Tuesday, June 14, 2011

दूसरा अध्याय :सांख्ययोग


सांख्य योग -शगले इरफान 
संजय ने कहा - 
जो अर्जुन का देखा ये रंजोमलाल -गमो सोज दिल में तबीयत मलाल , 
नजर दुःख से बेचैन ,आँखों में नम-तो भगवान बोले जि राहे करम .II 1 II 
भगवान ने कहा - 
सुन अर्जुन ये कैसी रविश है रजील -जो दोजख में डाले ,जो कर दे जलील . 
कठिन वक्त में ऐसी क्यों बेदिली -न हो आर्यायों में यूं बेदिली .II 2 II 
तू अर्जुन न बन हीजे नामर्द ओ जार -,नहीं तेरे शायाने शां जी को हार . 
ये कम हिम्मती छोड़ ,कर जी कड़ा-,उदूसोज अर्जुन ,खडा हो !खडा .II 3 II 
अर्जुन का जवाब - 
वो बोला कि,अय फातिहे दुश्मना-मधूमार मुझसे ये होगा कहाँ . 
मुआज्जिज हैं ,भीषम द्रोण हैं गुरू -बहाऊँ मैं तीरों से उनका लहू .II 4 II 
गुरू मोहतरम का नहीं खूँ रवा -गदाई में इस से तो जीना भला . 
मैं इन खैरख्वाहों का खूं गर करूं -तो इशरत के लुक्मे लहू से भरूँ.II 5 II 
मैं क्या जानूँ अच्छा है ,अय सरपरस्त -शिकस्त इनको देना या खाना शिकस्त . 
ये धृष्ट राष्ट्र के पिसर हैं तमाम -इन्हें मार कर अपना जीना हराम .II 6 II 
तबीयत है कमजोर ,दिल नर्म है-ये उलझन है क्या मेरा धर्म है . 
मैं चेला हूँ ,मेरी मदद कीजिए -जो हो नेक रस्ता बता दीजिए .II 7 II 
जहाँ का मुझे मिले खलल मुझको राज -मुझे देवता भी जो दें आकर खिराज . 
मैं उस हाल में भी रहूँगा उदास -इसी दर्द से ग़ुम हैं मेरे हवास .II 8 II 
संजय ने कहा - 
गुडाकेश ,वो फातिहे -दुश्मनां-ऋषीकेश से कर चुका जब बयां . 
तो यूं कह के चुप हो गया वो हजीं-"मैं गोविन्द ,लड़ता लड़ाता नहीं .II 9 II 
इधर फ़ौज थी और उधर फ़ौज थी -दिल अर्जुन का और गम की इक मौज थी. 
ऋषिकेश कुछ मुस्कुराने लगे -ये इरफ़ान के मोती लुटाने लगे .II 10 II 
भगवान ने कहा -
तू बातों के आकिल न हो दिल मलूल -न कर उनका गम ,जिनका गम है फिजूल . 
सताएं न दाना को रंजो अलम-मरे का न सोग और जीने का गम .II 11 II 
अजल से थी मौजूद हस्ती मेरी -अजल से थी मौजूद हस्ती तेरी . 
ये राजा सभी ,और ये खिलकत तमाम -हमेशा से हैं ,और रहेंगे मुदाम .II 12 II 
करे रूह जैसे तगय्युर बगैर -लडकपन जवानी बुढापे की सैर . 
यही फिर नए तन में होगी मकीं -अगर दिल है मजबूत चिंता नहीं .II 13 II 
ये गर्मी ,ये सर्दी ये दुःख सुख तमाम -बस अहसासे अश्या से हों लाकलाम . 
ये कैफीयतें आनी -जानी हैं ये -सहे जा खुशी से ,कि फानी हैं ये .II 14 II 
वो इन्सां ,असर जिस पे इनका नहीं -ख़ुशी से ,न खुश हो न गम से हजीं. 
सुन अर्जुन ,है कायम दिल उसका मुदाम -उसी की है शायां हयाते दवाम .II 15 II 
जो बातिल है मौजूद होता नहीं -जो हक़ है ,वो नाबूद होता नहीं .
वोहै बूद ओ नाबूद से से बा खबर -हकीकत पे रहती है जिसकी नजर .II 16 II 
उसी को बका है ,उसी को सबात -जहाँ पर है छायी हुई जिसकी जात .
भला किसकी ताकत है ,किसकी मजाल -फ़ना कर सके हस्तीये लाजवाल .II 17 II 
बसाये हैं जिस आत्मा ने वुजूद -वो कायम है ,दायम है और बे हुदूद .
है फानी बदन ,आत्मा ला जवाल-फिर अर्जुन है क्यों जंग में कीलो -काल .II 18 II 
कभी खून करती नहीं आत्मा -कभी खुद भी मरती नहीं आत्मा .
न कातिल है ये ,और न मकतूल है -जो ऐसा समझता है ,मजहूल है .II 19 II 
जनम इसको लेना ,न मरना इसे -न आकर जहां से गुजरना इसे .
अनादी ,फ़ना और तगय्युर से पाक -ये मरती नहीं ,गो बदन हो हलाक.II 20 II 
जो समझे इसे दायमो लायजाल-मुबर्रा विलादत से और बे जवाल .
किसी का वो क्योंकर बहायेगा खून -किसी का वो क्योंकर कराएगा खून .II 21 II 
बदलता है इन्सां लिबासे कुहन -नया जमा करता है फिर जेबे तन .
उसी तरह कालिब बदलती है रूह -नए भेस में फिर निकलती है रूह .II 22 II 
कटेगी न तलवार से आत्मा -जलेगी कहाँ नर से आत्मा .
न गीली हो पानी लगाने से ये -न सूखे हवा में सुखाने से ये .II 23 II 
न कट ही सके ,और न जल ही सके -न सूखे न पानी से गल ही सके .
कदीम और अटल भी है दायम भी है -मुहीते जहां भी है ,कायम भी है .II 24 II 
नहीं आत्मा को तगय्युर जवाल -हवास इसको पायें ,न पहुंचे ख़याल .
तुझे आत्मा का जो ये ज्ञान है ,तो फिर किसलिए गम से हलकान है .II 25 II 
अगर तू समझता है ,ये आत्मा -हो पैदा कभी और कभी हो फना .
तो फिर भी है लाजिम तुझे अय कवी -कि गम आत्मा का न करना कभी .II 26 II 
जो पैदा हो मौत उसको आये जरुर -मरे ,तो जनम फिर वो पाए जरुर .
जो ये अम्र लाजिम है ,और नागुजीर -तो फिर किसलिए तू है गम का असीर .II 27 II 
निगाहों से पहिले निहां हों वुजूद -ये फिर बीच में अयां हों वुजूद .
निहां फिर ये हो जाएँ अंजामकार -तू अर्जुन है फिर किसलिए बेकरार .II 28 II 
कोई आत्मा से तआज्जुब में आये -कोई बात हैरत से उसकी सुनाये .
कोई जिक्र सुन सुन के हैरान है -मगर सुन सुनाकर भी अनजान है .II 29 II 
जो है सब के तन में मकीं आत्मा -ये दायम है ,फानी नहीं आत्मा .
जो इसपर यकीं है तो ,भारत के लाल -न कर अहले हस्ती का रंजो मलाल .II 30 II 
तेरा फर्ज क्या है ,रख इस पे नजर-न जी डगमगा इसकी तकमील कर . 
अमल क्षत्री का कोई क्यों न हो -न पहुंचे कभी धर्म की जंग को .II 31 II 
हैं अर्जुन वही क्षत्री खुशनसीब -मिले मार्का जिनको ऐसा अजीब . 
ये बिन मांगे नेमत खुद आई है घर -खुले खुद बखुद आके जन्नत के दर .II 32 II 
अगर धर्म की तू लडेगा न जंग -और इस जंग में कुछ करेगा दिरंग . 
तो पत तेरी बाकी रहेगी न धर्म -तुझे पाप घेरेंगे आयेगी शर्म .II 33 II 
तुझे लोग देखेंगे तहकीरसे -न लेंगे तेरा नाम तौकीर से .
जो बा आबरू इस जहां में रहे -वो मरने को जिल्लत पै तरजीह दे .II 34 II 
कहेंगे महारथ ,बहादुर सवार -तू मैदां से डर कर हुआ है फरार .
तुझे सब बुलाते हैं इज्जत से अब -ये लेंगे तेरा नाम जिल्लत से तब .II 35 II 
इधर तेरे दुश्मन जो रखते हैं कद -जिन्हें है शुजाअत पै तेरी हसद .
वो बोलेंगे नागुफ्तनी बोलियाँ -मिले रंजो गम इस से बढकर कहाँ .II 36 II 
मरेगा तो पायेगा जन्नत में घर -अगर जित जाये ,तो दुनिया हो सर .
उठ अर्जुन ,खड़ा हो दिखा जोरे जंग -कि मर्दों को मैदां से हटना है नंग .II 37 II 
हो सुख हो याकि दुःख सबको यकसां समझ -मसावी यहाँ नफ़ओ नुक्स्सां समझ . 
बराबर समझ जंग में जीत हार-बचेगा गुनाहों से ,दो हाथ मार.II 38 II 
ये तालीम थी सांख्य के ज्ञान से-समझ योग की बात अब ध्यान से . 
अगर योग में तुझको है इन्म्हाक -तो कर्मों के बंधन से हो जाये पाक .II 39 II 
ये कोशिश हो इसमे कोई रायगां-हो रस्ते में इसके रुकावट कहाँ . 
ज़रा भी जो ये धर्म आ जायेगा -तो खौफो खतर से बचा जाएगा .II 40 II 
जो अक्ले इरादी रहे मुस्तकिल -तो यकसूँ हो और पुख्ता इन्सां का दिल . 
इरादा हो जिसका न सुलझा हुआ -रहेगा ख्यालों में उलझा हुआ .II41II
जो वेदों के लफ्जों में हैं शादमां-वो नादां करें गुल अफ्शानियाँ . 
उन्हें कर्म कांडों से है आगही -वो कहते हैं ,सब कुछ यही है ,यही .II42II
जनम को बताएं वो कर्मों का फल -सिखाएं जारो ऐश के सौ अमल . 
वो खुदकाम है ,कामनाओं में मस्त -वो जन्नत के तालिब जन्नत परस्त .II 43 II 
फंसें जिनके दिल ऐसे अक्वाल में -घिरें ऐश दौलत के जंजाल में . 
समाधी नहीं ,दिल पै काबू नहीं -कि अक्ले इरादी ही यकसू नहीं .II 44 II 
हैं वेदों में लिक्खे हुए तीन गुन-तू बाला हो इनसे न रख इनकी धुन . 
रख इजदाद का ,और न हासिल का गम -हो महव आत्मा में ,सदाकत पै जम .II 45 II 
वो इन्सां जिसे ब्रह्म का ज्ञान है-उसे कर्म कांडों पे कब ध्यान है . 
उसे वेद महज एक तालाब है-जहाँ सारे आलम में सैलाब है .II 46 II 
तुझे काम करना है ,ओ मरदे कार -नहीं इसके फल पे तुझे इख्तियार . 
किये जा अमल ,न ढूंढ़ इसका फल -अमल कर ,अमल कर , न हो बे अमल .II 47 II 
रख अर्जुन तू दिल में योग इस्तवार-तू कर बे लगावट अमल इख्तियार . 
न जीते की शादी ,न हारे का सोग -कि दिल के तवाजन का है नाम योग .II 48 II 
सुन अब अक्ल के योग का हल सुन -बहुत पस्त हैं जिनके कर्मों के गुन.
बना अक्ले खालिस को तू दस्तगीर -रहें फल के तालिब जलीलो हकीर .II59 II 
लगी है जिसे अक्ले खालिस कि धुन -यहीं छोड़ देगा वो सब पाप पुन .
कमा योग ,तन मन में बस जाये योग-अमल में हुनर हो तो कहलाये योग .II 50 II 
कि शरशारे दानिश मुनी बा अमल -करें सब अमल ,छोड़ कर इनके फल .
जनम के वो बंधन से आजाद है -सुरुरे अबद,पाक ,दिलशाद हैं .II 51 II 
जो हो अक्ल आजाद जंजाल से -निकल जाये तू मोह के जाल से.
सुनी बात से भी करे एहतराज -रहे अनसुनी से भी तू बेनियाज .II 52 II 
परेशां ख्याली से पाए सुकूं-मुक़द्दस सहीफों का गम हो फुसूँ .
समाधी से कायम हो दिल ,जात में -तो हासिल हो फिर योग हर बात में .II53 II 
अर्जुन का सवाल -
फिर अर्जुन ने पूछा ,ये भगवान से-समाधी में दी को जो कायम करे .
है उस कायमुल अक्ल का क्या चलन -हो क्या बूदो -बाश,उसका कैसा सुखन .II 54 II
भगवान से कहा - 
तो भगवान बोले ,जो हो महवे जात-जो मन से करे दूर सब खाहिशात . 
रहे जिसका दिल रूह से मुतमइन -उसी फर्द को कायमुल अक्ल गिन .II 55 II 
जो सुख से सुखी हो ,न दुःख से दुखी -न खौफ उसको आये न गुस्सा कभी . 
न जज्बों के जंजाल में आजाये वो -मुनी कयामुल अक्ल कहलाये वो .II 56 II 
बुराई जो पहुंचे ,तो नालां न हो -भलाई जो पहुंचे तो शादाँ न हो . 
न इस से तआल्लुक न उस से लगाव -यही कयामुल अक्ल है सुभाव .II57 II
जरा भी दे कोई कछुवे को छेड़ -तो लेता है फ़ौरन सब एजा सुकेड़. 
सुकेड़े जो हर शै से अपने हवास -वो है कायमुल अक्ल अय शनास .II 58 II 
करें नेमतें तर्क ,परहेजगार -मगर शौके लज्जत से हो बेक़रार . 
उसे तर्के लज्जत की लज्जत मिले -उसे दीद -बाजी की दौलत मिले .II 59 II
खिरदमंद को भी हवासो ख्याल -जो तेजी से आजायें ,कुंती के लाल . 
तो मन को भी वो छीन ले जायेंगे -करे लाख कोशिश ,न हाथ आयेंगे .II 60 II
हवास अपने रोक ,और लगा मुझ में दिल -तू शरशार हो ,योग में मुस्तकिल . 
रहें जब्त जिसके होशो हवास -वो है कायमुल अक्ल ए हक़ शनास.II 61 II 
लगाये जो महसूस अश्या से मन -तआल्लुक बढे उनसे और हो लगन . 
तआ ल्लुक से खाहिश का हो फिर जहूर -हो खाहिश से गुस्से का दिल में फितूर .II 62 II 
हो गुस्से से फिर तीरगी रूनुमा -असर तीरगी का सुहू औ खता . 
इसी सुहू से अक्ल हो पायमाल -हो ,जाया हुई अक्ल ,आये जवाल II 63 II 
जो महसूस करता है दुनिया को सैर -न उल्फत किसी से है जिसको न बैर .
रहे नफ्स पर जब्त जिसको मुदाम -वो तसकीने दिल रहे शादकाम .II 64 II 
दिले पुरसुकूं में कहाँ उसको रंज -कि दुख दूर हो जाएँ मिट जाये रंज .
जो पैदा हो दिल में सुकूनो करार -वहीँ अक्ल कायम हो और इस्तवार.II 65 II 
न हो दिल पे काबू तो ,दानिश मुहाल-न हो दी पे काबू तो भटके ख्याल .
परेशां खयाली से से आये न सुख -जिसे सुख न आये सदा उसको दुख .II 66 II


हवास आदमी के भटकते हों गर-तो हों उस हर्जगर्दी का दिल पे असर .
तो दिल -अक्ल को ले चले इस तरह -कि तूफां में किश्ती बहे जिस तरह .II 67 II
जो इन्सान हवास अपने रोके रहे -न महसूस अश्या में भटका रहे .
तो सुन ले मेरी बात ,अर्जुन कवी -कि है कायमुल इन्सां वही.II 68 II
जिसे रात कहती है दुनिया तमाम -निगाहों में आरिफ की दी है मुदाम .
जो दिन अहले आलम के नजदीक है -वो आरिफ की शब् है ,कि तारीक है .II69 II
समंदर में गायब हों दरिया हजार -रहेगा वो लबरेज और बा वकार. 
सब अरमां हों गुम जिनके सिने में बस -वही पायें राहत,न अहले हवस .II 70 II 
जो इन्सां करे खाहिशें दिल से दूर -हवस का न हो जिसके दिल में फितूर . 
न उसमे खुदी हो न तेर - मेर -सुकून उसको हासिल है ,दिल उसका सैर .II 71 II 
यही है विसाले मुकामे खुदा -जहाँ एके हों सब तवह्हम फ़ना . 
दिले वापसी भी जो ये ज्ञान हो -तो हासिल उसे ब्रह्म निर्वान हो .II 72 II 
    -दूसरा अध्याय समाप्त -

































































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