Sunday, July 10, 2011

सोलहवां अध्याय :दैवासुर संपत्ति

-दैवासुर संपत्ति -सिफ़ाते मलकूती व् शैतानी - 

भगवान ने फरमाया -
सुन अर्जुन है क्या देवताई सिफात -दिलेरी ओ इल्मो अमल में सबात ,
सखा ,जब्त ,यग,दिल में पाकीजगी -तिलावत ,रियाजत ,सलामत रवी .II 1 II 
अहिंसा ,सदाकत ,करम ,तर्के ऐश -न फितरत का चंचलपना और न तैश ,
दिले बेहवस ,पुर सुकूं ,तबअ नर्म -न दिल तंग होना ,निगाहों में शर्म .II 2 II 
सबूरी ,सिफ़ा ,जोर ,उफूये खता -हसद से तकब्बुर से रहना जुदा ,
जब इन नेक वस्फों पे मायल है वो -तो इन्सां फरिश्तानुमा कुल है वो .II 3 II 
दोरंगी गुरूर ,औ नुमायश ,गजब -सुखन तल्ख़ ,बातें जहालत की सब , 
इन्हीं से उस इंसान की पहचान है -सदा सेजो   फितरत का शैतान है.II 4 II 
है नेकू खसायल,रिहायी पसंद-शयातीं की खसलत से है कैदो बंद , 
तुझे रंजो गम क्या ,पांडू के लाल -कि फितरत से तू है फ़रिश्ता खिसाल .II 5 II 
ज़माने में जितने भी इन्सां हुए -फ़रिश्ते कोई ,कोई शैतां हुए , 
सुना है मुफस्सिल फरिश्तों का हाल-जो शैतां हैं ,सुन अब उनका हाल .II 6 II 
खबासत के पुतले हैं इन्हें क्या तमीज -ये करने की चीज ,या न करने की चीज , 
न सत इनके अन्दर ,न पाकीजापन -मुअर्रा है शाइस्तगी से चलन .II 7 II 
वो कहते हैं झूठा है संसार सब -न है इसकी बुनियाद ,न कोई रब , 
करें मर्दों जन मिलके जब मस्तियाँ -उन्हीं मस्तियों से हों ,सब हस्तियाँ .II 8 II 
जो हैं इन ख्यालों के बद्कुन बशर -वो खूंखार ,बेरूह ,कोतह नजर , 
उदू बन के दुनिया में आते रहें -जहां में तबाही मचाते रहें .II 9 II 

तकब्बुर ,रिया और बनावट से काम -वो तस्कीं न पायें हवस की गुलाम , 
वो खाएं फरेबे ख्यालाते बद-बड़ी में दिखाएँ सदा शद्दो -मद .II 10 II 
गेम बेहिसाब उनको ,दिन हो कि रात -मिले फिक्रे-दुनिया से मर कर निजात , 
है मकसूद इनका ,हवस रानियां-हैं मद्दे नजर ऐश की सामानियाँ .II 11 II 
उमीदों के फंदों में अटके हुए -गजब और शहवत में लटके हुए , 
बदी से वो दौलत कमाते रहें -जो ऐशो तरब में गंवाते रहें .II 12 II 
वो कहता है 'आज एक पायी मुराद -तो कल दूसरी हाथ आये मुराद , 
ये दौलत है मेरी ,ये धन है मेरा -मेरे पास ही ये रहेंगे सदा II 13 II 
किया एक दुश्मन को मैंने हलाक -करूंगा मैं औरों को जेरे ख़ाक , 
सुखी हूँ ,कवी ,हाकिमे पुर जलाल -मजे ले रहा हूँ ,कि हूँ बा कमाल .II 14 II 
मैं धनवान ,मेरा घराना शरीफ -भला कौन होता है मेरा हरीफ , 
मैं लूंगा मजे यग्य और दान से -'यहीं खाए धोका वो अज्ञान से .II 15 II 

ख्यालों के फंदों में जकडे हुए -तवह्हुम के जालों में पकडे हुए , 
तअय्यश से जी को लगाते हैं वो -तो नापाक ,दोजख में जाते हैं वो .II 16 II 
वो मगरूर ,जिद्दी हैं ,और ख़ुदपरस्त-वो दौलत ने नश्शे में रहते हैं मस्त , 
जो करते हैं यग तो भी बहरे नुमूद -नहीं हैं वो पाबन्दे रस्मो -कुयूद .II 17 II 
वो गुस्ताख ,पुर कीना ओ पुर गुरूर -खुदी मस्तियो तैशो -ताकत में चूर , 
मैं खुद उनंके तन में हूँ ,या गैर के -न खैर उनसे पहुंचे ,सिवा बैर के .II 18 II 
ये हासिद ,कमीने जफाकार लोग -ये जिल्लत के पुतले ,ये खूंखार लोग ,
न जिल्लत से इनको निकालूँगा मैं -शिकम में शयातीं के डालूँगा मैं .II 19 II 
शिकम में शयातीं के होकर मकीं -ये बहके हुए मुझ तक आते नहीं ,
ये ,अर्जुन जनम पर जनम पायेंगे -ये गिरते ही .गिरते चले जायेंगे .II 20 II 
जहन्नुम के हैं तीन दर लाकलाम -तमा ,शहवत और गुस्सा हैं जिनके नाम ,
इन्हें छोड़कर ,इनमे न जाना कभी -न हस्ती को अपनी मिटाना कभी .II 21 II 
जो इनसे बचे वो रहे बे खतर-तमोगुन को जाते हैं ये तीन दर ,
मिले उसको आनंद ,कुंती के लाल -उसी को मयस्सर हो ओजे -कमाल .II 22 II 
जो इन्सां चले शाश्तर के खिलाफ -हवस के हो ताबिअ करे इन्हाराफ ,
मिले उसको राहत ,न ओजे कमाल -रहे दूर उस से मुकामे विसाल .II 23 II 
फकत शाश्तर को बना रहनुमा -कि करना है क्या ,और न करना है क्या ,
बस अब धर्म पर दिल दिए जा तमाम -अमल शाश्तर पर किये जा मुदाम .II 24 II 

-सोलहवां अध्याय समाप्त -







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