Monday, June 20, 2011

चौथा अध्याय .ज्ञानंकर्म सन्यास


 - ज्ञानकर्म संन्यास -आरिफाना तर्केअमल -

भगवान ने फरमाया - 
यही योग जिसको नहीं है फ़ना -विवस्वान को मैंने पहिले दिया . 
मनू ने लिया फिर विवस्वान से -मनू से लिया इसको इक्ष्वाक ने .II 1 II 
यही नस्ल दर नस्ल आया है योग -यही राज ऋषियों ने पाया है योग . 
मगर अब है दौरे जहाँ में ये हाल -कि इस योग को आगया है जवाल.II 2 II 
यही योग का आज राजे -कदीम -बताया है मैंने तुझे अय नदीम. 
किया तुझ पे सर्रे ख़फ़ी आशकार -कि तू भक्त मेरा है ,और दोस्तदार .II 3 II 
अर्जुन का सवाल -
कहा सुनके अर्जुन ने सुनिए हुजूर -जहाँ में हुआ आपका अब जहूर .
विवस्वान पहिले ही मौजूद था -तो योग आपसे उसने क्योंकर लिया .II 4 II 
भगवान ने कहा -
सुन अर्जुन हुए हैं यहाँ बार बार -तुम्हारे हमारे जनम बेशुमार .
मुझे हाल इन सबका मालूम है -तेरा हाफिजा इन से महरूम है.II 5 II 
मेरी ज़ात है मालिके कायनात -न इसको विलादत न इसको ममात .
जो काम अपनी फितरत को लाता हूँ मैं -ज़हूर अपनी माया से पाता हूँ मैं .II 6 II 

तनज्जुल पे जिस वक्त आता है धर्म -अधर्म आके करता है बाज़ार गर्म .
ये अंधेर जब देख पाता हूँ मैं -तो इन्सां की सूरत में आता हूँ मैं .II 7 II 
भलों को बुरों से बचाता हूँ मैं-बुरों को जहाँ से मिटाता हूँ मैं .
जड़ें धर्म की फिर जमाता हूँ मैं -अयाँ होके युग युग में आता हूँ मैं .II8 II 
जो अर्जुन समझ ले इन इसरार को -खुदायी जनम और किरदार को .
वो मर कर मेरे वस्ल से शाद है -तनासुख के चक्कर से आज़ाद है.II 9 II 
कई मह्व मुझ में मुझी में मुकीम -तअल्लुक से आजाद बे रंजो बीम , 
सदा ज्ञान ,ताप से करें पाक दिल -मेरी जाते आली में जाते हैं मिल.II10 II 
मेरे पास जिस राह से लोग आयें -वो राजी हों ,अर्जुन मुराद अपनी पायें , 
इधर से चलें ,या उधर से चलें -मेरे सब हैं रस्ते जिधर से चलें .II 11 II 
वो कर्मों के फल के तालिब यहाँ -करें देवताओं की कुर्बानियां , 
कि फिल्फौर दुनियां में इन्सान की-मुरादें हों कर्मों से हासिल सभी .II 12 II 
बनाये हैं मैंने जो ये वर्ण चार -कि कर्मों ,गुणों की तकसीमे कार. 
मैं खालिक हूँ इनका ,मगर बिल्जरुर -अमल से बरी हूँ ,तगय्युर से दूर .II 13 II 
न कर्मों का होता है मुझ पर असर-न कर्मों के फल पर है मेरी नजर . 
जो ऐसा समझता मुझे पाक है -वो कर्मों के बंधन से बेबाक है .II 14 II 
सुलफ के बुजुर्गों से पाकर ये बात -किये काम दुनिया में बहरे निज़ात. 
इसी तरह तू भी किये जा अमल-बुजुर्गों के नक़्शे कदम पे ही चल.II 15 II
सुन अब मुझसे कर्मों अकर्मों का राज़ -न दाना भी जिनमे करें इम्तियाज़ . 
बताता हूँ कर्मों का रस्ता तुझे -जो आज़ाद कार देगा संसार से .II 16 II 
ये लाजिम है कर्मों को पहचान तू -बुरे कर्म जो हैं उन्हें जान तू. 
अकर्मों से कर्मों को करले जुदा -कि गहरा है कर्मों का रिश्ता बड़ा .II 17 II 
वो इन्सां जो कर्मों में देखे अकर्म -अकर्म उसको आये नज़र ऐन कर्म . 
वो लोगों में दाना है और होशियार -वो योगी है ,गो सब करे कारोबार .II 18 II 
न खाहिश कि हो काम में जिसके लाग -जला दे अमल जिसके इर्फाँ की आग . 
अमल में समर से जो है बेनियाज़ -है दाना वही पेशे दानाए राज़ .II 19 II 
अमल में नहीं जिसको फल से लगन -दिले मुतमइन में रहे जो मगन . 
सहारा किसी का न ले एक पल -अमल उसका है ,ऐन तर्के अमल .II 20 II 
उमीदो हवस से न है कुछ लगन -जो काबू है मन तो कब्जे में तन . 
जो तन काम में ,मन रहे ध्यान में -तो पल भी न गुजरेगी असियान में .II 21 II 
जो मिल जाये लेकर वही शाद है-न हासिद न पबंडे इज्दाद है ,
बराबर है जिसके लिए जीतहार -अमल में अमल का नहीं वो शिकार .II 22 II 
तअल्लुक से जो पाक आज़ाद है -जो इरफां में कायम है दिलशाद है ,
अमल यग की खातिर करे जो सदा -तो कर्म उसके होते हैं सरे फ़ना .ई 23 II 
को किरिया में देखे खुदा ही खुदा -है अगनी खुदा ,और हवि भी खुदा ,
हवं और हवं करने वाला वही-खुदा से जुदा वो न होगा कभी .II 24 II 


कई कर्मयोगी हैं इन से अलग -वो बस देवताओं को देते हैं यग. 
जलाकर कई आतशे किब्रिया -करें यग को इस यग के अन्दर फना .II 25 II 
कई जब्ते दिल से जलाएं मुदाम -समाअत .हिसें,दूसरी भी तमाम . 
कई हिस की आतिश में कर दें फना -सब अश्याए -महसूस मिस्ले सिदा.II 26 II 
कई जब्त से योग ऐसा कमायें -दिलो जां में इरफां की आतिश जलाएं , 
हों अफआले हिस ,या हों अफआले दम -इसी ज्ञान अगनी में कर दें भसम .II 27 II 
कई धन से और तप से करते हैं यग -कई योग और जप से करते हैं यग ,
कई लोग करते हैं यग ज्ञान से -वो अहद अपना पूरा करें जान से.II 28 II 
कई हिसे -दम में दिखाएँ कमाल-की यग उनका है रोकना दम की चाल,
वो दम अपने करते हैं कुरबान यूं -दुरूं में बरूं और बरूं में दुरूं.II 29 II 
कई रखके ज़ब्ते गिजाये बदन -करें प्रान पर प्रान अपने हवन,
उन्हें यग के इसरार मालूम हैं -वो यग के सबब पाक मासूम हैं .II 30 II 
वो अमरित के लुकमे जो यग से बचें -उन्हें खानेवाले खुदा में रचें,
हे अर्जुन ,वो महरूम छोड़े जो यग -न ये यग ही उसका ,न अगला ही यग .II 31 II 
बहुत यग के आमालो दस्तूर हैं -जो ब्रह्म ,यानी वेदों में मज़कूर हैं ,
की ये सारे कर्मों की औलाद हैं -जो ऐसा समझ ले आज़ाद है .II 32 II 
करे साजो सामां से इन्सान यग -मगर सबसे बेहतर समझ ज्ञान यग ,
सुन अर्जुन ,अगर तुझको पहचान है -की हर कर्म की इन्तहा ज्ञान है.II 33 II 
जो ज्ञानी हैं ,तू उनकी ताजीम कर-हुसूल उनसे इरफांकी तालीम कर . 
समझ इनसे सबकुछ ब इज्जो नियाज़ -तू कर इनकी सेवा ,तू सीख इनसे राज़.II 34 II 
जो अर्जुन मिले ज्ञान उलझन हो दूर -तो हो इस हकीकत का तुझ पे ज़हूर , 
कि सारा जहाँ है तेरी ज़ात में -तरी जात यानि मेरी जात में .II 35 II 
जो फ़ासिक है तू ,या गुनहगार है -गुनहगार बन्दों का सरदार है , 
तो फिर ज्ञान नैय्या पे हो जा सवार -गुनाहों के सागर से कर देगी पार .II 36 II 
सुन अर्जुन जो अम्बारे खाशाक है-लगे आग इसमे तो सब खाक है ,
यूँही ज्ञान अगनी से जाते हैं जल -बुरे हों अमल या भले हों अमल .II 37 II 
नहीं शै जहां में कोई ज्ञान सी -करे पाक फितरत जी इन्सान की,
अगर पुख्तगी योग में पायेगा -तो खुद्ज्ञान भी उसका हो जायेगा .II 38 II 
वो ज्ञानी है ,जिसको हो पुख्ता यकीं -हवास अपने रक्खे जो जेरे नगीं,
उसे ज्ञान हासिल हो अन्जमाकार -वो पाए खुदाई -सुकूनो करार .II 39 II 
वो जाहिल ,नहीं जिस का दिल पे यकीं-तजबजब से पहुंचे फ़ना के करीं ,
रहे डगमगाता न हो शादमां-ये दुनिया है उसकी न अगला जहां .II 40 II 
किया योग से जिसने तर्के अमल -कटे ज्ञान से जिसके वहमो खलल .
वही,आतमा का जिसे ज्ञान है -कहाँ उसको कर्मों से नुकसान है.II 41 II 
जहालत से पैदा हुए हैं जो शक -मिटा ज्ञान की तेग से यक बयक ,
उठ अय भारत ,और छोड़ सब वहम ए हाम-तू रख योग में दिल को कायम मुदाम .II 42II


- चौथा अध्याय समाप्त -
























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