Friday, July 08, 2011

चौदहवाँ अध्याय :गुणत्रय विभाग

-गुणत्रय विभाग -तकसीमे सिफ़ाते सहगाना - 

भगवान का इरशाद -
फिर अर्जुन से भगवान बोले कि,सुन -जो ग्यानों का है ज्ञान सुन उसके गुन ,
मुनी जिसको ये ज्ञान हासिल हुआ -कमले फजीलत से वासिल हुआ .II 1 II 
जो लेते हैं इस ज्ञान का आसरा -वो यकरंग हो जाएँ मुझसे सदा ,
जो पैदा हो दुनिया ,तो आयें न वो -फना हो तो तकलीफ पायें न वो II 2 II 
शिकम है मेरी कुदरते कामिला -जो मैं तुख्म डालूं तो हो हामिला ,
यही है महाब्रह्म अस्ले हयात -कि भारत इसी से हो कायनात .II 3 II 
किसी पेट से कोई पाए जनम -हो अर्जुन कोई शक्ल ,कोई शिकम , 
शिकम है महाब्रह्म ,मैं बाप हूँ -कि बीज उसमे डालता आप हूँ .II 4 II 
नमूदार माया से हों तीन गुन-सतोगुन,रजोगुन,तमोगुन ये सुन , 
जो है लाफना रूह तन में मकीं -ये गुन कैद करते हैं उसको वहीं .II 5 II 
सतोगुन की फितरत है पाकीजा नूर -न ऐब इसमे ,अर्जुन न कोई कुसूर , 
करे रूह को शौके -राहत से कैद -करे रूह को जौके -दानिश का सैद .II 6 II 
रजोगुन की फितरत है जज्बात की -है संगीत से इसकी और तिश्नगी ,
ये जौके अमल का बनाती है जाल -करे रूह को कैद ,कुंती के लाल .II 7 II 
तमोगुन जहालत की औलाद है -कब इस से मकीं ,तन से आजाद है ,
करे कैद धोके से भारत इसे -करे ख्वाबो -गफलत से गारत इसे .II 8 II 
सतोगुन का रहता है सुख से लगाव -रजोगुन का शौके अमल है सुभाव ,
तमोगुन का परदा पड़े ज्ञान पर -तो गफलत मुसल्लत हो इंसान पर .II 9 II 
सतोगुन का जिस वक्त बाला हो दस्त -रजोगुन ,तमोगुन रहें उस से पस्त ,
रजस से सतोगुन ,तमोगुन दबे -तमस से ,सतोगुन ,रजोगुन घटे .II 10 II 
बदन है मकां ,और हवास इसके दर -अगर दर है रौशन तो रौशन है घर ,
अगर ज्ञान का नूर हो जूफिशाँ-सतोगुन के गल्बे का है ये निशाँ .II 11 II 
रजोगुन का गलबा हो अर्जुन अगर -तो हो जाएँ हिर्सो -हवा जोर पर ,
तमन्ना हो ,कोशिश हो ,और पेचो -ताब -राजे शौक किरदार में इज्तिराब.II 12 II 
तमोगुन जब इन्सां में हो जोर पर -तो हो मोह गालिब ,कुरु के पिसर ,
अँधेरा तबीयत पे छा जाएगा -जमूद उसको गाफिल बना जाएगा II 13 II 
सतोगुन जो ग़ालिब हो इन्सान पर -इसी हाल में मौत आये अगर ,
मकीं तन का पाए पवित्तर मुकाम -वो सिद्धों की दुनिया में जाए मुदाम .II 14 II
रजोगुन में इन्सां अगर जान दे -जनम अहले किरदार में आके ले ,
तमोगुन में मर कर जो जिन्दों में आये -दरिदों ,परिंदों ,चरिन्दों में आये .II15 II
जो करता है इन्सां सतोगुन अमल -तो पाता है ,पाकीजा और नेक फल , 
रजोगुन अमल से मिले पेचो -ताब -तमोगुन अमल में ,जहालत का बाब .II 16 II 
सतोगुन से इरफां का पैदा हो नूर -रजोगुन से हिर्सो -हवा का जहूर , 
तमोगुन से धोका भी ,गफलत भी हो -तबीयत पे ग़ालिब ,जहालत भी हो .II 17 II 
सतोगुन से जाएँ सूए आसमां-रजोगुन से लटके रहें दरमियाँ , 
तमोगुन का गुन है ये सबसे रजील -ये पस्ती दे डाले ,ये कर दे रजील .II 18 II 
जो अहले बसीरत हैं अहले नजर -गुनों को समझते हैं कारगर , 
मुझे मानते हैं गुनों से बुलंद -तो वासिल मुझी से हों वो अर्जमंद II 19 II 
बदन का है तीनों गुनों पर मदार -मकीने बदन ,गर करे इनको पार , 
वो चहकता है अमृत ,वो पाटा है सुख -न जीना ,न मरना ,न पीरी का दुख.II 20 II 
अर्जुन का सवाल - 
फिर अर्जुन ने पूछा कि अय कर्दगार-वो इन्सां जो जाता है ,तीनों से पार , 
चलन क्या है उसका ,अलामात क्या -वो तीनों गुनों से हो क्योंकर रिहा .II 21 II 
भगवान का इरशाद -
सुन अर्जुन ,सतोगुन से हासिल हो नूर -रजोगुन से कुव्वत ,तमस से फितूर ,
है कामिल जिसे इनकी चाहत नहीं -जो हों ,तो उसे उनसे नफ़रत नहीं II 22 II 
जो इन्सां गुनों से रहे बेगरज-न बेकल हो इनसे ,न रक्खे गरज ,
जो समझे कि करते हैं गुन ही ये काम -रहे पुर सुकूं खुद में कायम मुकाम .II 23 II 
जो सुख दुख में यकसां ,जो है मुस्तकिल -बराबर जिसे जर हो ,कि मिट्टी की सिल ,
मुसावी पसंदीदा और नापसंद -हो तहसीं कि नफ़रत ,वो सब से बुलंद .II 24 II 


न जिल्लत की परवा ,न इज्जत की भूक -करे दोस्त -दुश्मन से यकसां सलूक ,
गरज त्याग दे ,मुझपे सब कारोबार -समझ लो गुनों से वो होता है पार .II 25 II 
जो खादिम मेरा ही परस्तार है -जो मेरी ही मस्ती में सरशार है ,
हो तीनों गुनों से न क्यों पार वो -है वसले -खुदा का सजावार हो .II 26 II 
मेरी ज़ात ही ब्रह्म का है मुकाम -सबातो बका मुझी में कयाम .
मैं दीने अजल का भी हूँ आसरा -मेरी जाते आली ,मैं राहत सदा .II 27 II 


-चौदहवाँ अध्याय समाप्त -
















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