Wednesday, July 06, 2011

बारहवां अध्याय :भक्तियोग


भक्तियोग -तरीकते इश्क - 

अर्जुन का सवाल - 


जो इस तरह भक्ति में सरशार है-फकत आपके ही परस्तार हैं 
.वो योगी हैं बेहतर ,कि बातिन परस्त -खफी लम यजल ,जाते आली में मस्त .II 1 II 


भगवान ने कहा -


हुए सुन के भगवान यूँ गुल फिशां -हैं बेहतर वही योग में बेगुमां, 
यकीं से जो भक्ति करें मुस्तकिल -मुझी से जो अपना लगाते हैं दिल.II 2 II 
मगर जो पूजें खफी पाक जात -जो कायम है ,दायम है और पुर सबात, 
ख्यालो ,जहूरो ,बयां से बुलंद -हो हाजिर है ,नजीर है और बेगुजंद .II 3 II 
हवास अपने काबू में रक्खें तमाम -सुकूनो -तवाजन हो दिल में मुदाम ,
हरेक की भलाई से मसरूर हों -मुझी से हों वासिल ,न तहजूर हों .II 4 II 
जो जाते खफी से लगाते हैं दिल -उठाते हैं तकलीफ वो मुस्तकिल ,
कि जाते खफी का है ,मुश्किल शुहूद -खफी को न समझेंगे अहले वुजूद .II 5 II 
जो एमाल सब मुझ पे कुरबां करें -परस्तिश मेरी बा दिलो -जां करें ,
जो मकसूदे आली मुझी को बनाएं -फकत मेरे ही ध्यान में दिल लगायें .II 6 II 
मैं करता हूँ ,अर्जुन उन्हें कामगार -तनासुख के फानी समंदर से पार , 
दिल अपना जो मुझ में लगाते रहें -मुझी से निजात अपनी पाते रहें .II 7 II 
लगाए तो दिल ,अपना मुझ में लगा -मुझी में तू कर मह्व अक्ले रिसा , 
तो फिर इसमे हरगिज नहीं कुछ कलाम -तू पायेगा मुझ में कयामो -दवाम .II 8 II 
जो कायम न तू रख सके मुझ में दिल -न यकसू रहे ध्यान में मुस्तकिल , 
तू अभ्यास से कर तलाशे -कमाल ,-इसी योग से ढूँढ़ अर्जुन विसाल.II 9 II 
तू अभ्यास के न हो काबिल अगर -तो फिर मेरी खातिर सब एमाल कर , 
मेरे वास्ते ही जो आमिल हो तू -तो आमाल से मर्दे-कामिल हो तू .II 10 II 
रियाजत में भी गर तू हेठा रहा -तो ले फिर मेरे योग का आसरा , 
तू रख दिल पे काबू ,किये जा अमल -किये जा अमल ,छोड़ दे इनका फल .II 11 II 
कि अफजल है अभ्यास ,करने से ज्ञान -मगर ज्ञान से बढ़ के होता है ध्यान , 
है तर्के-समर ,ध्यान से भी फुजूँ -कि तर्के समर से हो फ़ौरन सुकूं .II 12 II 


वो इंसां जो सुख दुख में हमवार है -जो हर इक का हमदर्द गमख्वार है ,
किसी का न बैरी हो ,बख्शे कुसूर -खुदी से भी दूर और तअल्लुक से दूर .II 13 II 
वो योगी जिसे खुद पे है इख़्तियार -जो साबिर है ,और अज्म में इस्तिवार ,
दिलो -अक्ल जो मुझ पे कुर्बां करे -वही है मेरा भक्त प्यारा मुझे .II 14 II 
जो दुनिया को आजार देता नहीं -जो दुनिया से आजार लेता नहीं ,
बरी बुग्जो -ऐशो -गमो -खौफ से -वही है मेरा भक्त प्यारा मुझे.II 15 II 
जो चौकस है ,बेलाग और बेनियाज -दुखों से मुबर्रा और पाकबाज ,
जो तर्के जजा इब्तिदा से करे -वही है मेरा भक्त प्यारा मुझे.II 16 II 
मुसर्रत से भी दूर ,नफ़रत से भी दूर -गमो ख्वाहिशो -नेको -बद से नफूर .
हमेशा जो भक्ती में शादां रहे -वाही है मेरा भक्त प्यारा मुझे.II 17 II 
बराबर जिसे दोस्त दुश्मन तमाम -न सुख दुख न इज्जत न दौलत से काम ,
हो सर्दी कि गरमी जिसे एकसी -लगन हो न जिसकी किसी से लगी .II 18 II 
बराबर हों जिसके लिए मदहो जम -वो कम गो न जिसको गमे बेशो-कम ,
कवी दिल का ,आजाद घरबार से -वही है मेरा भक्त प्यारा मुझे .II 19 II 
जो करते हैं कायम ,ये अमृत सा धर्म -यकीं से जो रखते हैं ,सीनों को गर्म ,
जो मकसूदे आला समझ लें मुझे -वाही भक्त है सबसे प्यारा मुझे .II 20 II 


-बारहवां अध्याय समाप्त -










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