div style="text-align: center;"><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">-पुरुषोत्तम योग -जाते बरतर - </span></div><br />
<span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">भगवान ने फरमाया -</span><br />
<b>सुन अब ऐसे पीपल का अर्जुन बयां-जड़ें जिसकी ऊपर तने डालियाँ . </b><br />
<b>शजर लाफना ,जिसके पत्ते हैं वेद-वो है वेद दां ,पाए जो इसका भेद .II 1 II </b><br />
<b>गुनों से बढ़ें डालियाँ ला कलाम -हैं अश्याये -महसूस गुंचे तमाम , </b><br />
<b>जड़ें इसकी इन्सां की दुनिया तक आयें -जकड़ कर इसे कर्म से बाँध जाएँ .II 2 II </b><br />
<b>तसव्वुर में शक्ल इसकी आये कहाँ -न अव्वल ,न आखिर न जड़ का निशां , </b><br />
<b>जड़ें इसकी मजबूत हैं चार सू -ब शमशीरे तजरीद से काट तू .II 3 II </b><br />
<b>इन्हें काट कर ढूँढ़ फिर वो मुकाम -जहां जाके फिर तू न लौटे मुदाम , </b><br />
<b>तू कह मुझको परमेश्वर की अमां -किया जिसने हस्ती का दरिया रवां.II 4 II </b><br />
<b>फरेबो तकब्बुर से पाकर निजात -हवस छोड़कर जो रहे महवे जात , </b><br />
<b>तअल्लुक न सुख दुख के इज्दाद हों -मुकामे अबद पाके दिलशाद हों .II 5 II </b><br />
<b>जले महरो मह की न मशअल वहां -न हो उस जगह आग शोला फिशां , </b><br />
<b>मुकामे मुअल्ला मेरा है वही -पहुँच कर जहाँ से न लौटे कोई .II 6 II </b><br />
<b>मेरी आत्मा ही का जरदे कदीम -बने रूह अहले जहाँ में मुकीम , </b><br />
<b>जो माया में लिपटे हैं अहले हवास -यही रूह खींचे उन्हें अपने पास II 7 II </b><br />
<b>जहां ,ईश्वर यानी जीव आत्मा -हो इक तन में दाखिल और इक से जुदा , </b><br />
<b>तो साथ अपने लेजाये मन और हवास -सबा जैसे लेजाये फूलों की बास.II 8 II </b><br />
<b>जुबां,कान ,रस , आँखऔर नाक से -इन्हीं पांच ,और मन के इदराक से , </b><br />
<b>यही रूह लज्जत उडाती रहे -सदा लुत्फे -महसूस पाती रहे .II 9 II </b><br />
<b>मुसाफिर जो आया और आ कर चला -जो लुत्फ़ इन गुनों का उठाकर चला , </b><br />
<b>नहीं उसको गुमराह पहचानते-हैं अहले बसीरत फकत जानते II 10 II </b><br />
<b>जो योगी रियाजत में कोशां रहें -तो वो भी उसे रूह में देख ले , </b><br />
<b>वो मूरख है ,कमजोर जिनके शऊर -करें लाख कोशिश ,न पायें वो नूर.II 11 II </b><br />
<b>ये सूरज की ताबिश मेरा नूर है -जहाँ जिसके जलवों से मामूर है , </b><br />
<b>रहे चाँद रख्शां मेरे नूर से -तो आतिश दरख्शां मेरे नूर से .II 12 II </b><br />
<b>जमीं को जो करता हूँ ,खुद को निहां -तो कुव्वत से मेरी मिले कुव्ते जां , </b><br />
<b>बनूँ नूरे महताब की आब मैं -तो करता हूँ पौधों को शादाब मैं .II 13 II </b><br />
<b>हरारत हूँ मैं ही ,शिकम में निहां -मैं हूँ जान वालों के तन में तवां , </b><br />
<b>दरूनो -बरूं दम में आता हूँ मैं -तो चारों गिजायें पचाता हूँ मैं .II 14 II </b><br />
<b>हर इंसान के दिल में पिन्हाँ भी मैं -कि हूँ हाफिजा -इल्म ,निसयाँ भी मैं , </b><br />
<b>मैं दाना हूँ ,रौशन हैं सब मुझपे वेद-है वेदान्त मुझसे ,मैं वेदों का भेद .II 15 II </b><br />
<b>जहाँ में हैं दो तरह की हस्तियाँ -है फानी कोई और कोई जाविदां ,</b><br />
<b>जहाँ की है मख्लूक फानी तमाम -अजल से जो बाकी है उसको दवाम .II 16 II </b><br />
<b>वो परमेश्वर है ,वो परमात्मा -जो है सब पे छाया हुआ लाफना ,</b><br />
<b>है बाक़ी ओ फानी से बाला ओ हक़ -कि कायम हुए जिस से तीनों तबक .II 17 II </b><br />
<b>जो फानी है ,जात उनसे मेरी बुलंद -जो बाकी है बात उनसे मेरी बुलंद ,</b><br />
<b>है पुरषोत्तम अपना ज़माने में नाम -यही नाम लें वेददां और अवाम .II 18 II </b><br />
<b>जो पुरुषोत्तम इस तरह जाने मुझे -दिले हक़- निगर से जो जाने मुझे ,</b><br />
<b>तो भारत समझ बा खबर है वही -वो तन ,मन से करता है भगती मेरी .II 19 II </b><br />
<b>सिखाया तुझे भारत अय पाकबाज-ये इल्मों का इल्म और राजों का राज ,</b><br />
<b>जो समझे इसे साहबे होश हो -फ़रायज से अपने सुबुकदोश हो .II 20 II </b><br />
<b><br />
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<div style="text-align: center;"><b>-<span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">पन्द्रहवां अध्याय समाप्त -</span></b></div><div style="text-align: center;"><b><br />
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</b>बी. एन.शर्माhttp://www.blogger.com/profile/16218522898407806020noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5884056561588654324.post-39539509106025468482011-07-08T19:25:00.000-07:002011-07-08T19:25:02.708-07:00चौदहवाँ अध्याय :गुणत्रय विभाग<div style="text-align: center;"><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">-गुणत्रय विभाग -तकसीमे सिफ़ाते सहगाना - </span></div><br />
<span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">भगवान का इरशाद -</span><br />
<b>फिर अर्जुन से भगवान बोले कि,सुन -जो ग्यानों का है ज्ञान सुन उसके गुन ,</b><br />
<b>मुनी जिसको ये ज्ञान हासिल हुआ -कमले फजीलत से वासिल हुआ .II 1 II </b><br />
<b>जो लेते हैं इस ज्ञान का आसरा -वो यकरंग हो जाएँ मुझसे सदा ,</b><br />
<b>जो पैदा हो दुनिया ,तो आयें न वो -फना हो तो तकलीफ पायें न वो II 2 II </b><br />
<b>शिकम है मेरी कुदरते कामिला -जो मैं तुख्म डालूं तो हो हामिला ,</b><br />
<b>यही है महाब्रह्म अस्ले हयात -कि भारत इसी से हो कायनात .II 3 II </b><br />
<b>किसी पेट से कोई पाए जनम -हो अर्जुन कोई शक्ल ,कोई शिकम , </b><br />
<b>शिकम है महाब्रह्म ,मैं बाप हूँ -कि बीज उसमे डालता आप हूँ .II 4 II </b><br />
<b>नमूदार माया से हों तीन गुन-सतोगुन,रजोगुन,तमोगुन ये सुन , </b><br />
<b>जो है लाफना रूह तन में मकीं -ये गुन कैद करते हैं उसको वहीं .II 5 II </b><br />
<b>सतोगुन की फितरत है पाकीजा नूर -न ऐब इसमे ,अर्जुन न कोई कुसूर , </b><br />
<b>करे रूह को शौके -राहत से कैद -करे रूह को जौके -दानिश का सैद .II 6 II </b><br />
<b>रजोगुन की फितरत है जज्बात की -है संगीत से इसकी और तिश्नगी ,</b><br />
<b>ये जौके अमल का बनाती है जाल -करे रूह को कैद ,कुंती के लाल .II 7 II </b><br />
<b>तमोगुन जहालत की औलाद है -कब इस से मकीं ,तन से आजाद है ,</b><br />
<b>करे कैद धोके से भारत इसे -करे ख्वाबो -गफलत से गारत इसे .II 8 II </b><br />
<b>सतोगुन का रहता है सुख से लगाव -रजोगुन का शौके अमल है सुभाव ,</b><br />
<b>तमोगुन का परदा पड़े ज्ञान पर -तो गफलत मुसल्लत हो इंसान पर .II 9 II </b><br />
<b>सतोगुन का जिस वक्त बाला हो दस्त -रजोगुन ,तमोगुन रहें उस से पस्त ,</b><br />
<b>रजस से सतोगुन ,तमोगुन दबे -तमस से ,सतोगुन ,रजोगुन घटे .II 10 II </b><br />
<b>बदन है मकां ,और हवास इसके दर -अगर दर है रौशन तो रौशन है घर ,</b><br />
<b>अगर ज्ञान का नूर हो जूफिशाँ-सतोगुन के गल्बे का है ये निशाँ .II 11 II </b><br />
<b>रजोगुन का गलबा हो अर्जुन अगर -तो हो जाएँ हिर्सो -हवा जोर पर ,</b><br />
<b>तमन्ना हो ,कोशिश हो ,और पेचो -ताब -राजे शौक किरदार में इज्तिराब.II 12 II </b><br />
<b>तमोगुन जब इन्सां में हो जोर पर -तो हो मोह गालिब ,कुरु के पिसर ,</b><br />
<b>अँधेरा तबीयत पे छा जाएगा -जमूद उसको गाफिल बना जाएगा II 13 II </b><br />
<b>सतोगुन जो ग़ालिब हो इन्सान पर -इसी हाल में मौत आये अगर ,</b><br />
<b>मकीं तन का पाए पवित्तर मुकाम -वो सिद्धों की दुनिया में जाए मुदाम .II 14 II</b><br />
<b>रजोगुन में इन्सां अगर जान दे -जनम अहले किरदार में आके ले ,</b><br />
<b>तमोगुन में मर कर जो जिन्दों में आये -दरिदों ,परिंदों ,चरिन्दों में आये .II15 II</b><br />
<b>जो करता है इन्सां सतोगुन अमल -तो पाता है ,पाकीजा और नेक फल , </b><br />
<b>रजोगुन अमल से मिले पेचो -ताब -तमोगुन अमल में ,जहालत का बाब .II 16 II </b><br />
<b>सतोगुन से इरफां का पैदा हो नूर -रजोगुन से हिर्सो -हवा का जहूर , </b><br />
<b>तमोगुन से धोका भी ,गफलत भी हो -तबीयत पे ग़ालिब ,जहालत भी हो .II 17 II </b><br />
<b>सतोगुन से जाएँ सूए आसमां-रजोगुन से लटके रहें दरमियाँ , </b><br />
<b>तमोगुन का गुन है ये सबसे रजील -ये पस्ती दे डाले ,ये कर दे रजील .II 18 II </b><br />
<b>जो अहले बसीरत हैं अहले नजर -गुनों को समझते हैं कारगर , </b><br />
<b>मुझे मानते हैं गुनों से बुलंद -तो वासिल मुझी से हों वो अर्जमंद II 19 II </b><br />
<b>बदन का है तीनों गुनों पर मदार -मकीने बदन ,गर करे इनको पार , </b><br />
<b>वो चहकता है अमृत ,वो पाटा है सुख -न जीना ,न मरना ,न पीरी का दुख.II 20 II </b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">अर्जुन का सवाल - </span></b><br />
<b>फिर अर्जुन ने पूछा कि अय कर्दगार-वो इन्सां जो जाता है ,तीनों से पार , </b><br />
<b>चलन क्या है उसका ,अलामात क्या -वो तीनों गुनों से हो क्योंकर रिहा .II 21 II </b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">भगवान का इरशाद -</span></b><br />
<b>सुन अर्जुन ,सतोगुन से हासिल हो नूर -रजोगुन से कुव्वत ,तमस से फितूर ,</b><br />
<b>है कामिल जिसे इनकी चाहत नहीं -जो हों ,तो उसे उनसे नफ़रत नहीं II 22 II </b><br />
<b>जो इन्सां गुनों से रहे बेगरज-न बेकल हो इनसे ,न रक्खे गरज ,</b><br />
<b>जो समझे कि करते हैं गुन ही ये काम -रहे पुर सुकूं खुद में कायम मुकाम .II 23 II </b><br />
<b>जो सुख दुख में यकसां ,जो है मुस्तकिल -बराबर जिसे जर हो ,कि मिट्टी की सिल ,</b><br />
<b>मुसावी पसंदीदा और नापसंद -हो तहसीं कि नफ़रत ,वो सब से बुलंद .II 24 II </b><br />
<b><br />
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<b>न जिल्लत की परवा ,न इज्जत की भूक -करे दोस्त -दुश्मन से यकसां सलूक ,</b><br />
<b>गरज त्याग दे ,मुझपे सब कारोबार -समझ लो गुनों से वो होता है पार .II 25 II </b><br />
<b>जो खादिम मेरा ही परस्तार है -जो मेरी ही मस्ती में सरशार है ,</b><br />
<b>हो तीनों गुनों से न क्यों पार वो -है वसले -खुदा का सजावार हो .II 26 II </b><br />
<b>मेरी ज़ात ही ब्रह्म का है मुकाम -सबातो बका मुझी में कयाम .</b><br />
<b>मैं दीने अजल का भी हूँ आसरा -मेरी जाते आली ,मैं राहत सदा .II 27 II </b><br />
<b><br />
</b><br />
<div style="text-align: center;"><b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">-चौदहवाँ अध्याय समाप्त -</span></b></div><div style="text-align: center;"><b><br />
</b></div><b><br />
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</b>बी. एन.शर्माhttp://www.blogger.com/profile/16218522898407806020noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5884056561588654324.post-50443970897632148282011-07-07T22:43:00.000-07:002011-07-07T22:43:41.062-07:00तेरहवां अध्याय :क्षेत्र क्षेत्रज्ञ<div style="text-align: center;"><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">-:क्षेत्र क्षेत्रज्ञ -इम्तियाजे जिस्मो जां-</span></div><div style="text-align: center;"><br />
</div><br />
<span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">भगवान ने फरमाया -</span><br />
<b>तुझे अब बताता हूँ ,कुंती के लाल -कि ये जिस्म इक खेत की है मिसाल , </b><br />
<b>है इस खेत का राज जिस पर अयां-कहें खेतरग्य उसको सब राजदां .II 1 II </b><br />
<b>समझ खेत का राजदां हूँ तो ,मैं -कि हर खेत के दरमियाँ हूँ ,तो मैं , </b><br />
<b>जो ये खेत और खेतरग का है इल्म -मेरी राय में सबसे आला है इल्म .II 2 II </b><br />
<b>सुन अर्जुन ,है क्या खेत ,क्या इसके गुन-तगय्युर हों कैसे ,कहाँ से ,ये सुन , </b><br />
<b>है कौन ,और क्या ,कुव्व्वते-राजदां-मैं करता हूँ ,अब मुख़्तसर सा बयां .II 3 II </b><br />
<b>ये ऋषियों ने गाया कई रंग से -बहुत मीठे छंदों के आहंग से , </b><br />
<b>ये ब्रह्म सूत्रों में भी मस्तूर है -यही बा दलील उनमे मजकूर है.II 4II </b><br />
<b>अनासिर ,अहंकार ,अक्ले-मुहीत -ये दिल,दस हवास,और ये फितरत बसीत ,</b><br />
<b>करें जिनको महसूस पाँचों हवास -ये आवाज ,शश जायका ,रंगों -बास .II 5 II </b><br />
<b>ये सुख दुख,ये नफ़रत तरगीब भी -खिरद ,पायेदारी भी तरकीब भी ,</b><br />
<b>ये हैं खेत ,और इनकी तब्दीलियाँ -इन्हीं का है ये मुख़्तसर सा बयां .II 6 II </b><br />
<b>मैं करता हूँ अब ज्ञान के गुन शुमार -ये हैं ,रास्ती ,इल्म ,उफू ,इन्किसार ,</b><br />
<b>अहिंसा भी ,और खिदमत उस्ताद की -दिली पुख्तगी ,जब्त ,पाकीजगी. II 7 II </b><br />
<b>न होना सरोकार लज्जात से -किनारा ,अहंकार की बात से ,</b><br />
<b>यही गौर करना कि,लें छीन सुख -जनम ,मौत ,पीरी ,मरज दर्दो दुख .II 8 II </b><br />
<b>न बाबस्तागी रिश्त ओ बंद से -न घर से ,न जन से ,न फरजंद से ,</b><br />
<b>तवाजन से होना ,सुकूनो करार -गवारा हो सूरत कि हो नागवार .II 9 II </b><br />
<b>फकत धारना मेरी भक्ती का योग- दुई का न होना ज़रा दिल में रोग ,</b><br />
<b>अलग रह के महसूस करना सुरूर -हुजूमे खलायक से होना नुफूर .II 10 II </b><br />
<b>ख़याल अद्धियातम का शामो -सहर -हकीकत के मकसद पे रखना नजर,</b><br />
<b>ये इल्मों का इल्म ,ये ज्ञान है -खिलाफ इसके जो है ,अज्ञान है.II 11 II </b><br />
<b>सजावार इरफां है वो पाकजात-कि है इल्म ही उसका आबे हयात ,</b><br />
<b>वो बे इब्तिदा ,लम यजल,जी हशम-न सत या असत कह सकें जिसको हम .II 12 II </b><br />
<b>उसी के हैं सब दस्तो पा चारसू -उसी का रूखे रूनुमा चारसू ,</b><br />
<b>उसी के नजर ,कान ,सर ,हर तरफ -मुहीते जहां सरबसर हर तरफ.II 13 II </b><br />
<b>बजाहिर नहीं गरचे उसके हवास -दरख्शां सिफ़ाते हवास उसके पास ,</b><br />
<b>वो है बे तअल्लुक मगर सबका रब -गुनों से बरी,और गुन उसमे सब .II 14 II </b><br />
<b>किसी शै में जुम्बिश ,किसी में सूकूं -वो मौजूद सब में दरूँ और बरूं ,</b><br />
<b>लतीफ ऐसा ,एहसास माजूर है -वही है करीब ,और वही दूर है . II 15 II </b><br />
<b>मुहाल उसकी तकसीम ,अय जी शऊर -मगर उसका हर शै में हिस्सा जरूर ,</b><br />
<b>सजावार ईरफां वो परवरदिगार -फना और बका पर उसी का मदार .II 16 II </b><br />
<b>वही जात नूरुन -अला नूर है -जो तारीकियों से बहुत दूर है .,</b><br />
<b>वो ईरफां का हासिल भी मकसूद है -वो ईरफां भी हर दिल में मौजूद है.II 17 II </b><br />
<b>तुझे मुख़्तसर तौर पर कह दिया -कि इर्फानो मकसूदे ईरफां है क्या ,</b><br />
<b>बताया तुझे खेत का मैंने हाल -जो समझे मेरा भक्त पाए विसाल .II 18 II </b><br />
<b>ये माया अनादी है ,ला इब्तिदा -इसी तरह ला इब्तिदा आत्मा ,</b><br />
<b>गुन अश्या के और उनकी शक्लें अनेक -ये माया से जाहिर हुई एक एक .II 19 II </b><br />
<b>हवासो बदन जो भी पैदा हुए -ये माया के बाइस हुवैदा हुए , </b><br />
<b>जो सुख दुख का होता है अहसास सब -ये अहसास है आत्मा के सबब .II 20 II </b><br />
<b>कि माया में जब आत्मा हो मकीं -गुनों से हो माया के लज्जत गुजीं , </b><br />
<b>गुनों से जो आलूद हो बेशो कम -बुरी या भली जों में ले जनम .II 21 II </b><br />
<b>महापुरुष तन में जो है जल्वागर-वो परमात्मा है ,खुदा ,ईश्वर , </b><br />
<b>वो नाजिर भी है कार फरमा भी है -वो लज्जत गुजीं भी सहारा भी है .II 22 II </b><br />
<b>अगर आत्मा को कोई जान ले -गुनों और माया को पहचान ले , </b><br />
<b>रहे जैसे चाहे वो जिस हाल में -न आये तनासुख के जंजाल में .II 23 II </b><br />
<b>कोई ध्यान से मन में डाले नजर -तो देखे वो खुद आत्मा जल्वागर, </b><br />
<b>कोई सांख्य के योग से देख ले -कोई देख ले कर्म के योग से .II 24 II </b><br />
<b>मगर इनसे है बेखबर भी कई -करें सुन सुना कर वो पूजा मेरी , </b><br />
<b>जो सुन लें उसी में वो सरशार हों -फना के समंदर से भी पार हों .II 25 II </b><br />
<b>मिले खेत से खेत का राजदां-तो अर्जुन उसीसे हो सब कुछ अयां ,</b><br />
<b>किसी में है जुम्बिश ,किसी में कयाम -इसी मेल से पाए हस्ती तमाम .II 26 II </b><br />
<b>जो है कुछ नजर तो ,उसी की नजर -नजर में रहे जिसकी परमेश्वर ,</b><br />
<b>है सब ग्यान वालों में ग्यानी वही -कि फानी में है ,गैर फानी वही.II 27 II </b><br />
<b>जो उस जाते -मुतालिक पे रक्खे यकीं -कि हर एक मकां में वही है मकीं ,</b><br />
<b>करे वो न खुद आत्मा को तबाह -कि उत्तम गति कि ये अच्छी है राह .II 28 II </b><br />
<b>जो समझे कि दुनिया की सब रेलपेल -है माया का करतब ,माया का खेल ,</b><br />
<b>है खुद आत्मा पुर सुकूं,बे अमल -नजर है उसीकी ,नजर बे खलल .II 29 II </b><br />
<b>जिसे आये कसरत में ,वहदत नजर -कि हर रंग में है वही जल्वागर ,</b><br />
<b>जो वहदत से कसरत का समझे जहूर -खुदा से हो वासिल वही बिल्जरूर .II 30 II </b><br />
<b>मकीं तन के अन्दर है परमात्मा -अनादि ,गुनों से बरी ,लाफना ,</b><br />
<b>अमल से वो फारिग है ,कुंती के लाल -अमल से न आलूद हो लायजाल.II 31 II </b><br />
<b>है आकाश दुनिया पे जैसे मुहीत -मुजल्ला ,मुसफ्फा ,कि है वो बसीत ,</b><br />
<b>बदन में यूँही आत्मा है मकीं -मगर उस से आलूदा होती नहीं .II 32 II </b><br />
<b>हो सूरज से जिस तरह रोशन जहां -चमक जाएँ भारत जमीं आसमां ,</b><br />
<b>इसी तरह खेतों पे छा जाए नूर -जो हो खेत के राजदां का जहूर .II 33 II </b><br />
<b>जो चश्मे बसीरत से करता है गौर -कि खेत औरहै ,राजदां इसका और ,</b><br />
<b>जो माया से ,दे हस्तियों को निजात -बुलन्दी में हासिल करे वस्ले-जात .II 34 II </b><br />
<b><br />
</b><br />
<div style="text-align: center;"><b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">-तेरहवां अध्याय समाप्त -</span></b></div><div style="text-align: center;"><b><br />
</b></div><b><br />
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</b>बी. एन.शर्माhttp://www.blogger.com/profile/16218522898407806020noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5884056561588654324.post-36244539046840400572011-07-06T20:17:00.000-07:002011-07-06T20:17:57.660-07:00बारहवां अध्याय :भक्तियोग<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<div style="text-align: center;"><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">भक्तियोग -तरीकते इश्क - </span></div><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">अर्जुन का सवाल - </span></b><br />
<b><br />
</b><br />
<b>जो इस तरह भक्ति में सरशार है-फकत आपके ही परस्तार हैं </b><br />
<b>.वो योगी हैं बेहतर ,कि बातिन परस्त -खफी लम यजल ,जाते आली में मस्त .II 1 II </b><br />
<b><br />
</b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">भगवान ने कहा -</span></b><br />
<b><br />
</b><br />
<b>हुए सुन के भगवान यूँ गुल फिशां -हैं बेहतर वही योग में बेगुमां, </b><br />
<b>यकीं से जो भक्ति करें मुस्तकिल -मुझी से जो अपना लगाते हैं दिल.II 2 II </b><br />
<b>मगर जो पूजें खफी पाक जात -जो कायम है ,दायम है और पुर सबात, </b><br />
<b>ख्यालो ,जहूरो ,बयां से बुलंद -हो हाजिर है ,नजीर है और बेगुजंद .II 3 II </b><br />
<b>हवास अपने काबू में रक्खें तमाम -सुकूनो -तवाजन हो दिल में मुदाम ,</b><br />
<b>हरेक की भलाई से मसरूर हों -मुझी से हों वासिल ,न तहजूर हों .II 4 II </b><br />
<b>जो जाते खफी से लगाते हैं दिल -उठाते हैं तकलीफ वो मुस्तकिल ,</b><br />
<b>कि जाते खफी का है ,मुश्किल शुहूद -खफी को न समझेंगे अहले वुजूद .II 5 II </b><br />
<b>जो एमाल सब मुझ पे कुरबां करें -परस्तिश मेरी बा दिलो -जां करें ,</b><br />
<b>जो मकसूदे आली मुझी को बनाएं -फकत मेरे ही ध्यान में दिल लगायें .II 6 II </b><br />
<b>मैं करता हूँ ,अर्जुन उन्हें कामगार -तनासुख के फानी समंदर से पार , </b><br />
<b>दिल अपना जो मुझ में लगाते रहें -मुझी से निजात अपनी पाते रहें .II 7 II </b><br />
<b>लगाए तो दिल ,अपना मुझ में लगा -मुझी में तू कर मह्व अक्ले रिसा , </b><br />
<b>तो फिर इसमे हरगिज नहीं कुछ कलाम -तू पायेगा मुझ में कयामो -दवाम .II 8 II </b><br />
<b>जो कायम न तू रख सके मुझ में दिल -न यकसू रहे ध्यान में मुस्तकिल , </b><br />
<b>तू अभ्यास से कर तलाशे -कमाल ,-इसी योग से ढूँढ़ अर्जुन विसाल.II 9 II </b><br />
<b>तू अभ्यास के न हो काबिल अगर -तो फिर मेरी खातिर सब एमाल कर , </b><br />
<b>मेरे वास्ते ही जो आमिल हो तू -तो आमाल से मर्दे-कामिल हो तू .II 10 II </b><br />
<b>रियाजत में भी गर तू हेठा रहा -तो ले फिर मेरे योग का आसरा , </b><br />
<b>तू रख दिल पे काबू ,किये जा अमल -किये जा अमल ,छोड़ दे इनका फल .II 11 II </b><br />
<b>कि अफजल है अभ्यास ,करने से ज्ञान -मगर ज्ञान से बढ़ के होता है ध्यान , </b><br />
<b>है तर्के-समर ,ध्यान से भी फुजूँ -कि तर्के समर से हो फ़ौरन सुकूं .II 12 II </b><br />
<b><br />
</b><br />
<b>वो इंसां जो सुख दुख में हमवार है -जो हर इक का हमदर्द गमख्वार है ,</b><br />
<b>किसी का न बैरी हो ,बख्शे कुसूर -खुदी से भी दूर और तअल्लुक से दूर .II 13 II </b><br />
<b>वो योगी जिसे खुद पे है इख़्तियार -जो साबिर है ,और अज्म में इस्तिवार ,</b><br />
<b>दिलो -अक्ल जो मुझ पे कुर्बां करे -वही है मेरा भक्त प्यारा मुझे .II 14 II </b><br />
<b>जो दुनिया को आजार देता नहीं -जो दुनिया से आजार लेता नहीं ,</b><br />
<b>बरी बुग्जो -ऐशो -गमो -खौफ से -वही है मेरा भक्त प्यारा मुझे.II 15 II </b><br />
<b>जो चौकस है ,बेलाग और बेनियाज -दुखों से मुबर्रा और पाकबाज ,</b><br />
<b>जो तर्के जजा इब्तिदा से करे -वही है मेरा भक्त प्यारा मुझे.II 16 II </b><br />
<b>मुसर्रत से भी दूर ,नफ़रत से भी दूर -गमो ख्वाहिशो -नेको -बद से नफूर .</b><br />
<b>हमेशा जो भक्ती में शादां रहे -वाही है मेरा भक्त प्यारा मुझे.II 17 II </b><br />
<b>बराबर जिसे दोस्त दुश्मन तमाम -न सुख दुख न इज्जत न दौलत से काम ,</b><br />
<b>हो सर्दी कि गरमी जिसे एकसी -लगन हो न जिसकी किसी से लगी .II 18 II </b><br />
<b>बराबर हों जिसके लिए मदहो जम -वो कम गो न जिसको गमे बेशो-कम ,</b><br />
<b>कवी दिल का ,आजाद घरबार से -वही है मेरा भक्त प्यारा मुझे .II 19 II </b><br />
<b>जो करते हैं कायम ,ये अमृत सा धर्म -यकीं से जो रखते हैं ,सीनों को गर्म ,</b><br />
<b>जो मकसूदे आला समझ लें मुझे -वाही भक्त है सबसे प्यारा मुझे .II 20 II </b><br />
<b><br />
</b><br />
<div style="text-align: center;"><b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">-बारहवां अध्याय समाप्त -</span></b></div><div style="text-align: center;"><b><br />
</b></div><b><br />
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<b><br />
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</div>बी. एन.शर्माhttp://www.blogger.com/profile/16218522898407806020noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5884056561588654324.post-71710975267477068012011-07-05T02:33:00.000-07:002011-07-05T02:33:52.047-07:00ग्यारहवां अध्याय :विश्वरूप दर्शन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<div style="text-align: center;"><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">विश्वरूप दर्शन -जलाले यज्दानी-</span></div><b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">अर्जुन ने कहा -</span><span class="Apple-style-span" style="color: orange; font-size: large;"> </span></b><br />
<b>कहा फिर ये अर्जुन ने अय मोहतरम -किया आपने मुझपे लुत्फो करम , </b><br />
<b>बताया खफी अध्यात्म का राज -गया मोह ,आखें हुई सिल की बाज .II 1 II </b><br />
<b>कमलनैन मैंने सुना आपसे -कि एहसाम किस तरह पैदा हुए , </b><br />
<b>जो पैदा हुए होंगे क्योंकर फना -तुम्हीं को है अजमत ,तुम्हीं को बका .II 2 II </b><br />
<b>किया आपने हाल जो कुछ बयां-वही सच है परमेश्वर बेगुमां, </b><br />
<b>है पुरुषोत्तम अब इश्तियाक इस कदर -कि दीदारे हक़ देख लूँ इक नजर .II 3 II </b><br />
<b>प्रभू आपका है अगर ये ख्याल - कि दर्शन की है मुझको ताबो मजाल ,</b><br />
<b>तो योगेश्वर ,लुत्फ़ फरमाइए -मुझे लाफना रूप दिखलाइये .II 4 II </b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">भगवान ने फरमाया -</span></b><br />
<b>कर अर्जुन नजर ,देख मेरे सरूप -मेरे सैकड़ों और हजारों हैं रूप ,</b><br />
<b>मेरी पाक हस्ती के नीरंग देख -नए रूप देख ,और नए ढंग देख .II 5 II </b><br />
<b>वसू ,रूद्र ,आदित्य की सूरतें -दो अश्विन भी ,मारुत की भी मूरतें ,</b><br />
<b>तू भारत के फरजंद सब देख ले -जो देखा नहीं तूने अब देख ले .II 6 II </b><br />
<b>जो कुछ चाहे तू देख तन में मेरे-जहाँ सब है ,अर्जुन बदन में मेरे , </b><br />
<b>यहीं सारा आलम नमूदार देख -तू साकिन भी देख और सय्यार देख .II 7 II </b><br />
<b>मेरी दीद गर तुझको मंजूर है -तेरी आँख का कब ये मकदूर है , </b><br />
<b>मैं देता हूँ तुझको खुदायी बसर-मेरे इस शही योग पर कर नजर .II 8 II </b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">संजय का बयान - </span></b><br />
<b>महाराज ,अर्जुन से कह कर ये बात -हरी ,यानि योगेश्वर पाक ज़ात , </b><br />
<b>दिखाने लगे शाने आली का रूप -तो अर्जुन ने देखा खुदायी सरूप .II 9 II </b><br />
<b>अनेक उसकी आँखें तो चहरे अनेक -निगाहें अनेक ,उसमे जल्वे अनेक ,</b><br />
<b>अनेक उसके पुरनूर जेवर सजे -खुदायी वो हथियार उभरे हुए .II 10 II </b><br />
<b>खुदायी वो कंठे ,खुदायी लिबास -खुदायी उबटने,खुदायी वो वास ,</b><br />
<b>वो ला इन्तहाई खडी रूबरू -जो रुख उसका देखे तो रुख चार सू .II 11 II </b><br />
<b>फलक पर निकल आयें सूरज हजार -बयक वक्त मिलकर हैं सब नूरबार ,</b><br />
<b>तो धुंधली सी समझो तुम इसकी मिसाल -महा आत्मा का था ,इतना जलाल .II 12 II </b><br />
<b>जो अर्जुन ने देखा कि जल्वानुमा -है देवताओं का वो देवता ,</b><br />
<b>उसी के तने -पाक में है अयाँ-गिरोहों के गोलों में सारा जहां .II 13 II </b><br />
<b>तो अर्जुन को इस दर्जा हैरत हुई -कि सहमा ज़रा और लगी कपकपी ,</b><br />
<b>हुजूरे खुदावंद में सर झुका -वो यूं जोड़ कर हाथ कहने लगा .II 14 II </b><br />
<div style="text-align: center;"><b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">-अर्जुन की मुनाजात -</span></b></div><b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुम्हारे पैकर में देव भगवन ,ये देवता सब समा रहे हैं ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">अनेक रंगों में जीव सारे गिरोह बन बन के आ रहे हैं ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">कमल के आसन पे आप ब्रह्मा विराजमान हैं तुहारे अन्दर ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">ऋषी ये सारे ,नाग आसमानी ,सब अपनी सूरत दिखा रहे हैं .II 15 II </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">नेक बाजू ,अनेक चहरे ,शिकम अनेक ,और अनेक आँखें ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">अनंत रूपी तुम्हारे जल्वे ,दशों दिशाओं में छा रहे हैं ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुम्हारा अव्वल है और न आखिर ,न दरमियां है कोई तुम्हारा ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">हे विश्व रूपी जहाँ के मालिक ,तुम्हीं में आलम समा रहे हैं.II 16 II </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">मकुट है पुरनूर ,गुर्ज पुरनूर ,और इस पे चक्कर है शोला अफशां , </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">चमक रहे हैं ,दमक रहे हैं ,जहां को भी जगमगा रहे हैं , </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">हो जिस तरह आग ,शोला अफशां ,हो जैसे सूरज का रूए ताबां , </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">वो अपनी ला इंतहा चमक से ,जहाँ को खीरा बना रहे हैं .II 17 II </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुम्हीं हो बरतर भी ,ला फना भी ,तुम्ही सजावारे इल्मो इरफां ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुम्हीं हो बे इख्तिता में मख्जन,वो जिसमे आलम समा रहे हैं ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुम्हीं कदीमी पुरुष हो भगवन,पुरुष वो जिसको फना नहीं है ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">जो लाफाना धरम है ,उसे भी तुम्हारे अहसां बचा रहे हैं .II 18 II </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">न इब्तिदा है ,न इंतिहा है ,न वस्त से वास्ता है तुमको, </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुम्हारे ला इंतिहा हैं बाजू ,जो जोरे ताकत दिखा रहे हैं , </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुम्हारी आँखें चाँद सूरज ,तुम्हारा चेहरा हवन की अगनी . </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुम्हारे जल्वे हैं शोला अफशां ,जो कुल जहां को तपा रहे हैं .II 19 II </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">जमीं में जल्वा,समां में जल्वा,और उनके अन्दर खला में जल्वा , </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">दशों दिशाओं में ,ईश्वर सब तुम्हारे जल्वे समा रहे हैं , </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">महात्मा है तुम्हारी सूरत ,वो जिस से बरसे जलालो हैबत , </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">कि तीनों दुनिया के रहने वाले ,लरज रहे ,थरथरा रहे हैं II 20 II </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">ये देवताओं के गोल सारे ,तुम्हीं में सब हो रहे हैं शामिल , </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तमाम हैबत से हाथ बांधे ,तुम्हारे गुण गुनगुना रहे हैं , </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुम्हारी स्वस्ति पुकारते हैं ,महारिशी और सिद्ध मिलकर , </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुम्हारी तारीफ़ गा रहे हैं ,तुम्हारे नगमे सुना रहे हैं .II 21 II </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">वो रूद्र ,आदित्य और वसु सब ,वो साध्या और विश्व अश्वां,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तमाम महबूत हो रहे हैं ,निगाह को हैरत में ला रहे हैं ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">गिरोह पितरों के और मारुत ,वो यक्ष ,गन्धर्व राक्षस सब ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">गिरोह सिद्धों के मिल मिलाकर सभी अचम्भे में आ रहे हैं .II 22 II </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">हजारों चहरे ,हजारों आँखें ,हजारों बाजू ,हजारों जानू , </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">शिकम हजारों ,कदम हजारों ,बला के दंदां डरा रहे हैं , </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुम्हारा बेअंत रूप वो है कि हे शहंशाहे जोरो -ताकत , </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">मैं खुद भी कांपता हूँ ,जहां भी सब थरथरा रहे हैं .II23II</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुम्हारा ये पुर जलाल कामत जो आसमां से लगा हुआ है , </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">अनेक रंग उस पे छा रहे हैं ,जो जैबो जीनत बढ़ा रहे हैं , </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">फराख चेहरा खुला हुआ मुंह बड़ी बड़ी शोलावार आँखें , </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">न मुझमे ताकत न चैन ,विष्णु ,ये मेरे मन को डरा रहे हैं .II 24 II </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुम्हारी दाढ़ें उभर रही हैं ,कि आग महशर की जल रही है , </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">फना के शोले निकर रहे हैं ,जो इक जहां को जला रहे हैं , </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">मेरा सहारा है न ठिकाना ,करम हो मुझपर ,करम हो मुझपर , </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुम्हारे साए में सारे आलम ,सरों को अपने झुका रहे हैं .II 25 II </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">वो धृष्ट राष्ट्र के बेटे ,और उनके साथी जहां के राजा , </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">पितामा भीषम ,औ द्रोनाचारज ,वो कर्ण रथवान आ रहे हैं , </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">हमारी जानिब के ऊंचे अफसर ,सिपाहसालार नामवाले , </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तम्हारे कालिब में आ रहे हैं ,तुम्हारे तन में समां रहे हैं.II 26 II </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुम्हारे खूंखार मुंह के अन्दर हैं ,सफ ब सफ हौलनाक दाढ़ें, </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">मैं देखता हूँ कि,अहले आलम सब अपनी हस्ती मिटा रहे हैं . </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">पहुँच कर जबड़ों की चक्कियों में ,सर उनंके पिस कर हुए हैं चूरा , </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">खला में दांतों के इनमे अक्सर फंसे हुए लड़खड़ा रहे हैं .II 27 II </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">दहन तुम्हारे चमक रहे हैं ,और उनमे यूं कौंधते हैं शोले ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">जहां के सब शूरवीर ,खुद को ,उन्हीं के अन्दर गिरा रहे हैं ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">वो इस तरह जा रहे हैं ,कि जैसे नदियों के तेज धारे,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">किसी समंदर के मुंह के अन्दर सब अपनी हस्ती मिटा रहे हैं .II 28 II </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">दहन के शोलों में कूदते हैं ,ये तेज रफ़्तार लोग सारे ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">फ़िदा सभी तुम पे हो रहे हैं ,ये मौत के मुंह में जा रहे हैं ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">नहीं ये इन्सां ,ये हैं पतंगे जो इश्को -मस्ती में वालिहाना ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">अजल के शोलों पे उड़ रहे हैं ,फ़ना से जो लौ लगा रहे हैं .II 29 II </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">मजे से लब अपने चाटते हो तुम ,इक जहाँ को निगल निगल कर ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">जुबां से शोले निकल रहे हैं ,हरेक को लुक्मा बना रहे हैं ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुम्हारी ताबो -तपिश से विष्णु ,तमाम आकाश है दहकता ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुम्हारी किरनों के तेज जल्वे ,जमाने भर को जला रहे हैं .II 30 II </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">हो देवताओं के देवता तुम ,तुम्हें नमस्कार ,कुछ बता दो ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुम्हारी इस पुर जलाल सूरत में किसके जल्वे समां रहे हैं ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुम्हारी हस्ती अजल से पहले ,बताओ मुझको कि कौन हो तुम ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">ये कैसे इसरार हैं तुम्हारे ,जो मुझको हैरां बना रहे हैं .II 31 I</span>I </b><br />
<div style="text-align: center;"><b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">-अर्जुन की मुनाजात ख़त्म -</span></b></div><b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">भगवान का इरशाद - </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">कजा हूँ मैं ,कजा हूँ मैं -कि दर पाए फना हूँ मैं , </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">जहाँ की हस्तो बुद को -मिटने आ रहा हूँ मैं , </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">ये शूरवीर लश्करी -जो मिल रहे हैं जंग पर , </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तो न हो ये सबके सब -हलाक कर चुका हूँ मैं .II 32 II </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तू अर्जुन उठ हो नेकनाम -दुश्मनों को घेर कर , </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">ब जोर छीन ताजो तख़्त -हमसरों को जेर कर , </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">ये मर चुके ,ये मर चुके -फ़ना मैं इनको कर चुका , </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तू बाएं हाथ वाले उठ -वसीला बन ,न देर कर.II 33 II </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">मैं कर्ण भीष्मऔर द्रोण -इन्हें हलाक़ कर चुका ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">ये जयद्रथ ,ये जंगजू -समझ हरेक मर चुका ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तू जीत जायेगा न डर-उदू से अपने जंग कर ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तू मार इन्हें ,ये मर चुके -सफ़र जहाँ से कर चुके.II 34 II </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">संजय ने कहा </span>-</b><br />
<b>सुनी जब ये गुफ्तार भगवान की-लगी साहबे ताज को कपकपी ,</b><br />
<b>जुबां लड़खड़ाई गला रुक गया -झुका ,जोड़कर हाथ कहने लगा .II 35 II </b><br />
<div style="text-align: center;"><b>-<span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">अर्जुन की मुनाजात -2 .</span></b></div><b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">ज़माना करता है अय ऋषिकेश ,जिसकी हम्दो सना तुम्हीं हो , </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">ख़ुशी से गाते हैं गुन तुम्हारे ,कि सबके परमात्मा तुम्हीं हो . </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तम्हीं से डर डर के राक्षस सब ,दशों दिशाओं में भागते हैं , </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">करें नमस्कार सिद्ध मिलकर ,जिसे वो सबके खुदा तुम्हीं हो .II 36 II </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">बड़े हो ब्रह्मा से मरतबे में ,कि खुद ही ब्रह्मा के तुम हो मूजिब ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">करें नमस्कार क्यों न सारे कि जाते- ला इंतिहा तुम्हीं हो ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुम्हीं हो सत भी तुम्हीं असत भी ,तुम्हीं हो नित भी तुम्हीं अनित भी ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">जगन्निवास और महात्मा तुम देवों के देवता तुम्हीं हो.II 37 II </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुम्हीं हो बरतर खुदाए अव्वल ,पुरुष कदीमी ,पनाहे आलम ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुम्हीं सजावारे इल्मो इरफां,अलीमे राज आशना तुम्हीं हो ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुम्हीं से फैला जहान सारा ,तुम्हीं हो सबका मुकामे अफजल ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">है जिस से भरपूर सारी दुनिया ,अनंत रूपी खुदा तुम्हीं हो .II 38 II </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुम्हीं जहां के हो बाप दादा ,तुम्हीं हो ब्रह्मा तुम्हीं हो यम भी , </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुम्हीं वरुण हो तुम्हीं हो अगनी ,तुम्हीं हो चाँद और हवा तुम्हीं हो , </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुम्हें नमस्कार ,फिर नमस्कार ,फिर नमस्कार ,मेरे दाता, </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुम्हें नमस्कार हों हजारों ,खुदाए इज्जो -अला तुम्हीं हो .II 39 II </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुम्हें नमस्कार हाजिराना ,तुम्हें नमस्कार गायबाना ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुम्हें नमस्कार हर तरफ से कि कुल में जल्वानुमा तुम्हीं हो ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुम्हारी कुव्वत की कोई हद है न जोरो ताकत की इंतिहा है ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुम्हीं से कायम है सारा आलम ,कोई नहीं दूसरा ,तुम्हीं हो .II 40 II </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">कभी कहा मैंने कृष्ण तुमको ,कभी कहा मैंने दोस्त यादव ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">मैं बेतकल्लुफ यही समझता रहा कि यार -आशना तुम्हीं हो ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">इसे समझ लो मेरी मुहब्बत ,इसे समझ लो मेरी जहालत ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">न पहले अफसोस ,मैंने समझा कि शाहे अर्जो-समां तुम्हीं हो .II 41 II </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">जो बैठते ,उठते खाते पीते ,जो जागते सोते खेलते में ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">हुई हों गुस्ताखियाँ तो बख्शो कि जाते -ला इंतिहा तुम्हीं हो ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">कभी अकेले ,कभी सभा में ,कहा हो कुछ दिल्लगी में तुमको ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तो पुरखता की खता को बख्शो ,कि हस्तीए बेखता तुम्हीं हो .II 42 II </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">हैं जितने साकित ,हैं जितने सय्यार सभी जहानों के हो पिता तुम , </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुहीं को शायां है सारी इज्जत ,कि मुर्शिदो -रहनुमा तुम्हीं हो, </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">नहीं तुम्हारी मिसाल कोई ,किसे फजीलत है तुम से बढ़कर, </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">न जिसकी ताकत का तीनों आलम में है कोई दूसरा ,तम्हीं हो.II 43 II </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">इसीलिए सिजदा कर रहाहूँ तुम्हारे आगे झुकाए सर को ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">कि जिसको जैबा है सिजदा करना ,फकत मेरे किब्रिया तुम्हीं हो ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">पिदर नवाजिश करे पिसर पर ,सजन सजन पर ,पिया पिया पर ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">दया करो तुम भी मुझ पे भगवन ,कि बह्रे -लुत्फो -अता तुम्हीं हो.II 44 </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुम्हारा मैंने वो रूप देखा न जिसको देखा था मैंने पहले ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">मैं खुश भी हूँ ,और मैं गमजदा भी ,मुकामे बीमो -रजा तुम्हीं हो ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">मुझे दिखादो ,मुझे दिखादो ,वही वो पहले सी अपनी सूरत ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">जगन निवास ,अब दया हो मुझ पर कि देवों के देवता तुम्हीं हो.II 45 II </span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">मुकुट लगाया हो ,गुर्ज उठाया हो ,हाथ में हो तुम्हारे चक्कर ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">वो रूप पहले सा देख लूँ मैं ,कि देर से आशना तुम्हीं हो ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">दया करो मुझपे ,फिर दिखाओ वो मूरती चार हाथों वाली ,</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुम्हारे हैं गो हजार बाजू ,कि विश्वरूपी खुदा तुम्हीं हो .II 46 II </span></b><br />
<div style="text-align: center;"><b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">-अर्जुन की दूसरी मुनाजात ख़त्म -</span></b></div><b><br />
</b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">-भगवान ने फरमाया - </span></b><br />
<b>सुन अर्जुन अब मेरी दया कि,ये तुझ पे बिल्जरूर है , </b><br />
<b>कि मैंने अपने योग से ,दिखा दिया जहूर है , </b><br />
<b>न जिसको देखा आजतक ,किसीने भी तेरे सिवा , </b><br />
<b>वो अव्वलीं ,वो दायमी ,ये विश्वरूप नूर है .II 47 II </b><br />
<b>कुरु के खानदान में ,मिली है तुझको सरवरी , </b><br />
<b>दिखाया तुझको अपना रूप ,है ये बन्दा परवरी , </b><br />
<b>न वेद,जप से मिल सके ,दान तप से मिल सके , </b><br />
<b>न यग ,न कर्मकांड से ,दिखायी दे सके हरी .II 48 II </b><br />
<b><br />
</b><br />
<b>हिरासो खौफ छोड़ दे ,न जार हो ,न जार हो ,</b><br />
<b>न हौलनाक रूप से ,मेरे तू बेकरार हो ,</b><br />
<b>ले मेरी शक्ल देख ले ,तू जिस से आशना भी है ,</b><br />
<b>ये वहमो खौफ दूर कर ,ख़ुशी से हमकिनार हो .II 49 II </b><br />
<b>संजय ने कहा -</b><br />
<b>ये कहकर महा आत्मा ने वहीँ -दिखाई वही पहली सूरत हसीं ,</b><br />
<b>गया खौफ ,सब आन की आन में -तसल्ली से जान आ गई जान में.II 50 II </b><br />
<b><br />
</b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">अर्जुन का इकरार -</span></b><br />
<b>जो अर्जुन ने देखा ,तो भगवान की-वही पहली सूरत थी इंसान की ,</b><br />
<b>कहा अब मेरा दिल ठिकाने लगा -मुझे होश भगवान आने लगा .II 51 II </b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">भगवान का इरशाद -</span></b><br />
<b>फिर अर्जुन से भगवान कहने लगे -कि,तूने जो अब मेरे दर्शन किये ,</b><br />
<b>सदा देवताओं का अरमां रहा -ये दर्शन कहाँ उनको हासिल हुआ .II 52 II </b><br />
<b>मुझे तूने देखा है ,जिस तौर से -यही तौर मुमकिन नहीं और से ,</b><br />
<b>ये दीदार यग से ,न तप से मिले -न दान और वेदों के जप से मिले .II 53 II </b><br />
<b>अगर मेरी भगती में यकसू रहे -मेरा ज्ञान हो ,और मुझे देख ले ,</b><br />
<b>हकीकत का इरफां भी हासिल हो फिर -मेरी जाते -आली में वासिल हो फिर II 54 II </b><br />
<b>मेरा भक्त हर काम मेरा करे -तअल्लुक किसी से ,न नफ़रत उसे ,</b><br />
<b>करे मुझको मकसूद अपना ख्याल -तो अर्जुन वो पाए मुझी से विसाल .II 55 II </b><br />
<b><br />
</b><br />
<div style="text-align: center;"><b>-<span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">ग्यारहवां अध्याय समाप्त -</span></b></div><div style="text-align: center;"><b><br />
</b></div><b><br />
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</div>बी. एन.शर्माhttp://www.blogger.com/profile/16218522898407806020noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5884056561588654324.post-7381470221561514222011-07-04T04:38:00.000-07:002011-07-04T04:38:33.662-07:00दसवां अध्याय :विभूति योग<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<div style="text-align: center;"><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">विभूति योग -जलाले यज्दानी </span></div><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">भगवान का इरशाद </span><br />
<b>सुखनसंज भगवान फिर यूं हुए -कि सुन अय कवी -दस्त प्यारे मेरे , </b><br />
<b>ये आला सुखन फिर बताता हूँ मैं -भलाई का रस्ता फिर दिखाता हूँ मैं .II 1 II </b><br />
<b>हुए देवता महारिशी जिस कदर -मेरी इब्तदा से हैं बेखबर , </b><br />
<b>मुझी से है सब देवताओं कि बूद-मिला मुझसे हर महारिशी को वुजूद .II 2 II </b><br />
<b>समझता है मुझको जो बे इब्तदा -जनम से बरी ,शाहे अरजो -समा , </b><br />
<b>फरेबे नजर से वही पाक है -गुनाहों से आजाद औ बेबाक है .II 3 II </b><br />
<b>मुझी से है सुख दुख,दिलेरी ,हिरास -खिरद ,इल्मे कल्ब -हकीकत शनास , </b><br />
<b>सदाकत ,सुकूं,ज़ब्त ,उफू औ करम -मुझी से वुजूद ,और मुझी से अदम .II 4 II </b><br />
<b>अहिंसा ,कनाअत ,दिले पुर सुकूं - रियाजो सखा ,नामे नेक औ जुबूं , </b><br />
<b>गरज जानदारों में जो हैं सिफात -है उन सबकी बिना मेरी पाक ज़ात .II 5 II </b><br />
<b>वो सालों मुआज्जिज ऋषि नामदार -मनू और वो चारों कदीमी कुमार , </b><br />
<b>जहां वाले सब जिनसे पैदा हुए -वो मेरे ही मन से हुवैदा हुए .II 6 II </b><br />
<b>जो कुव्वत मेरे योग की जान ले-हकीकत मुजाहिर की पहचान ले , </b><br />
<b>वो कायम रहे योग पर बिल्यकीं-तवाज़न है उसमे तजल्जल नहीं .II 7 II </b><br />
<b>मेरी ज़ात है मिब्नाए कायनात -मुझी से हुआ इरताकाए -हयात , </b><br />
<b>यकीं इस पे करते हैं ,जो अहले होश -करें मेरी भगती बजोशो खरोश .II 8 II </b><br />
<b>मुझी में हैं मन को जमाये हुए -हैं प्राण अपने मुझमे लगाए हुए , </b><br />
<b>वो करते हैं आपस में पुरनूर दिल -मेरे ज़िक्र से शादो -मसरूर दिल .II 9 II </b><br />
<b>वो रहते हैं यकदम मेरे जौक से -वो करते हैं पूजा मेरी शौक से , </b><br />
<b>मैं देता हूँ उनको वो दानिश का योग -की हो जाते हैं मुझसे वासिल वो लोग .II 10 II </b><br />
<b>जो रहम उनकी हालत पे खाता हूँ मैं -तो घर उनके दिल में बनाता हूँ मैं ., </b><br />
<b>दिखाता हूँ उनको हिदायत का नूर -अन्धेरा जहालत का हो जिस से दूर .II 11 II </b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">अर्जुन ने कहा - </span></b><br />
<b>तू आली खुदा ,तेरा आली मुकाम -वो हस्ती है तू ,जिसकी अज़मत मुदाम . </b><br />
<b>तू माबूदे अव्वल ,तेरी पाक जात -जमम से बरी ,मालिके कायनात .II 12 II </b><br />
<b>इसी तरह लें आपके पाक नाम -असित ,व्यास ,देवल ,ऋषी भी तमाम , </b><br />
<b>यही देव नारद बताएं सिफात -यही आप अपनी सुनाएँ सिफात .II 13 II </b><br />
<b>गरज आपने जो बताया मुझे -यकीं केशौ भगवान आया मुझे , </b><br />
<b>न समझा कोई आपकी शान को -कोई देवता हो ,कि शैतान हो .II 14 II </b><br />
<b>ऐ खालिक जगत के और ए किब्रिया -सभी देवताओं के हो देवता , </b><br />
<b>पुरुषोत्तम ऊंची है बात आपकी -अगर बात जानें ,तो ज़ात आपकी.II 15 II </b><br />
<b>करें आप मुझपर मुकम्मिल अयां-जलाले मुक्कदस का वाजिह निशां,</b><br />
<b>जहां फैज़ से जिसके मामूर है-जमीनों -जमां जिस से पुर नूर है .II 16 II </b><br />
<b>बता दीजिये मेरे योगी ज़रा -मिले ध्यान से कैसे ज्ञान आपका ,</b><br />
<b>करूं किन मुजाहिर में जम कर ख्याल -कि खुल जाए मुझपर हकीकत का हाल .II 17 II </b><br />
<b>ज़रा योग अपना बयां कीजिए -जलाल अपना भगवन अयां कीजिए ,</b><br />
<b>कि बातें वो अमृत सी हैं आपकी -तबीयत नहीं सैर होती कभी .II 18 II </b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">भगवान का इरशाद - </span></b><br />
<b>हुए सुन के भगवान यूं लबकुशा -हैं अर्जुन मेरे वस्फ़ ला इंतिहा , </b><br />
<b>जलाल अपना कुछ कुछ बताता हूँ मैं -सिफ़ाते -नुमायाँ दिखाता हूँ मैं .II 19 II </b><br />
<b>सुन अर्जुन हूँ मैं आत्मा बिल्यकीं-जो है जानदारों के दिल में मकीं , </b><br />
<b>हूँ मैं मिस्ले जां,अहले जां में निहां -मैं अव्वल ,मैं आखिर ,मैं हूँ दरमियां.II 20 II </b><br />
<b>आदित्तियों में है मेरा "विष्णु "खिताब -मैं अश्याये पुर नूर में आफताब , </b><br />
<b>"मरीची "मरूतों के अन्दर हूँ मैं -मनाजिल में तारों के "चंदर "हूँ मैं .II 21 II </b><br />
<b>समझ मुझको वेदों में तू वेद साम -मेरा देवताओं में "वासु "है नाम ,</b><br />
<b>हिसों में हूँ मैं मन ,मुझको पहचान तू -तू जां अहले जां की मुझे जां तू .II 22 II </b><br />
<b>मैं रुद्रों के अन्दर हूँ "शंकर "दिलेर -जो हैं राक्षस ,यक्ष उनमे कुबेर ,</b><br />
<b>तो वसुओं में अग्नी ,मुझे तू समझ -सब ऊंचे पहाड़ों में मेरू समझ .II 23 II </b><br />
<b>पुरोहित हैं जो ,उनमे ब्रहस्पत हूँ मैं -सुन अर्जुन कि सर करदा प्रोहित हूँ मैं ,</b><br />
<b>सिकंद अहले लश्कर के अन्दर कहो -तो झीलों के अन्दर समंदर कहो .II 24 II </b><br />
<b>भृगू यानी ऋषियों का सरदार हूँ -सुखन में सुखन यानी ओंकार हूँ ,</b><br />
<b>यगों में हूँ जप यग ,निराला हूँ मैं -जो मुहकम हैं ,उनमे हिमाला हूँ मैं .II 25 II </b><br />
<b>दरख्तों में पीपल का हूँ में दरख़्त -मैं ऋषियों में नारद ,अय नेकबख्त ,</b><br />
<b>हूँ गन्धर्व लोगों में चितरथ मैं -कपिल हूँ मुनी उनमे जो सिद्ध हैं .II 26 </b><br />
<b>मैं घोड़ों में इन्दर हूँ अस्पेनर -जो अमृत के मंथन में आया नजर ,</b><br />
<b>मैं फीलों के अन्दर हूँ इन्दर का फील -जो इंसान हैं उनने शहे-बेनदील.II 27 II </b><br />
<b>मैं आलाते जंगी में बर्के -तपां-मैं गायों में हूं कामधुक बेगुमाँ,</b><br />
<b>शहंशाह नागों का मैं वासुकी -हूँ कंदर्प जिस से हों पैदा सभी .II 28 II </b><br />
<b>मैं नागों में हूँ शेष लाइन्तिहा -मैं जल वासियों में वरुण देवता ,</b><br />
<b>मैं पितरों में हूँ अर्यमा जी हशम-मैं दुनिया के फर्मा-रवाओं में यम .II 29 II </b><br />
<b>मैं हूँ देत्याओं में पहलाद सुन -मैं वक्त उनमे रखें जो गिनती का गुन,</b><br />
<b>मैं शेरे बबरसब दरिंदों में हूँ -तो विष्णू का शाही परिंदों में हूँ .II 30 II </b><br />
<b>मैं सरसर हूँ उनमे जो हैं तेजगाम -मैं हूँ तेगो शमशीर वालों में राम , </b><br />
<b>मुझे मछलियों में मकर जान तू-तो नहरों में गंगा मुझे मान तू.II 31 II </b><br />
<b>मैं आगाज़ ओ अंजाम अहले जहां -जो कुछ दरमियाँ है तो मैं दरमियाँ , </b><br />
<b>मैं इल्मों में हूँ इल्मे जां अय अकील -दलीलों में अर्जुन मैं हक़ की दलील .II 32 II </b><br />
<b>अलिफ़ हूँ ,सुखन जो करे इब्तदा -मैं हूँ अत्फ़ ,लफ्जों के जो दे मिला , </b><br />
<b>मैं हूँ वक्त जिसको फना ही नहीं -मुहाफिज हूँ वो जिसका रुख हर कहीं .II 33 II </b><br />
<b>कज़ा हूँ जो करती है सबको फना -नयी जिन्दगी की हूँ मैं इब्तदा , </b><br />
<b>मैं हूँ सनफे-नाजुक में इकबालो नाम -सुखन ,हाफिजा ,उफू अक्लो कयाम .II 34 II </b><br />
<b>सामों में बृहत साम ,अय होशमंद -तो छंदों में गायत्री का मैं छंद , </b><br />
<b>महीनों में मुझको अघन कर शुमार -तो मौसम में ,फूलों की हूँ मैं बहार .II 35 II </b><br />
<b>जुआ हूँ मैं ,जो चलते हैं चाल -जलाल उनका ,जिनमे है जाहोजलाल , </b><br />
<b>इरादा भी मैं ,फतहो नुसरत भी मैं -जो सादिक हैं ,उनकी सदाकत भी मैं .II 36 II </b><br />
<b>मैं वृष्णओं हूँ वासुदेव अय मुशीर -कबीले में पाण्डू के अर्जुन अमीर , </b><br />
<b>मैं हूँ व्यास ,उनमे हैं जितने मुनी -जो शायर हैं ,उनमे हूँ उशना कवी .II 37 II </b><br />
<b>जो हाकिम हैं मैं उनमे ताजीर हूँ -जो फातिह हैं ,मैं उनकी तदबीर हूँ , </b><br />
<b>मैं राजों में हूँ ,ख़ामुशी पर्दा पोश -मैं हूँ ज्ञान उनका ,जो हैं इल्मकोश .II 38 II </b><br />
<b>करूं खल्के आलम की तरबीज मैं -हूँ अर्जुन हरेक चीज का बीज मैं , </b><br />
<b>है साकिन कोई ,याकि सय्यार है -मगर मुझसे बाहर न ज़न्हार है. II 39 II </b><br />
<b>परन्तप ,यहाँ गौर कर ले ज़रा -मेरे पास जलवे हैं ला इंतिहा ,</b><br />
<b>जो थोड़ा सा तुम से बयाँ कर दिया -नमूना सा थोड़ा अयां कर दिया .II 40 II </b><br />
<b>नजर आये कुव्वत कहीं या जलाल -शिकोह ,या तजम्मुल कि हुस्नो जमाल ,</b><br />
<b>समझले कि उसमे है जल्वा फ़िगन -मेरे बेकराँ नूर की इक किरन.II 41 II </b><br />
<b>न तफसील में जाके उलझन बढ़ा -कि कसरत से अर्जुन तुझे काम क्या ,</b><br />
<b>ज़रा ये करिश्मा हुआ है अयां -इसी से मामूर सारा जहां .II 42 </b><br />
<div style="text-align: center;"><b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;"><br />
</span></b></div><div style="text-align: center;"><b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">-दसवां अध्याय समाप्त -</span></b></div><div style="text-align: center;"><b><br />
</b></div><b><br />
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</div>बी. एन.शर्माhttp://www.blogger.com/profile/16218522898407806020noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5884056561588654324.post-22635112224832942032011-07-03T00:29:00.000-07:002011-07-03T00:29:53.659-07:00नौवां अध्याय :राजविद्या राजगुह्य<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<div style="text-align: center;"><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">राजविद्या राजगुह्य -सुल्तानुल उलूम -</span></div><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">भगवान ने फरमाया -</span><br />
<b>तू अर्जुन नहीं ऐबजू ,नुक्ताचीं-कर अब मुझसे राजे -खाफी दिलनशीं , </b><br />
<b>मिलेगा यहीं इल्मो -इर फां ना नूर -इसे जान जाए तो हों पाप दूर .II 1 II </b><br />
<b>ये इल्मे शही है ,ये राजे शही-करे पाक हर शै से बढ़कर यही , </b><br />
<b>अयां खुद बखुद हो की आसां है ये -फना से बरी ऍन ईमां है ये.II 2 II </b><br />
<b>जो इस धर्म पे दिल लगाते नहीं -वो अर्जुन ,कभी मुझको पाते नहीं , </b><br />
<b>न वासिल हों ,मुझसे ,वो मुझतक न आयें -जहाने फना की तरफ लौट जाएँ .II 3 II </b><br />
<b>खफी से खफी है मेरी हस्तोबूद -मगर है मुझी से जहां की नुमूद , </b><br />
<b>मुझी में है मखलूक सारी मकीं -मगर मैं मकीं खुद किसी में नहीं .II 4 II </b><br />
<b>न लोगों में मैं हूँ ,न मुझमे हैं लोग -ज़रा देखना ये मेरा राजयोग , </b><br />
<b>मेरी आत्मा बाइसे खासो आम -नहीं मेरा लेकिन किसी में मुकाम .II 5 II </b><br />
<b>हवा गो चले जोर से सरबसर -इधर से उधर या उधर से इधर ,, </b><br />
<b>वो आकाश से बाहर से जाये कहाँ -समझ लो यूँही मेरे अन्दर जहाँ .II 6 II </b><br />
<b>जब इक दौर हो ख़त्म ,कुंती के लाल -तो हो मेरी माया में सबका विसाल ,</b><br />
<b>नए दौर की हो जो फिर से नुमूद -करूं मैं ही पैदा ,सब अहले वुजूद .II 7 II </b><br />
<b>इसी अपनी माया से लेता हूँ काम -मैं करता हूँ जांदार पैदा तमाम ,</b><br />
<b>चलें जौक -दर जौक ,सब बार बार -कि माया के हाथों हैं ,बे ऐतबार .II 8 II </b><br />
<b>सुन अय अर्जुन ,साहबे सीमो जर -नहीं ऐसे कर्मों का मुझ पर असर ,</b><br />
<b>कि रहता हूँ मैं ,बे गरज सरफराज -इन अफआलों -आमाल से बेनियाज़ .II 9II</b><br />
<b>मैं नाजिर हूँ इसका ये करती है काम -हूँ माया से सय्यारो -साबित तमाम , </b><br />
<b>समझ ले इसी तौर ,कुंती के लाल -है चक्कर ही चक्कर में दुनिया का हाल.II 10 II </b><br />
<b>जब आता हूँ इन्सां का पहने लिबास -नहीं करते पर्वाह न मेरी शनास , </b><br />
<b>मेरी शाने-आली नहीं जानते-शहंशाह मुझको नहीं मानते..II 11 II </b><br />
<b>अबस हैं उमीदें अबस हैं अमल -अबस इल्म उनका ,समझ में खलल , </b><br />
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<b>तबीयत में धोका भी वहशत भी है -भरी शैतनत भी खबासत भी है.II 12 II</b><br />
<b>वो इन्सां जो खसलत में हैं देवता -जो हैं नेक फितरत अहा आत्मा , </b><br />
<b>करें कल्ब यकसू से पूजा मेरी -कि मैं लाफना मब्नाए जिन्दगी II 13 II </b><br />
<b>हमेशा वो गुन मेरे गाते रहें -वो अहद अपना जी से निभाते रहें , </b><br />
<b>इबादत करें मेहनत और शौक से -करें मुझको सिजदे दिली जौक से.II 14 II </b><br />
<b>कई रूप देखे मेरे बेशुमार -वो हों ज्ञान यग से इबादत गुजार , </b><br />
<b>वो वहदत कि कसरत हर आहंग में -मुझे पूजते हैं ,वो हर रंग में .II 15 II </b><br />
<b>तू यज्ञ और पूजा मुझी को समझ -श्राद्धों का गल्ला मुझी को समझ , </b><br />
<b>मैं बूटी हूँ ,मंतर भी ,अगनी ,हूँ ,घी -मैं यग भी हूँ ,और उसके आमाल भी .II 16 II </b><br />
<b>मैं सारे जहां का हूँ ,माता पिता-मैं दादा हूँ सबका ,हूँ में आसरा , </b><br />
<b>सजावार इरफां हूँ ,पाकीजा भेद -मैं हूँ ओम ,रिक -यजुर साम वैद.II 17 II </b><br />
<b>मैं आका ,मैं वाली ,सुखन में गवाह -मैं मंजिल में मसकन ,मैं जाए पनाह , </b><br />
<b>मैं आगाज ओ अंजामो -गंजो मुकाम -मैं वो बीज हूँ जो रहेगा मुदाम .II 18 II </b><br />
<b>मुझी से तपिश है ,कुंती के लाल -कभी खुश्क साली कहीं बर्शगाल ,</b><br />
<b>फनाओ बका की मुझी से नुमूद -मुझी से है सत और असत का वुजूद .II 19 II </b><br />
<b>जिन्हें तीनों वेदों में है दस्तरस -वो जन्नत के तालिब पियें सोमरस ,</b><br />
<b>परस्तार मेरे ये मासूम लोग -मिले उनको जन्नत में देवों के भोग .II 20 II </b><br />
<b>फिजाओं में जन्नत की खुशियाँ मनाएं -मगर खाली होकर यहीं लौट आयें ,</b><br />
<b>मुराद अपनी वेदों से पाते रहें -वो आते रहें ,और जाते रहें .II 21 II </b><br />
<b>जो करते हैं खालिस इबादत मेरी -जो यक दिल हों जी में न रक्खें दुई ,</b><br />
<b>करूं हाजतें उनकी पूरी तमाम -वो मेरी हिफाजत में रहें सुबहोशाम .II 22 II </b><br />
<b>सनम दूसरे जो मनाते रहें -दिल उनपर यकीं से लगाते रहें ,</b><br />
<b>करें वो न गो हस्बे दस्तूर काम -परस्तार वो भी हैं मेरे तमाम .II 23 II </b><br />
<b>कि यग जितने करते हैं दुनिया में लोग -मैं हूँ उनका मालिक ,खाता हूँ भोग ,</b><br />
<b>न जाने वो मेरी हकीकत का हाल -इसी वास्ते पायें आखिर जवाल .II 24 II </b><br />
<b>मनाएं जो पितरों को ,पितरों तक आयें -जो भूतों को पूजें ,भूतों को पायें , </b><br />
<b>समम के पुजारी ,सनम से मिलें -हमारे परस्तार हम से मिलें .II 25 II </b><br />
<b>मेरी नज्र देता है जो शौक से-दिले -पाक से ,चाह से जौक से , </b><br />
<b>मैं नज्र उसकी करता हूँ बेशक क़ुबूल -वो फल हो कि पानी ,कि पत्ती कि फूल .II 26 II </b><br />
<b>फकत मेरी खातिर तू हर काम कर-हवन ,दान दे ,सब मेरे नाम कर , </b><br />
<b>तेरा खाना पीना हो मेरे लिए -तेरा तप से जीना हो मेरे लिए.II 27 II </b><br />
<b>कटेंगे ये कर्मों के बंधन तमाम -न होगा बुरे या भले फल से काम , </b><br />
<b>जो तू पाक दिल से होके संन्यास पाए -तू आजाद होकर मेरे पास आये .II 28 II </b><br />
<b>मेरे वास्ते खल्क यकसां है सब -न इससे मुहब्बत ,न उस से गज़ब , </b><br />
<b>वो पूजें मुझी को बा सिद्को-यकीं-मैं उनमे हूँ ,और वो मुझमे मकीं .II 29 II </b><br />
<b>कोई आदमी गरचे बदकार है -मगर मेरा दिल से परस्तार है , </b><br />
<b>उसे भी समझ लो कि साधू है वो -इरादे में नेकी के यकसू है वो .II 30 II </b><br />
<b>वो धरमातामा जल्द हो जायेगा -करारो -सुकूं दायमी पायेगा ,</b><br />
<b>समझ ले ,मेरा भगत ,कुंती के लाल -न होगा फना ,और न पाए जवाल .II 31 II </b><br />
<b>बशर पाप का पेट से हो कोई -वो हो शूद्र या वैश्य या स्त्री -</b><br />
<b>मुझे आसरा जब बनाएगा वो -तो आला मनाज़िल पे जायेगा वो .II 32 II </b><br />
<b>मुक़द्दस बिरहमन का रुतबा न पूछ -रिशी राज भगतों का दरजा न पूछ ,</b><br />
<b>तुझे दुख की दुनियाए फानी मिली -तू कर सच्चे दिल से परस्तिश मेरी .II33 II </b><br />
<b>जमा ध्यान मुझमे ,हो मुझ पर फ़िदा -तू यग कर ,तू मेरे लिए सर झुका ,</b><br />
<b>अगर योग में दिल लगाएगा तू -मैं मकसद हूँ ,मुझको पायेगा तू .II 34 II </b><br />
<div style="text-align: center;"><b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">-नौवां अध्याय समाप्त -</span></b></div><b><br />
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</div>बी. एन.शर्माhttp://www.blogger.com/profile/16218522898407806020noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5884056561588654324.post-7286463774456220322011-06-30T12:07:00.000-07:002011-06-30T19:55:14.153-07:00आठवां अध्याय :अक्षरब्रह्म<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<div style="text-align: center;"> <b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">अक्षरब्रह्म -हस्तीये लाज़वाल -</span></b></div><b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;"><br />
</span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">अर्जुन का सवाल -</span></b><br />
<b>फिर अर्जुन ने पूछा ये बागवान से-कि पुरुषोत्तम ,अब मुझसे फरमाइए , </b><br />
<b>है ब्रह्म और अध्यात्म क्या मुद्दआ -हैं कर्म और अधिभूत ,अधिदेव क्या.II 1 II </b><br />
<b>अधियग है क्या चीज बतलाइये -मकीं तन में है कौन फरमाइए , </b><br />
<b>जिसे दिल पे काबू है मरते हुए -मधूकुश तुम्हे कैसे पहचान ले .II 2 II </b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">भगवान का जवाब - </span></b><br />
<b>है बाह्म हस्ती आली ,और बेजवाल -तो अध्यात्म अश्या की फितरत का हाल , </b><br />
<b>वो कुदरत हुई ,जिससे मख्लूब सब -तो है कर्म ,खल्के -जहां का सबब .II 3 II </b><br />
<b>अधिभूत फानी ,वजूदे जहां -पुरुष है अधिदेव रूहे-रवां , </b><br />
<b>अधियग ,सुन ऐ फख्रे-अहले वजूद -मैं खुद हूँ ,कि मेरी है तन मन नुमूद .II 4 II </b><br />
<b>जब इन्सां जहां से गुजरता हुआ -मेरी ही करे याद मरता हुआ , </b><br />
<b>तो फिर इसमे शक का नहीं एहतमाल-उसे मर के हासिल हो मेरा विसाल.II 5 II </b><br />
<b>जब इन्सां बदन को करे खैरबाद-करे आखिरी वक्त जिस शै को याद , </b><br />
<b>तो अर्जुन ,उसी शै से वासिल हो वो -लगाई थी लौ ,जिस से हासिल हो वो .II 6 II </b><br />
<b>मुझे याद अर्जुन ब हर रंग कर -लिए जा मेरा नाम और जंग कर ,</b><br />
<b>फ़िदा मुझ पे कर दानिशो -दिल तमाम -मेरा वस्ल पायेगा तू लाकलाम .II 7 II </b><br />
<b>अगर योग की मश्क हो मुस्तकिल -किसी गैर का जब ख्वाहाँ न दिल ,</b><br />
<b>हो पुरनूर -आली पुरुष का ख्याल -तो हासी उसी से हो अर्जुन विसाल .II 8 II </b><br />
<b>जो करता है यादे खुदाए अलीम -पनाहे जहां ,बादशाहे -कदीम , </b><br />
<b>जो सूरज सा पुरनूर ,ज़ुल्मत से दूर - खफी से खफी ,मावराए शऊर .II 9 II </b><br />
<b>जो भगती करे योग से मुस्तकिल -जो मरने पे रखता है मजबूत दिल ,</b><br />
<b>प्राण अपने दो अबरुओं में जमाये-तो पुरनूर आली पुरुष को वो पाए.II 10 II </b><br />
<b>सुन अब मुख़्तसर मुझसे वो राहे योग -तजर्रुद में शौक में जिसके योग ,</b><br />
<b>जहां बे गरज अहले संन्यास जाएँ -जिसे वेद -दां गैर फानी बताएं .II 11 II </b><br />
<b>बदन के अगर बंद सब दर करे -जो मन है उसे दिल के अन्दर करे ,</b><br />
<b>जमे इस तरह योग से उसका ध्यान -कि इन्सां के बस में रहे उसके प्रान.II 12 II </b><br />
<b>जिसे 'ओम 'कहते हैं ,नामे खुदा -वो इक रुक्न का हर्फ़ जीता हुआ , </b><br />
<b>मेरे ध्यान में जिसका हो इख्तिताम -मिले उसको मरते ही आला मुकाम .II 13 II </b><br />
<b>सदा मेरा पैहम जिसे ध्यान है -तो मिलना मेरा उसको आसान है , </b><br />
<b>मुझे दिल से अर्जुन भुलाता नहीं- किसी गैर से दिल लगाता नहीं .II 14 II </b><br />
<b>महा आत्मा मुझसे पाकर विसाल -रहें पुरसुकूंलेके ओजे कमाल , </b><br />
<b>हुलूल औ तनासुख ,न दौरे हयात -फना और मुसीबत से पायें निजात .II 15 II </b><br />
<b>कि ब्रह्मा की दुनिया तक अहले जहां -तनासुख के चक्कर में हैं बेगुमां, </b><br />
<b>मगर जिसको हासिल हो मुझसे विसाल -बरी है ,तनासुख से ,कुंती के लाल .II 16 II </b><br />
<b>जो वाकिफ है राजे -लैलो-नहार -करे वक्त ब्रह्मा का ऐसे शुमार , </b><br />
<b>हज़ार अपने युग हों ,तो एक उसका दिन -हज़ार अपने युग की फिर इक रात दिन .II 17 II </b><br />
<b>हो ब्रह्मा के दिन जब सहर की नुमूद -तो बातिन से ज़ाहिर हो बज्मे शुहूद , </b><br />
<b>मगर जिस घड़ी आये ब्रह्मा की रात -तो बातिन में छुप जाए कुल कायनात .II 18 II </b><br />
<b>ये मखलूक पैदा जो हो बार बार -हो गुम ,रात पड़ने पे बे इख्तियार ,</b><br />
<b>सुन अर्जुन ,जो ब्रह्मा का दिन हो अयां-हो फिर मौजे हस्ती का दरिया र वां .II 19 II </b><br />
<b>परे गैब से भी है इक जाते गैब -वो हस्ती ,फना का नहीं जिसमे ऐब ,</b><br />
<b>किसी की न कुछ बात बाक़ी रहे - फकत इक वही ज़ात बाक़ी रहे .II 20 II </b><br />
<b>वो हस्ती जो बातिन है और बेजवाल -करें उसकी मंजिल को आला ख्याल ,</b><br />
<b>पहुँच कर जहां से न लौटें मुदाम -वही है ,वही मेरा आली मुकाम .II 21 II </b><br />
<b>ये दुनिया है जिसकी बसाई हुई -हरेक शै है ,जिसमे समाई हुई '</b><br />
<b>अगर चाहे तू उस खुदा का विसाल -रख उसकी मोहब्बत का दिल में ख्याल .II 22 II </b><br />
<b>सुन ,अय नस्ले भारत के सरताज ,सुन -बताता हूँ अब वक्त के तुझको गुन,</b><br />
<b>कि कब मर के लौट आयें योगी यहीं -वो मर के कालिब बदलते नहीं .II 23 II </b><br />
<b>अगर दिन हो या मौसमे -नारों नूर -उजाले की रातें हों ,मह का ज़हूर ,</b><br />
<b>हो शश माही सूरज का दौरे शुमाल -मरे इसमे आरिफ तो पाए विसाल .II 24 II </b><br />
<b></b><br />
<b>अन्धेरा हो पाख और धुन्दलका हो खूब -हो शश माह सूरज का दौरे जुनूब , </b><br />
<b>कि हो रात का वक्त ,जब जान जाए -तो योगी यही चाँद से लौट आये .II 25 II </b><br />
<b>अन्धेरा कभी हो ,उजाला कभी -सदा से जगत के हैं रस्ते यही , </b><br />
<b>उजाले में जब जाए वापस न आये -अँधेरे में जाता हुआ लौट आये .II 26 II </b><br />
<b>जो इन रास्तों से न अनजान हो -वो योगी परेशां न हैरान हो , </b><br />
<b>सुन अर्जुन ,है जब तक तेरे दम में दम -तू रह योग में अपने साबित कदम .II 27 II </b><br />
<b>मिले वेद के पाठ करने से पुन्न -हैं बेशक बहुत दान ,यग ,तप के गुन, </b><br />
<b>मगर इन से बाला है ,योगी की बात -अजल से वो पाए मुकामे निजात .II 28 II </b><br />
<div><b><br />
</b></div><br />
<div style="text-align: center;"><b> <span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;"> -आठवां अध्याय समाप्त -</span></b></div><b><br />
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</div>बी. एन.शर्माhttp://www.blogger.com/profile/16218522898407806020noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5884056561588654324.post-60558394238631980252011-06-26T22:22:00.000-07:002011-06-26T22:22:10.628-07:00सातवाँ अध्याय :ज्ञानविज्ञान<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">ज्ञानविज्ञान -इल्मे मुआरिफत - </span><br />
<span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;"><br />
</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">भगवान ने फरमाया - </span><br />
<br />
<b>सुन अर्जुन अमां मुझमें पाए हुए -मेरी ज़ात में लौ लगाए हुए ,</b><br />
<b>तुझे योग की मश्क का ध्यान हो -तो सुन किस तरह मेरी पहचान हो .II 1 II </b><br />
<b>मैं करता हूँ वह राजे कामिल बयां-करे इल्मो इरफांजो तुझ पर अयाँ,</b><br />
<b>ये पहचान कर सबको पहचान ले -जो है जानने का ,वो सब जान ले .II 2 II </b><br />
<b>हज़ारों में होगा कोई खाल खाल - कि है जिसको फिक्रे हुसूले -कमाल ,</b><br />
<b>हो उन बा कमालों में कोई बशर -जो मेरी हकीकत की पाए खबर .II 3 II </b><br />
<b>ये मिट्टी ,ये पानी ,ये आग और हवा -ये आकाश दुनिया पे छाया हुआ ,</b><br />
<b>ये दानिश ,ये दिल ,ये ख्याले -खुदी -है इन आठ हिस्सों में फितरत मेरी .II 4 II </b><br />
<b>है फितरत तो अदना है ,सुन अय कवी -मगर मेरी फितरत है एक और भी ,</b><br />
<b>वो फितरत है आला ,बने जो हयात -इसी से तो कायम है कुल कायनात .II 5 II </b><br />
<b>इन्हीं फितरतों से है सब हस्तो -बूद -इन्हीं के शिकम से हुए सब वुजूद ,</b><br />
<b>सो है मुझसे आगाज़े आलम तमाम -मेरी ज़ात में सबका हो इख्तिताम .II 6 II </b><br />
<b>सुन अर्जुन नहीं कुछ भी मेरे सिवा -न है मुझसे बढ़कर कोई दूसरा , </b><br />
<b>पिरोया है सबको मेरे तार ने -कि हीरे हों जैसे किसी हार में .II 7 II </b><br />
<b>मैं पानी में रस,चाँद सूरज में नूर -मैं हूँ "ओम "वेदों में जिसका ज़हूर , </b><br />
<b>सिदा मुझको आकाश में कर ख्याल -मैं मर्दों में मर्दी,कुंती के लाल .II 8 II </b><br />
<b>मैं मिट्टी के अन्दर हूँ खुशबूए पाक -मैं हूँ आग में शोलए-ताबनाक , </b><br />
<b>मैं जानेजहाँ जानदारों में हूँ -रियाज़त,इबादत -गुज़ारों में हूँ .II 9 II </b><br />
<b>सुन अर्जुन ,मैं हूँ बीज हर हस्त का -मैं वो बीज हूँ जो न होगा फना , </b><br />
<b>मैं दानिश हूँ ,उनकी जो हैं होशियार -मैं ताबिश हूँ उनकी जो हैं ,ताबदार .II 10 II </b><br />
<b>मैं हूँ कुव्वतो -जोरे -मर्दे ज़री-मगर हूँ ,हवाओ -हवस से बरी, </b><br />
<b>सुन अर्जुन ,मैं ख्वाहिश हूँ इंसान की -जो दुश्मन न हो ,धर्म ईमान की .II 11 II </b><br />
<b>मुझी से है फितरत सतोगुन कहीं -मुझी से ,राजोगुन,तमोगुन कहीं , </b><br />
<b>मगर मैं बरी इनसे हूँ बिल्यकीं-ये मुझसे हैं ,लेकिन मैं इनसे नहीं .II 12 II </b><br />
<b>गुनों से हुए वस्फ़ तीनों अयां-हुए जिससे गुमराह अहले जहां ,</b><br />
<b>समझते नहीं लोग मेरा कमाल -कि बाला हूँ मैं उनसे ,और बे ज़वाल .II 13 II </b><br />
<b>गुनों से जो माया हुई आशकार -ये माया है ,या फितरते -कर्दगार,</b><br />
<b>कहाँ इससे इन्सां कभी कभी पार हों -फकत पार मेरे परिस्तार हों .II 14 II </b><br />
<b>जो गुमराह ,बदकुन हैं और पुर खता -करे ज्ञान गुन उनके माया फना ,</b><br />
<b>पसंद उनको सीरत है शैतान की -मेरे पास आते नहीं वह कभी .II 15 II </b><br />
<b>सुन अर्जुन हैं मेरे परस्तार चार -तलबगार मेरे ,निकूकार चार ,</b><br />
<b>दुखी शख्स ,या इल्म की जिसको धुन -तलब ज़र की .या हों जिसमे हों ग्यान गुन .II 16 II </b><br />
<b>जो ग्यानी है चारों में सरदार है -मुझी में है यकदिल औ सरशार है ,</b><br />
<b>करे जाते -यकता की भागती सदा -मई प्यारा हूँ उसका ,वो प्यारा मेरा .II 17 II </b><br />
<b>परस्तार हर एक गो नेक है -जो ग्यानी है ,मुझसे मगर एक है ,</b><br />
<b>वो यकदिल है ,और उससे यकदिल हूँ मैं -वो कायम है और ,उसकी मंजिल हूँ मैं .II 18 II </b><br />
<b>जनम पे जनम लेके ग्यानी जरूर -पहुँच जाये आखिर को मेरे हुजुर ,</b><br />
<b>वो जाने "कि सब कुछ है जानेजहाँ -महा आत्मा ऐसा होगा कहाँ .II 19 II </b><br />
<b>हवाओ -हवस से जो मजबूर हैं -हुए ज्ञान से उनके दिल दूर हैं ,</b><br />
<b>करें दूसरे देवताओं से प्रीत -निकालें तबीअत से पूजा की रीत .II20 II </b><br />
<b>किसी रूप का भी परस्तार हो -यकीं से इबादत में सरशार हो ,</b><br />
<b>परस्तार ऐसा भटकता नहीं -मैं करता हूँ ,मजबूत उसका यकीं.II 21 II </b><br />
<b>परस्तिश वो जौके यकीं से करे -जिसे देवता मान ले ,मान ले ,</b><br />
<b>वो पाता है जोरे -यकीं से मुराद -जो दरअस्ल होती है मेरी ही दाद .II 22 II </b><br />
<b>जो नादाँ नहीं ज्ञान में होशियार -परस्तिश से फल पायें नापायदार ,</b><br />
<b>जो देवों को पूजें ,वो देवों को पायें -परस्तार मेरे ,मेरे पास आयें .II 23 II </b><br />
<b>मैं चश्मे -जहां से निहां हूँ निहाँ -मगर मुझको नादाँ समझ लें अयां ,</b><br />
<b>वो मुझको नहीं जानते बे मिसाल -मेरी ज़ात आली है और बे ज़वाल .II 24 II </b><br />
<b>कि मैं योगमाया से मस्तूर हूँ -जहां कि नज़र से बहुत दूर हूँ ,</b><br />
<b>ये मूरख ज़माना नहीं जानता -कि मेरा जमम है ,न मुझको फना .II 25 II </b><br />
<b>जो गुजरी हुई हस्तियाँ हैं ,सभी -जो मौजूद हैं अब ,कि होंगीं कभी ,</b><br />
<b>सुन अर्जुन ,मैं उन सब से हूँ बाखबर -किसी को नहीं इल्म मेरा मगर .II 26 II </b><br />
<b>ये धोके की टट्टी है ,इज्दाद सब -ये है शौको नफ़रत कीऔलाद सब ,</b><br />
<b>इन्हीं से तो ,अर्जुन ये खिलकत तमाम -परागंदा रहती है यूं सुब्हो-शाम .II 27 II </b><br />
<b>वो इन्सां ,भले जिनके आमाल हैं -गुनाहों से जो फारिगुलबाल हैं ,</b><br />
<b>न इज्दाद से उनको धोका न गम -मेरी बंदगी में हैं साबित कदम .II 28 II </b><br />
<b>मुझी को समझ कर जो उम्मीदगाह -बुढापे से और मौत से लें पनाह .</b><br />
<b>उन्हें ब्रह्म की खूब पहचान है-फिर अध्यात्म और कर्म का ग्यान है .II 29 II </b><br />
<b>अधिभूत जोलोग मानें मुझे -अधिदेव ,अधियग्य जानें मुझे ,</b><br />
<b>वो यकदिल हैं ,चित्त उनमे हमवार हैं -दमे नज़अ भी मुझसे सरशार हैं .II 30 II </b><br />
<div style="text-align: center;"><b> <span class="Apple-style-span" style="color: orange; font-size: large;"> </span><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;"> -सातवाँ अध्याय समाप्त -</span></b></div><div style="text-align: center;"><b><br />
</b></div><b><br />
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</div>बी. एन.शर्माhttp://www.blogger.com/profile/16218522898407806020noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5884056561588654324.post-9250466935826428342011-06-24T10:32:00.000-07:002011-06-24T10:32:47.654-07:00छठवां अध्याय :आत्मसंयम<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">-आत्मसंयम -तजकि ए नफ्स -</span><br />
<br />
<span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">भगवान ने फरमाया -</span><br />
<b>सुन अर्जुन जो इन्सां करे सब अमल -फ़रायज बजा लाये ढूँढे न फल , </b><br />
<b>वो योगी है ,और संन्यासी जरूर -न वो जो रहे आग किरिया से दूर .II 1 II </b><br />
<b>वही जिसको सन्यास कहते हैं लोग -सुन अर्जुन वही है वही खास योग , </b><br />
<b>कि खुद योग में मर्दे-कामिल नहीं -जो छोड़े न फिक्रे चुनां ओ चुनीं .II 2 II </b><br />
<b>मुनी वो जिसे योग दरकार है -अमल ही अमल जिसका हथियार है , </b><br />
<b>मगर योग से जब वो हो कामगार -तो हथियार है उसका सुकूनो करार .II 3 II </b><br />
<b>न महसूस अश्या से जिसको लगन -अमल से लगावट न उसमे लगन ,</b><br />
<b>नहीं जिसको फिक्रे चुनानो चुनीं -कहें योग का उसको मसनद नशीं .II 4 II </b><br />
<b>मुनासिब नहीं खुद को इन्सां गिराए -वो खुद को उभारे ,खुद को उठाये ,</b><br />
<b>कि इन्सान खुद अपना गमखार है -वो खुद अपना बदख्वाहो -गद्दार है .II 5 II </b><br />
<b>करे नफ्स को अपने जेरे नगीं-वो ख्वाह अपना गमख्वार है बिल्यकीं,</b><br />
<b>मगर जिसको काबू नही नफ्स पर -वो दुश्मन है अपने लिए सरबसर .II 6 II </b><br />
<b>जिसे नफस पर अपने है इख़्तियार -उसी को परमात्मा में करार , </b><br />
<b>हो गरमी कि सर्दी ,हो गम या ख़ुशी -हो इज्जत कि जिल्लत हैं यकसां सभी. II 7 II </b><br />
<b>वो सरशार योगी रहे इस्तवार-मिले इल्मो इरफांमें जिसको करार , </b><br />
<b>हवास उसके हैं ,जेरे मजबूत दिल -हैं यकसां उसे ,जर हो मिट्टी की सिल .II 8 II </b><br />
<b>वो योगी है अफजल जिसे हों सब एक -सगे ,दोस्त ,अहबाब बेलाग नेक , </b><br />
<b>हों सालिस कि दुश्मन ,दिल आजार हों -वो धरमातमा हों कि बदकार हों .II 9 II </b><br />
<b>जो योगी हैं ,वो योग तन्हा कमाए -अलग रह के दिल आत्मा में लगाए , </b><br />
<b>रहे उसके काबू में तन हो कि मन -उमीदो हवस से न हो कुछ लगन .II 10 II </b><br />
<b>कुशाघास पर मिरगछाला बिछाए -फिर उस मिरगछाला पे चादर लगाए , </b><br />
<b>जमा उस पे आसन करे ऐतकाफ-न ऊंची न नीची जगह पाक साफ़ .II 11 II </b><br />
<b>सुकूं चित को दे ,लौ मुझी से लगाए -हवासो तखय्युल को काबू में लाये , </b><br />
<b>जमे अपने आसन पे वो मुस्तकिल -करे योग को साध कर पाकदिल .II 12 II </b><br />
<b>सरो -पुश्तो -गरदन झुकाए न वो -बदन को हिलाए डुलाये न वो ,</b><br />
<b>जमाये नज़र नाक की नोक पर -निगाहें न भटकें इधर और उधर .II 13 II </b><br />
<b>रहे पुरसुकूं ,बे खतर मुस्तकिल -तजर्रुद पे कायम हो ,काबू में दिल ,</b><br />
<b>मेरी ज़ात से लौ लगाये हुए -मेरे ध्यान में दिल जमाये हुए .II 14 II </b><br />
<b>अगर योग वो यूं कमाता रहे -तो मन उसका काबू में आता रहे ,</b><br />
<b>सुकूं आत्मा में समा जाएगा -वही मेरा निर्वान पा जाएगा .II 15 II </b><br />
<b>न हासिल करे योग बिसयार -खार -न वो जिसका हो भूक से हाल जार ,</b><br />
<b>बहुत सोनेवाला भी पाए न योग -बहुत जागने से भी आये न योग .II 16 II </b><br />
<b>हो योगी के हर काम में ऐतदाल-गिज़ा और आराम में ऐतदाल,</b><br />
<b>मुनासिब ही जाग ,और मुनासिब ही ख़्वाब -मिटाता है योग ,उसके दर्दो अज़ाब .II 17 II </b><br />
<b>अगर उसके काबू में दायम हो मन -फकत आत्मा में कायम हो मन ,</b><br />
<b>रहे लज्ज़ते -नफ्स से दूर -वो सरशार है योग में बिल्जरूर .II 18 II </b><br />
<b>हवा की न हो मौज ,जुम्बा की रौ-तो लरजे कहाँ शम्मे रौशन की लौ , </b><br />
<b>यही होगा योगी को हासिल सबात -ख्याल उसके बस में ,तो मन महवे जात .II 19 II </b><br />
<b>जहां मन को आये सुकूनो करार -रियाजत करे दिल का दूर इन्तिशार , </b><br />
<b>जहां मन में हो आतमा का ज़हूर -करे मुतमइन आत्मा का सुरूर .II 20 II </b><br />
<b>जहां बेनिहायत हो राहत नसीब -हिसों से बईद और खिरद के करीब , </b><br />
<b>जहां हो हकीकत से इन्सां न दूर -रहे आत्मा में कयामो सुरूर .II 21 II </b><br />
<b>जहां उसको मिलने से आये यकीं-कि दौलत कोई इससे बढ़कर नहीं , </b><br />
<b>जहाँ इस में जम कर वो आजाये सुख -कि जुम्बिश न दे उसको दुनिया का दुख.II22 II </b><br />
<b>जहां गम है बाक़ी न कुछ सोग है -यही योग है ,हाँ यही योग है , </b><br />
<b>इसी योग में दिल यकीं से जमाओ -इसी योग से तुम अकीदत दिखाओ .II 23 II </b><br />
<b>ख्यालों की औलाद हिर्सो हवा -इन्हें यक कलम दूर करता हुआ , </b><br />
<b>हवास अपने हर सिम्त से घेर कर -दिली ज़ब्त से उनका रुख फेर कर .II 24 II </b><br />
<b>जिसे अक्ल पर अपनी हो इख्तियार -वो हासिल करे रफ्ता रफ्ता करार ,</b><br />
<b>करे उसका मन आत्मा में कयाम -न उसको ख्याले दुई से हो काम .II 25 II </b><br />
<b>मन इन्सां का चंचल है और बेकरार -रहे दौड़ता ,भागता बार बार ,</b><br />
<b>वो भागे तो ,बाग़ उसकी झट मोड़ दे -हिफाजत में फिर रूह की छोड़ दे .II 26 II </b><br />
<b>वो योगी जिसे मन में आये सुकूं- सतोगुण से दिल जिसका पाए सुकूं ,</b><br />
<b>खुदा से हो वासिल ,गुनाहों से दूर -उसी को मुयस्सर हो आला सुरूर .II 27 II </b><br />
<b>जो योगी रहे योग में इस्तवार-गुनाहों से दामन न हो दागदार ,</b><br />
<b>उसी को मिले नेमते बेकराँ-की पाए विसाले खुदाए -जहां .II 28 II </b><br />
<b>अगर योग में नफ्स सरशार है -तो फिर ये हकीकत नमूदार है ,</b><br />
<b>की हर शै में है आत्मा की नुमूद -तो हर शै का है आत्मा में वुजूद .II 29 II </b><br />
<b>जो हर सिम्त पाता है मेरा ही नूर -मुझी में जो हर शै का देखे ज़हूर ,</b><br />
<b>कभी मुझ से मुंह मोड़ सकता नहीं -कभी मैं उसे छोड़ सकता नहीं .II 30 II </b><br />
<b>जो कसरत में वहदत का देखे समां-जो पूजे मुझे ,हूँ जो सब में अयाँ, </b><br />
<b>वो योगी रहे गो किसी ढंग में -मुझी से हो वासिल वो हर रंग में .II 34 II </b><br />
<b>सुख औरों का समझे जो अपना ही सुख -दुख औरों का समझे अपना ही दुख , </b><br />
<b>जो सबका करे अपने जैसा ख्याल -सुन अर्जुन ,कि योगी है वो बाकमाल .II 35 II </b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">अर्जुन का सवाल - </span></b><br />
<b>सुकूं का जो मुझको सिखाया है योग -मेरे दिल को भगवान भाया है योग , </b><br />
<b>बिना इसकी लेकिन नहीं मुस्तकिल -कि चंचल है ,चंचल है ,चंचल है दिल .II 36 II </b><br />
<b>ये भगवान ,बेकल है पुरशोर दिल -कि सरकश है ,मुंहजोर , जिद्दी है दिल , </b><br />
<b>न काबू में आये किसी चाल में -हवा बंद होती नहीं जाल में .II 34 II </b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">भगवान का इरशाद - </span></b><br />
<b>कहा सुन के भगवान ने ,अय कवी -दिल इंसां का पुरशोर चंचल सही , </b><br />
<b>है वैराग और मश्क में ये कमाल -दी आजाये काबू में कुंती के लाल .II 35 II </b><br />
<b>अगर नफ्स पर जब्ते कामिल नहीं -तो फिर योग इंसां को हासिल नहीं , </b><br />
<b>मगर नफ्स पर हो जिसे इख्तियार -मुनासिब वसाइल से हो कामगार .II 36 II </b><br />
<b>अर्जुन का सवाल - </b><br />
<b>फिर अर्जुन ने पूछा भटकता है जो -इसी राह में सर पटकता है जो , </b><br />
<b>मुकय्यद तो है ,जां-फ़िशानी नहीं -अकीदत से पहुंचेगा वो भी कहीं .II 37 II </b><br />
<b>कवी दोस्त ,जो मोह में फंस गया -रहे हक़ में जो डगमगाता रहा , </b><br />
<b>तो क्या वो यहाँ ,और वहां से गया -जो बादल फटा आसमां से गया .II 38 II </b><br />
<b>करें मेरे इस शक को भगवान दूर -तबीयत को हासिल हो इरफांका नूर , </b><br />
<b>कोई दूसरा है जहां में कहाँ -करे दूर मेरे जो वहमो -गुमां.II 39 II</b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">भगवान ने फरमाया -</span></b><br />
<b>सुन अय प्यारे अर्जुन ,वो इन्सान भी -न दौनों जहाँ में फना हो कभी ,</b><br />
<b>कि दुनिया में जो नेक किरदार है -तबाही में कब वो गिरफ्तार है .II40 II</b><br />
<b>ये सच है उसे योग हासिल नहीं -हो नेकों की दुनिया में जाकर मकीं ,</b><br />
<b>बहुत मुद्दतों में वो ले फिर जनम -वहां हों जहां नेकी और ,न वहम .II 41 II</b><br />
<b>वो हो वर्ना ऐसे घराने का लाल -हों योगी जहाँ आकिलो -बाकमाल ,</b><br />
<b>जनम ऐसा मुश्किल मिले अय हबीब -सआदत ये हो सादो -नादिर नसीब .II42 II </b><br />
<b>वो दुनिया में पाए जो ताजा हयात -हों सब उसमे पिछले जनम के सिफात , </b><br />
<b>करे बढ़ के पहले से कसबे-कमाल -कि तकमील हासिल हो ,जाए जवाल .II 43 II </b><br />
<b>इसी साबिका मश्क के जोर से -वो मकसूद की सिम्त बढ़ता चले , </b><br />
<b>हुआ योग का इल्म जिसको पसंद -वो वेदों के लिक्खे से जाए बुलंद .II 44 II </b><br />
<b>किये जा रहा है जो योगी जतन-तो पापों से हो पाक साफ़ उसका मन , </b><br />
<b>जनम पर जनम लेके पाए कमाल -कि हासिल हो आखिर खुदा का विसाल .II 45 II </b><br />
<b>तपस्वी से आला है योगी कि शान -बड़ी उसकी ग्यानी से भी आनबान , </b><br />
<b>हैं कम उस से जो कर्मकांडी है लोग -फिर अर्जुन है क्या देर ,ले तू भी योग .II 46 II </b><br />
<b>वो योगी ,यकीं जो मुझी पर जमाये -मुझी में फकत आत्मा लगाए , </b><br />
<b>जो मेरी परस्तिश में शागिल रहे -वो सब योग वालों में कामिल रहे .II 47 II </b><br />
<div style="text-align: center;"><b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">- छठवां अध्याय समाप्त -</span></b></div><div style="text-align: center;"><b><br />
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</div>बी. एन.शर्माhttp://www.blogger.com/profile/16218522898407806020noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5884056561588654324.post-90935890790406791592011-06-22T00:52:00.000-07:002011-06-22T00:52:44.781-07:00पांचवां अध्याय :कर्मसंयास योग<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
- <span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;"> कर्मसंयास -तर्के अमल </span><br />
<br />
<span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">अर्जुन ने कहा - </span><br />
<b>कभी कर्मयोग आप अच्छा बताएं -कभी कर्म संन्यास के गुन गिनाएं , </b><br />
<b>है भगवान कौन इनमे मरगूबतर -अमल है ,कि तर्के अमल खूबतर .II 1 II </b><br />
<span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">भगवान का जवाब - </span><br />
<b>कही सुन के भगवान ने फिर ये बात -है तर्क ,और अमल दौनों राहे निजात , </b><br />
<b>फजीलत में है लेकिन बढ़कर अमल -कि तर्के अमल से है बेहतर अमल.II 2 II </b><br />
<b>सदा संनियासी उसे जानिये -हो नफ़रत किसी से न रगबत जिसे , </b><br />
<b>मुकय्यद न पाबन्दे इज्दाद है -सुन अर्जुन वही मर्दे-आजाद है.II 3 II </b><br />
<b>वो हैं तिफ्ले नादाँ जहालत में गर्क -जो संन्यास और योग में पायें फर्क , </b><br />
<b>जो दौनों से इक में भी कामिल हुआ -तो फल उसको दौनों का हासिल हुआ. II 4 II </b><br />
<b>तुम्हें सांख्य से जो मिलेगा मुकाम -वही योग से पायेगा लाकलाम . </b><br />
<b>जरा देख रखना ,अगर आँख है -वही योग है और वही सांख है .II 5 II </b><br />
<b>रहे -योग से जो किनारा करे -तो मुश्किल है संन्यास पाना उसे , </b><br />
<b>मुनी ,योग ही में जो कामिल हुआ -विसाले -खुदा उसको हासिल हुआ .II 6 II </b><br />
<b>जो सरशार हैं योग में मुस्तकिल -हवास उनके बस में हैं ,वो साफ़दिल,</b><br />
<b>जिसे जान अपनी सी हर जान है -कहाँ उसको कर्मों से नुकसान है .II 7 II </b><br />
<b>हकीकत का है जिसको इल्मो -यकीं -समझता है 'मैं कुछ करता नहीं ,</b><br />
<b>सुने, देखे ,छूए ,कभी सूँघ ले -वो खाए ,फिरे ,साँस ले ,ऊंघ ले .II 8 II </b><br />
<b>वो दे ,और ले ,और बोले कभी -कभी आंख मूंदे तो खोले कभी ,</b><br />
<b>मगर वो हमेशा ये कर ले कयास -कि 'महसूस की सैर देखें हवास .II 9 II </b><br />
<b>रहे बे तअल्लुक करे जब अमल -खुदा ही की खातिर करे सब अमल ,</b><br />
<b>खता से हमेशा रहेगा बरी-कमल के न पत्ते पे ठहरे तरी .II 10 II </b><br />
<b>जो योगी है करते हैं निष्काम काम -नहीं कम में कुछ लगावट का नाम ,</b><br />
<b>लगाएं वो तन ,मन ,खिरद और हवास -कि दिल की सफाई से हों रूशनास.II 11 II </b><br />
<b>जो योगी है ,सरशार छोड़ेगा फल -सुकूने -अबद लायें उसके अमल .</b><br />
<b>जो योगी नहीं ,वो हवस का फकीर -रहे फल की खाहिश में हरदम असीर .II 12 II </b><br />
<b>ये नौ दर की इक राजधानी है तन -रहे चैन से जिसमे शाहे बदन , </b><br />
<b>करे खुद न ,कोई औरों से काम -करे तर्क एमाल दिल से मुदाम .II 13 II </b><br />
<b>वो मालिक ,अमल और न आमिल बनाए -न कर्मों को कर्मों के फल से मिलाये , </b><br />
<b>ये माया की हैं कार फरमाइयां -ये मया ही करती है सबकुछ अयाँ.II 14 II </b><br />
<b>न लेगा किसी से भी परमात्मा -किसी की निकोई किसी की खता , </b><br />
<b>जहालत है इरफां पे छाई हुई -तो दुनिया है चक्कर में आई हुई .II 15 II </b><br />
<b>मगर जिनको हासिल है इरफां का नूर -करे ज्ञान उनकी जहालत को दूर ,</b><br />
<b>कि सूरज हो जब ज्ञान का जू फिशां-तो परमात्मा की हो सूरत अयाँ .II 16 II </b><br />
<b>जो दें रूह और अक्ल ,इसमे लगा -उसी में हों कायम ,उसी पर फ़िदा ,</b><br />
<b>पूंछ जाये उस तक तो वापिस न आयें -करे ज्ञान दूर उनकी सारी खताएं .II 17 II </b><br />
<b>जो ज्ञानी है ,यकसां नजर उसको आय -वो हाथी हो, कुत्ता हो ,या कोई गाय ,</b><br />
<b>वो हो बिरहमन आलिमो बुर्दबार -कि चंडाल ,नापाक मुरदार ख्वार .II 18 II </b><br />
<b>मुसावत में दिल लगाए हुए -जमम पर वो काबू है पाए हुए , </b><br />
<b>वो बेऐब ओ यकसां जो जाते खुदा -रहे जात में उसकी कायम सदा .II 19 II </b><br />
<b>वो आरिफ खुदा में रहे इस्तवार-न उलझन उसे हो ,न दिल बेक़रार , </b><br />
<b>मुसर्रत जो पाए तो शादाँ न हो -मुज़र्रत जो पहुंचे ,परेशां न हो .II 20 II </b><br />
<b>न अश्याये जाहिर से उसको लगन -है आनंद से आत्मा में मगन , </b><br />
<b>जिसे ब्रह्मयोग से ही सरोकार है -दवामी मुसर्रत में सरशार है. II 21 II </b><br />
<b>तअल्ल्लुक से पैदा जो होता है सुख -उसी से नुमायाँ हो आखिर में दुख,</b><br />
<b>जो सुख का भी आगाज़ो अंजाम है -तो दाना कहाँ उस से खुशकाम है .II 22 II </b><br />
<b>न छोड़ा अभी जिसने तन का कफस -मर कर लिए ज़ेर तैशो हवस ,</b><br />
<b>असीरे बदन रह के ,आजाद है -तो इन्सां वो योगी है दिलशाद है .II 23 II </b><br />
<b>वो योगी रहे जिसके दिल में सुरूर -मुसर्रत हो मन में तो सीने में नूर ,</b><br />
<b>समझ लीजिये हक़ से वासिल उसे -कि हो ब्रह्मनिर्वाण हासिल उसे .II 24 II</b><br />
<b>ऋषि,मिट गए जिनके जुर्मो कुसूर -जिन्हें खुद पे काबू ,दुई से जो दूर ,</b><br />
<b>जो सबकी भलाई के खाहाँ रहें -मिले ब्रह्म निर्वाण आखिर उन्हें .II 25 II </b><br />
<b>न गुस्सा है जिनमे न रंगे हवस -ख्यालो -तबीअत पे है जिनका बस ,</b><br />
<b>मिला आत्मा का जिन्हें ज्ञान है -उन्हें हर तरफ ब्रह्म निर्वान है .II 26 II </b><br />
<b>मुनि जो न महसूस से दिल लगायें -मियाने -दो अब्रू नजर को जमायें ,</b><br />
<b>बुरूं और दरूँ के बराबर हों दम -मसावी चले नाक से जेरो बम .II 27 II </b><br />
<b>हवासो -दिलो अक्ल कर ले जो राम -तलाशे -निजात ,उसका दिन रात काम,</b><br />
<b>न डर है ,न गुस्सा ,न लालच कभी -निजात उस मुनी को मिले बिल यकीं .II 28 II </b><br />
<b>मुझे शाहे अर्जो-समां जो कहे -जो समझे है यग,तप,मेरे ही लिए </b><br />
<b>जो मने मुझे खल्क का गमगुसार -उसी को मिलेगा सुकूनो करार .II 29 </b><br />
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<span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;"><b> -पांचवां अध्याय समाप्त -</b></span><br />
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</div>बी. एन.शर्माhttp://www.blogger.com/profile/16218522898407806020noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5884056561588654324.post-80851210253205042372011-06-20T11:22:00.000-07:002011-06-20T11:22:13.622-07:00चौथा अध्याय .ज्ञानंकर्म सन्यास<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;"> - ज्ञानकर्म संन्यास -आरिफाना तर्केअमल -</span><br />
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<b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">भगवान ने फरमाया - </span></b><br />
<b>यही योग जिसको नहीं है फ़ना -विवस्वान को मैंने पहिले दिया . </b><br />
<b>मनू ने लिया फिर विवस्वान से -मनू से लिया इसको इक्ष्वाक ने .II 1 II </b><br />
<b>यही नस्ल दर नस्ल आया है योग -यही राज ऋषियों ने पाया है योग . </b><br />
<b>मगर अब है दौरे जहाँ में ये हाल -कि इस योग को आगया है जवाल.II 2 II </b><br />
<b>यही योग का आज राजे -कदीम -बताया है मैंने तुझे अय नदीम. </b><br />
<b>किया तुझ पे सर्रे ख़फ़ी आशकार -कि तू भक्त मेरा है ,और दोस्तदार .II 3 II </b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">अर्जुन का सवाल -</span></b><br />
<b>कहा सुनके अर्जुन ने सुनिए हुजूर -जहाँ में हुआ आपका अब जहूर .</b><br />
<b>विवस्वान पहिले ही मौजूद था -तो योग आपसे उसने क्योंकर लिया .II 4 II </b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">भगवान ने कहा -</span></b><br />
<b>सुन अर्जुन हुए हैं यहाँ बार बार -तुम्हारे हमारे जनम बेशुमार .</b><br />
<b>मुझे हाल इन सबका मालूम है -तेरा हाफिजा इन से महरूम है.II 5 II </b><br />
<b>मेरी ज़ात है मालिके कायनात -न इसको विलादत न इसको ममात .</b><br />
<b>जो काम अपनी फितरत को लाता हूँ मैं -ज़हूर अपनी माया से पाता हूँ मैं .II 6 II </b><br />
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<b>तनज्जुल पे जिस वक्त आता है धर्म -अधर्म आके करता है बाज़ार गर्म .</b><br />
<b>ये अंधेर जब देख पाता हूँ मैं -तो इन्सां की सूरत में आता हूँ मैं .II 7 II </b><br />
<b>भलों को बुरों से बचाता हूँ मैं-बुरों को जहाँ से मिटाता हूँ मैं .</b><br />
<b>जड़ें धर्म की फिर जमाता हूँ मैं -अयाँ होके युग युग में आता हूँ मैं .II8 II </b><br />
<b>जो अर्जुन समझ ले इन इसरार को -खुदायी जनम और किरदार को .</b><br />
<b>वो मर कर मेरे वस्ल से शाद है -तनासुख के चक्कर से आज़ाद है.II 9 II </b><br />
<b>कई मह्व मुझ में मुझी में मुकीम -तअल्लुक से आजाद बे रंजो बीम , </b><br />
<b>सदा ज्ञान ,ताप से करें पाक दिल -मेरी जाते आली में जाते हैं मिल.II10 II </b><br />
<b>मेरे पास जिस राह से लोग आयें -वो राजी हों ,अर्जुन मुराद अपनी पायें , </b><br />
<b>इधर से चलें ,या उधर से चलें -मेरे सब हैं रस्ते जिधर से चलें .II 11 II </b><br />
<b>वो कर्मों के फल के तालिब यहाँ -करें देवताओं की कुर्बानियां , </b><br />
<b>कि फिल्फौर दुनियां में इन्सान की-मुरादें हों कर्मों से हासिल सभी .II 12 II </b><br />
<b>बनाये हैं मैंने जो ये वर्ण चार -कि कर्मों ,गुणों की तकसीमे कार. </b><br />
<b>मैं खालिक हूँ इनका ,मगर बिल्जरुर -अमल से बरी हूँ ,तगय्युर से दूर .II 13 II </b><br />
<b>न कर्मों का होता है मुझ पर असर-न कर्मों के फल पर है मेरी नजर . </b><br />
<b>जो ऐसा समझता मुझे पाक है -वो कर्मों के बंधन से बेबाक है .II 14 II </b><br />
<b>सुलफ के बुजुर्गों से पाकर ये बात -किये काम दुनिया में बहरे निज़ात. </b><br />
<b>इसी तरह तू भी किये जा अमल-बुजुर्गों के नक़्शे कदम पे ही चल.II 15 II</b><br />
<b>सुन अब मुझसे कर्मों अकर्मों का राज़ -न दाना भी जिनमे करें इम्तियाज़ . </b><br />
<b>बताता हूँ कर्मों का रस्ता तुझे -जो आज़ाद कार देगा संसार से .II 16 II </b><br />
<b>ये लाजिम है कर्मों को पहचान तू -बुरे कर्म जो हैं उन्हें जान तू. </b><br />
<b>अकर्मों से कर्मों को करले जुदा -कि गहरा है कर्मों का रिश्ता बड़ा .II 17 II </b><br />
<b>वो इन्सां जो कर्मों में देखे अकर्म -अकर्म उसको आये नज़र ऐन कर्म . </b><br />
<b>वो लोगों में दाना है और होशियार -वो योगी है ,गो सब करे कारोबार .II 18 II </b><br />
<b>न खाहिश कि हो काम में जिसके लाग -जला दे अमल जिसके इर्फाँ की आग . </b><br />
<b>अमल में समर से जो है बेनियाज़ -है दाना वही पेशे दानाए राज़ .II 19 II </b><br />
<b>अमल में नहीं जिसको फल से लगन -दिले मुतमइन में रहे जो मगन . </b><br />
<b>सहारा किसी का न ले एक पल -अमल उसका है ,ऐन तर्के अमल .II 20 II </b><br />
<b>उमीदो हवस से न है कुछ लगन -जो काबू है मन तो कब्जे में तन . </b><br />
<b>जो तन काम में ,मन रहे ध्यान में -तो पल भी न गुजरेगी असियान में .II 21 II </b><br />
<b>जो मिल जाये लेकर वही शाद है-न हासिद न पबंडे इज्दाद है ,</b><br />
<b>बराबर है जिसके लिए जीतहार -अमल में अमल का नहीं वो शिकार .II 22 II </b><br />
<b>तअल्लुक से जो पाक आज़ाद है -जो इरफां में कायम है दिलशाद है ,</b><br />
<b>अमल यग की खातिर करे जो सदा -तो कर्म उसके होते हैं सरे फ़ना .ई 23 II </b><br />
<b>को किरिया में देखे खुदा ही खुदा -है अगनी खुदा ,और हवि भी खुदा ,</b><br />
<b>हवं और हवं करने वाला वही-खुदा से जुदा वो न होगा कभी .II 24 II </b><br />
<b><br />
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<b>कई कर्मयोगी हैं इन से अलग -वो बस देवताओं को देते हैं यग. </b><br />
<b>जलाकर कई आतशे किब्रिया -करें यग को इस यग के अन्दर फना .II 25 II </b><br />
<b>कई जब्ते दिल से जलाएं मुदाम -समाअत .हिसें,दूसरी भी तमाम . </b><br />
<b>कई हिस की आतिश में कर दें फना -सब अश्याए -महसूस मिस्ले सिदा.II 26 II </b><br />
<b>कई जब्त से योग ऐसा कमायें -दिलो जां में इरफां की आतिश जलाएं , </b><br />
<b>हों अफआले हिस ,या हों अफआले दम -इसी ज्ञान अगनी में कर दें भसम .II 27 II </b><br />
<b>कई धन से और तप से करते हैं यग -कई योग और जप से करते हैं यग ,</b><br />
<b>कई लोग करते हैं यग ज्ञान से -वो अहद अपना पूरा करें जान से.II 28 II </b><br />
<b>कई हिसे -दम में दिखाएँ कमाल-की यग उनका है रोकना दम की चाल,</b><br />
<b>वो दम अपने करते हैं कुरबान यूं -दुरूं में बरूं और बरूं में दुरूं.II 29 II </b><br />
<b>कई रखके ज़ब्ते गिजाये बदन -करें प्रान पर प्रान अपने हवन,</b><br />
<b>उन्हें यग के इसरार मालूम हैं -वो यग के सबब पाक मासूम हैं .II 30 II </b><br />
<b>वो अमरित के लुकमे जो यग से बचें -उन्हें खानेवाले खुदा में रचें,</b><br />
<b>हे अर्जुन ,वो महरूम छोड़े जो यग -न ये यग ही उसका ,न अगला ही यग .II 31 II </b><br />
<b>बहुत यग के आमालो दस्तूर हैं -जो ब्रह्म ,यानी वेदों में मज़कूर हैं ,</b><br />
<b>की ये सारे कर्मों की औलाद हैं -जो ऐसा समझ ले आज़ाद है .II 32 II </b><br />
<b>करे साजो सामां से इन्सान यग -मगर सबसे बेहतर समझ ज्ञान यग ,</b><br />
<b>सुन अर्जुन ,अगर तुझको पहचान है -की हर कर्म की इन्तहा ज्ञान है.II 33 II </b><br />
<b>जो ज्ञानी हैं ,तू उनकी ताजीम कर-हुसूल उनसे इरफांकी तालीम कर . </b><br />
<b>समझ इनसे सबकुछ ब इज्जो नियाज़ -तू कर इनकी सेवा ,तू सीख इनसे राज़.II 34 II </b><br />
<b>जो अर्जुन मिले ज्ञान उलझन हो दूर -तो हो इस हकीकत का तुझ पे ज़हूर , </b><br />
<b>कि सारा जहाँ है तेरी ज़ात में -तरी जात यानि मेरी जात में .II 35 II </b><br />
<b>जो फ़ासिक है तू ,या गुनहगार है -गुनहगार बन्दों का सरदार है , </b><br />
<b>तो फिर ज्ञान नैय्या पे हो जा सवार -गुनाहों के सागर से कर देगी पार .II 36 II </b><br />
<b>सुन अर्जुन जो अम्बारे खाशाक है-लगे आग इसमे तो सब खाक है ,</b><br />
<b>यूँही ज्ञान अगनी से जाते हैं जल -बुरे हों अमल या भले हों अमल .II 37 II </b><br />
<b>नहीं शै जहां में कोई ज्ञान सी -करे पाक फितरत जी इन्सान की,</b><br />
<b>अगर पुख्तगी योग में पायेगा -तो खुद्ज्ञान भी उसका हो जायेगा .II 38 II </b><br />
<b>वो ज्ञानी है ,जिसको हो पुख्ता यकीं -हवास अपने रक्खे जो जेरे नगीं,</b><br />
<b>उसे ज्ञान हासिल हो अन्जमाकार -वो पाए खुदाई -सुकूनो करार .II 39 II </b><br />
<b>वो जाहिल ,नहीं जिस का दिल पे यकीं-तजबजब से पहुंचे फ़ना के करीं ,</b><br />
<b>रहे डगमगाता न हो शादमां-ये दुनिया है उसकी न अगला जहां .II 40 II </b><br />
<b>किया योग से जिसने तर्के अमल -कटे ज्ञान से जिसके वहमो खलल .</b><br />
<b>वही,आतमा का जिसे ज्ञान है -कहाँ उसको कर्मों से नुकसान है.II 41 II </b><br />
<b>जहालत से पैदा हुए हैं जो शक -मिटा ज्ञान की तेग से यक बयक ,</b><br />
<b>उठ अय भारत ,और छोड़ सब वहम ए हाम-तू रख योग में दिल को कायम मुदाम .II 42II</b><br />
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<b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">- चौथा अध्याय समाप्त -</span></b><br />
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</div>बी. एन.शर्माhttp://www.blogger.com/profile/16218522898407806020noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5884056561588654324.post-47311212599387732662011-06-16T21:39:00.000-07:002011-06-16T21:39:12.422-07:00तीसरा अध्याय :कर्मयोग<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">कर्मयोग -अहमीयते अमल </span><br />
<div><br />
</div><div><div><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">अर्जुन ने कहा - </span></div><div><b>बता मुझको जब्बार गेसूदराज -अमल से अगर इल्म है सरफराज . </b></div><div><b>तो रक्खा नहीं मुझको आजाद क्यों -मुझे कुश्तो खूँ का है इरशाद क्यों .II 1 II </b></div><div><b>बजाहिर नहीं बात सुलझी हुई -मेरी अक्ल है इस से उलझी हुई . </b></div><div><b>मुझे बात कतई बता दीजिये -भलाई की रह पर चला दीजिये .II 2 II </b></div><div><b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">भगवान ने फरमाया</span> - </b></div><div><b>सुन अय मेरे मासूम अर्जुन जरा -दिए रास्ते मैंने दोनों बता . </b></div><div><b>है ज्ञान उनका रस्ता जो ग्यानी हैं लोग -जो योगी हैं ,उनका है कर्मयोग .II 3 II </b></div><div><b>कि इंसां कभी तरके आमाल से -रिहा हो न कर्मों के जंजाल से . </b></div><div><b>फकत तर्के आमल से है मुहाल -कि हासिल किसी को ओजे कमाल .II 4 II </b></div><div><b>जहां में न देखोगे तुम एक पल -कि कोई भी फारिग है और बेअमल . </b></div><div><b>सभी काम करने पे मामूर हैं -गुणों ही की ही फितरत से मजबूर हैं .II 5 II </b></div><div><b>जो अश्या से रोके कवाये अमल -मगर दिल से खाहिश न जाये निकल . </b></div><div><b>जो अश्या की उल्फत में सरशार हैं -परागंदा दिल हैं ,वो मक्कार हैं .II 6 II </b></div><div><b>मगर ले कवाये -अमल से जो काम -करे मन से पहिले हवास अपने राम . </b></div><div><b>लगावत न उसको समर का ख्याल -तो है कर्मयोगी वही बा कमाल .II 7 II </b></div><div><b>जो है फर्ज तेरा कर उस पर अमल -कि तर्के अमल से है बेहतर अमल . </b></div><div><b>अमल छोड़ देने हों तुझको तमाम -तो मुश्किल है तेरे बदन का कयाम .II 8 II </b></div><div><b>अमल जिस कदर भी है यग के सिवा -वो दुनियां को बंधन में रक्खें सदा . </b></div><div><b>किये जा तू सब काम यग जानकर -लगावत न रख ,और न फल पे नजर .II 9 II </b></div><div><b>जो खालिक ने इंसां को पैदा किया -तो यग को भी पैदा किया और कहा .</b></div><div><b>कि फूलो फलो ,रख के यग पे यकीन -मुरादों कि ये गाय है कामधीन.Ii 10 II</b></div><div><b>नवाजा करो यग से तुम देवता -तुम्हें देवता भी नवाजें सदा .</b></div><div><b>जो इक दूसरे को करे साजमंद -तो हासिल हो तुमको मुकामे बुलंद .II11 II</b></div><div><b>यागों से नवाजे हुए देवता -तुम्हें नेमतें सब करेंगे अता .</b></div><div><b>मगर लेके नेमत जो देता नहीं -समझ लो कि वो चोर है बिल्यकीं.II 12 II </b></div><div><b>निकूकार खाएं जो यग का बचा -गुनाहों से करते हैं खुद को रिहा . </b></div><div><b>जो थाली खुद अपनी ही खातिर पकाएं -तो अपने ही पापों का भोजन वो खाएं .II 13 II </b></div><div><b>है जिन्दों का गल्ले पे दारोमदार -तो गल्ले का बारिश पे है इन्हिसार . </b></div><div><b>हो बारिश ,जो यग का करें एहतमाम -मगर यग्ग हों कर्मों से पैदा तमाम .II14 II </b></div><div><b>सभी कर्म हों ब्रह्म से रूनुमा -करे ब्रह्म को रूनुमा लाफना . </b></div><div><b>सो वो ब्रह्म दुनिया पे छाया हुआ -है यग के अमल में समाया हुआ .II15 II</b></div><div><b>इसी तरह दुनिया का चलता है दौर -जो इस दौर से हट के के राह और . </b></div><div><b>वो खाहिश का बन्दा गुनाहगार है -हयात उसकी दुनिया में बेकार है .II 16 II </b></div><div><b>मगर आत्मा से है जिसको लगन -फकत आत्मा में रहे जो मगन . </b></div><div><b>सदा आत्मा ही से खुरसंद है -कहाँ फिर वो कर्मो का पाबंद है .II 17 II </b></div><div><b>न कुछ उसको अफआल से फायदा -न कुछ तर्के आमाल से फायदा . </b></div><div><b>न दिल बस्तगी है जहाँ से उसे -न कुछ मुद्दआ ईं ओ आं से उसे .II 18 II </b></div><div><b>रहो इसलिए तुम लगावट से दूर -बजा लाओ फर्ज अपने सब बिल्जरूर . </b></div><div><b>इसी से मिलेगा मुकामे बुलंद -लगावट न रक्खो अमल में पसंद.Ii 19 II </b></div><div><b>अमल से बुजुर्गों ने पाया कमाल -जनक जैसे इन्सां हुए बा मिसाल . </b></div><div><b>इसी तरह नेकी किये जाओ तुम -जहां को भलाई दिए जाओ तुम .II 20 II </b></div><div><b>कोई नामवर शख्श करता है काम -तो करते हैं तकलीद उसकी अवाम . </b></div><div><b>बड़ा आदमी जो बनाये उसूल -वही सारी दुनिया करेगी कबूल.II 21 II </b></div><div><b>मुझे देख ,दुनिया को देना है कुछ -न तीनों जहानों से लेना है कुछ . </b></div><div><b>कमी कुछ नहीं ,गो मुझे रीनाहार -मगर फिर भी रहता हूँ मसरुफे कार .II 22 II </b></div><div><b>करूं जो न अनथक लगातार काम -तो रुक जाएँ दुनिया के धंदे तमाम . </b></div><div><b>चलें लोग मेरी रविश पर सभी -करें काम वो भी न अर्जुन कभी .II 23 II </b></div><div><b>जो तर्के अमल मैं करूँ इख्तियार -उजड़ जाए दुनिया ए नापायदार . </b></div><div><b>तो वर्णों का मेरे सबब घालमेल -बिगड़ जाये लोगों की हस्ती का खेल .II 24 II </b></div><div><b>हो दाना की जैसे अमल में लगन -उन्हें काम ही की लगन है ,लगन .</b></div><div><b>हों वैसे ही नादां के निष्काम काम -रहे ताकि लोगों में कायम निजाम .II 25 II </b></div><div><b>अगर मूरखों में अमल की हो जोश -मजबजब न उनको करें अहले होश.</b></div><div><b>करें योग में रह के खुद कारोबार -यही उनको रखे मसरूफे कार .II 26 II </b></div><div><b>ये दुनिया की रौनक ,कामों की धुन -सबब इनका असली है फितरत के गुन.</b></div><div><b>मगर जिनके दिल में अहंकार है -समझता है खुद को की मुख़्तार है. II 27 II </b></div><div><b>जबरदस्त अर्जुन !हो जिस पर अयाँ-गुनों और कर्मों का राजे निहां .</b></div><div><b>रहे बे तआल्लुक ,कि दुनिया के काम -गुनों पर गुनों के अमल का है नाम .II 28 II </b></div><div><b>वो मूरख जो माया के धोखे में आये -गुनों और अफआल से दिल लगाये .</b></div><div><b>वो जाहिल है ,और अक्ल में खामकार-न दुविधा में डालें उन्हें होशियार .II 29 II </b></div><div><b>तू मन अपना परआत्मा में लगा -खुदी औ हवस छोड़ मत जी जला .</b></div><div><b>मुझे सौंप दे काम सब बेदिरंग -उठ अर्जुन !उठ अर्जुन !हो मसरुफे जंग .II 30 II </b></div><div><b>जो हैं मेरी तालीम पर कारबन्द-करें नुक्ताचीनी को नापसंद . </b></div><div><b>अकीदत से पाबन्दे इरशाद हैं -वो कर्मों के बंधन से आजाद हैं .II 31 II </b></div><div><b>जो आमिल नहीं मेरी तलकीन पर -जो तकरार ओ हुज्जत करें बेश्तर. </b></div><div><b>उलूम उनके हैं सब फरेबो फितूर -वो जाहिल तबाही में जाएँ जरुर .II32 II</b></div><div><b>कोई इल्म से लाख पुरनूर है -मगर अपनी फितरत से मजबूर है . </b></div><div><b>बशर अपनी फितरत बदलता नहीं -यहाँ जब्र से काम चलता नहीं .II33 II</b></div><div><b>कभी दिल को रगबत हो महसूस से -कभी दिल को नफ़रत हो महसूस से . </b></div><div><b>ये रहजन हैं दौनों ,न मरगूब हो -तू गलबे से इनके न मरगूब हो .II 34 II </b></div><div><b>न ले गैर का धर्म ,गो खूब है -किधर्म अपना नाकिस भी मरगूब है . </b></div><div><b>जो मरना पड़े ,धर्म अपने पे मर -तुझे गैर के धर्म में है खतर.II 35 II </b></div><div><b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">अर्जुन का सवाल - </span></b></div><div><b>फिर अर्जुन ने पूछा</b></div><div><b> कि वो कुव्वत है क्या -करे जिस से इन्सां गुनाहों खता . </b></div><div><b>खता कोई करता नहीं चाह से -वो सब कुछ करे जबरो इकराह से.II 36 II </b></div><div><b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">भगवान का इरशाद </span>-</b></div><div><b>सुना ये तो भगवान बोले कि बस -गजबनाक दुश्मन है तेरी हवस .</b></div><div><b>समझ ये राजोगुन की औलाद है -ये लोभी है ,पापी है ,जल्लाद है.II 37 II </b></div><div><b>धुंआ रूए आतिश को जैसे छुपाये -रूए शीशा पर जिस तरह जंग आये .</b></div><div><b>छुपे पेट में माँ के जैसे जनीं -हवस छुपे से ज्ञान तेरा यहीं .II 38 II </b></div><div><b>है सब ज्ञान वालों की दुश्मन हवस -ये पीछा न छोड़ेगी दुश्मन हवस .</b></div><div><b>हवस आग ऐसी है ,कुंती के लाल -कि इस आग का सैर करना मुहाल.II 39 II </b></div><div><b>हवासो - दिलो -अक्ल ए नेकनाम -हवस के लिए हैं ये तीनों मुकाम .</b></div><div><b>यहीं ज्ञान इन्सां का रूपोश हो -यहीं तन का वासी भी मदहोश हो .II 40 II </b></div><div><b>इसी वास्ते ,अर्जुन अय हक़ शनास-तू कर अपने काबू में अपने हवास.</b></div><div><b>हवास को फ़ना कर ,कि है ये गुनाह -करेगी यही इल्मो इरफां तबाह .II 41 II </b></div><div><b>हवास आदमी के हैं आला तमाम -मगर उनसे ऊंचा है मन का मुकाम .</b></div><div><b>है मन से बड़ा मरतबा अक्ल का -मगर अक्ल से बढ़ के है आतमा.II 42 II </b></div><div><b>समझ आत्मा अक्ल से है बुलंद -बना नफस को रूह का पायबंद .</b></div><div><b>हवास है तेरी दुश्मने खौफनाक -जबरदस्त अर्जुन इसे कर हलाक.II 43 II </b></div><div><b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;"> तीसरा अध्याय समाप्त -</span></b></div><div><b><br />
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</div></div></div>बी. एन.शर्माhttp://www.blogger.com/profile/16218522898407806020noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-5884056561588654324.post-70659361041842523372011-06-14T05:25:00.000-07:002011-06-14T05:25:58.630-07:00दूसरा अध्याय :सांख्ययोग<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">सांख्य योग -शगले इरफान </span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">संजय ने कहा - </span><br />
<b>जो अर्जुन का देखा ये रंजोमलाल -गमो सोज दिल में तबीयत मलाल , </b><br />
<b>नजर दुःख से बेचैन ,आँखों में नम-तो भगवान बोले जि राहे करम .II 1 II </b><br />
<b>भगवान ने कहा - </b><br />
<b>सुन अर्जुन ये कैसी रविश है रजील -जो दोजख में डाले ,जो कर दे जलील . </b><br />
<b>कठिन वक्त में ऐसी क्यों बेदिली -न हो आर्यायों में यूं बेदिली .II 2 II </b><br />
<b>तू अर्जुन न बन हीजे नामर्द ओ जार -,नहीं तेरे शायाने शां जी को हार . </b><br />
<b>ये कम हिम्मती छोड़ ,कर जी कड़ा-,उदूसोज अर्जुन ,खडा हो !खडा .II 3 II </b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">अर्जुन का जवाब - </span></b><br />
<b>वो बोला कि,अय फातिहे दुश्मना-मधूमार मुझसे ये होगा कहाँ . </b><br />
<b>मुआज्जिज हैं ,भीषम द्रोण हैं गुरू -बहाऊँ मैं तीरों से उनका लहू .II 4 II </b><br />
<b>गुरू मोहतरम का नहीं खूँ रवा -गदाई में इस से तो जीना भला . </b><br />
<b>मैं इन खैरख्वाहों का खूं गर करूं -तो इशरत के लुक्मे लहू से भरूँ.II 5 II </b><br />
<b>मैं क्या जानूँ अच्छा है ,अय सरपरस्त -शिकस्त इनको देना या खाना शिकस्त . </b><br />
<b>ये धृष्ट राष्ट्र के पिसर हैं तमाम -इन्हें मार कर अपना जीना हराम .II 6 II </b><br />
<b>तबीयत है कमजोर ,दिल नर्म है-ये उलझन है क्या मेरा धर्म है . </b><br />
<b>मैं चेला हूँ ,मेरी मदद कीजिए -जो हो नेक रस्ता बता दीजिए .II 7 II </b><br />
<b>जहाँ का मुझे मिले खलल मुझको राज -मुझे देवता भी जो दें आकर खिराज . </b><br />
<b>मैं उस हाल में भी रहूँगा उदास -इसी दर्द से ग़ुम हैं मेरे हवास .II 8 II </b><br />
<b>संजय ने कहा - </b><br />
<b>गुडाकेश ,वो फातिहे -दुश्मनां-ऋषीकेश से कर चुका जब बयां . </b><br />
<b>तो यूं कह के चुप हो गया वो हजीं-"मैं गोविन्द ,लड़ता लड़ाता नहीं .II 9 II </b><br />
<b>इधर फ़ौज थी और उधर फ़ौज थी -दिल अर्जुन का और गम की इक मौज थी. </b><br />
<b>ऋषिकेश कुछ मुस्कुराने लगे -ये इरफ़ान के मोती लुटाने लगे .II 10 II </b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">भगवान ने कहा -</span></b><br />
<b>तू बातों के आकिल न हो दिल मलूल -न कर उनका गम ,जिनका गम है फिजूल . </b><br />
<b>सताएं न दाना को रंजो अलम-मरे का न सोग और जीने का गम .II 11 II </b><br />
<b>अजल से थी मौजूद हस्ती मेरी -अजल से थी मौजूद हस्ती तेरी . </b><br />
<b>ये राजा सभी ,और ये खिलकत तमाम -हमेशा से हैं ,और रहेंगे मुदाम .II 12 II </b><br />
<b>करे रूह जैसे तगय्युर बगैर -लडकपन जवानी बुढापे की सैर . </b><br />
<b>यही फिर नए तन में होगी मकीं -अगर दिल है मजबूत चिंता नहीं .II 13 II </b><br />
<b>ये गर्मी ,ये सर्दी ये दुःख सुख तमाम -बस अहसासे अश्या से हों लाकलाम . </b><br />
<b>ये कैफीयतें आनी -जानी हैं ये -सहे जा खुशी से ,कि फानी हैं ये .II 14 II </b><br />
<b>वो इन्सां ,असर जिस पे इनका नहीं -ख़ुशी से ,न खुश हो न गम से हजीं. </b><br />
<b>सुन अर्जुन ,है कायम दिल उसका मुदाम -उसी की है शायां हयाते दवाम .II 15 II </b><br />
<b>जो बातिल है मौजूद होता नहीं -जो हक़ है ,वो नाबूद होता नहीं .</b><br />
<b>वोहै बूद ओ नाबूद से से बा खबर -हकीकत पे रहती है जिसकी नजर .II 16 II </b><br />
<b>उसी को बका है ,उसी को सबात -जहाँ पर है छायी हुई जिसकी जात .</b><br />
<b>भला किसकी ताकत है ,किसकी मजाल -फ़ना कर सके हस्तीये लाजवाल .II 17 II </b><br />
<b>बसाये हैं जिस आत्मा ने वुजूद -वो कायम है ,दायम है और बे हुदूद .</b><br />
<b>है फानी बदन ,आत्मा ला जवाल-फिर अर्जुन है क्यों जंग में कीलो -काल .II 18 II </b><br />
<b>कभी खून करती नहीं आत्मा -कभी खुद भी मरती नहीं आत्मा .</b><br />
<b>न कातिल है ये ,और न मकतूल है -जो ऐसा समझता है ,मजहूल है .II 19 II </b><br />
<b>जनम इसको लेना ,न मरना इसे -न आकर जहां से गुजरना इसे .</b><br />
<b>अनादी ,फ़ना और तगय्युर से पाक -ये मरती नहीं ,गो बदन हो हलाक.II 20 II </b><br />
<b>जो समझे इसे दायमो लायजाल-मुबर्रा विलादत से और बे जवाल .</b><br />
<b>किसी का वो क्योंकर बहायेगा खून -किसी का वो क्योंकर कराएगा खून .II 21 II </b><br />
<b>बदलता है इन्सां लिबासे कुहन -नया जमा करता है फिर जेबे तन .</b><br />
<b>उसी तरह कालिब बदलती है रूह -नए भेस में फिर निकलती है रूह .II 22 II </b><br />
<b>कटेगी न तलवार से आत्मा -जलेगी कहाँ नर से आत्मा .</b><br />
<b>न गीली हो पानी लगाने से ये -न सूखे हवा में सुखाने से ये .II 23 II </b><br />
<b>न कट ही सके ,और न जल ही सके -न सूखे न पानी से गल ही सके .</b><br />
<b>कदीम और अटल भी है दायम भी है -मुहीते जहां भी है ,कायम भी है .II 24 II </b><br />
<b>नहीं आत्मा को तगय्युर जवाल -हवास इसको पायें ,न पहुंचे ख़याल .</b><br />
<b>तुझे आत्मा का जो ये ज्ञान है ,तो फिर किसलिए गम से हलकान है .II 25 II </b><br />
<b>अगर तू समझता है ,ये आत्मा -हो पैदा कभी और कभी हो फना .</b><br />
<b>तो फिर भी है लाजिम तुझे अय कवी -कि गम आत्मा का न करना कभी .II 26 II </b><br />
<b>जो पैदा हो मौत उसको आये जरुर -मरे ,तो जनम फिर वो पाए जरुर .</b><br />
<b>जो ये अम्र लाजिम है ,और नागुजीर -तो फिर किसलिए तू है गम का असीर .II 27 II </b><br />
<b>निगाहों से पहिले निहां हों वुजूद -ये फिर बीच में अयां हों वुजूद .</b><br />
<b>निहां फिर ये हो जाएँ अंजामकार -तू अर्जुन है फिर किसलिए बेकरार .II 28 II </b><br />
<b>कोई आत्मा से तआज्जुब में आये -कोई बात हैरत से उसकी सुनाये .</b><br />
<b>कोई जिक्र सुन सुन के हैरान है -मगर सुन सुनाकर भी अनजान है .II 29 II </b><br />
<b>जो है सब के तन में मकीं आत्मा -ये दायम है ,फानी नहीं आत्मा .</b><br />
<b>जो इसपर यकीं है तो ,भारत के लाल -न कर अहले हस्ती का रंजो मलाल .II 30 II </b><br />
<b>तेरा फर्ज क्या है ,रख इस पे नजर-न जी डगमगा इसकी तकमील कर . </b><br />
<b>अमल क्षत्री का कोई क्यों न हो -न पहुंचे कभी धर्म की जंग को .II 31 II </b><br />
<b>हैं अर्जुन वही क्षत्री खुशनसीब -मिले मार्का जिनको ऐसा अजीब . </b><br />
<b>ये बिन मांगे नेमत खुद आई है घर -खुले खुद बखुद आके जन्नत के दर .II 32 II </b><br />
<b>अगर धर्म की तू लडेगा न जंग -और इस जंग में कुछ करेगा दिरंग . </b><br />
<b>तो पत तेरी बाकी रहेगी न धर्म -तुझे पाप घेरेंगे आयेगी शर्म .II 33 II </b><br />
<b>तुझे लोग देखेंगे तहकीरसे -न लेंगे तेरा नाम तौकीर से .</b><br />
<b>जो बा आबरू इस जहां में रहे -वो मरने को जिल्लत पै तरजीह दे .II 34 II </b><br />
<b>कहेंगे महारथ ,बहादुर सवार -तू मैदां से डर कर हुआ है फरार .</b><br />
<b>तुझे सब बुलाते हैं इज्जत से अब -ये लेंगे तेरा नाम जिल्लत से तब .II 35 II </b><br />
<b>इधर तेरे दुश्मन जो रखते हैं कद -जिन्हें है शुजाअत पै तेरी हसद .</b><br />
<b>वो बोलेंगे नागुफ्तनी बोलियाँ -मिले रंजो गम इस से बढकर कहाँ .II 36 II </b><br />
<b>मरेगा तो पायेगा जन्नत में घर -अगर जित जाये ,तो दुनिया हो सर .</b><br />
<b>उठ अर्जुन ,खड़ा हो दिखा जोरे जंग -कि मर्दों को मैदां से हटना है नंग .II 37 II </b><br />
<b>हो सुख हो याकि दुःख सबको यकसां समझ -मसावी यहाँ नफ़ओ नुक्स्सां समझ . </b><br />
<b>बराबर समझ जंग में जीत हार-बचेगा गुनाहों से ,दो हाथ मार.II 38 II </b><br />
<b>ये तालीम थी सांख्य के ज्ञान से-समझ योग की बात अब ध्यान से . </b><br />
<b>अगर योग में तुझको है इन्म्हाक -तो कर्मों के बंधन से हो जाये पाक .II 39 II </b><br />
<b>ये कोशिश हो इसमे कोई रायगां-हो रस्ते में इसके रुकावट कहाँ . </b><br />
<b>ज़रा भी जो ये धर्म आ जायेगा -तो खौफो खतर से बचा जाएगा .II 40 II </b><br />
<b>जो अक्ले इरादी रहे मुस्तकिल -तो यकसूँ हो और पुख्ता इन्सां का दिल . </b><br />
<b>इरादा हो जिसका न सुलझा हुआ -रहेगा ख्यालों में उलझा हुआ .II41II</b><br />
<b>जो वेदों के लफ्जों में हैं शादमां-वो नादां करें गुल अफ्शानियाँ . </b><br />
<b>उन्हें कर्म कांडों से है आगही -वो कहते हैं ,सब कुछ यही है ,यही .II42II</b><br />
<b>जनम को बताएं वो कर्मों का फल -सिखाएं जारो ऐश के सौ अमल . </b><br />
<b>वो खुदकाम है ,कामनाओं में मस्त -वो जन्नत के तालिब जन्नत परस्त .II 43 II </b><br />
<b>फंसें जिनके दिल ऐसे अक्वाल में -घिरें ऐश दौलत के जंजाल में . </b><br />
<b>समाधी नहीं ,दिल पै काबू नहीं -कि अक्ले इरादी ही यकसू नहीं .II 44 II </b><br />
<b>हैं वेदों में लिक्खे हुए तीन गुन-तू बाला हो इनसे न रख इनकी धुन . </b><br />
<b>रख इजदाद का ,और न हासिल का गम -हो महव आत्मा में ,सदाकत पै जम .II 45 II </b><br />
<b>वो इन्सां जिसे ब्रह्म का ज्ञान है-उसे कर्म कांडों पे कब ध्यान है . </b><br />
<b>उसे वेद महज एक तालाब है-जहाँ सारे आलम में सैलाब है .II 46 II </b><br />
<b>तुझे काम करना है ,ओ मरदे कार -नहीं इसके फल पे तुझे इख्तियार . </b><br />
<b>किये जा अमल ,न ढूंढ़ इसका फल -अमल कर ,अमल कर , न हो बे अमल .II 47 II </b><br />
<b>रख अर्जुन तू दिल में योग इस्तवार-तू कर बे लगावट अमल इख्तियार . </b><br />
<b>न जीते की शादी ,न हारे का सोग -कि दिल के तवाजन का है नाम योग .II 48 II </b><br />
<b>सुन अब अक्ल के योग का हल सुन -बहुत पस्त हैं जिनके कर्मों के गुन.</b><br />
<b>बना अक्ले खालिस को तू दस्तगीर -रहें फल के तालिब जलीलो हकीर .II59 II </b><br />
<b>लगी है जिसे अक्ले खालिस कि धुन -यहीं छोड़ देगा वो सब पाप पुन .</b><br />
<b>कमा योग ,तन मन में बस जाये योग-अमल में हुनर हो तो कहलाये योग .II 50 II </b><br />
<b>कि शरशारे दानिश मुनी बा अमल -करें सब अमल ,छोड़ कर इनके फल .</b><br />
<b>जनम के वो बंधन से आजाद है -सुरुरे अबद,पाक ,दिलशाद हैं .II 51 II </b><br />
<b>जो हो अक्ल आजाद जंजाल से -निकल जाये तू मोह के जाल से.</b><br />
<b>सुनी बात से भी करे एहतराज -रहे अनसुनी से भी तू बेनियाज .II 52 II </b><br />
<b>परेशां ख्याली से पाए सुकूं-मुक़द्दस सहीफों का गम हो फुसूँ .</b><br />
<b>समाधी से कायम हो दिल ,जात में -तो हासिल हो फिर योग हर बात में .II53 II </b><br />
<b>अर्जुन का सवाल -</b><br />
<b>फिर अर्जुन ने पूछा ,ये भगवान से-समाधी में दी को जो कायम करे .</b><br />
<b>है उस कायमुल अक्ल का क्या चलन -हो क्या बूदो -बाश,उसका कैसा सुखन .II 54 II</b><br />
<b>भगवान से कहा - </b><br />
<b>तो भगवान बोले ,जो हो महवे जात-जो मन से करे दूर सब खाहिशात . </b><br />
<b>रहे जिसका दिल रूह से मुतमइन -उसी फर्द को कायमुल अक्ल गिन .II 55 II </b><br />
<b>जो सुख से सुखी हो ,न दुःख से दुखी -न खौफ उसको आये न गुस्सा कभी . </b><br />
<b>न जज्बों के जंजाल में आजाये वो -मुनी कयामुल अक्ल कहलाये वो .II 56 II </b><br />
<b>बुराई जो पहुंचे ,तो नालां न हो -भलाई जो पहुंचे तो शादाँ न हो . </b><br />
<b>न इस से तआल्लुक न उस से लगाव -यही कयामुल अक्ल है सुभाव .II57 II</b><br />
<b>जरा भी दे कोई कछुवे को छेड़ -तो लेता है फ़ौरन सब एजा सुकेड़. </b><br />
<b>सुकेड़े जो हर शै से अपने हवास -वो है कायमुल अक्ल अय शनास .II 58 II </b><br />
<b>करें नेमतें तर्क ,परहेजगार -मगर शौके लज्जत से हो बेक़रार . </b><br />
<b>उसे तर्के लज्जत की लज्जत मिले -उसे दीद -बाजी की दौलत मिले .II 59 II</b><br />
<b>खिरदमंद को भी हवासो ख्याल -जो तेजी से आजायें ,कुंती के लाल . </b><br />
<b>तो मन को भी वो छीन ले जायेंगे -करे लाख कोशिश ,न हाथ आयेंगे .II 60 II</b><br />
<b>हवास अपने रोक ,और लगा मुझ में दिल -तू शरशार हो ,योग में मुस्तकिल . </b><br />
<b>रहें जब्त जिसके होशो हवास -वो है कायमुल अक्ल ए हक़ शनास.II 61 II </b><br />
<b>लगाये जो महसूस अश्या से मन -तआल्लुक बढे उनसे और हो लगन . </b><br />
<b>तआ ल्लुक से खाहिश का हो फिर जहूर -हो खाहिश से गुस्से का दिल में फितूर .II 62 II </b><br />
<b>हो गुस्से से फिर तीरगी रूनुमा -असर तीरगी का सुहू औ खता . </b><br />
<b>इसी सुहू से अक्ल हो पायमाल -हो ,जाया हुई अक्ल ,आये जवाल II 63 II </b><br />
<b>जो महसूस करता है दुनिया को सैर -न उल्फत किसी से है जिसको न बैर .</b><br />
<b>रहे नफ्स पर जब्त जिसको मुदाम -वो तसकीने दिल रहे शादकाम .II 64 II </b><br />
<b>दिले पुरसुकूं में कहाँ उसको रंज -कि दुख दूर हो जाएँ मिट जाये रंज .</b><br />
<b>जो पैदा हो दिल में सुकूनो करार -वहीँ अक्ल कायम हो और इस्तवार.II 65 II </b><br />
<b>न हो दिल पे काबू तो ,दानिश मुहाल-न हो दी पे काबू तो भटके ख्याल .</b><br />
<b>परेशां खयाली से से आये न सुख -जिसे सुख न आये सदा उसको दुख .II 66 II</b><br />
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<b>हवास आदमी के भटकते हों गर-तो हों उस हर्जगर्दी का दिल पे असर .</b><br />
<b>तो दिल -अक्ल को ले चले इस तरह -कि तूफां में किश्ती बहे जिस तरह .II 67 II</b><br />
<b>जो इन्सान हवास अपने रोके रहे -न महसूस अश्या में भटका रहे .</b><br />
<b>तो सुन ले मेरी बात ,अर्जुन कवी -कि है कायमुल इन्सां वही.II 68 II</b><br />
<b>जिसे रात कहती है दुनिया तमाम -निगाहों में आरिफ की दी है मुदाम .</b><br />
<b>जो दिन अहले आलम के नजदीक है -वो आरिफ की शब् है ,कि तारीक है .II69 II</b><br />
<b>समंदर में गायब हों दरिया हजार -रहेगा वो लबरेज और बा वकार. </b><br />
<b>सब अरमां हों गुम जिनके सिने में बस -वही पायें राहत,न अहले हवस .II 70 II </b><br />
<b>जो इन्सां करे खाहिशें दिल से दूर -हवस का न हो जिसके दिल में फितूर . </b><br />
<b>न उसमे खुदी हो न तेर - मेर -सुकून उसको हासिल है ,दिल उसका सैर .II 71 II </b><br />
<b>यही है विसाले मुकामे खुदा -जहाँ एके हों सब तवह्हम फ़ना . </b><br />
<b>दिले वापसी भी जो ये ज्ञान हो -तो हासिल उसे ब्रह्म निर्वान हो .II 72 II </b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;"> -दूसरा अध्याय समाप्त -</span></b><br />
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</div>बी. एन.शर्माhttp://www.blogger.com/profile/16218522898407806020noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5884056561588654324.post-23247578329222149102011-06-07T21:43:00.000-07:002011-06-07T21:43:34.479-07:00पहिला अध्याय<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">अर्जुन विषाद योग : अर्जुन की बेदिली </span> <br />
<b>धृतराष्ट्र ने कहा - </b><br />
<b>कुरुक्षेत्र की धर्म भूमि में जब -मिले पांडवों से मेरे लाल सब . </b><br />
<b>लड़ायी का दिल में जमाये ख़याल -तू संजय बता उनका सब हालचाल II 1 II </b><br />
<b>संजय ने कहा - </b><br />
<b>महाराज आई नजर जिस घड़ी -सफ आरास्ता पांडवों की खडी , </b><br />
<b>गये राजा दुर्योधन उठ कर शिताब -किया जाके अपने गुरु से ख़िताब II 2 II </b><br />
<b>दुर्योधन और गुरु की बातचीत </b><br />
<b>गुरूजी ! जरा देखिये औज मौज -सफ आरा है पाण्डु बेटों की फ़ौज . </b><br />
<b>द्रुपद का पिसर उनका सरदार है -जो चेला तुम्हारा ही तर्रार है II 3 II </b><br />
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------<br />
सफा .1 -सफ आरास्ता =पंक्तिबद्ध ,शिताब =शीघ्र ,तर्रार =चतुर<br />
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------<br />
<b>लड़ाई को निकले हैं ,अहले खदंग -जो सब ,अर्जुन और भीम हैं वक्ते जंग . </b><br />
<b>विराट और युयुधान मर्दाने कार-द्रुपद सा महारथ बहादुर सवार II 4 II </b><br />
<b>कहीं धृष्टकेतु कहीं चेकितान -कहीं राजा काशी का शेरे जमान </b><br />
<b>इधर कुन्तिभोज और पुरोजित उधर -कहीं शैव्या सूरते गादे-नर II 5 II </b><br />
<b>युधामन्यु जैसा कहीं शूरवीर -कहीं उत्तमौजा बली बेनजीर . </b><br />
<b>कहीं है ,बहादुर सुभद्रा का शेर -पिसर द्रौपदी का महारथ दिलेर II 6 II </b><br />
<b>-----------------------------------------------------------------------</b>-------------------------------------------------------------------------------------------<br />
सफा .2 -अहले खदंग =धनुष धारी ,शेरे जमां=विश्व विजयी ,सूरते गादे नर =महाबली<br />
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------<br />
<b>मुक़द्दस गुरु साहबे एहतराम -दौनों जहानों में आली मुकाम .</b><br />
<b>सुनो ,अब हमारे हैं सरदार कौन -हमारी सिपह के हैं सालार कौन II 7 II </b><br />
<b>गुरूजी इधर सबसे अव्वल ,जनाब -उधर फिर भीष्म और कर्ण लाजवाब </b><br />
<b>कृपा फतहमंद ,अश्वथामा सा नर -विकर्ण और बली सोमदत्त का पिसर II 8 II </b><br />
<b>दिलावर इसी शान के बेशुमार -जो मेरे लिए जां करदें निसार .</b><br />
<b>सरापा मुसल्लह ,उठाये खदंग -अयाँ जिन पे सब जंग के रंग ढंग II 9 II </b><br />
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------<br />
सफा .3 -मुकदस =पवित्र ,एहतराम =आदर ,सालार =सेनापति ,मुसल्लह =सशस्त्र .खदंग =धनुष<br />
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------<br />
<b>-हमारी इधर फ़ौज है बेशुमार -कमां दार भीषम सा आली वकार . </b><br />
<b>मुकाबिल में महदूद फौजे गनीम -है सेनापति जिनके लश्कर का भीम II 10 II </b><br />
<b>जवानो कतारों में बँट जाइयो -सफें बांध कर रन में डट जाइयो . </b><br />
<b>दिलेरो !सफें अपनी भर दो सभी -न भीषम पे आंच आये मर्दों कभी II 11 II </b><br />
<b>ये सुन कर गरजने लगा मिस्ले शेर -वो भीषम पिता ,वो पिरे दिलेर . </b><br />
<b>वो शंख अपना जंगी बजाने लगा -तेरे लाल का दिल बढ़ाने लगा II 12 II </b><br />
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------<br />
सफा .4 -महदूद =अपर्याप्त ,गनीम =शत्रु सेना ,पीरे दिलेर =वृद्ध शेर (भीष्म )<br />
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------<br />
<span class="Apple-style-span" style="color: red;">जंग की शोरिश </span><br />
<b>यकायक उठा फ़ौज से शोरगुल -नाकूस चिल्लाए खडके दुबुल . </b><br />
<b>गरजने ,धड़कने लगे ढोल दफ -लगीं गौमुखें चीखने हर तरफ II 13 II </b><br />
<b>खड़ा था वहां एक रथ शानदार -जुते जिसमे बुर्राक सब राहवार. </b><br />
<b>थे माधव भी अर्जुन भी उसमे खड़े -वो शंख आसमानी बजने लगे II 14 II </b><br />
<b>ऋषिकेश का पांच जन्या पे जोर -इधर देवदत्ता पे अर्जुनका शोर . </b><br />
<b>उधर भीम सा मर्द खूंखार था -जो पोंडर पे चिंघाड़ता था खड़ा II 15 II </b><br />
------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------<br />
सफा .5 -नाकूस =शंख ,दुबुल =ढोल ,गौमुखें =नरसिंघा ,बुर्राक =सफ़ेद घोड़े ,पौण्ड्र=शंख का नाम<br />
------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------<br />
<b>महीपत युधिष्ठिर वो कुंती के लाल -विजय पर दिखता था अपना कमाल. </b><br />
<b>दिखाते नकुल और सहदेव जोश -लिए इक मनीपुष्प और एक सुघोष II 16 II </b><br />
<b>वो काशी का राजा धनुषधार भी -शिखंडी महारथ ज़र्रार भी . </b><br />
<b>विराट और बली धृष्ट द्यूमन सभी -कवी सात्यकी जो न हारें कभी II 17 II </b><br />
<b>द्रुपद और सुभद्रा का बलवंत लाल -पिसर द्रौपदी के सभी बाकमाल . </b><br />
<b>महाराज हरसू दिखाते थे जोश -बजाते थे शंख अपने बा सद खरोश II 18 II </b><br />
------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------<br />
सफा .6 -हरसू =हर जगह ,सद खरोश =सौगुना जोश<br />
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------<br />
<b>वो हंगामा बरपा हुआ अल अमां -हुए शोर से पुर जमीं आसमां. </b><br />
<b>हिरासां थे धृत राष्टर के पिसर -लगे फटने सीनों में कल्बो जिगर II 19 II </b><br />
<b>कि इतने में पांडू का बेटा उठा -उड़ाता फरेरा हनूमान का . </b><br />
<b>कमान उसने लेली ,कि तेरे पिसर -खड़े थे चलाने को तीरों तबर II 20 II </b><br />
<b>महीपत वो बोला ऋषिकेश से -कि अय लाफना रथ बढ़ा लीजिये . </b><br />
<b>चलें देखने वस्त में औज मौज -इधर अपनी फ़ौज ,उधर उनकी फ़ौज II 21 II </b><br />
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------<br />
सफा .7 -अल अमां =भयानक ,कल्बो जिगर =दिल कलेजा ,तीरों तबर = तीर कमान ,वस्त =बीच में ,लाफाना =अच्युत<br />
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------<br />
<b>मैं देखूं जरा ,वो जवां कौन है -जरीं कौन है ,पहलवां कौन है . </b><br />
<b>लड़ाई को आये हैं ,जो बे दिरंग -मुझे आज दर पेश है जिनसे जंग II 22 II </b><br />
<b>नजर उनकी सूरत पे कर लूँ जरा -जो आये हैं मरदे जंग आजमा . </b><br />
<b>ये मकसद है जिनका कि हो उनसे शाद -वो धृत राष्टर का पिसर कज निहाद II 23 II </b><br />
<b>तब संजय ने कहा - </b><br />
<b>गुडाकेश से जब ऋषिकेश ने -सुना ये तो रथ बढ़ाने लगे . </b><br />
<b>था उस रथ का रुतबा रथों में बड़ा -किया दौनों फौजों में लाकर खड़ा II 24 II </b><br />
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------<br />
सफा .8 -बे दिरंग =निडर ,जंग आजमा =योद्धा ,कज निहाद =दुर्बुद्धि<br />
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------<br />
<b>तो द्रोण और भीषम डटे थे वहां -जमे थे वहीँ राजगाने जहां . </b><br />
<b>कहा देख अर्जुन !खड़े सफ ब सफ -लड़ाई की खातिर किये सर ब कफ़ .II 25 II </b><br />
<b>अर्जुन की बेदिली </b><br />
<b>तब अर्जुन ने देखा ,खड़े हैं तमाम -चचे,दादे ,उस्ताद जी एहतराम . </b><br />
<b>कहीं बेटे ,पोते ,कहीं यार हैं -बिरादर हैं ,मामू हैं ,गमखार हैं .II 26 II </b><br />
<b>खुसर है कोई ,कोई दिलबंद है -की इक से लगा एक का पैबंद है . </b><br />
<b>जिगर से जिगर की लड़ाई है आज -की लड़ने को भाई से भाई है आज .II 27 II </b><br />
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------<br />
सफा. 9 -सर ब कफ़ =हथेली पर सर ,दिलबंद =सुहृद ,खुसर =ससुर<br />
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------<br />
<span class="Apple-style-span" style="color: red;">अर्जुन ने कहा -</span><br />
<b>हुआ दिल को अर्जुन के रंजो मलाल -कहा रहमो रिक्कत से होकर निढाल . </b><br />
<b>महाराज !ये क्या है दर पेश आज -कि लड़ने को है खैश से खैश आज .II 28 II </b><br />
<b>बदन में नहीं मेरे तबो तवां-दहन खुश्क है सूखती है जुबां. </b><br />
<b>मेरे रोंगटे भी खड़े हैं सभी -लगी है मुझे कपकपी थरथरी .II 29 II </b><br />
<b>चली मेरी हाथों से गांडीव अब -बदन जल रहा है मेरा सब का सब . </b><br />
<b>ये लो पाँव भी लड़खड़ाने लगे -मेरे सर को चक्कर से आने लगे .II 30 II </b><br />
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------<br />
सफा.10 -खैश=स्वजन ,ताबो तवां =शक्ति ,दहन खुश्क =गला सूखना<br />
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------<br />
<b>महाराज केशव मैं अब क्या कहूँ -कि आसार बद हैं ,बुरे हैं शगूँ. </b><br />
<b>ये कारे जबूं कर के क्या फायदा -अजीजों का खूँ कर के कुआ फायदा .II 31 II </b><br />
<b>मुझे खाहिशे फतहो नुसरत नहीं -मुझे शौके ऐशो हुकूमत नहीं . </b><br />
<b>मुझे बन्दे ताजे शही हेच है -ख़ुशी हेच है ,जिंदगी हेच है .II 32 II </b><br />
<b>तमन्ना थी जिनके लिए राज की -ख़ुशी जिन से थी इशरतो ताज की. </b><br />
<b>खड़े हैं वो तीरों कमां जोड़ कर -ज़रो माल जां सबसे मुंह मोड़ कर .II 33 II </b><br />
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------<br />
सफा.11 -कारे ज़बूँ =दुष्कार्य ,फतहो नुसरत =विजय ,हेच =तुच्छ .ताजे शही =राज मुकुट ,इशरत =सम्पदा<br />
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------<br />
<b>पिदर हैं सभी ,दादे उस्ताद भी -पिसर भी हैं ,और उनकी औलाद भी . </b><br />
<b>ये मामूँ,वो बीवी का भाई ,वो बाप -सभी में कराबत ,सभी में मिलाप .II 34 II </b><br />
<b>मुझे क़त्ल कर दें अगर बेदरेग -न फिर भी उठाऊंगा अपनों पे तेग . </b><br />
<b>मधूमार !क्या शै है दुनिया का राज -न लूँ इसतरह तीनों आलम का ताज .II 35 II </b><br />
<b>फ़ना हों जो धृष्ट राष्ट्र के पिसर -तो होगा ख़ुशी में दिल का गुजर . </b><br />
<b>ये ज़ालिम अगर हो भी जाएँ तबाह -न छोड़ेगा पीछा हमारा गुनाह .II 36 II </b><br />
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------<br />
सफा .12 -कराबत=निकट सम्बन्ध ,मधूमार =मधुसुदन<br />
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------<br />
<b>ये धृष्ट राष्ट्र के जो फरजंद हैं -हे माधव ,सब अपने जिगरबंद हैं . </b><br />
<b>अगर हम अजीजों को कर दें हलाक़-रहेंगे सदा गम से अंदोहनाक .II 37 II </b><br />
<b>समझ इनकी हरचंद गहना गयी -दिलों पे हवा ओ हवस छा गयी . </b><br />
<b>न समझें वो यारों से लड़ना खता -न अहसास हों गर काबिले फना .II 38 II </b><br />
<b>नहीं ,लेकिन ऐसे तो नादाँ हम -बचें पाप से क्यों न भगवान हम . </b><br />
<b>कि ज़ाहिर है गर खानदां हो तबाह -कहाँ इस से बढ़कर है कोई गुनाह .II 39 II </b><br />
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------<br />
सफा.13 -अंदोहनाक =व्यथित ,खता =अपराध ,फ़ना =नाश<br />
------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------<br />
<b>कबीला फ़ना गर कोई हो गया -कदीमी वो धर्म सब खो गया . </b><br />
<b>रहा धर्म पर जब न दारोमदार -अधर्म उस पे ग़ालिब हो अंजामकार .II 40 II </b><br />
<b>अधर्मी जो हो जाएँ सब मर्दोजन -बिगड़ जाये फिर औरतों का चलन . </b><br />
<b>रहें औरतें ही न जब पाकबाज़ -तो वर्णों में बाकी कहाँ इम्तियाज़ .II 41 II </b><br />
<b>जो दौनों ही खराबी मचाएं -वो और उनके कुनबे जहन्नुम में जाएँ . </b><br />
<b>बड़ों को न पिंड और पानी मिले -तनज्जुल उन्हें जावदानी मिले .II 42 II </b><br />
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------<br />
सफा.14 -पाकबाज= चरित्रवान ,इम्तियाज =भेद ,तनज्जुल =पतन ,जावदानी =सदा के लिए<br />
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------<br />
<b>कबीलों को गारत करे जो बशर -हों वर्ण उनके पापों से जेरोजबर . </b><br />
<b>वो जातों की रीतें मिटाते रहें -घरानों के दस्तूर जाते रहें .II 43 II </b><br />
<b>किसी खानदांजो हो धर्म नास-न रीतों की परवाह न रस्मों का पास . </b><br />
<b>तो भगवान हमने सुना है मुदाम -जहन्नुम के अन्दर है उनका मुकाम .II 44 II </b><br />
<b>सद अफसोस हम खोके अकेले सलीम -करने लगे हैं गुनाहे अजीम . </b><br />
<b>बहायेंगे अफसोस अपनों का खून -कि है बादशाही का सर में जूनून .II 45 II </b><br />
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------<br />
सफा.15 -जेरोजबर =विनष्ट ,अकेले सलीम =सुमति ,गुनाहे अजीम =महापाप<br />
------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------<br />
<b>ये बेहतर है ,धृत राष्टर के पिसर -उड़ा दें जो तलवार से मेरा सर . </b><br />
<b>न हथियार लेकर लडूँ उनके साथ -बचाने को अपने उठाऊँ न हाथ .II 47 II </b><br />
<b>संजय ने कहा - </b><br />
<b>ये कहते हुए हाले दिल नागहां-दिए फेंक अर्जुन ने तीरों कमां.</b><br />
<b>न रथ में खड़ा रह सका वो हजीं -जो दिल उसका बैठा तो बैठा वहीँ .II 47 II </b><br />
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------<br />
सफा .16 -हजीं=व्यथित<br />
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------<br />
<span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">पहिला अध्याय समाप्त </span><br />
<br />
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</div>बी. एन.शर्माhttp://www.blogger.com/profile/16218522898407806020noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5884056561588654324.post-22323345117126363112011-06-07T09:19:00.000-07:002011-06-07T09:19:58.173-07:00अध्यायों के नाम<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<b>गीता में कुल अठारह अध्याय हैं ,जिनमे 702 श्लोक है.इन सभी का उर्दू पद्यानुवाद क्रमशः प्रस्तुत किया जायेगा .सभी अध्यायों के संस्कृत और उर्दू नामों के साथ श्लोक संख्या दिए जा रहे हैं. </b><br />
<b>1 -अर्जुन विषाद योग . अर्जुन की बेदिली 47 </b><br />
<b>2 -सांख्य योग शगले इरफ़ान 72 </b><br />
<b>3 -कर्मयोग अहमीयते अमल 43 </b><br />
<b>4 -ज्ञान कर्म सन्यास योग आरिफाना तरके अमल 42 </b><br />
<b>5 -कर्म सन्यास तर्के अमल 29 </b><br />
<b>6 -आत्म संयम योग तज़किअ ये नफ्स 47 </b><br />
<b>7 -ज्ञान विज्ञानं इल्मे मुआरिफत 30 </b><br />
<b>8 -अक्षर ब्रह्म हस्तीये लाजवाल 28 </b><br />
<b>9 -राजविद्या राजगुह्य सुल्तानुल उलूम 34 </b><br />
<b>10 -विभूति योग जलाले यज्दानी 42 </b><br />
<b>11 -विश्वरूप दर्शन दीदारे जाते मुतलिक 55 </b><br />
<b>12 -भक्ति योग तरीकते इश्क 20 </b><br />
<b>13 -क्षेत्र क्षेत्र विभाग इम्तियाजे जिस्म ओ जां 34 </b><br />
<b>14 -गुण त्रयविभाग तकसीमे सिफ़ाते सहगाना 27 </b><br />
<b>15 -पुरुषोतम जाते बरतर 20 </b><br />
<b>16 -देवासुर संपत्ति सिफ़ाते मलकूती ओ शैतानी 24 </b><br />
<b>17 -श्रद्धा त्रय विभाग एतकाते सहगाना 28 </b><br />
<b>18 -मोक्ष सन्यास तर्के निजात 78 </b><br />
<b>--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------</b><br />
<b>कुल श्लोकों की संख्या - 702 </b><br />
<b>--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------</b><br />
<b>गीता में संस्कृत में जितने श्लोक है ,उतने ही "गीता सरल "में उर्दू पद्य है,अर्थात हरेक श्लोक का उर्दू पद्यानुवाद दिया जायेगा .और वही नंबर दिए जायेंगे जो संस्कृत के श्लोकों के नंबर हैं .इस से अर्थ समझनेमें आसानी होगी </b><br />
<div><br />
</div></div>बी. एन.शर्माhttp://www.blogger.com/profile/16218522898407806020noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5884056561588654324.post-22674687881978146502011-04-25T00:37:00.000-07:002011-04-28T06:48:46.754-07:00एक शंका समाधान !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<b>मैं जब भी गीता पढ़ता था ,तो गीता के 18 वें अध्याय के 66 वें श्लोक का अर्थ और उसका आशय नहीं समझ पाता था .क्योंकि पारंपरिक रूप से किये गए अर्थ से इस श्लोक को नहीं समझा जा सकता है ,ऐसा मेरा मंतव्य है .श्लोक इस प्रकार है- </b><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">"सर्व धर्मान परित्त्यज्य मामेकं शरणम व्रज , </span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">अहम् त्वा सर्व पापेभ्यो मोक्ष्यस्यामी मा शुचि. गीता -18 :66 </span><br />
इस श्लोक में <span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">"सर्व धर्मान " </span><b>शब्द प्रयुक्त किया गया है ,जो "धर्म "शब्द का बहुवचन है .अर्थात सभी धर्म .इसका अर्थ अक्सर यही किया जाता है- </b><br />
<span class="Apple-style-span" style="color: red;">"कृष्ण कहते हैं ,हे अर्जुन तुम सभी धर्मों को त्याग कर केवल मेरी शरण में आजाओ ,मैं तुझे सभी पापों से छुड़ा लूंगा ,तुम चिंता न करो " </span><br />
<b>सब जानते हैं की ,गीता का काल पांच हजार साल से पूर्व का है .उस समय कोई दूसरा धर्म नहीं था .केवल वैदिक धर्म ही था .तो सभी धर्मो को त्याग करने की बात क्यों कही गयी है ? </b><br />
<b>असल में गीता के समय पाणिनि की व्याकारण नहीं थी .उस समय इन्द्र व्याकरण थी .उसके अनुसार गीता के इस श्लोक में "सव धर्मान "शब्द में </b><br />
<b>"अ लोपी "समास है .यानि" सर्व धर्मान "की जगह "सर्व अधर्मान "पढ़ना चाहिए .इस तरह अर्थ होगा "हे अर्जुन तुम सभी अधर्मों का त्याग करके ईश्वर की शरण में जाओ .जो अगले श्लोक में साफ होता है . </b><br />
<b>इसीलिए जब मैंने इस श्लोक का अपनी "गीता सरल "में अनुवाद किया तो इस तरह किया है - </b><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">"तू सब पाप छोड़ ,और ले मेरी राह </span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तू मांग आके दामन में मेरी पनाह </span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तेरा पाप सब दूर हो जायेगा </span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">न गमगीन हो,मसरूर</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"> </span> हो जायेगा . </span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">-गीता सरल -18 :66 </span><br />
<span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">मुझे विश्वास है की मेरे इस अनुवाद से लोगों की शंका का समाधान हो गया होगा . </span><br />
<br />
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</div>बी. एन.शर्माhttp://www.blogger.com/profile/16218522898407806020noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-5884056561588654324.post-67344546371857985502011-04-24T07:47:00.000-07:002011-04-24T07:47:01.856-07:00गीता के प्रमुख विषय !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<b>वैसे तो गीता के सभी विषय महत्वपूर्ण हैं .और सभी के लिए सामान रूप से उपयोगी है.क्योंकि गीता का उपदेश किसी विशेष व्यक्ति ,धर्म ,या देश के लिए नहीं है .गीता का उपदेश मानव मात्र को संबोधित कर के दिया गया है .फिर भी गीता में कुछ ऐसे विचार प्रस्तुत किये गए हैं ,जिनमे कुछ तो दूसरे धर्मों के सामान हैं ,और कुछ उनसे अलग हैं .यही गीता की विशेषता है. यहाँ पर कुछ ऐसे विषय लिए जा रहे हैं ,जिनको पढ़कर लोग एक नजर में गीता शिक्षा के बारे में जान सकेंगे . </b><br />
<b>यहाँ पर जो भी हवाले दिए गए हैं ,वह "गीता सरल "से लिए गए हैं .इसमे अध्याय और श्लोकों के वही नंबर दिए गए हैं ,जो गीता की किसी भी भाषा के अनुवाद में मिलेगी .यदि आप "गीता सरल "पढ़ते समय गीता का हिंदी या अंगरेजी अनुवाद साथ में रखेंगे तो आप को और आनंद आएगा .अब मुख्य विषय संक्षिप्त में दिए जा रहे हैं </b>-<br />
<span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">1 -ईश्वर कैसा है </span><br />
<b>"ये सूरज की ताबिश तेरा नूर है -जहां जिसके जलवों से मामूर है . </b><br />
<b>उसी के हैं ,सब दस्तो पा चार सू -उसी का रुख रूनूमा चार सू . </b><br />
<b>उसी की नज़र ,कान ,सिर,हर तरफ -मुहीते जहाँ सर बसर हर तरफ. </b><br />
<b>वो है बे ताल्लुक मगर सब का रब -गुनाह से बरी और गुन उसमे सब .</b><br />
<br />
<span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">2 -प्रकृति या नेचर </span><br />
<b>"ये मिट्टी ,ये पानी ,ये आग और हवा -ये आकाश दुनिया पे छाया हुआ . </b><br />
<b>ये दानिश ,ये दिल ,ये ख्याल ये खुदी -है इन आठ हिस्सों में फितरत मेरी . </b><br />
<b>वो फितरत है आली ,बने जो हयात -उसी से तो कायम है कुल कायनात . </b><br />
<b>वो है मिस्ले जां अहले जां में निहां -वो अव्वल ,वो आखिर ,वो है दरमियाँ .</b><br />
<span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">3 -आवागमन </span><br />
"<b>बदलता है इन्सां लिबासे कुहन -नया जामा करता है ,फिर जैब तन .</b><br />
<b>उसी तरह कालिब बदलती है रूह -नायर भेस में फिर निकलती है रूह .</b><br />
<b>कोई आत्मा से तअज्जुब में आये -कोई बात हैरत से उसकी सुनाये .</b><br />
<b>कोई बात सुन सुन के हैरान है -कोई सुन सुनाकर के अनजान है "गीता सरल -2 :29</b><br />
<span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">4 -बहुदेववाद </span><br />
<b>"हवा ओ हवस से जो मजबूर हैं -हुए ज्ञान से इनके दिल दूर हैं.</b><br />
<b>निकालें तबीयत से पूजा की रीत-करें दूसरे देवताओं से पिरीत .</b><br />
<b>मनाएं जो पितरों को ,पितरों को जाएँ -जो भूतों को पूजें ,भूतों को पायें .</b><br />
<b>सनम के पुजारी सनम को मिलें -हमारे परस्तार हम से मिलें .</b><br />
<br />
<span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">5 -दैवीय गुण</span><br />
"<b>अहिंसा ,सदाकत ,करम ,तर्के ऐश -न फितरत में चंचलपनाऔर न तैश .</b><br />
<b>दिले बे हवस ,और तबीयत नरम -न दिल तंग होना ,निगाहों में शर्म .</b><br />
<b>जो इन नेक वस्लों पे मायल है ,वो -तो इन्सां फरिश्तानुमा कुल है वो .गीता सरल -16 :1 </b>-2<br />
<span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">6 -आसुरी स्वभाव </span><br />
<b>"वो कहते हैं ,संसार झूठा है सब -न है इसकी बुनियाद न कोई इसका रब .</b><br />
<b>करें मर्दों जन मिलके जब मस्तियाँ -उन्हीं मस्तियों से हों सब हस्तियाँ .</b><br />
<b>जो हैं इन ख्यालों के बदकुन बशर -वो खूंखार ,बेरूह कोताह नज़र -</b><br />
<b>उदू बनके दुनियां में आते रहें -जहां में तबाही मचाते रहें.</b><br />
<b>उमीदों के फंदों में अटके हुए -गज़ब और शहवत में लटके हुए .</b><br />
<b>बदी से वो दौलत कमाते रहें -और ऐशो तरब में लगाते रहें. </b><br />
<b>जो इन्सां चले शाश्तर के खिलाफ -हवस हो ताबा करे इन्हाराफ .</b><br />
<b>मिले उसको राहत और न ओजे कमाल-रहे दूर उस से मुकामे विसाल .गीता सरल -16 :22 </b><br />
<br />
<span class="Apple-style-span" style="color: red;"><b>आप सब के समक्ष गीता के विषयों की कुछ झलकी देने का प्रयास किया है .क्योंकि कुछ लोगों की धरना है की गीता में केवल युद्ध संबधी बातें हैं .या गीता बुढ़ापे में पढ़ने की किताब है .या इसे पढ़ने से लोग बैरागी हो जाते हैं .शायद ऐसे लोगों का भ्रम दूर हो जायेगा .</b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="color: red;"><b>गीता का एक श्लोक अक्सर प्रयुक्त किया जाता है ,जिसके अर्थ में मुझे विसंगति प्रतीत लगी ,इसलिए अगले लेख में उसका तर्कपूर्ण समाधान करने का प्रयत्न करूँगा .अल्प बुद्धि होने कारण मुझे क्षमा करें </b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="color: red;"><b>यदि लोग चाहेंगे तो हर दुसरे तीसरे दिन एक पृष्ठ दिया जा सकता , अथवा एक एक अध्याय प्रकाशित किया जायेगा ..</b></span><br />
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</div>बी. एन.शर्माhttp://www.blogger.com/profile/16218522898407806020noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5884056561588654324.post-25868043536969060842011-04-23T03:38:00.001-07:002011-04-23T08:17:38.156-07:00प्रस्तावना<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<b>श्री मद्भगवद्गीता विश्व के धार्मिक ग्रथों में विशेष स्थान रखती है .इसका विश्व की लगभग सभी भाषाओँ में अनुवाद हो चुका है .वैसे तो गीता का समय पाच हजार साल से अधिक पहिले का माना जाता है ,परन्तु गीता में जो ज्ञान दिया गया है ,वह अनादि और सनातन है .गीता एक स्वतन्त्र पुस्तक नहीं है ,परन्तु महाभारत का एक भाग है गीता हिन्दुओं के लिए धार्मिक ग्रन्थ है ,लेकिन हिन्दुओं के धर्म ग्रन्थ वेद ही हैं .</b><br />
<b>वेद अपौरुषेय और अनादि हैं .गीता का महत्त्व इसी बात से पता चलता है की आज भी अदालतों में गीता पर हाथ रखवा कर शपथ लेने की प्रथा प्रचलित है ,जो अंगरेजों के समय से चली आरही है .</b><br />
<b>यह बड़ी दुःख की बात है की आज गीता की कसम तो खाते हैं ,लेकिन उसे ध्यान से पढ़ने ,समझने,और उसके उपदेशों का पालन करने में आलस्य करते हैं .इसके कारण लोगों में गीता के बारे में कुछ भ्रांतियां पैदा हो गयी है ,उनका निराकरण करना जरूरी है ,जैसे -</b><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">1 -गीता हमें क्या बताती है ?</span><br />
<b>गीता हमें बताती है की मनुष्य का जीवन क्या है ,आत्मा क्या है ,प्रकृति क्या है ,वास्तविक भक्ति कैसी होना चाहिए ,हम किस की उपासना करें ,निष्काम कर्म का क्या तात्पर्य है ,हमारा दूसरों के प्रति कैसा बर्ताव हो ,हमें क्या खाना चाहिए ,ईश्वर की कृपा कैसे प्राप्त हो सकती है ,धर्म की रक्षा करने हेतु क्या करें ,इत्यादि-</b><br />
<span class="Apple-style-span" style="color: red;">(यह विस्तार "से गीता के प्रमुख विषय "में दिए जायेंगे )</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">2 -गीता का रचयिता कौन है ?</span><br />
<b>कुछ लोग भगवान कृष्ण को गीता का लेखक या रचयिता मान लेते हैं .यद्यपि गीता के उपदेश कृष्ण के मुख से कहलाये गए हैं ,लेकिन गीता का ज्ञान कृष्ण से बहुत समय पूर्व भी मौजूद था ,कृष्ण ने गुरुकुल में जो ज्ञान वेदों और उपनिषदों के द्वारा प्राप्त किया था ,वाही उन्होंने अपने प्रिय मित्र अर्जुन को दिया था गीता वास्तव में उपनिषदों का सारांश है .खा गया है की -</b><br />
<span class="Apple-style-span" style="color: red; font-size: large;">"सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपाल नन्दनः ,पार्थो वत्स सुधीर्भोक्तः दुग्धं गीतामृतं महत "</span><br />
<b>अर्थात ,उपनिषद् गायें हैं ,दोहने वाले गोपाल कृष्ण है ,दूध पीनेवाला बछड़ा अर्जुन है ,और अमृत रूपी दूध गीता है .</b><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">3 -क्या सारी गीता युद्ध के समय कही होगी ?</span><br />
गीता का प्रारंभ कुरुक्षेत्र के युद्ध की तय्यारी से होता है ,उस समय कौरवों और पांडवों की सेनाये आमने सामने थीं ,अर्जुन युद्ध करने में झिझक रहा था .उस थोड़े से समय में गीता के 700 श्लोकों को सुनाने का समय कहाँ होगा ?वास्तव में कृष्ण ने अर्जुन को समय समय पर जो जो उपदेश दिए थे उसका निचोड़ युद्ध भूमि दिया था .जिसे बाद में महर्षि व्यास ने एकत्रित करके महाभारत में शामिल कर लिया था<br />
कृष्ण ने अर्जुन को उस समय यही कहा था -<br />
<b>"बताता हूँ मैं तुझको ,अय पाकबाज़ ,ये ज्ञानों का ज्ञान और राजों का राज़</b><br />
<b>तवज्जो से इस राज़ पर गौर कर ,अमल इस पे तू चाहे जिस तौर कर "गीता सरल 18 :63</b><br />
<b>"सुन अब मुझसे पिन्हाँ ये एक और बात ,बड़े राज़ की काबिले गौर बात</b><br />
<b>कि अर्जुन तू प्याता है ,महबूब है ,तेरा फायदा मेरा मतलूब है गीता सरल 18 :63 -64</b><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">4 -क्या कृष्ण अपनी पूजा कराना चाहते थे ?</span><br />
गीता में दो प्रकार कि शैलियाँ प्रयुक्त कि गयीं हैं ,एक में कृष्ण इस प्रकार से कहते जैसे वह ईश्वर कि तरफ से वाही बातें कर रहे हैं जो वेदों में कही गयी हैं .दूसरे प्रकार में कृष्ण स्वयं अपनी तरफ से अर्जुन को उपदेश देते हैं .यद्यपि दौनों का आशय एक ही है ,परन्तु हमें इसका अंतर समझाने कि जरुरत है .कृष्ण ने स्पष्ट कहा है -<br />
"<b>सुन अर्जुन खुदा है !खुदा हर कहीं</b><br />
<b>खुदाई के दिल में ,खुदा है मकीं</b><br />
<b>वो सब हस्तियों को घुमाता रहे ,वो माया से अपनी चलाता रहे</b><br />
<b>उसी कि इबादत में हस्ती लगा ,पनाह अपनी तू बस उसी को बना .</b><br />
<b>तू रहमत में उसकी समां जायेगा ,सुकूनो बका उस से पा जायेगा गीता सरल 18 :61 -62</b><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">5 -गीता का सन्देश क्या है ?</span><br />
गीता हमें हाथ पर हाथ रख कर केवल नाम जपने ,और किसी दैवी सहायता कि आशा करते रहने कीशिक्षा नहीं देती है ,बल्कि स्वयं धर्म की रक्षा करने और दुष्टों का नाश करने की प्रेरणा देती है.और हमें सदैव बिना किसी लोभ के डर के अपना कर्तव्य करने का आदेश देती है -<br />
<b>"तुझे काम करना है !ओ मरदे कार ,नहीं उसके फल पर तेरा इख़्तियार</b><br />
<b>किये जा अमल ,न ढूँढ़ उसका फल ,अमल कर अमल ,और न हो बेअमल .गीता सरल -2 :47</b><br />
<br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">6 -क्षमा याचना</span><br />
सर्व प्रथम मैं आप सभी विद्वान् धर्म प्रेमी और इस ब्लॉग के साथ मेरे दूसे ब्लॉग" भंडाफोडू "नियमत पड़ने वाले पाठको को सादर प्रणाम करता हूँ और उन से आशीर्वाद चाहता हूँ , कि मुझे गीता के इस अनुवाद को लोगों के सामने प्रस्तुत करने कि शक्ति प्रदान करे .और हो सकता है मुझ से कुछ त्रुटियाँ भी हो जाएँ तू उसे सूचित करने कि कृपा अवश्य करें ,ताकि सुधार हो सके .मैं कोई विद्वान् नहीं हूँ ,केवल धर्म के प्रति लगाव होने के कारण यह दुस्साहस किया है .जिस तरह ने एक गिलहरी ने सेतुबंध के समय छोटे छोटे कंकर डालकर अपना योगगन दिया था ,और भगवान राम से उसे स्वीकार करके गिलहरी को कृताथ किया था ,आप भी मेरे इस क्षुद्र से प्रयास को स्वी कर करेंगे ऐसी मुझे अपेक्षा है .<br />
जैसे जैसे गीता के अंश टाइप होते जायेंगे प्रकाशित कर दिए जायेंगे .आप धैर्य बनाये रखिये<br />
"<b>अलामस्ती विस्तरेण बुद्धिमद शिरोमणिषु "</b><br />
<br />
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</div>बी. एन.शर्माhttp://www.blogger.com/profile/16218522898407806020noreply@blogger.com6