Monday, July 04, 2011

दसवां अध्याय :विभूति योग


विभूति योग -जलाले यज्दानी 
भगवान का इरशाद 
सुखनसंज भगवान फिर यूं हुए -कि सुन अय कवी -दस्त प्यारे मेरे , 
ये आला सुखन फिर बताता हूँ मैं -भलाई का रस्ता फिर दिखाता हूँ मैं .II 1 II 
हुए देवता महारिशी जिस कदर -मेरी इब्तदा से हैं बेखबर , 
मुझी से है सब देवताओं कि बूद-मिला मुझसे हर महारिशी को वुजूद .II 2 II 
समझता है मुझको जो बे इब्तदा -जनम से बरी ,शाहे अरजो -समा , 
फरेबे नजर से वही पाक है -गुनाहों से आजाद औ बेबाक है .II 3 II 
मुझी से है सुख दुख,दिलेरी ,हिरास -खिरद ,इल्मे कल्ब -हकीकत शनास , 
सदाकत ,सुकूं,ज़ब्त ,उफू औ करम -मुझी से वुजूद ,और मुझी से अदम .II 4 II 
अहिंसा ,कनाअत ,दिले पुर सुकूं - रियाजो सखा ,नामे नेक औ जुबूं , 
गरज जानदारों में जो हैं सिफात -है उन सबकी बिना मेरी पाक ज़ात .II 5 II 
वो सालों मुआज्जिज ऋषि नामदार -मनू और वो चारों कदीमी कुमार , 
जहां वाले सब जिनसे पैदा हुए -वो मेरे ही मन से हुवैदा हुए .II 6 II 
जो कुव्वत मेरे योग की जान ले-हकीकत मुजाहिर की पहचान ले , 
वो कायम रहे योग पर बिल्यकीं-तवाज़न है उसमे तजल्जल नहीं .II 7 II 
मेरी ज़ात है मिब्नाए कायनात -मुझी से हुआ इरताकाए -हयात , 
यकीं इस पे करते हैं ,जो अहले होश -करें मेरी भगती बजोशो खरोश .II 8 II 
मुझी में हैं मन को जमाये हुए -हैं प्राण अपने मुझमे लगाए हुए , 
वो करते हैं आपस में पुरनूर दिल -मेरे ज़िक्र से शादो -मसरूर दिल .II 9 II 
वो रहते हैं यकदम मेरे जौक से -वो करते हैं पूजा मेरी शौक से , 
मैं देता हूँ उनको वो दानिश का योग -की हो जाते हैं मुझसे वासिल वो लोग .II 10 II 
जो रहम उनकी हालत पे खाता हूँ मैं -तो घर उनके दिल में बनाता हूँ मैं ., 
दिखाता हूँ उनको हिदायत का नूर -अन्धेरा जहालत का हो जिस से दूर .II 11 II 
अर्जुन ने कहा - 
तू आली खुदा ,तेरा आली मुकाम -वो हस्ती है तू ,जिसकी अज़मत मुदाम . 
तू माबूदे अव्वल ,तेरी पाक जात -जमम से बरी ,मालिके कायनात .II 12 II 
इसी तरह लें आपके पाक नाम -असित ,व्यास ,देवल ,ऋषी भी तमाम , 
यही देव नारद बताएं सिफात -यही आप अपनी सुनाएँ सिफात .II 13 II 
गरज आपने जो बताया मुझे -यकीं केशौ भगवान आया मुझे , 
न समझा कोई आपकी शान को -कोई देवता हो ,कि शैतान हो .II 14 II 
ऐ खालिक जगत के और ए किब्रिया -सभी देवताओं के हो देवता , 
पुरुषोत्तम ऊंची है बात आपकी -अगर बात जानें ,तो ज़ात आपकी.II 15 II 
करें आप मुझपर मुकम्मिल अयां-जलाले मुक्कदस का वाजिह निशां,
जहां फैज़ से जिसके मामूर है-जमीनों -जमां जिस से पुर नूर है .II 16 II 
बता दीजिये मेरे योगी ज़रा -मिले ध्यान से कैसे ज्ञान आपका ,
करूं किन मुजाहिर में जम कर ख्याल -कि खुल जाए मुझपर हकीकत का हाल .II 17 II 
ज़रा योग अपना बयां कीजिए -जलाल अपना भगवन अयां कीजिए ,
कि बातें वो अमृत सी हैं आपकी -तबीयत नहीं सैर होती कभी .II 18 II 
भगवान का इरशाद - 
हुए सुन के भगवान यूं लबकुशा -हैं अर्जुन मेरे वस्फ़ ला इंतिहा , 
जलाल अपना कुछ कुछ बताता हूँ मैं -सिफ़ाते -नुमायाँ दिखाता हूँ मैं .II 19 II 
सुन अर्जुन हूँ मैं आत्मा बिल्यकीं-जो है जानदारों के दिल में मकीं , 
हूँ मैं मिस्ले जां,अहले जां में निहां -मैं अव्वल ,मैं आखिर ,मैं हूँ दरमियां.II 20 II 
आदित्तियों में है मेरा "विष्णु "खिताब -मैं अश्याये पुर नूर में आफताब , 
"मरीची "मरूतों के अन्दर हूँ मैं -मनाजिल में तारों के "चंदर "हूँ मैं .II 21 II 
समझ मुझको वेदों में तू वेद साम -मेरा देवताओं में "वासु "है नाम ,
हिसों में हूँ मैं मन ,मुझको पहचान तू -तू जां अहले जां की मुझे जां तू .II 22 II 
मैं रुद्रों के अन्दर हूँ "शंकर "दिलेर -जो हैं राक्षस ,यक्ष उनमे कुबेर ,
तो वसुओं में अग्नी ,मुझे तू समझ -सब ऊंचे पहाड़ों में मेरू समझ .II 23 II 
पुरोहित हैं जो ,उनमे ब्रहस्पत हूँ मैं -सुन अर्जुन कि सर करदा प्रोहित हूँ मैं ,
सिकंद अहले लश्कर के अन्दर कहो -तो झीलों के अन्दर समंदर कहो .II 24 II 
भृगू यानी ऋषियों का सरदार हूँ -सुखन में सुखन यानी ओंकार हूँ ,
यगों में हूँ जप यग ,निराला हूँ मैं -जो मुहकम हैं ,उनमे हिमाला हूँ मैं .II 25 II 
दरख्तों में पीपल का हूँ में दरख़्त -मैं ऋषियों में नारद ,अय नेकबख्त ,
हूँ गन्धर्व लोगों में चितरथ मैं -कपिल हूँ मुनी उनमे जो सिद्ध हैं .II 26 
मैं घोड़ों में इन्दर हूँ अस्पेनर -जो अमृत के मंथन में आया नजर ,
मैं फीलों के अन्दर हूँ इन्दर का फील -जो इंसान हैं उनने शहे-बेनदील.II 27 II 
मैं आलाते जंगी में बर्के -तपां-मैं गायों में हूं कामधुक बेगुमाँ,
शहंशाह नागों का मैं वासुकी -हूँ कंदर्प जिस से हों पैदा सभी .II 28 II 
मैं नागों में हूँ शेष लाइन्तिहा -मैं जल वासियों में वरुण देवता ,
मैं पितरों में हूँ अर्यमा जी हशम-मैं दुनिया के फर्मा-रवाओं में यम .II 29 II 
मैं हूँ देत्याओं में पहलाद सुन -मैं वक्त उनमे रखें जो गिनती का गुन,
मैं शेरे बबरसब दरिंदों में हूँ -तो विष्णू का शाही परिंदों में हूँ .II 30 II 
मैं सरसर हूँ उनमे जो हैं तेजगाम -मैं हूँ तेगो शमशीर वालों में राम , 
मुझे मछलियों में मकर जान तू-तो नहरों में गंगा मुझे मान तू.II 31 II 
मैं आगाज़ ओ अंजाम अहले जहां -जो कुछ दरमियाँ है तो मैं दरमियाँ , 
मैं इल्मों में हूँ इल्मे जां अय अकील -दलीलों में अर्जुन मैं हक़ की दलील .II 32 II 
अलिफ़ हूँ ,सुखन जो करे इब्तदा -मैं हूँ अत्फ़ ,लफ्जों के जो दे मिला , 
मैं हूँ वक्त जिसको फना ही नहीं -मुहाफिज हूँ वो जिसका रुख हर कहीं .II 33 II 
कज़ा हूँ जो करती है सबको फना -नयी जिन्दगी की हूँ मैं इब्तदा , 
मैं हूँ सनफे-नाजुक में इकबालो नाम -सुखन ,हाफिजा ,उफू अक्लो कयाम .II 34 II 
सामों में बृहत साम ,अय होशमंद -तो छंदों में गायत्री का मैं छंद , 
महीनों में मुझको अघन कर शुमार -तो मौसम में ,फूलों की हूँ मैं बहार .II 35 II 
जुआ हूँ मैं ,जो चलते हैं चाल -जलाल उनका ,जिनमे है जाहोजलाल , 
इरादा भी मैं ,फतहो नुसरत भी मैं -जो सादिक हैं ,उनकी सदाकत भी मैं .II 36 II 
मैं वृष्णओं हूँ वासुदेव अय मुशीर -कबीले में पाण्डू के अर्जुन अमीर , 
मैं हूँ व्यास ,उनमे हैं जितने मुनी -जो शायर हैं ,उनमे हूँ उशना कवी .II 37 II 
जो हाकिम हैं मैं उनमे ताजीर हूँ -जो फातिह हैं ,मैं उनकी तदबीर हूँ , 
मैं राजों में हूँ ,ख़ामुशी पर्दा पोश -मैं हूँ ज्ञान उनका ,जो हैं इल्मकोश .II 38 II 
करूं खल्के आलम की तरबीज मैं -हूँ अर्जुन हरेक चीज का बीज मैं , 
है साकिन कोई ,याकि सय्यार है -मगर मुझसे बाहर न ज़न्हार है. II 39 II 
परन्तप ,यहाँ गौर कर ले ज़रा -मेरे पास जलवे हैं ला इंतिहा ,
जो थोड़ा सा तुम से बयाँ कर दिया -नमूना सा थोड़ा अयां कर दिया .II 40 II 
नजर आये कुव्वत कहीं या जलाल -शिकोह ,या तजम्मुल कि हुस्नो जमाल ,
समझले कि उसमे है जल्वा फ़िगन -मेरे बेकराँ नूर की इक किरन.II 41 II 
न तफसील में जाके उलझन बढ़ा -कि कसरत से अर्जुन तुझे काम क्या ,
ज़रा ये करिश्मा हुआ है अयां -इसी से मामूर सारा जहां .II 42 

-दसवां अध्याय समाप्त -
























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