श्री मद्भगवद्गीता विश्व के धार्मिक ग्रथों में विशेष स्थान रखती है .इसका विश्व की लगभग सभी भाषाओँ में अनुवाद हो चुका है .वैसे तो गीता का समय पाच हजार साल से अधिक पहिले का माना जाता है ,परन्तु गीता में जो ज्ञान दिया गया है ,वह अनादि और सनातन है .गीता एक स्वतन्त्र पुस्तक नहीं है ,परन्तु महाभारत का एक भाग है गीता हिन्दुओं के लिए धार्मिक ग्रन्थ है ,लेकिन हिन्दुओं के धर्म ग्रन्थ वेद ही हैं .
वेद अपौरुषेय और अनादि हैं .गीता का महत्त्व इसी बात से पता चलता है की आज भी अदालतों में गीता पर हाथ रखवा कर शपथ लेने की प्रथा प्रचलित है ,जो अंगरेजों के समय से चली आरही है .
यह बड़ी दुःख की बात है की आज गीता की कसम तो खाते हैं ,लेकिन उसे ध्यान से पढ़ने ,समझने,और उसके उपदेशों का पालन करने में आलस्य करते हैं .इसके कारण लोगों में गीता के बारे में कुछ भ्रांतियां पैदा हो गयी है ,उनका निराकरण करना जरूरी है ,जैसे -
1 -गीता हमें क्या बताती है ?
गीता हमें बताती है की मनुष्य का जीवन क्या है ,आत्मा क्या है ,प्रकृति क्या है ,वास्तविक भक्ति कैसी होना चाहिए ,हम किस की उपासना करें ,निष्काम कर्म का क्या तात्पर्य है ,हमारा दूसरों के प्रति कैसा बर्ताव हो ,हमें क्या खाना चाहिए ,ईश्वर की कृपा कैसे प्राप्त हो सकती है ,धर्म की रक्षा करने हेतु क्या करें ,इत्यादि-
(यह विस्तार "से गीता के प्रमुख विषय "में दिए जायेंगे )
2 -गीता का रचयिता कौन है ?
कुछ लोग भगवान कृष्ण को गीता का लेखक या रचयिता मान लेते हैं .यद्यपि गीता के उपदेश कृष्ण के मुख से कहलाये गए हैं ,लेकिन गीता का ज्ञान कृष्ण से बहुत समय पूर्व भी मौजूद था ,कृष्ण ने गुरुकुल में जो ज्ञान वेदों और उपनिषदों के द्वारा प्राप्त किया था ,वाही उन्होंने अपने प्रिय मित्र अर्जुन को दिया था गीता वास्तव में उपनिषदों का सारांश है .खा गया है की -
"सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपाल नन्दनः ,पार्थो वत्स सुधीर्भोक्तः दुग्धं गीतामृतं महत "
अर्थात ,उपनिषद् गायें हैं ,दोहने वाले गोपाल कृष्ण है ,दूध पीनेवाला बछड़ा अर्जुन है ,और अमृत रूपी दूध गीता है .
3 -क्या सारी गीता युद्ध के समय कही होगी ?
गीता का प्रारंभ कुरुक्षेत्र के युद्ध की तय्यारी से होता है ,उस समय कौरवों और पांडवों की सेनाये आमने सामने थीं ,अर्जुन युद्ध करने में झिझक रहा था .उस थोड़े से समय में गीता के 700 श्लोकों को सुनाने का समय कहाँ होगा ?वास्तव में कृष्ण ने अर्जुन को समय समय पर जो जो उपदेश दिए थे उसका निचोड़ युद्ध भूमि दिया था .जिसे बाद में महर्षि व्यास ने एकत्रित करके महाभारत में शामिल कर लिया था
कृष्ण ने अर्जुन को उस समय यही कहा था -
"बताता हूँ मैं तुझको ,अय पाकबाज़ ,ये ज्ञानों का ज्ञान और राजों का राज़
तवज्जो से इस राज़ पर गौर कर ,अमल इस पे तू चाहे जिस तौर कर "गीता सरल 18 :63
"सुन अब मुझसे पिन्हाँ ये एक और बात ,बड़े राज़ की काबिले गौर बात
कि अर्जुन तू प्याता है ,महबूब है ,तेरा फायदा मेरा मतलूब है गीता सरल 18 :63 -64
4 -क्या कृष्ण अपनी पूजा कराना चाहते थे ?
गीता में दो प्रकार कि शैलियाँ प्रयुक्त कि गयीं हैं ,एक में कृष्ण इस प्रकार से कहते जैसे वह ईश्वर कि तरफ से वाही बातें कर रहे हैं जो वेदों में कही गयी हैं .दूसरे प्रकार में कृष्ण स्वयं अपनी तरफ से अर्जुन को उपदेश देते हैं .यद्यपि दौनों का आशय एक ही है ,परन्तु हमें इसका अंतर समझाने कि जरुरत है .कृष्ण ने स्पष्ट कहा है -
"सुन अर्जुन खुदा है !खुदा हर कहीं
खुदाई के दिल में ,खुदा है मकीं
वो सब हस्तियों को घुमाता रहे ,वो माया से अपनी चलाता रहे
उसी कि इबादत में हस्ती लगा ,पनाह अपनी तू बस उसी को बना .
तू रहमत में उसकी समां जायेगा ,सुकूनो बका उस से पा जायेगा गीता सरल 18 :61 -62
5 -गीता का सन्देश क्या है ?
गीता हमें हाथ पर हाथ रख कर केवल नाम जपने ,और किसी दैवी सहायता कि आशा करते रहने कीशिक्षा नहीं देती है ,बल्कि स्वयं धर्म की रक्षा करने और दुष्टों का नाश करने की प्रेरणा देती है.और हमें सदैव बिना किसी लोभ के डर के अपना कर्तव्य करने का आदेश देती है -
"तुझे काम करना है !ओ मरदे कार ,नहीं उसके फल पर तेरा इख़्तियार
किये जा अमल ,न ढूँढ़ उसका फल ,अमल कर अमल ,और न हो बेअमल .गीता सरल -2 :47
6 -क्षमा याचना
सर्व प्रथम मैं आप सभी विद्वान् धर्म प्रेमी और इस ब्लॉग के साथ मेरे दूसे ब्लॉग" भंडाफोडू "नियमत पड़ने वाले पाठको को सादर प्रणाम करता हूँ और उन से आशीर्वाद चाहता हूँ , कि मुझे गीता के इस अनुवाद को लोगों के सामने प्रस्तुत करने कि शक्ति प्रदान करे .और हो सकता है मुझ से कुछ त्रुटियाँ भी हो जाएँ तू उसे सूचित करने कि कृपा अवश्य करें ,ताकि सुधार हो सके .मैं कोई विद्वान् नहीं हूँ ,केवल धर्म के प्रति लगाव होने के कारण यह दुस्साहस किया है .जिस तरह ने एक गिलहरी ने सेतुबंध के समय छोटे छोटे कंकर डालकर अपना योगगन दिया था ,और भगवान राम से उसे स्वीकार करके गिलहरी को कृताथ किया था ,आप भी मेरे इस क्षुद्र से प्रयास को स्वी कर करेंगे ऐसी मुझे अपेक्षा है .
जैसे जैसे गीता के अंश टाइप होते जायेंगे प्रकाशित कर दिए जायेंगे .आप धैर्य बनाये रखिये
"अलामस्ती विस्तरेण बुद्धिमद शिरोमणिषु "