- कर्मसंयास -तर्के अमल
अर्जुन ने कहा -
कभी कर्मयोग आप अच्छा बताएं -कभी कर्म संन्यास के गुन गिनाएं ,
है भगवान कौन इनमे मरगूबतर -अमल है ,कि तर्के अमल खूबतर .II 1 II
भगवान का जवाब -
कही सुन के भगवान ने फिर ये बात -है तर्क ,और अमल दौनों राहे निजात ,
फजीलत में है लेकिन बढ़कर अमल -कि तर्के अमल से है बेहतर अमल.II 2 II
सदा संनियासी उसे जानिये -हो नफ़रत किसी से न रगबत जिसे ,
मुकय्यद न पाबन्दे इज्दाद है -सुन अर्जुन वही मर्दे-आजाद है.II 3 II
वो हैं तिफ्ले नादाँ जहालत में गर्क -जो संन्यास और योग में पायें फर्क ,
जो दौनों से इक में भी कामिल हुआ -तो फल उसको दौनों का हासिल हुआ. II 4 II
तुम्हें सांख्य से जो मिलेगा मुकाम -वही योग से पायेगा लाकलाम .
जरा देख रखना ,अगर आँख है -वही योग है और वही सांख है .II 5 II
रहे -योग से जो किनारा करे -तो मुश्किल है संन्यास पाना उसे ,
मुनी ,योग ही में जो कामिल हुआ -विसाले -खुदा उसको हासिल हुआ .II 6 II
जो सरशार हैं योग में मुस्तकिल -हवास उनके बस में हैं ,वो साफ़दिल,
जिसे जान अपनी सी हर जान है -कहाँ उसको कर्मों से नुकसान है .II 7 II
हकीकत का है जिसको इल्मो -यकीं -समझता है 'मैं कुछ करता नहीं ,
सुने, देखे ,छूए ,कभी सूँघ ले -वो खाए ,फिरे ,साँस ले ,ऊंघ ले .II 8 II
वो दे ,और ले ,और बोले कभी -कभी आंख मूंदे तो खोले कभी ,
मगर वो हमेशा ये कर ले कयास -कि 'महसूस की सैर देखें हवास .II 9 II
रहे बे तअल्लुक करे जब अमल -खुदा ही की खातिर करे सब अमल ,
खता से हमेशा रहेगा बरी-कमल के न पत्ते पे ठहरे तरी .II 10 II
जो योगी है करते हैं निष्काम काम -नहीं कम में कुछ लगावट का नाम ,
लगाएं वो तन ,मन ,खिरद और हवास -कि दिल की सफाई से हों रूशनास.II 11 II
जो योगी है ,सरशार छोड़ेगा फल -सुकूने -अबद लायें उसके अमल .
जो योगी नहीं ,वो हवस का फकीर -रहे फल की खाहिश में हरदम असीर .II 12 II
ये नौ दर की इक राजधानी है तन -रहे चैन से जिसमे शाहे बदन ,
करे खुद न ,कोई औरों से काम -करे तर्क एमाल दिल से मुदाम .II 13 II
वो मालिक ,अमल और न आमिल बनाए -न कर्मों को कर्मों के फल से मिलाये ,
ये माया की हैं कार फरमाइयां -ये मया ही करती है सबकुछ अयाँ.II 14 II
न लेगा किसी से भी परमात्मा -किसी की निकोई किसी की खता ,
जहालत है इरफां पे छाई हुई -तो दुनिया है चक्कर में आई हुई .II 15 II
मगर जिनको हासिल है इरफां का नूर -करे ज्ञान उनकी जहालत को दूर ,
कि सूरज हो जब ज्ञान का जू फिशां-तो परमात्मा की हो सूरत अयाँ .II 16 II
जो दें रूह और अक्ल ,इसमे लगा -उसी में हों कायम ,उसी पर फ़िदा ,
पूंछ जाये उस तक तो वापिस न आयें -करे ज्ञान दूर उनकी सारी खताएं .II 17 II
जो ज्ञानी है ,यकसां नजर उसको आय -वो हाथी हो, कुत्ता हो ,या कोई गाय ,
वो हो बिरहमन आलिमो बुर्दबार -कि चंडाल ,नापाक मुरदार ख्वार .II 18 II
मुसावत में दिल लगाए हुए -जमम पर वो काबू है पाए हुए ,
वो बेऐब ओ यकसां जो जाते खुदा -रहे जात में उसकी कायम सदा .II 19 II
वो आरिफ खुदा में रहे इस्तवार-न उलझन उसे हो ,न दिल बेक़रार ,
मुसर्रत जो पाए तो शादाँ न हो -मुज़र्रत जो पहुंचे ,परेशां न हो .II 20 II
न अश्याये जाहिर से उसको लगन -है आनंद से आत्मा में मगन ,
जिसे ब्रह्मयोग से ही सरोकार है -दवामी मुसर्रत में सरशार है. II 21 II
तअल्ल्लुक से पैदा जो होता है सुख -उसी से नुमायाँ हो आखिर में दुख,
जो सुख का भी आगाज़ो अंजाम है -तो दाना कहाँ उस से खुशकाम है .II 22 II
न छोड़ा अभी जिसने तन का कफस -मर कर लिए ज़ेर तैशो हवस ,
असीरे बदन रह के ,आजाद है -तो इन्सां वो योगी है दिलशाद है .II 23 II
वो योगी रहे जिसके दिल में सुरूर -मुसर्रत हो मन में तो सीने में नूर ,
समझ लीजिये हक़ से वासिल उसे -कि हो ब्रह्मनिर्वाण हासिल उसे .II 24 II
ऋषि,मिट गए जिनके जुर्मो कुसूर -जिन्हें खुद पे काबू ,दुई से जो दूर ,
जो सबकी भलाई के खाहाँ रहें -मिले ब्रह्म निर्वाण आखिर उन्हें .II 25 II
न गुस्सा है जिनमे न रंगे हवस -ख्यालो -तबीअत पे है जिनका बस ,
मिला आत्मा का जिन्हें ज्ञान है -उन्हें हर तरफ ब्रह्म निर्वान है .II 26 II
मुनि जो न महसूस से दिल लगायें -मियाने -दो अब्रू नजर को जमायें ,
बुरूं और दरूँ के बराबर हों दम -मसावी चले नाक से जेरो बम .II 27 II
हवासो -दिलो अक्ल कर ले जो राम -तलाशे -निजात ,उसका दिन रात काम,
न डर है ,न गुस्सा ,न लालच कभी -निजात उस मुनी को मिले बिल यकीं .II 28 II
मुझे शाहे अर्जो-समां जो कहे -जो समझे है यग,तप,मेरे ही लिए
जो मने मुझे खल्क का गमगुसार -उसी को मिलेगा सुकूनो करार .II 29
-पांचवां अध्याय समाप्त -
No comments:
Post a Comment