Thursday, July 07, 2011

तेरहवां अध्याय :क्षेत्र क्षेत्रज्ञ

-:क्षेत्र क्षेत्रज्ञ  -इम्तियाजे जिस्मो जां-


भगवान ने फरमाया -
तुझे अब बताता हूँ ,कुंती के लाल -कि ये जिस्म इक खेत की है मिसाल , 
है इस खेत का राज जिस पर अयां-कहें खेतरग्य उसको सब राजदां .II 1 II 
समझ खेत का राजदां हूँ तो ,मैं -कि हर खेत के दरमियाँ हूँ ,तो मैं , 
जो ये खेत और खेतरग का है इल्म -मेरी राय में सबसे आला है इल्म .II 2 II 
सुन अर्जुन ,है क्या खेत ,क्या इसके गुन-तगय्युर हों कैसे ,कहाँ से ,ये सुन , 
है कौन ,और क्या ,कुव्व्वते-राजदां-मैं करता हूँ ,अब मुख़्तसर सा बयां .II 3 II 
ये ऋषियों ने गाया कई रंग से -बहुत मीठे छंदों के आहंग से , 
ये ब्रह्म सूत्रों में भी मस्तूर है -यही बा दलील उनमे मजकूर है.II 4II 
अनासिर ,अहंकार ,अक्ले-मुहीत -ये दिल,दस हवास,और ये फितरत बसीत ,
करें जिनको महसूस पाँचों हवास -ये आवाज ,शश जायका ,रंगों -बास .II 5 II 
ये सुख दुख,ये नफ़रत तरगीब भी -खिरद ,पायेदारी भी तरकीब भी ,
ये हैं खेत ,और इनकी तब्दीलियाँ -इन्हीं का है ये मुख़्तसर सा बयां .II 6 II 
मैं करता हूँ अब ज्ञान के गुन शुमार -ये हैं ,रास्ती ,इल्म ,उफू ,इन्किसार ,
अहिंसा भी ,और खिदमत उस्ताद की -दिली पुख्तगी ,जब्त ,पाकीजगी. II 7 II 
न होना सरोकार लज्जात से -किनारा ,अहंकार की बात से ,
यही गौर करना कि,लें छीन सुख -जनम ,मौत ,पीरी ,मरज दर्दो दुख .II 8 II 
न बाबस्तागी रिश्त ओ बंद से -न घर से ,न जन से ,न फरजंद से ,
तवाजन से होना ,सुकूनो करार -गवारा हो सूरत कि हो नागवार .II 9 II 
फकत धारना मेरी भक्ती का योग- दुई का न होना ज़रा दिल में रोग ,
अलग रह के महसूस करना सुरूर -हुजूमे खलायक से होना नुफूर .II 10 II 
ख़याल अद्धियातम का शामो -सहर -हकीकत के मकसद पे रखना नजर,
ये इल्मों का इल्म ,ये ज्ञान है -खिलाफ इसके जो है ,अज्ञान है.II 11 II 
सजावार इरफां है वो पाकजात-कि है इल्म ही उसका आबे हयात ,
वो बे इब्तिदा ,लम यजल,जी हशम-न सत या असत कह सकें जिसको हम .II 12 II 
उसी के हैं सब दस्तो पा चारसू -उसी का रूखे रूनुमा चारसू ,
उसी के नजर ,कान ,सर ,हर तरफ -मुहीते जहां सरबसर हर तरफ.II 13 II 
बजाहिर नहीं गरचे उसके हवास -दरख्शां सिफ़ाते हवास उसके पास ,
वो है बे तअल्लुक मगर सबका रब -गुनों से बरी,और गुन उसमे सब .II 14 II 
किसी शै में जुम्बिश ,किसी में सूकूं -वो मौजूद सब में दरूँ और बरूं ,
लतीफ ऐसा ,एहसास माजूर है -वही है करीब ,और वही दूर है . II 15 II 
मुहाल उसकी तकसीम ,अय जी शऊर -मगर उसका हर शै में हिस्सा जरूर ,
सजावार ईरफां वो परवरदिगार -फना और बका पर उसी का मदार .II 16 II 
वही जात नूरुन -अला नूर है -जो तारीकियों से बहुत दूर है .,
वो ईरफां का हासिल भी मकसूद है -वो ईरफां भी हर दिल में मौजूद है.II 17 II 
तुझे मुख़्तसर तौर पर कह दिया -कि इर्फानो मकसूदे ईरफां है क्या ,
बताया तुझे खेत का मैंने हाल -जो समझे मेरा भक्त पाए विसाल .II 18 II 
ये माया अनादी है ,ला इब्तिदा -इसी तरह ला इब्तिदा आत्मा ,
गुन अश्या के और उनकी शक्लें अनेक -ये माया से जाहिर हुई एक एक .II 19 II 
हवासो बदन जो भी पैदा हुए -ये माया के बाइस हुवैदा हुए , 
जो सुख दुख का होता है अहसास सब -ये अहसास है आत्मा के सबब .II 20 II 
कि माया में जब आत्मा हो मकीं -गुनों से हो माया के लज्जत गुजीं , 
गुनों से जो आलूद हो बेशो कम -बुरी या भली जों में ले जनम .II 21 II 
महापुरुष तन में जो है जल्वागर-वो परमात्मा है ,खुदा ,ईश्वर , 
वो नाजिर भी है कार फरमा भी है -वो लज्जत गुजीं भी सहारा भी है .II 22 II 
अगर आत्मा को कोई जान ले -गुनों और माया को पहचान ले , 
रहे जैसे चाहे वो जिस हाल में -न आये तनासुख के जंजाल में .II 23 II 
कोई ध्यान से मन में डाले नजर -तो देखे वो खुद आत्मा जल्वागर, 
कोई सांख्य के योग से देख ले -कोई देख ले कर्म के योग से .II 24 II 
मगर इनसे है बेखबर भी कई -करें सुन सुना कर वो पूजा मेरी , 
जो सुन लें उसी में वो सरशार हों -फना के समंदर से भी पार हों .II 25 II 
मिले खेत से खेत का राजदां-तो अर्जुन उसीसे हो सब कुछ अयां ,
किसी में है जुम्बिश ,किसी में कयाम -इसी मेल से पाए हस्ती तमाम .II 26 II 
जो है कुछ नजर तो ,उसी की नजर -नजर में रहे जिसकी परमेश्वर ,
है सब ग्यान वालों में ग्यानी वही -कि फानी में है ,गैर फानी वही.II 27 II 
जो उस जाते -मुतालिक पे रक्खे यकीं -कि हर एक मकां में वही है मकीं ,
करे वो न खुद आत्मा को तबाह -कि उत्तम गति कि ये अच्छी है राह .II 28 II 
जो समझे कि दुनिया की सब रेलपेल -है माया का करतब ,माया का खेल ,
है खुद आत्मा पुर सुकूं,बे अमल -नजर है उसीकी ,नजर बे खलल .II 29 II 
जिसे आये कसरत में ,वहदत नजर -कि हर रंग में है वही जल्वागर ,
जो वहदत से कसरत का समझे जहूर -खुदा से हो वासिल वही बिल्जरूर .II 30 II 
मकीं तन के अन्दर है परमात्मा -अनादि ,गुनों से बरी ,लाफना ,
अमल से वो फारिग है ,कुंती के लाल -अमल से न आलूद हो लायजाल.II 31 II 
है आकाश दुनिया पे जैसे मुहीत -मुजल्ला ,मुसफ्फा ,कि है वो बसीत ,
बदन में यूँही आत्मा है मकीं -मगर उस से आलूदा होती नहीं .II 32 II 
हो सूरज से जिस तरह रोशन जहां -चमक जाएँ भारत जमीं आसमां ,
इसी तरह खेतों पे छा जाए नूर -जो हो खेत के राजदां का जहूर .II 33 II 
जो चश्मे बसीरत से करता है गौर -कि खेत औरहै ,राजदां इसका और ,
जो माया से ,दे हस्तियों को निजात -बुलन्दी में हासिल करे वस्ले-जात .II 34 II 


-तेरहवां अध्याय समाप्त -




















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