Wednesday, June 22, 2011

पांचवां अध्याय :कर्मसंयास योग


-   कर्मसंयास -तर्के अमल 

अर्जुन ने कहा - 
कभी कर्मयोग आप अच्छा बताएं -कभी कर्म संन्यास के गुन गिनाएं , 
है भगवान कौन इनमे मरगूबतर -अमल है ,कि तर्के अमल खूबतर .II 1 II 
भगवान का जवाब - 
कही सुन के भगवान ने फिर ये बात -है तर्क ,और अमल दौनों राहे निजात , 
फजीलत में है लेकिन बढ़कर अमल -कि तर्के अमल से है बेहतर अमल.II 2 II 
सदा संनियासी उसे जानिये -हो नफ़रत किसी से न रगबत जिसे , 
मुकय्यद न पाबन्दे इज्दाद है -सुन अर्जुन वही मर्दे-आजाद है.II 3 II 
वो हैं तिफ्ले नादाँ जहालत में गर्क -जो संन्यास और योग में पायें फर्क , 
जो दौनों से इक में भी कामिल हुआ -तो फल उसको दौनों का हासिल हुआ. II 4 II 
तुम्हें सांख्य से जो मिलेगा मुकाम -वही योग से पायेगा लाकलाम . 
जरा देख रखना ,अगर आँख है -वही योग है और वही सांख है .II 5 II 
रहे -योग से जो किनारा करे -तो मुश्किल है संन्यास पाना उसे , 
मुनी ,योग ही में जो कामिल हुआ -विसाले -खुदा उसको हासिल हुआ .II 6 II 
जो सरशार हैं योग में मुस्तकिल -हवास उनके बस में हैं ,वो साफ़दिल,
जिसे जान अपनी सी हर जान है -कहाँ उसको कर्मों से नुकसान है .II 7 II 
हकीकत का है जिसको इल्मो -यकीं -समझता है 'मैं कुछ करता नहीं ,
सुने, देखे ,छूए ,कभी सूँघ ले -वो खाए ,फिरे ,साँस ले ,ऊंघ ले .II 8 II 
वो दे ,और ले ,और बोले कभी -कभी आंख मूंदे तो खोले कभी ,
मगर वो हमेशा ये कर ले कयास -कि 'महसूस की सैर देखें हवास .II 9 II 
रहे बे तअल्लुक करे जब अमल -खुदा ही की खातिर करे सब अमल ,
खता से हमेशा रहेगा बरी-कमल के न पत्ते पे ठहरे तरी .II 10 II 
जो योगी है करते हैं निष्काम काम -नहीं कम में कुछ लगावट का नाम ,
लगाएं वो तन ,मन ,खिरद और हवास -कि दिल की सफाई से हों रूशनास.II 11 II 
जो योगी है ,सरशार छोड़ेगा फल -सुकूने -अबद लायें उसके अमल .
जो योगी नहीं ,वो हवस का फकीर -रहे फल की खाहिश में हरदम असीर .II 12 II 
ये नौ दर की इक राजधानी है तन -रहे चैन से जिसमे शाहे बदन , 
करे खुद न ,कोई औरों से काम -करे तर्क एमाल दिल से मुदाम .II 13 II 
वो मालिक ,अमल और न आमिल बनाए -न कर्मों को कर्मों के फल से मिलाये , 
ये माया की हैं कार फरमाइयां -ये मया ही करती है सबकुछ अयाँ.II 14 II 
न लेगा किसी से भी परमात्मा -किसी की निकोई किसी की खता , 
जहालत है इरफां पे छाई हुई -तो दुनिया है चक्कर में आई हुई .II 15 II 
मगर जिनको हासिल है इरफां का नूर -करे ज्ञान उनकी जहालत को दूर ,
कि सूरज हो जब ज्ञान का जू फिशां-तो परमात्मा की हो सूरत अयाँ .II 16 II 
जो दें रूह और अक्ल ,इसमे लगा -उसी में हों कायम ,उसी पर फ़िदा ,
पूंछ जाये उस तक तो वापिस न आयें -करे ज्ञान दूर उनकी सारी खताएं .II 17 II 
जो ज्ञानी है ,यकसां नजर उसको आय -वो हाथी हो, कुत्ता हो ,या कोई गाय ,
वो हो बिरहमन आलिमो बुर्दबार -कि चंडाल ,नापाक मुरदार ख्वार .II 18 II 
मुसावत में दिल लगाए हुए -जमम पर वो काबू है पाए हुए , 
वो बेऐब ओ यकसां जो जाते खुदा -रहे जात में उसकी कायम सदा .II 19 II 
वो आरिफ खुदा में रहे इस्तवार-न उलझन उसे हो ,न दिल बेक़रार , 
मुसर्रत जो पाए तो शादाँ न हो -मुज़र्रत जो पहुंचे ,परेशां न हो .II 20 II 
न अश्याये जाहिर से उसको लगन -है आनंद से आत्मा में मगन , 
जिसे ब्रह्मयोग से ही सरोकार है -दवामी मुसर्रत में सरशार है. II 21 II 
तअल्ल्लुक से पैदा जो होता है सुख -उसी से नुमायाँ हो आखिर में दुख,
जो सुख का भी आगाज़ो अंजाम है -तो दाना कहाँ उस से खुशकाम है .II 22 II 
न छोड़ा अभी जिसने तन का कफस -मर कर लिए ज़ेर तैशो हवस ,
असीरे बदन रह के ,आजाद है -तो इन्सां वो योगी है दिलशाद है .II 23 II 
वो योगी रहे जिसके दिल में सुरूर -मुसर्रत हो मन में तो सीने में नूर ,
समझ लीजिये हक़ से वासिल उसे -कि हो ब्रह्मनिर्वाण हासिल उसे .II 24 II
ऋषि,मिट गए जिनके जुर्मो कुसूर -जिन्हें खुद पे काबू ,दुई से जो दूर ,
जो सबकी भलाई के खाहाँ रहें -मिले ब्रह्म निर्वाण आखिर उन्हें .II 25 II 
न गुस्सा है जिनमे न रंगे हवस -ख्यालो -तबीअत पे है जिनका बस ,
मिला आत्मा का जिन्हें ज्ञान है -उन्हें हर तरफ ब्रह्म निर्वान है .II 26 II 
मुनि जो न महसूस से दिल लगायें -मियाने -दो अब्रू नजर को जमायें ,
बुरूं और दरूँ के बराबर हों दम -मसावी चले नाक से जेरो बम .II 27 II 
हवासो -दिलो अक्ल कर ले जो राम -तलाशे -निजात ,उसका दिन रात काम,
न डर है ,न गुस्सा ,न लालच कभी -निजात उस मुनी को मिले बिल यकीं .II 28 II 
मुझे शाहे अर्जो-समां जो कहे -जो समझे है यग,तप,मेरे ही लिए 
जो मने मुझे खल्क का गमगुसार -उसी को मिलेगा सुकूनो करार .II 29 


   -पांचवां अध्याय समाप्त -

















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