Sunday, April 24, 2011

गीता के प्रमुख विषय !


वैसे तो गीता के सभी विषय महत्वपूर्ण हैं .और सभी के लिए सामान रूप से उपयोगी है.क्योंकि गीता का उपदेश किसी विशेष व्यक्ति ,धर्म ,या देश के लिए नहीं है .गीता का उपदेश मानव मात्र को संबोधित कर के दिया गया है .फिर भी गीता में कुछ ऐसे विचार प्रस्तुत किये गए हैं ,जिनमे कुछ तो दूसरे धर्मों के सामान हैं ,और कुछ उनसे अलग हैं .यही गीता की विशेषता है. यहाँ पर कुछ ऐसे विषय लिए जा रहे हैं ,जिनको पढ़कर लोग एक नजर में गीता शिक्षा के बारे में जान सकेंगे . 
यहाँ पर जो भी हवाले दिए गए हैं ,वह "गीता सरल "से लिए गए हैं .इसमे अध्याय और श्लोकों के वही नंबर दिए गए हैं ,जो गीता की किसी भी भाषा के अनुवाद में मिलेगी .यदि आप "गीता सरल "पढ़ते समय गीता का हिंदी या अंगरेजी अनुवाद साथ में रखेंगे तो आप को और आनंद आएगा .अब मुख्य विषय संक्षिप्त में दिए जा रहे हैं -
1 -ईश्वर कैसा है 
"ये सूरज की ताबिश तेरा नूर है -जहां जिसके जलवों से मामूर है . 
उसी के हैं ,सब दस्तो पा चार सू -उसी का रुख रूनूमा चार सू . 
उसी की नज़र ,कान ,सिर,हर तरफ -मुहीते जहाँ सर बसर हर तरफ. 
वो है बे ताल्लुक मगर सब का रब -गुनाह से बरी और गुन उसमे सब .

2 -प्रकृति या नेचर 
"ये मिट्टी ,ये पानी ,ये आग और हवा -ये आकाश दुनिया पे छाया हुआ . 
ये दानिश ,ये दिल ,ये ख्याल ये खुदी -है इन आठ हिस्सों में फितरत मेरी . 
वो फितरत है आली ,बने जो हयात -उसी से तो कायम है कुल कायनात . 
वो है मिस्ले जां अहले जां में निहां -वो अव्वल ,वो आखिर ,वो है दरमियाँ .
3 -आवागमन 
"बदलता है इन्सां लिबासे कुहन -नया जामा करता है ,फिर जैब तन .
उसी तरह कालिब बदलती है रूह -नायर भेस में फिर निकलती है रूह .
कोई आत्मा से तअज्जुब में आये -कोई बात हैरत से उसकी सुनाये .
कोई बात सुन सुन के हैरान है -कोई सुन सुनाकर के अनजान है "गीता सरल -2 :29
4 -बहुदेववाद 
"हवा ओ हवस से जो मजबूर हैं -हुए ज्ञान से इनके दिल दूर हैं.
निकालें तबीयत से पूजा की रीत-करें दूसरे देवताओं से पिरीत .
मनाएं जो पितरों को ,पितरों को जाएँ -जो भूतों को पूजें ,भूतों को पायें .
सनम के पुजारी सनम को मिलें -हमारे परस्तार हम से मिलें .

5 -दैवीय गुण
"अहिंसा ,सदाकत ,करम ,तर्के ऐश -न फितरत में चंचलपनाऔर न तैश .
दिले बे हवस ,और तबीयत नरम -न दिल तंग होना ,निगाहों में शर्म .
जो इन नेक वस्लों पे मायल है ,वो -तो इन्सां फरिश्तानुमा कुल है वो .गीता सरल -16 :1 -2
6 -आसुरी स्वभाव 
"वो कहते हैं ,संसार झूठा है सब -न है इसकी बुनियाद न कोई इसका रब .
करें मर्दों जन मिलके जब मस्तियाँ -उन्हीं मस्तियों से हों सब हस्तियाँ .
जो हैं इन ख्यालों के बदकुन बशर -वो खूंखार ,बेरूह कोताह नज़र -
उदू बनके दुनियां में आते रहें -जहां में तबाही मचाते रहें.
उमीदों के फंदों में अटके हुए -गज़ब और शहवत में लटके हुए .
बदी से वो दौलत कमाते रहें -और ऐशो तरब में लगाते रहें. 
जो इन्सां चले शाश्तर के खिलाफ -हवस हो ताबा करे इन्हाराफ .
मिले उसको राहत और न ओजे कमाल-रहे दूर उस से मुकामे विसाल .गीता सरल -16 :22 

आप सब के समक्ष गीता के विषयों की कुछ झलकी देने का प्रयास किया है .क्योंकि कुछ लोगों की धरना है की गीता में केवल युद्ध संबधी बातें हैं .या गीता बुढ़ापे में पढ़ने की किताब है .या इसे पढ़ने से लोग बैरागी हो जाते हैं .शायद ऐसे लोगों का भ्रम दूर हो जायेगा .
गीता का एक श्लोक अक्सर प्रयुक्त किया जाता है ,जिसके अर्थ में मुझे विसंगति प्रतीत लगी ,इसलिए अगले लेख में उसका तर्कपूर्ण समाधान करने का प्रयत्न करूँगा .अल्प बुद्धि होने कारण मुझे क्षमा करें 
यदि लोग चाहेंगे तो हर दुसरे तीसरे दिन एक पृष्ठ दिया जा सकता , अथवा एक एक अध्याय प्रकाशित किया जायेगा ..





1 comment:

  1. सार्थक और आनंददायक काव्यानुवाद है।

    विशेषता यह है कि अर्थ को अक्षुण्ण रखा गया है।

    साधुवाद, शर्मा जी,

    ReplyDelete