राजविद्या राजगुह्य -सुल्तानुल उलूम -
भगवान ने फरमाया -तू अर्जुन नहीं ऐबजू ,नुक्ताचीं-कर अब मुझसे राजे -खाफी दिलनशीं ,
मिलेगा यहीं इल्मो -इर फां ना नूर -इसे जान जाए तो हों पाप दूर .II 1 II
ये इल्मे शही है ,ये राजे शही-करे पाक हर शै से बढ़कर यही ,
अयां खुद बखुद हो की आसां है ये -फना से बरी ऍन ईमां है ये.II 2 II
जो इस धर्म पे दिल लगाते नहीं -वो अर्जुन ,कभी मुझको पाते नहीं ,
न वासिल हों ,मुझसे ,वो मुझतक न आयें -जहाने फना की तरफ लौट जाएँ .II 3 II
खफी से खफी है मेरी हस्तोबूद -मगर है मुझी से जहां की नुमूद ,
मुझी में है मखलूक सारी मकीं -मगर मैं मकीं खुद किसी में नहीं .II 4 II
न लोगों में मैं हूँ ,न मुझमे हैं लोग -ज़रा देखना ये मेरा राजयोग ,
मेरी आत्मा बाइसे खासो आम -नहीं मेरा लेकिन किसी में मुकाम .II 5 II
हवा गो चले जोर से सरबसर -इधर से उधर या उधर से इधर ,,
वो आकाश से बाहर से जाये कहाँ -समझ लो यूँही मेरे अन्दर जहाँ .II 6 II
जब इक दौर हो ख़त्म ,कुंती के लाल -तो हो मेरी माया में सबका विसाल ,
नए दौर की हो जो फिर से नुमूद -करूं मैं ही पैदा ,सब अहले वुजूद .II 7 II
इसी अपनी माया से लेता हूँ काम -मैं करता हूँ जांदार पैदा तमाम ,
चलें जौक -दर जौक ,सब बार बार -कि माया के हाथों हैं ,बे ऐतबार .II 8 II
सुन अय अर्जुन ,साहबे सीमो जर -नहीं ऐसे कर्मों का मुझ पर असर ,
कि रहता हूँ मैं ,बे गरज सरफराज -इन अफआलों -आमाल से बेनियाज़ .II 9II
मैं नाजिर हूँ इसका ये करती है काम -हूँ माया से सय्यारो -साबित तमाम ,
समझ ले इसी तौर ,कुंती के लाल -है चक्कर ही चक्कर में दुनिया का हाल.II 10 II
जब आता हूँ इन्सां का पहने लिबास -नहीं करते पर्वाह न मेरी शनास ,
मेरी शाने-आली नहीं जानते-शहंशाह मुझको नहीं मानते..II 11 II
अबस हैं उमीदें अबस हैं अमल -अबस इल्म उनका ,समझ में खलल ,
तबीयत में धोका भी वहशत भी है -भरी शैतनत भी खबासत भी है.II 12 II
वो इन्सां जो खसलत में हैं देवता -जो हैं नेक फितरत अहा आत्मा ,
करें कल्ब यकसू से पूजा मेरी -कि मैं लाफना मब्नाए जिन्दगी II 13 II
हमेशा वो गुन मेरे गाते रहें -वो अहद अपना जी से निभाते रहें ,
इबादत करें मेहनत और शौक से -करें मुझको सिजदे दिली जौक से.II 14 II
कई रूप देखे मेरे बेशुमार -वो हों ज्ञान यग से इबादत गुजार ,
वो वहदत कि कसरत हर आहंग में -मुझे पूजते हैं ,वो हर रंग में .II 15 II
तू यज्ञ और पूजा मुझी को समझ -श्राद्धों का गल्ला मुझी को समझ ,
मैं बूटी हूँ ,मंतर भी ,अगनी ,हूँ ,घी -मैं यग भी हूँ ,और उसके आमाल भी .II 16 II
मैं सारे जहां का हूँ ,माता पिता-मैं दादा हूँ सबका ,हूँ में आसरा ,
सजावार इरफां हूँ ,पाकीजा भेद -मैं हूँ ओम ,रिक -यजुर साम वैद.II 17 II
मैं आका ,मैं वाली ,सुखन में गवाह -मैं मंजिल में मसकन ,मैं जाए पनाह ,
मैं आगाज ओ अंजामो -गंजो मुकाम -मैं वो बीज हूँ जो रहेगा मुदाम .II 18 II
मुझी से तपिश है ,कुंती के लाल -कभी खुश्क साली कहीं बर्शगाल ,
फनाओ बका की मुझी से नुमूद -मुझी से है सत और असत का वुजूद .II 19 II
जिन्हें तीनों वेदों में है दस्तरस -वो जन्नत के तालिब पियें सोमरस ,
परस्तार मेरे ये मासूम लोग -मिले उनको जन्नत में देवों के भोग .II 20 II
फिजाओं में जन्नत की खुशियाँ मनाएं -मगर खाली होकर यहीं लौट आयें ,
मुराद अपनी वेदों से पाते रहें -वो आते रहें ,और जाते रहें .II 21 II
जो करते हैं खालिस इबादत मेरी -जो यक दिल हों जी में न रक्खें दुई ,
करूं हाजतें उनकी पूरी तमाम -वो मेरी हिफाजत में रहें सुबहोशाम .II 22 II
सनम दूसरे जो मनाते रहें -दिल उनपर यकीं से लगाते रहें ,
करें वो न गो हस्बे दस्तूर काम -परस्तार वो भी हैं मेरे तमाम .II 23 II
कि यग जितने करते हैं दुनिया में लोग -मैं हूँ उनका मालिक ,खाता हूँ भोग ,
न जाने वो मेरी हकीकत का हाल -इसी वास्ते पायें आखिर जवाल .II 24 II
मनाएं जो पितरों को ,पितरों तक आयें -जो भूतों को पूजें ,भूतों को पायें ,
समम के पुजारी ,सनम से मिलें -हमारे परस्तार हम से मिलें .II 25 II
मेरी नज्र देता है जो शौक से-दिले -पाक से ,चाह से जौक से ,
मैं नज्र उसकी करता हूँ बेशक क़ुबूल -वो फल हो कि पानी ,कि पत्ती कि फूल .II 26 II
फकत मेरी खातिर तू हर काम कर-हवन ,दान दे ,सब मेरे नाम कर ,
तेरा खाना पीना हो मेरे लिए -तेरा तप से जीना हो मेरे लिए.II 27 II
कटेंगे ये कर्मों के बंधन तमाम -न होगा बुरे या भले फल से काम ,
जो तू पाक दिल से होके संन्यास पाए -तू आजाद होकर मेरे पास आये .II 28 II
मेरे वास्ते खल्क यकसां है सब -न इससे मुहब्बत ,न उस से गज़ब ,
वो पूजें मुझी को बा सिद्को-यकीं-मैं उनमे हूँ ,और वो मुझमे मकीं .II 29 II
कोई आदमी गरचे बदकार है -मगर मेरा दिल से परस्तार है ,
उसे भी समझ लो कि साधू है वो -इरादे में नेकी के यकसू है वो .II 30 II
वो धरमातामा जल्द हो जायेगा -करारो -सुकूं दायमी पायेगा ,
समझ ले ,मेरा भगत ,कुंती के लाल -न होगा फना ,और न पाए जवाल .II 31 II
बशर पाप का पेट से हो कोई -वो हो शूद्र या वैश्य या स्त्री -
मुझे आसरा जब बनाएगा वो -तो आला मनाज़िल पे जायेगा वो .II 32 II
मुक़द्दस बिरहमन का रुतबा न पूछ -रिशी राज भगतों का दरजा न पूछ ,
तुझे दुख की दुनियाए फानी मिली -तू कर सच्चे दिल से परस्तिश मेरी .II33 II
जमा ध्यान मुझमे ,हो मुझ पर फ़िदा -तू यग कर ,तू मेरे लिए सर झुका ,
अगर योग में दिल लगाएगा तू -मैं मकसद हूँ ,मुझको पायेगा तू .II 34 II
-नौवां अध्याय समाप्त -
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