Monday, April 25, 2011

एक शंका समाधान !


मैं जब भी गीता पढ़ता था ,तो गीता के 18 वें अध्याय के 66 वें श्लोक का अर्थ और उसका आशय नहीं समझ पाता था .क्योंकि पारंपरिक रूप से किये गए अर्थ से इस श्लोक को नहीं समझा जा सकता है ,ऐसा मेरा मंतव्य है .श्लोक इस प्रकार है- 
"सर्व धर्मान परित्त्यज्य मामेकं शरणम व्रज , 
अहम् त्वा सर्व पापेभ्यो मोक्ष्यस्यामी मा शुचि. गीता -18 :66 
इस श्लोक में "सर्व धर्मान " शब्द प्रयुक्त किया गया है ,जो "धर्म "शब्द का बहुवचन है .अर्थात सभी धर्म .इसका अर्थ अक्सर यही किया जाता है- 
"कृष्ण कहते हैं ,हे अर्जुन तुम सभी धर्मों को त्याग कर केवल मेरी शरण में आजाओ ,मैं तुझे सभी पापों से छुड़ा लूंगा ,तुम चिंता न करो " 
सब जानते हैं की ,गीता का काल पांच हजार साल से पूर्व का है .उस समय कोई दूसरा धर्म नहीं था .केवल वैदिक धर्म ही था .तो सभी धर्मो को त्याग करने की बात क्यों कही गयी है ? 
असल में गीता के समय पाणिनि की व्याकारण नहीं थी .उस समय इन्द्र व्याकरण थी .उसके अनुसार गीता के इस श्लोक में "सव धर्मान "शब्द में 
"अ लोपी "समास है .यानि" सर्व धर्मान "की जगह "सर्व अधर्मान "पढ़ना चाहिए .इस तरह अर्थ होगा "हे अर्जुन तुम सभी अधर्मों का त्याग करके ईश्वर की शरण में जाओ .जो अगले श्लोक में साफ होता है . 
इसीलिए जब मैंने इस श्लोक का अपनी "गीता सरल "में अनुवाद किया तो इस तरह किया है - 
"तू सब पाप छोड़ ,और ले मेरी राह 
तू मांग आके दामन में मेरी पनाह 
तेरा पाप सब दूर हो जायेगा 
न गमगीन हो,मसरूर
   हो जायेगा . 
-गीता सरल -18 :66 
मुझे विश्वास है की मेरे इस अनुवाद से लोगों की शंका का समाधान हो गया होगा . 


Sunday, April 24, 2011

गीता के प्रमुख विषय !


वैसे तो गीता के सभी विषय महत्वपूर्ण हैं .और सभी के लिए सामान रूप से उपयोगी है.क्योंकि गीता का उपदेश किसी विशेष व्यक्ति ,धर्म ,या देश के लिए नहीं है .गीता का उपदेश मानव मात्र को संबोधित कर के दिया गया है .फिर भी गीता में कुछ ऐसे विचार प्रस्तुत किये गए हैं ,जिनमे कुछ तो दूसरे धर्मों के सामान हैं ,और कुछ उनसे अलग हैं .यही गीता की विशेषता है. यहाँ पर कुछ ऐसे विषय लिए जा रहे हैं ,जिनको पढ़कर लोग एक नजर में गीता शिक्षा के बारे में जान सकेंगे . 
यहाँ पर जो भी हवाले दिए गए हैं ,वह "गीता सरल "से लिए गए हैं .इसमे अध्याय और श्लोकों के वही नंबर दिए गए हैं ,जो गीता की किसी भी भाषा के अनुवाद में मिलेगी .यदि आप "गीता सरल "पढ़ते समय गीता का हिंदी या अंगरेजी अनुवाद साथ में रखेंगे तो आप को और आनंद आएगा .अब मुख्य विषय संक्षिप्त में दिए जा रहे हैं -
1 -ईश्वर कैसा है 
"ये सूरज की ताबिश तेरा नूर है -जहां जिसके जलवों से मामूर है . 
उसी के हैं ,सब दस्तो पा चार सू -उसी का रुख रूनूमा चार सू . 
उसी की नज़र ,कान ,सिर,हर तरफ -मुहीते जहाँ सर बसर हर तरफ. 
वो है बे ताल्लुक मगर सब का रब -गुनाह से बरी और गुन उसमे सब .

2 -प्रकृति या नेचर 
"ये मिट्टी ,ये पानी ,ये आग और हवा -ये आकाश दुनिया पे छाया हुआ . 
ये दानिश ,ये दिल ,ये ख्याल ये खुदी -है इन आठ हिस्सों में फितरत मेरी . 
वो फितरत है आली ,बने जो हयात -उसी से तो कायम है कुल कायनात . 
वो है मिस्ले जां अहले जां में निहां -वो अव्वल ,वो आखिर ,वो है दरमियाँ .
3 -आवागमन 
"बदलता है इन्सां लिबासे कुहन -नया जामा करता है ,फिर जैब तन .
उसी तरह कालिब बदलती है रूह -नायर भेस में फिर निकलती है रूह .
कोई आत्मा से तअज्जुब में आये -कोई बात हैरत से उसकी सुनाये .
कोई बात सुन सुन के हैरान है -कोई सुन सुनाकर के अनजान है "गीता सरल -2 :29
4 -बहुदेववाद 
"हवा ओ हवस से जो मजबूर हैं -हुए ज्ञान से इनके दिल दूर हैं.
निकालें तबीयत से पूजा की रीत-करें दूसरे देवताओं से पिरीत .
मनाएं जो पितरों को ,पितरों को जाएँ -जो भूतों को पूजें ,भूतों को पायें .
सनम के पुजारी सनम को मिलें -हमारे परस्तार हम से मिलें .

5 -दैवीय गुण
"अहिंसा ,सदाकत ,करम ,तर्के ऐश -न फितरत में चंचलपनाऔर न तैश .
दिले बे हवस ,और तबीयत नरम -न दिल तंग होना ,निगाहों में शर्म .
जो इन नेक वस्लों पे मायल है ,वो -तो इन्सां फरिश्तानुमा कुल है वो .गीता सरल -16 :1 -2
6 -आसुरी स्वभाव 
"वो कहते हैं ,संसार झूठा है सब -न है इसकी बुनियाद न कोई इसका रब .
करें मर्दों जन मिलके जब मस्तियाँ -उन्हीं मस्तियों से हों सब हस्तियाँ .
जो हैं इन ख्यालों के बदकुन बशर -वो खूंखार ,बेरूह कोताह नज़र -
उदू बनके दुनियां में आते रहें -जहां में तबाही मचाते रहें.
उमीदों के फंदों में अटके हुए -गज़ब और शहवत में लटके हुए .
बदी से वो दौलत कमाते रहें -और ऐशो तरब में लगाते रहें. 
जो इन्सां चले शाश्तर के खिलाफ -हवस हो ताबा करे इन्हाराफ .
मिले उसको राहत और न ओजे कमाल-रहे दूर उस से मुकामे विसाल .गीता सरल -16 :22 

आप सब के समक्ष गीता के विषयों की कुछ झलकी देने का प्रयास किया है .क्योंकि कुछ लोगों की धरना है की गीता में केवल युद्ध संबधी बातें हैं .या गीता बुढ़ापे में पढ़ने की किताब है .या इसे पढ़ने से लोग बैरागी हो जाते हैं .शायद ऐसे लोगों का भ्रम दूर हो जायेगा .
गीता का एक श्लोक अक्सर प्रयुक्त किया जाता है ,जिसके अर्थ में मुझे विसंगति प्रतीत लगी ,इसलिए अगले लेख में उसका तर्कपूर्ण समाधान करने का प्रयत्न करूँगा .अल्प बुद्धि होने कारण मुझे क्षमा करें 
यदि लोग चाहेंगे तो हर दुसरे तीसरे दिन एक पृष्ठ दिया जा सकता , अथवा एक एक अध्याय प्रकाशित किया जायेगा ..





Saturday, April 23, 2011

प्रस्तावना


श्री मद्भगवद्गीता विश्व के धार्मिक ग्रथों में विशेष स्थान रखती है .इसका विश्व की लगभग सभी भाषाओँ में अनुवाद हो चुका है .वैसे तो गीता का समय पाच हजार साल से अधिक पहिले का माना जाता है ,परन्तु गीता में जो ज्ञान दिया गया है ,वह अनादि और सनातन है .गीता एक स्वतन्त्र पुस्तक नहीं है ,परन्तु महाभारत का एक भाग है गीता हिन्दुओं के लिए धार्मिक ग्रन्थ है ,लेकिन हिन्दुओं के धर्म ग्रन्थ वेद ही हैं .
वेद अपौरुषेय और अनादि हैं .गीता का महत्त्व इसी बात से पता चलता है की आज भी अदालतों में गीता पर हाथ रखवा कर शपथ लेने की प्रथा प्रचलित है ,जो अंगरेजों के समय से चली आरही है .
यह बड़ी दुःख की बात है की आज गीता की कसम तो खाते हैं ,लेकिन उसे ध्यान से पढ़ने ,समझने,और उसके उपदेशों का पालन करने में आलस्य करते हैं .इसके कारण लोगों में गीता के बारे में कुछ भ्रांतियां पैदा हो गयी है ,उनका निराकरण करना जरूरी है ,जैसे -
1 -गीता हमें क्या बताती है ?
गीता हमें बताती है की मनुष्य का जीवन क्या है ,आत्मा क्या है ,प्रकृति क्या है ,वास्तविक भक्ति कैसी होना चाहिए ,हम किस की उपासना करें ,निष्काम कर्म का क्या तात्पर्य है ,हमारा दूसरों के प्रति कैसा बर्ताव हो ,हमें क्या खाना चाहिए ,ईश्वर की कृपा कैसे प्राप्त हो सकती है ,धर्म की रक्षा करने हेतु क्या करें ,इत्यादि-
(यह विस्तार "से गीता के प्रमुख विषय "में दिए जायेंगे )
2 -गीता का रचयिता कौन है ?
कुछ लोग भगवान कृष्ण को गीता का लेखक या रचयिता मान लेते हैं .यद्यपि गीता के उपदेश कृष्ण के मुख से कहलाये गए हैं ,लेकिन गीता का ज्ञान कृष्ण से बहुत समय पूर्व भी मौजूद था ,कृष्ण ने गुरुकुल में जो ज्ञान वेदों और उपनिषदों के द्वारा प्राप्त किया था ,वाही उन्होंने अपने प्रिय मित्र अर्जुन को दिया था गीता वास्तव में उपनिषदों का सारांश है .खा गया है की -
"सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपाल नन्दनः ,पार्थो वत्स सुधीर्भोक्तः दुग्धं गीतामृतं महत "
अर्थात ,उपनिषद् गायें हैं ,दोहने वाले गोपाल कृष्ण है ,दूध पीनेवाला बछड़ा अर्जुन है ,और अमृत रूपी दूध गीता है .
3 -क्या सारी गीता युद्ध के समय कही होगी ?
गीता का प्रारंभ कुरुक्षेत्र के युद्ध की तय्यारी से होता है ,उस समय कौरवों और पांडवों की सेनाये आमने सामने थीं ,अर्जुन युद्ध करने में झिझक रहा था .उस थोड़े से समय में गीता के 700 श्लोकों को सुनाने का समय कहाँ होगा ?वास्तव में कृष्ण ने अर्जुन को समय समय पर जो जो उपदेश दिए थे उसका निचोड़ युद्ध भूमि दिया था .जिसे बाद में महर्षि व्यास ने एकत्रित करके महाभारत में शामिल कर लिया था
कृष्ण ने अर्जुन को उस समय यही कहा था -
"बताता हूँ मैं तुझको ,अय पाकबाज़ ,ये ज्ञानों का ज्ञान और राजों का राज़
तवज्जो से इस राज़ पर गौर कर ,अमल इस पे तू चाहे जिस तौर कर "गीता सरल 18 :63
"सुन अब मुझसे पिन्हाँ ये एक और बात ,बड़े राज़ की काबिले गौर बात
कि अर्जुन तू प्याता है ,महबूब है ,तेरा फायदा मेरा मतलूब है गीता सरल 18 :63 -64
4 -क्या कृष्ण अपनी पूजा कराना चाहते थे ?
गीता में दो प्रकार कि शैलियाँ प्रयुक्त कि गयीं हैं ,एक में कृष्ण इस प्रकार से कहते जैसे वह ईश्वर कि तरफ से वाही बातें कर रहे हैं जो वेदों में कही गयी हैं .दूसरे प्रकार में कृष्ण स्वयं अपनी तरफ से अर्जुन को उपदेश देते हैं .यद्यपि दौनों का आशय एक ही है ,परन्तु हमें इसका अंतर समझाने कि जरुरत है .कृष्ण ने स्पष्ट कहा है -
"सुन अर्जुन खुदा है !खुदा हर कहीं
खुदाई के दिल में ,खुदा है मकीं
वो सब हस्तियों को घुमाता रहे ,वो माया से अपनी चलाता रहे
उसी कि इबादत में हस्ती लगा ,पनाह अपनी तू बस उसी को बना .
तू रहमत में उसकी समां जायेगा ,सुकूनो बका उस से पा जायेगा गीता सरल 18 :61 -62
5 -गीता का सन्देश क्या है ?
गीता हमें हाथ पर हाथ रख कर केवल नाम जपने ,और किसी दैवी सहायता कि आशा करते रहने कीशिक्षा नहीं देती है ,बल्कि स्वयं धर्म की रक्षा करने और दुष्टों का नाश करने की प्रेरणा देती है.और हमें सदैव बिना किसी लोभ के डर के अपना कर्तव्य करने का आदेश देती है -
"तुझे काम करना है !ओ मरदे कार ,नहीं उसके फल पर तेरा इख़्तियार
किये जा अमल ,न ढूँढ़ उसका फल ,अमल कर अमल ,और न हो बेअमल .गीता सरल -2 :47

6 -क्षमा याचना
सर्व प्रथम मैं आप सभी विद्वान् धर्म प्रेमी और इस ब्लॉग के साथ मेरे दूसे ब्लॉग" भंडाफोडू "नियमत पड़ने वाले पाठको को सादर प्रणाम करता हूँ और उन से आशीर्वाद चाहता हूँ , कि मुझे गीता के इस अनुवाद को लोगों के सामने प्रस्तुत करने कि शक्ति प्रदान करे .और हो सकता है मुझ से कुछ त्रुटियाँ भी हो जाएँ तू उसे सूचित करने कि कृपा अवश्य करें ,ताकि सुधार हो सके .मैं कोई विद्वान् नहीं हूँ ,केवल धर्म के प्रति लगाव होने के कारण यह दुस्साहस किया है .जिस तरह ने एक गिलहरी ने सेतुबंध के समय छोटे छोटे कंकर डालकर अपना योगगन दिया था ,और भगवान राम से उसे स्वीकार करके गिलहरी को कृताथ किया था ,आप भी मेरे इस क्षुद्र से प्रयास को स्वी कर करेंगे ऐसी मुझे अपेक्षा है .
जैसे जैसे गीता के अंश टाइप होते जायेंगे प्रकाशित कर दिए जायेंगे .आप धैर्य बनाये रखिये
"अलामस्ती विस्तरेण बुद्धिमद शिरोमणिषु "