Friday, June 24, 2011

छठवां अध्याय :आत्मसंयम

-आत्मसंयम -तजकि ए नफ्स -

भगवान ने फरमाया -
सुन अर्जुन जो इन्सां करे सब अमल -फ़रायज बजा लाये ढूँढे न फल , 
वो योगी है ,और संन्यासी जरूर -न वो जो रहे आग किरिया से दूर .II 1 II 
वही जिसको सन्यास कहते हैं लोग -सुन अर्जुन वही है वही खास योग , 
कि खुद योग में मर्दे-कामिल नहीं -जो छोड़े न फिक्रे चुनां ओ चुनीं .II 2 II 
मुनी वो जिसे योग दरकार है -अमल ही अमल जिसका हथियार है , 
मगर योग से जब वो हो कामगार -तो हथियार है उसका सुकूनो करार .II 3 II 
न महसूस अश्या से जिसको लगन -अमल से लगावट न उसमे लगन ,
नहीं जिसको फिक्रे चुनानो चुनीं -कहें योग का उसको मसनद नशीं .II 4 II 
मुनासिब नहीं खुद को इन्सां गिराए -वो खुद को उभारे ,खुद को उठाये ,
कि इन्सान खुद अपना गमखार है -वो खुद अपना बदख्वाहो -गद्दार है .II 5 II 
करे नफ्स को अपने जेरे नगीं-वो ख्वाह अपना गमख्वार है बिल्यकीं,
मगर जिसको काबू नही नफ्स पर -वो दुश्मन है अपने लिए सरबसर .II 6 II 
जिसे नफस पर अपने है इख़्तियार -उसी को परमात्मा में करार , 
हो गरमी कि सर्दी ,हो गम या ख़ुशी -हो इज्जत कि जिल्लत हैं यकसां सभी. II 7 II 
वो सरशार योगी रहे इस्तवार-मिले इल्मो इरफांमें जिसको करार , 
हवास उसके हैं ,जेरे मजबूत दिल -हैं यकसां उसे ,जर हो मिट्टी की सिल .II 8 II 
वो योगी है अफजल जिसे हों सब एक -सगे ,दोस्त ,अहबाब बेलाग नेक , 
हों सालिस कि दुश्मन ,दिल आजार हों -वो धरमातमा हों कि बदकार हों .II 9 II 
जो योगी हैं ,वो योग तन्हा कमाए -अलग रह के दिल आत्मा में लगाए , 
रहे उसके काबू में तन हो कि मन -उमीदो हवस से न हो कुछ लगन .II 10 II 
कुशाघास पर मिरगछाला बिछाए -फिर उस मिरगछाला पे चादर लगाए , 
जमा उस पे आसन करे ऐतकाफ-न ऊंची न नीची जगह पाक साफ़ .II 11 II 
सुकूं चित को दे ,लौ मुझी से लगाए -हवासो तखय्युल को काबू में लाये , 
जमे अपने आसन पे वो मुस्तकिल -करे योग को साध कर पाकदिल .II 12 II 
सरो -पुश्तो -गरदन झुकाए न वो -बदन को हिलाए डुलाये न वो ,
जमाये नज़र नाक की नोक पर -निगाहें न भटकें इधर और उधर .II 13 II 
रहे पुरसुकूं ,बे खतर मुस्तकिल -तजर्रुद पे कायम हो ,काबू में दिल ,
मेरी ज़ात से लौ लगाये हुए -मेरे ध्यान में दिल जमाये हुए .II 14 II 
अगर योग वो यूं कमाता रहे -तो मन उसका काबू में आता रहे ,
सुकूं आत्मा में समा जाएगा -वही मेरा निर्वान पा जाएगा .II 15 II 
न हासिल करे योग बिसयार -खार -न वो जिसका हो भूक से हाल जार ,
बहुत सोनेवाला भी पाए न योग -बहुत जागने से भी आये न योग .II 16 II 
हो योगी के हर काम में ऐतदाल-गिज़ा और आराम में ऐतदाल,
मुनासिब ही जाग ,और मुनासिब ही ख़्वाब -मिटाता है योग ,उसके दर्दो अज़ाब .II 17 II 
अगर उसके काबू में दायम हो मन -फकत आत्मा में कायम हो मन ,
रहे लज्ज़ते -नफ्स से दूर -वो सरशार है योग में बिल्जरूर .II 18 II 
हवा की न हो मौज ,जुम्बा की रौ-तो लरजे कहाँ शम्मे रौशन की लौ , 
यही होगा योगी को हासिल सबात -ख्याल उसके बस में ,तो मन महवे जात .II 19 II 
जहां मन को आये सुकूनो करार -रियाजत करे दिल का दूर इन्तिशार , 
जहां मन में हो आतमा का ज़हूर -करे मुतमइन आत्मा का सुरूर .II 20 II 
जहां बेनिहायत हो राहत नसीब -हिसों से बईद और खिरद के करीब , 
जहां हो हकीकत से इन्सां न दूर -रहे आत्मा में कयामो सुरूर .II 21 II 
जहां उसको मिलने से आये यकीं-कि दौलत कोई इससे बढ़कर नहीं , 
जहाँ इस में जम कर वो आजाये सुख -कि जुम्बिश न दे उसको दुनिया का दुख.II22 II 
जहां गम है बाक़ी न कुछ सोग है -यही योग है ,हाँ यही योग है , 
इसी योग में दिल यकीं से जमाओ -इसी योग से तुम अकीदत दिखाओ .II 23 II 
ख्यालों की औलाद हिर्सो हवा -इन्हें यक कलम दूर करता हुआ , 
हवास अपने हर सिम्त से घेर कर -दिली ज़ब्त से उनका रुख फेर कर .II 24 II 
जिसे अक्ल पर अपनी हो इख्तियार -वो हासिल करे रफ्ता रफ्ता करार ,
करे उसका मन आत्मा में कयाम -न उसको ख्याले दुई से हो काम .II 25 II 
मन इन्सां का चंचल है और बेकरार -रहे दौड़ता ,भागता बार बार ,
वो भागे तो ,बाग़ उसकी झट मोड़ दे -हिफाजत में फिर रूह की छोड़ दे .II 26 II 
वो योगी जिसे मन में आये सुकूं- सतोगुण से दिल जिसका पाए सुकूं ,
खुदा से हो वासिल ,गुनाहों से दूर -उसी को मुयस्सर हो आला सुरूर .II 27 II 
जो योगी रहे योग में इस्तवार-गुनाहों से दामन न हो दागदार ,
उसी को मिले नेमते बेकराँ-की पाए विसाले खुदाए -जहां .II 28 II 
अगर योग में नफ्स सरशार है -तो फिर ये हकीकत नमूदार है ,
की हर शै में है आत्मा की नुमूद -तो हर शै का है आत्मा में वुजूद .II 29 II 
जो हर सिम्त पाता है मेरा ही नूर -मुझी में जो हर शै का देखे ज़हूर ,
कभी मुझ से मुंह मोड़ सकता नहीं -कभी मैं उसे छोड़ सकता नहीं .II 30 II 
जो कसरत में वहदत का देखे समां-जो पूजे मुझे ,हूँ जो सब में अयाँ, 
वो योगी रहे गो किसी ढंग में -मुझी से हो वासिल वो हर रंग में .II 34 II 
सुख औरों का समझे जो अपना ही सुख -दुख औरों का समझे अपना ही दुख , 
जो सबका करे अपने जैसा ख्याल -सुन अर्जुन ,कि योगी है वो बाकमाल .II 35 II 
अर्जुन का सवाल - 
सुकूं का जो मुझको सिखाया है योग -मेरे दिल को भगवान भाया है योग , 
बिना इसकी लेकिन नहीं मुस्तकिल -कि चंचल है ,चंचल है ,चंचल है दिल .II 36 II 
ये भगवान ,बेकल है पुरशोर दिल -कि सरकश है ,मुंहजोर , जिद्दी है दिल , 
न काबू में आये किसी चाल में -हवा बंद होती नहीं जाल में .II 34 II 
भगवान का इरशाद - 
कहा सुन के भगवान ने ,अय कवी -दिल इंसां का पुरशोर चंचल सही , 
है वैराग और मश्क में ये कमाल -दी आजाये काबू में कुंती के लाल .II 35 II 
अगर नफ्स पर जब्ते कामिल नहीं -तो फिर योग इंसां को हासिल नहीं , 
मगर नफ्स पर हो जिसे इख्तियार -मुनासिब वसाइल से हो कामगार .II 36 II 
अर्जुन का सवाल - 
फिर अर्जुन ने पूछा भटकता है जो -इसी राह में सर पटकता है जो , 
मुकय्यद तो है ,जां-फ़िशानी नहीं -अकीदत से पहुंचेगा वो भी कहीं .II 37 II 
कवी दोस्त ,जो मोह में फंस गया -रहे हक़ में जो डगमगाता रहा , 
तो क्या वो यहाँ ,और वहां से गया -जो बादल फटा आसमां से गया .II 38 II 
करें मेरे इस शक को भगवान दूर -तबीयत को हासिल हो इरफांका नूर , 
कोई दूसरा है जहां में कहाँ -करे दूर मेरे जो वहमो -गुमां.II 39 II
भगवान ने फरमाया -
सुन अय प्यारे अर्जुन ,वो इन्सान भी -न दौनों जहाँ में फना हो कभी ,
कि दुनिया में जो नेक किरदार है -तबाही में कब वो गिरफ्तार है .II40 II
ये सच है उसे योग हासिल नहीं -हो नेकों की दुनिया में जाकर मकीं ,
बहुत मुद्दतों में वो ले फिर जनम -वहां हों जहां नेकी और ,न वहम .II 41 II
वो हो वर्ना ऐसे घराने का लाल -हों योगी जहाँ आकिलो -बाकमाल ,
जनम ऐसा मुश्किल मिले अय हबीब -सआदत ये हो सादो -नादिर नसीब .II42 II 
वो दुनिया में पाए जो ताजा हयात -हों सब उसमे पिछले जनम के सिफात , 
करे बढ़ के पहले से कसबे-कमाल -कि तकमील हासिल हो ,जाए जवाल .II 43 II 
इसी साबिका मश्क के जोर से -वो मकसूद की सिम्त बढ़ता चले , 
हुआ योग का इल्म जिसको पसंद -वो वेदों के लिक्खे से जाए बुलंद .II 44 II 
किये जा रहा है जो योगी जतन-तो पापों से हो पाक साफ़ उसका मन , 
जनम पर जनम लेके पाए कमाल -कि हासिल हो आखिर खुदा का विसाल .II 45 II 
तपस्वी से आला है योगी कि शान -बड़ी उसकी ग्यानी से भी आनबान , 
हैं कम उस से जो कर्मकांडी है लोग -फिर अर्जुन है क्या देर ,ले तू भी योग .II 46 II 
वो योगी ,यकीं जो मुझी पर जमाये -मुझी में फकत आत्मा लगाए , 
जो मेरी परस्तिश में शागिल रहे -वो सब योग वालों में कामिल रहे .II 47 II 
- छठवां अध्याय समाप्त -
































No comments:

Post a Comment