Sunday, June 26, 2011

सातवाँ अध्याय :ज्ञानविज्ञान


ज्ञानविज्ञान -इल्मे मुआरिफत - 


भगवान ने फरमाया - 

सुन अर्जुन अमां मुझमें पाए हुए -मेरी ज़ात में लौ लगाए हुए ,
तुझे योग की मश्क का ध्यान हो -तो सुन किस तरह मेरी पहचान हो .II 1 II 
मैं करता हूँ वह राजे कामिल बयां-करे इल्मो इरफांजो तुझ पर अयाँ,
ये पहचान कर सबको पहचान ले -जो है जानने का ,वो सब जान ले .II 2 II 
हज़ारों में होगा कोई खाल खाल - कि है जिसको फिक्रे हुसूले -कमाल ,
हो उन बा कमालों में कोई बशर -जो मेरी हकीकत की पाए खबर .II 3 II 
ये मिट्टी ,ये पानी ,ये आग और हवा -ये आकाश दुनिया पे छाया हुआ ,
ये दानिश ,ये दिल ,ये ख्याले -खुदी -है इन आठ हिस्सों में फितरत मेरी .II 4 II 
है फितरत तो अदना है ,सुन अय कवी -मगर मेरी फितरत है एक और भी ,
वो फितरत है आला ,बने जो हयात -इसी से तो कायम है कुल कायनात .II 5 II 
इन्हीं फितरतों से है सब हस्तो -बूद -इन्हीं के शिकम से हुए सब वुजूद ,
सो है मुझसे आगाज़े आलम तमाम -मेरी ज़ात में सबका हो इख्तिताम .II 6 II 
सुन अर्जुन नहीं कुछ भी मेरे सिवा -न है मुझसे बढ़कर कोई दूसरा , 
पिरोया है सबको मेरे तार ने -कि हीरे हों जैसे किसी हार में .II 7 II 
मैं पानी में रस,चाँद सूरज में नूर -मैं हूँ "ओम "वेदों में जिसका ज़हूर , 
सिदा मुझको आकाश में कर ख्याल -मैं मर्दों में मर्दी,कुंती के लाल .II 8 II 
मैं मिट्टी के अन्दर हूँ खुशबूए पाक -मैं हूँ आग में शोलए-ताबनाक , 
मैं जानेजहाँ जानदारों में हूँ -रियाज़त,इबादत -गुज़ारों में हूँ .II 9 II 
सुन अर्जुन ,मैं हूँ बीज हर हस्त का -मैं वो बीज हूँ जो न होगा फना , 
मैं दानिश हूँ ,उनकी जो हैं होशियार -मैं ताबिश हूँ उनकी जो हैं ,ताबदार .II 10 II 
मैं हूँ कुव्वतो -जोरे -मर्दे ज़री-मगर हूँ ,हवाओ -हवस से बरी, 
सुन अर्जुन ,मैं ख्वाहिश हूँ इंसान की -जो दुश्मन न हो ,धर्म ईमान की .II 11 II 
मुझी से है फितरत सतोगुन कहीं -मुझी से ,राजोगुन,तमोगुन कहीं , 
मगर मैं बरी इनसे हूँ बिल्यकीं-ये मुझसे हैं ,लेकिन मैं इनसे नहीं .II 12 II 
गुनों से हुए वस्फ़ तीनों अयां-हुए जिससे गुमराह अहले जहां ,
समझते नहीं लोग मेरा कमाल -कि बाला हूँ मैं उनसे ,और बे ज़वाल .II 13 II 
गुनों से जो माया हुई आशकार -ये माया है ,या फितरते -कर्दगार,
कहाँ इससे इन्सां कभी कभी पार हों -फकत पार मेरे परिस्तार हों .II 14 II 
जो गुमराह ,बदकुन हैं और पुर खता -करे ज्ञान गुन उनके माया फना ,
पसंद उनको सीरत है शैतान की -मेरे पास आते नहीं वह कभी .II 15 II 
सुन अर्जुन हैं मेरे परस्तार चार -तलबगार मेरे ,निकूकार चार ,
दुखी शख्स ,या इल्म की जिसको धुन -तलब ज़र की .या हों जिसमे हों ग्यान गुन .II 16 II 
जो ग्यानी है चारों में सरदार है -मुझी में है यकदिल औ सरशार है ,
करे जाते -यकता की भागती सदा -मई प्यारा हूँ उसका ,वो प्यारा मेरा .II 17 II 
परस्तार हर एक गो नेक है -जो ग्यानी है ,मुझसे मगर एक है ,
वो यकदिल है ,और उससे यकदिल हूँ मैं -वो कायम है और ,उसकी मंजिल हूँ मैं .II 18 II 
जनम पे जनम लेके ग्यानी जरूर -पहुँच जाये आखिर को मेरे हुजुर ,
वो जाने "कि सब कुछ है जानेजहाँ -महा आत्मा ऐसा होगा कहाँ .II 19 II 
हवाओ -हवस से जो मजबूर हैं -हुए ज्ञान से उनके दिल दूर हैं ,
करें दूसरे देवताओं से प्रीत -निकालें तबीअत से पूजा की रीत .II20 II 
किसी रूप का भी परस्तार हो -यकीं से इबादत में सरशार हो ,
परस्तार ऐसा भटकता नहीं -मैं करता हूँ ,मजबूत उसका यकीं.II 21 II 
परस्तिश वो जौके यकीं से करे -जिसे देवता मान ले ,मान ले ,
वो पाता है जोरे -यकीं से मुराद -जो दरअस्ल होती है मेरी ही दाद .II 22 II 
जो नादाँ नहीं ज्ञान में होशियार -परस्तिश से फल पायें नापायदार ,
जो देवों को पूजें ,वो देवों को पायें -परस्तार मेरे ,मेरे पास आयें .II 23 II 
मैं चश्मे -जहां से निहां हूँ निहाँ -मगर मुझको नादाँ समझ लें अयां ,
वो मुझको नहीं जानते बे मिसाल -मेरी ज़ात आली है और बे ज़वाल .II 24 II 
कि मैं योगमाया से मस्तूर हूँ -जहां कि नज़र से बहुत दूर हूँ ,
ये मूरख ज़माना नहीं जानता -कि मेरा जमम है ,न मुझको फना .II 25 II 
जो गुजरी हुई हस्तियाँ हैं ,सभी -जो मौजूद हैं अब ,कि होंगीं कभी ,
सुन अर्जुन ,मैं उन सब से हूँ बाखबर -किसी को नहीं इल्म मेरा मगर .II 26 II 
ये धोके की टट्टी है ,इज्दाद सब -ये है शौको नफ़रत कीऔलाद सब ,
इन्हीं से तो ,अर्जुन ये खिलकत तमाम -परागंदा रहती है यूं सुब्हो-शाम .II 27 II 
वो इन्सां ,भले जिनके आमाल हैं -गुनाहों से जो फारिगुलबाल हैं ,
न इज्दाद से उनको धोका न गम -मेरी बंदगी में हैं साबित कदम .II 28 II 
मुझी को समझ कर जो उम्मीदगाह -बुढापे से और मौत से लें पनाह .
उन्हें ब्रह्म की खूब पहचान है-फिर अध्यात्म और कर्म का ग्यान है .II 29 II 
अधिभूत जोलोग मानें मुझे -अधिदेव ,अधियग्य जानें मुझे ,
वो यकदिल हैं ,चित्त उनमे हमवार हैं -दमे नज़अ भी मुझसे सरशार हैं .II 30 II 
        -सातवाँ अध्याय समाप्त -






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