Sunday, July 10, 2011

अठारहवां अध्याय :मोक्ष संन्यास

-मोक्ष सन्यास -तर्के निजात -

अर्जुन ने कहा - 
ऋषिकेश ,फरमाइए अब ज़रा -है संन्यास और त्याग में फर्क क्या , 
कवी दस्त ,केशी के कातिल मुझे -उसूल इनके क्या हैं बता दीजिये II 1 II 
भगवान ने कहा - 
ये कहते हैं दाना कि ख्वाहिश के काम -उन्हें छोड़ने का है संन्यास नाम , 
मगर त्याग में हो न तर्के अमल -करें सब अमल छोड़ कर उसके फल .II 2 II 
कई मर्दे दाना कहें 'छोड़ काम '-कि कर्मों में पिन्हां जरर है मुदाम , 
कई यूं कहें ,ये समादत न जाए -इबादत ,सखावत ,रियाजत न जाए .II 3 II 
मगर मुझसे भारत के सरदार सुन -मेरा कौल मेरे परस्तार सुन , 
कि इस त्याग के भी हैं इकसाम तीन -गुनों से हुए इसके भी नाम तीन II 4 II 
तू यग और सखावत ,रियाजत न छोड़ -ये तीनों हैं एने सआदत न छोड़ , 
कि यग और सखावत रियाजत के काम -करें पाक ,दाना के दिल को मुदाम .II 5 II 
यही फैसला मेरे नजदीक है -यही राय पुख्ता है और ठीक है , 
कि यग और सखावत ,रियाजत भी कर -तआल्लुक रख इनसे ,न फिक्रे समर .II 6 II 
कि जो काम सर पर बरे फर्ज है -न छोड़ उसको ,ये फर्ज इक कर्ज है ,
ये तर्क इक फरेबे जहालत समझ -ये त्याग इक तमोगुन की सूरत समझ .II 7 II 
वो बुजदिल जो तकलीफ के खौफ से -जो करना हैं काम उसे त्याग दे ,
समझ ले रजोगुन वो तर्के अमल -न हासिल हो इस त्याग से कोई फल .II 8 II 
करे फर्ज को फर्ज अगर जानकर -तअल्लुक हो इस से न फिक्रे समर ,
जो असली है ,अर्जुन यही त्याग है -कि एने सतोगुन यही त्याग है .II 9 II 
जो त्यागी सतोगुन है और होशियार -सुलूक अपने कर दे वो तार तार ,
जो हो कारे -नाखुश तो नाखुश न हो -अगर कारे खुश हो जरा खुश न हो .II 10 II 
कि दुनिया में जितने हैं तन के मकीं -करें तर्क सब काम मुमकिन नहीं ,
है त्यागी वही तारीके -बा अमल -अमल जो करे छोड़कर उसके फल .II 11 II 
जो त्यागी नहीं ,जब वो दुनिया से जाए -तो मर कर वो फल तीन सूरत में पाए ,
बुरे या भले या मुरक्कब समर -जो तारिक हैं ,बच जाएँ इनसे मगर .II 12 II 
जबरदस्त अर्जुन समझ मुझ से अब -कि हर काम के पांच होंगे सबब ,
हो पाँचों की तकमील हर काम की -कहे सांख्य का फलसफा भी यही .II 13 II 
सबब अव्वलीं है अमल का मुकाम -दुवम आमिल ,इसका फिर एजा तमाम ,
चहारुम सबब सई ओ तदबीर है -तो पंजम सबब ,दस्ते तकदीर है II 14 II
कोई काम इन्सां जतन से करे -जुबां से कि तन से कि मन से करे ,
र वा काम या नारवा काम हो -इन्हीं पांच से वो सर अंजाम हो .II 15 II
करीने- खिरद फिर नहीं उसकी बात -जो समझे है ,आमिल फकत उसकी ज़ात ,
हकीकत में है वो हकीकत से दूर -वो मूरख है ,दानिश में किसके फितूर .II 16 II
वो इन्सां जो दिल में न रक्खे खुदी -नहीं जिसकी दानिश में आलूदगी ,
नहीं उसको कर्मों के बंधन से काम -वो कातिल नहीं गो करे कत्ले आम .II 17 II
अमल के मुहर्रिक हैं महफूज तीन -वो हैं आमिलो -इल्मो -मालूम तीन ,
वो अजजा है जिनपर अमल का मदार -है कारिन्दा ,ओ कार ओ आलाते कार .II18 II
जो गुन शाश्तर से करे तू नजर -अमल,आमिल और ज्ञान के राज़ पर , 
जो जिस तरह दुनिया में गुन तीन है -यहीं उसके अक्साम सुन ,तीन हैं .II 19 II 
नजर आये जिस ज्ञान से बरमला -हरेक में वही हस्तीये लाफना , 
जो कसरत में वहदत की पहचान है -तो ऐने सतोगुन यही ज्ञान है .II 20 II 
नजर आये कसरत में कसरत अगर -कि सब हस्तियाँ हैं जुदा सरबसर , 
जो कसरत में वहदत से अनजान है -रजोगुन उस इंसान का ज्ञान है.II 21 II 
अगर जुजू में दिल लगाने लगे -इसी जुजू को कुल बताने लगे , 
तो दानिश वो कोतह ,नजर तंग है -तमोगुन इसी ज्ञान का रंग है.22 II 
अमल वो लाजिम है और बेलगाव -न रगबत ,न नफ़रत का जिसमे सुभाव , 
न हो फल की ख्वाहिश का जिसमे खलल -यही है ,यही है सतोगुन अमल.II 23 II 
मगर वो अमल जिसमे फल का हो शौक -रहे लज्जतो कामरानी का जौक , 
खुदी की नुमायश हो और दौड़ धूप -ये समझो अमल का रजोगुन है रूप .II 24 II 
फरेबे नजर से करें काम अगर -न हो फिक्रे इमकानो -अंजाम अगर ,
न हो जिसमे ईजा औ नुकसां पे गौर -तमोगुन अमल के यही बस हैं तौर .II 25 II 
तअल्लुक से बाला खुशी से बरी-इरादे का मजबूत ,दिल का कवी ,
बराबर है जिसके लिए हार जीत -वो आमिल सतोगुन की रखता है रीत .II 26 II 
जो तालिब है फल का हवसनाक है -जो लोभी है ,ज़ालिम है ,नापाक है ,
खुशी से जो खुश हो ,जो गम से मलूल -वो अमिल रजोगुन के बरते उसूल .II 27 II 
जो चंचल कमीना है जिद्दी कि सुस्त -नहीं काम करने में चालाक चुस्त , 
फरेबी ,शरीर और मगमूम है -वो आमिल तमोगुन से मौसूम है .II 28 II 
अयां अक्ले इन्सां के हों तीन गुन -बताता हूँ अर्जुन तवज्जो से सुन , 
हैं गुन अज्मे दिल के भी तीनों यही -ब तफसील सुन मुझ से ले आगही .II 29 II 
हों तर्के अमल ,खैर हो कि हो शर -निजातो असीरी ,दिलेरी कि डर . 
जो फ़र्को तमीज इनमे समझ आयेगी -सतोगुण वही अक्ल कहलायेगी II 30 II 
बताये न जो साफ़ धर्म और अधर्म -रवा कौन है ,ना रवा कौन कर्म , 
तो अर्जुन नही है सतगुन वो अक्ल -है अपने गुनों से रजोगुन वो अक्ल .II 31 II 
घिरी हो अँधेरे में दानिश अगर -जो शर को कहे खैर ,नेकी को शर , 
हरेक बात उलटी ,हरेक में फितूर -तमोगुन वही अक्ल है बिल्जरूर .II 32 II 
अगर योग से अज्म हो इस्तवार-हवासो -दिलो -दम पे हो इख़्तियार , 
तो अच्छा वही अज्म ,अर्जुन समझ -वही अज्मे -रासिख तमोगुन समझ .II 33 II 
मगर अज्म वो जिस में हो शौके ज़र-फ़रायज से मकसूद हो फिक्रे समर , 
हवा ओ हवस से रहे जिस को काम -रजोगुन है इस अज्म का पार्थ नाम .II 34 II 
है वो अज्मे खाली ,जहालत का बाब -रहे आदमी जिस से पाबंदे ख़्वाब , 
बढे खौफो -रंजो -मलालो गुरूर -तमोगुन वही अज्म है बिल्जरूर .II 35 II 
सुन अब मुझसे भारत के सरदार सुन -कि सुख के बी इन्सां में हैं तीन गुन , 
है पहले वो सुख ,जिस से दुख दूर हो -बसर मश्क से जिसकी मसरूर हो .II 36 II 
वो सुख जिसमे हासिल हो दुख से निजात -वो पहले ज़हर फिर हो आबे हयात ,
वो सुख आत्मा के लिए जान ले -सतोगुन है बेशक ये पहचान ले.II 37 II 
जो महसूस से मेल खाकर हवास -मुसर्रत की लज्जत से हों रूशनाश ,
तो पहले वो अमरित है फिर ज़हर है -रजोगुन मुसर्रत की एक लहर है II 38 II 
हो मदहोश इन्सां जिस आराम में -जो धोका है आगाजो अंजाम में ,
बढे मस्ती ओ गफलतो ख़्वाब से -तमोगुन वो सुख है इसे जानले.II 39 II 
जो माया से पैदा हुए तीन गुन -कोई इनसे बाहर नहीं खूब सुन ,
जमीं पर ,फलक पर या हों देवता -नही कोई इन तीन गुन के बिना II 40 II 
बिरहमन हों क्षत्री हो या शूद्र वैश -सुन अर्जुन हरेक का निराला है कैश ,
फ़रायज जुदा ,सबकी खसलत जुदा -कि फितरत ने कि सबकी तबियत जुदा .II 41 II 
सूकूं,जब्त ,उफूये खता ,रास्ती -खिरद ,इल्मो ईमान पाकीजगी ,
रियाजत ,इबादत के पाकीजा कर्म -ये फितरत ने रक्खा बिरहमन का धर्म .II 42 II 
शुजाअत ,सखावत ,तबात और जमाल -खुदावन्दगारी औ फन में कमाल , 
कभी छोड़ जाए न मैदाने जंग -ये होते है क्षत्री की फितरत के रंग .II 43 II 
जो है वैश्य तबअन तिजारत करे -करे गल्लाबानी ज़राअत करे , 
जो है शूद्र ,सबके वो करता है कार -है फितरत से खिलकत का खिदमत गुजार .II 44 II 
अगर अपने अपने करो कारोबार -तो हो जाओगे कामिल अंजामकार ,
अगर फर्ज की अपनी तामील हो -तो सुन क्यों न इन्सां की तकमील हो .II 45 II
वही जात जिस से खुदायी हुई -जो सारे जहाँ पर है छायी हुई , 
उसी की परस्तिश ,इबादत से गर्ज-है तकमील इन्सान पर उसकी फर्ज .II 46 II 
नहीं मंसबी धर्म तेरा अगर जो खूबी से भी कर सके तो न कर , 
जो है धर्म तेरा वो कर काम आप -बुरा हो भला हो नहीं इसमे पाप .II 47 II 
जो है तबई धर्म उसकी तामील कर -जो नाकिस भी हो उनकी तकमील कर , 
कि कामों में अर्जुन जियां साथ है -जहाँ भी है आतिश धुआं साथ है .II 48 II
जो कामों से मन को लगावट नहीं -हवस तर्क हो ,नफ्स जेरे नगीं, 
तो इस तर्क से पाए रुतबा बुलंद -न कर्मों की बाक़ी रहे कैदो बंद .II 49 II 
सुन अब मुख़्तसर मुझसे कुंती के लाल -कि हासिल जो करता है ओजे कमाल , 
वो फिर ब्रह्म से जाके वासिल हो कब -ये अआला तरीं ज्ञान हासिल हो कब .II 50 II 
हो काबू जिसे नफ्स पर मुस्तकिल -करे पाक दानिश में सरशार दिल , 
न आवाजो महसूस से अश्या से काम -वो रगबत से नफ़रत से बाला मुदाम .II 51 II 


जो खाता हो कम और हो खिल्वत नशीं -हों तन ,मन ,जुबां जिसके जेरे नगीं , 
रहे ध्यान और योग में मुस्तकिल -हमेशा हो बैराग में जिसका दिल .II 52 II 
अहंकार उसमे न बल का गुरूर -तकब्बुर ,गजब ,हिर्सो शहवत से दूर , 
खुदी हो बुरी जिसको ,दिल में सुकूं -वही ब्रह्म का वस्ल पाए न क्यूँ .II 53 II 
हो जब वासिले ब्रह्म दिल शाद हो -गमो ,रंजो .उल्फत से आजाद हो , 
जो समझे है मख्लूक यकसां सभी -नसीब उसको भगती हो आला मेरी .II 54 II 
वो भगती से मेरी मुझे जान ले -कि मैं कौन हूँ ,क्या हूँ ,पहचान ले , 
मेरा ज्ञान जब उसको हासिल हुआ -मेरी जाते आली में वासिल हुआ .II 55 II 
करे जिस कदर उसपे लाजिम हैं काम -मगर आसरा मुझ पे रक्खे मुदाम ,
वो रहमत में मेरी समा जाएगा -मुकामे बका को वो पा जाएगा .II 56 II 
तू मुझपर सभी काम सन्यास कर - इन्हें छोड़ ,दिल से मेरी आस कर .
तू ले अक्ल के योग का आसरा -खयालात अपने मुझी में लगा .II 57 II 
अगर मन में मुझको बिठाएगा तू -तो हर रोग से पार जायेगा तू ,
सुनेगा न मेरी अहंकार से -तबाही में जाएगा ,पिन्दार से .II 58 II 
ये कहना तेरा खुद अहंकार है -कि मुझको लड़ाई से इन्कार है ,
ये सब अज्म काफूर हो जाएगा -तू फितरत से मजबूर हो जाएगा .II 59 II 
बनाया है जो तेरी फितरत ने धर्म -कराएगी फितरत वाही तुझ से कर्म ,
तुझे लाख रोके फरेबे ख्याल -करेगा तू नाचार कुंती के लाल .II 60 II 
सुन अर्जुन खुदा है ,खुदा हर कहीं -खुदायी के दिल में खुदा है मकीं ,
वो सब हस्तियों को घुमाता रहे -वो माया का चक्कर चलाता रहे II 61 II 
पनाह अपनी भारत उसी को बना -उसी की इबादत में हस्ती लगा ,
तू रहमत में उसकी समा जाएगा -सुकूनो बका उस से पा जाएगा .II 62 II 
बताया तुझे मैंने अय पाकबाज -ये ज्ञानों का ज्ञान और राजों का राज ,
तवज्जो से इस राज पर गौर कर -अमल इस पे तू चाहे जिस तौर कर .II 63 II 
सुन अब सर्रे -पिन्हाँ की एक औए बात -बड़े राज की काबिले गौर बात ,
कि अर्जुन तू प्यारा है ,महबूब है-तेरा फ़ायदा मुझको मतलूब है .II 64 II 
लगा मुझमे दिल भक्त होजा मेरा -तू कर यग ,मेरे सामने सर झुका ,
मुझे तुझसे ,मुझसे ,तुझे प्यार है -मेरा वस्ल का तुझसे इकरार है.II 65 II 
तू सब धर्म छोड़ और ले मेरी राह -तू मांग आके दामन में मेरे पनाह ,
तेरे पाब सब दूर कर दूंगा मैं -न गमगीं हो ,मसरूर कर दूंगा मैं .II 66 II 
ये राज उस ने मत कह जो जाहिद न हो -ये राज उस से मत कह जो आबिद न हो 
न उस से ,जो हो बद जुबां,नुक्ताचीं -न उस से ,जो सुनने का ख्वाहाँ नहीं .II 67 II 
मेरा भक्त होकर बइज्जो -नियाज -जो भक्तों से मेरे कहेगा ये राज ,
उन्हें सर्रे आली सिखाएगा जो -मेरा वस्ल बे शुबहा पायेगा वो.II 68 II 
कहाँ उस से बढाकर है इन्सां कोई -करे ऎसी प्यारी जो सेवा मेरी ,
मुरव्वत की आँखों का तारा है वो -मुझे सारी दुनिया से प्यारा है वो .II 69 II 
पढेगा जो कोई बराहे सवाब -हमारे मुक़द्दस सवालों जवाब ,
मैं समझूँगा उसने दिया ज्ञान यग -इबादत में मेरी किया ज्ञान यग .II 70 II 
फकत जो सुने दिल में रखकर यकीं-निकाले न ऐब और न हो नुक्ता चीं.,
गुनाहों से वो मुखलिसी पायेगा -कि नेकों की जन्नत में आ जाएगा .II 71 II 
भगवान ने कहा -
सूना तूने अर्जुन ये मेरा कलम -सुना तबये -यकसू से तूने तमाम ,
बता तेरे दिल से धनंजय कहीं ,फरेबे जहालत ,गया कि नहीं .II 72 II 
अर्जुन ने कहा -
पुकारा फिर अर्जुन ने कि अय लाजवाल -हुआ दूर शक और फरेबे ख्याल ,
पता चल गया ,दिल है मजबूत अब -बजा लाऊंगा आपके हुक्म सब .II 73 II 
संजय ने कहा -
सुना मैंने जो श्री कृष्ण ने जो कहा -जो अर्जुन महा आत्मा ने सुना,
अजब हैरत अंगेज थी गुफ्तगू -खड़े हैं मेरे रोंगटे मूबमू .II 74 II 
सुना व्यास जी की दयासे तमाम -ये श्री कृष्ण योगेश्वर का कलाम ,
खुद उनके लबों से सुना है सभी -यही योग आली ,ये सर्रे खफी .II 75 II 
जो जेशव से अर्जुन हुए हम कलाम -अजब गुफ्तगू है मुक़द्दस तमाम ,
उसे याद करता हूँ मैं बार बार -तो दिल शाद करता हूँ मैं बार बार .II 76 II 
हरी की हुई दीद मुझको नसीब -मेरे सामने है वो सूरत अजीब ,
उसे यद् करता हूँ मैं बार बार -तो दिल शाद करता हूँ मैं बार बार .II 77 II 


जिधर हैं कृष्ण मेहरबां-योगेश्वर हैं खुद जहाँ ,
जिधर है साहबे कमाल अर्जुन जैसा पहलवां,
वहीँ हैं शाद कामियां,वहीं खुश इंतजामियाँ,
वहीं हैं कामरानियाँ वहीं है शादमनियां .II 78 II 


-अठारहवां अध्याय समाप्त -


:-ॐ तत सत इति :-
























5 comments:

  1. बहुत ही सार्थक परिश्रम है यह गीता का उर्दू रूपांतर्॥

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  2. sharmaji , namskar.... kaise hai aap....??

    aapka blog http://bhandafodu.blogspot.com/ ka naam change ho gaya hai ya adrs change ho gaya hai..... kya aapne bloge band kar diya hai ??
    krpa kar batane ka kast kare??

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  3. शर्माजी बहुत ही सुन्दर कार्य कर रहे हैं आप....बधाई

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  4. BAHOT HI MAHAN KAAM AAP NE KIYAA HAI BAHOT BAHOT BADHAI AAPKO !!

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  5. आपका हार्दिक आभार शर्मा जी!

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