Tuesday, July 05, 2011

ग्यारहवां अध्याय :विश्वरूप दर्शन


विश्वरूप दर्शन -जलाले यज्दानी-
अर्जुन ने कहा - 
कहा फिर ये अर्जुन ने अय मोहतरम -किया आपने मुझपे लुत्फो करम , 
बताया खफी अध्यात्म का राज -गया मोह ,आखें हुई सिल की बाज .II 1 II 
कमलनैन मैंने सुना आपसे -कि एहसाम किस तरह पैदा हुए , 
जो पैदा हुए होंगे क्योंकर फना -तुम्हीं को है अजमत ,तुम्हीं को बका .II 2 II 
किया आपने हाल जो कुछ बयां-वही सच है परमेश्वर बेगुमां, 
है पुरुषोत्तम अब इश्तियाक इस कदर -कि दीदारे हक़ देख लूँ इक नजर .II 3 II 
प्रभू आपका है अगर ये ख्याल - कि दर्शन की है मुझको ताबो मजाल ,
तो योगेश्वर ,लुत्फ़ फरमाइए -मुझे लाफना रूप दिखलाइये .II 4 II 
भगवान ने फरमाया -
कर अर्जुन नजर ,देख मेरे सरूप -मेरे सैकड़ों और हजारों हैं रूप ,
मेरी पाक हस्ती के नीरंग देख -नए रूप देख ,और नए ढंग देख .II 5 II 
वसू ,रूद्र ,आदित्य की सूरतें -दो अश्विन भी ,मारुत की भी मूरतें ,
तू भारत के फरजंद सब देख ले -जो देखा नहीं तूने अब देख ले .II 6 II 
जो कुछ चाहे तू देख तन में मेरे-जहाँ सब है ,अर्जुन बदन में मेरे , 
यहीं सारा आलम नमूदार देख -तू साकिन भी देख और सय्यार देख .II 7 II 
मेरी दीद गर तुझको मंजूर है -तेरी आँख का कब ये मकदूर है , 
मैं देता हूँ तुझको खुदायी बसर-मेरे इस शही योग पर कर नजर .II 8 II 
संजय का बयान - 
महाराज ,अर्जुन से कह कर ये बात -हरी ,यानि योगेश्वर पाक ज़ात , 
दिखाने लगे शाने आली का रूप -तो अर्जुन ने देखा खुदायी सरूप .II 9 II 
अनेक उसकी आँखें तो चहरे अनेक -निगाहें अनेक ,उसमे जल्वे अनेक ,
अनेक उसके पुरनूर जेवर सजे -खुदायी वो हथियार उभरे हुए .II 10 II 
खुदायी वो कंठे ,खुदायी लिबास -खुदायी उबटने,खुदायी वो वास ,
वो ला इन्तहाई खडी रूबरू -जो रुख उसका देखे तो रुख चार सू .II 11 II 
फलक पर निकल आयें सूरज हजार -बयक वक्त मिलकर हैं सब नूरबार ,
तो धुंधली सी समझो तुम इसकी मिसाल -महा आत्मा का था ,इतना जलाल .II 12 II 
जो अर्जुन ने देखा कि जल्वानुमा -है देवताओं का वो देवता ,
उसी के तने -पाक में है अयाँ-गिरोहों के गोलों में सारा जहां .II 13 II 
तो अर्जुन को इस दर्जा हैरत हुई -कि सहमा ज़रा और लगी कपकपी ,
हुजूरे खुदावंद में सर झुका -वो यूं जोड़ कर हाथ कहने लगा .II 14 II 
-अर्जुन की मुनाजात -
तुम्हारे पैकर में देव भगवन ,ये देवता सब समा रहे हैं ,
अनेक रंगों में जीव सारे गिरोह बन बन के आ रहे हैं ,
कमल के आसन पे आप ब्रह्मा विराजमान हैं तुहारे अन्दर ,
ऋषी ये सारे ,नाग आसमानी ,सब अपनी सूरत दिखा रहे हैं .II 15 II 
नेक बाजू ,अनेक चहरे ,शिकम अनेक ,और अनेक आँखें ,
अनंत रूपी तुम्हारे जल्वे ,दशों दिशाओं में छा रहे हैं ,
तुम्हारा अव्वल है और न आखिर ,न दरमियां है कोई तुम्हारा ,
हे विश्व रूपी जहाँ के मालिक ,तुम्हीं में आलम समा रहे हैं.II 16 II 
मकुट है पुरनूर ,गुर्ज पुरनूर ,और इस पे चक्कर है शोला अफशां , 
चमक रहे हैं ,दमक रहे हैं ,जहां को भी जगमगा रहे हैं , 
हो जिस तरह आग ,शोला अफशां ,हो जैसे सूरज का रूए ताबां , 
वो अपनी ला इंतहा चमक से ,जहाँ को खीरा बना रहे हैं .II 17 II 
तुम्हीं हो बरतर भी ,ला फना भी ,तुम्ही सजावारे इल्मो इरफां ,
तुम्हीं हो बे इख्तिता में मख्जन,वो जिसमे आलम समा रहे हैं ,
तुम्हीं कदीमी पुरुष हो भगवन,पुरुष वो जिसको फना नहीं है ,
जो लाफाना धरम है ,उसे भी तुम्हारे अहसां बचा रहे हैं .II 18 II 
न इब्तिदा है ,न इंतिहा है ,न वस्त से वास्ता है तुमको, 
तुम्हारे ला इंतिहा हैं बाजू ,जो जोरे ताकत दिखा रहे हैं , 
तुम्हारी आँखें चाँद सूरज ,तुम्हारा चेहरा हवन की अगनी . 
तुम्हारे जल्वे हैं शोला अफशां ,जो कुल जहां को तपा रहे हैं .II 19 II 
जमीं में जल्वा,समां में जल्वा,और उनके अन्दर खला में जल्वा , 
दशों दिशाओं में ,ईश्वर सब तुम्हारे जल्वे समा रहे हैं , 
महात्मा है तुम्हारी सूरत ,वो जिस से बरसे जलालो हैबत , 
कि तीनों दुनिया के रहने वाले ,लरज रहे ,थरथरा रहे हैं II 20 II 
ये देवताओं के गोल सारे ,तुम्हीं में सब हो रहे हैं शामिल , 
तमाम हैबत से हाथ बांधे ,तुम्हारे गुण गुनगुना रहे हैं , 
तुम्हारी स्वस्ति पुकारते हैं ,महारिशी और सिद्ध मिलकर , 
तुम्हारी तारीफ़ गा रहे हैं ,तुम्हारे नगमे सुना रहे हैं .II 21 II 
वो रूद्र ,आदित्य और वसु सब ,वो साध्या और विश्व अश्वां,
तमाम महबूत हो रहे हैं ,निगाह को हैरत में ला रहे हैं ,
गिरोह पितरों के और मारुत ,वो यक्ष ,गन्धर्व राक्षस सब ,
गिरोह सिद्धों के मिल मिलाकर सभी अचम्भे में आ रहे हैं .II 22 II 
हजारों चहरे ,हजारों आँखें ,हजारों बाजू ,हजारों जानू , 
शिकम हजारों ,कदम हजारों ,बला के दंदां डरा रहे हैं , 
तुम्हारा बेअंत रूप वो है कि हे शहंशाहे जोरो -ताकत , 
मैं खुद भी कांपता हूँ ,जहां भी सब थरथरा रहे हैं .II23II
तुम्हारा ये पुर जलाल कामत जो आसमां से लगा हुआ है , 
अनेक रंग उस पे छा रहे हैं ,जो जैबो जीनत बढ़ा रहे हैं , 
फराख चेहरा खुला हुआ मुंह बड़ी बड़ी शोलावार आँखें , 
न मुझमे ताकत न चैन ,विष्णु ,ये मेरे मन को डरा रहे हैं .II 24 II 
तुम्हारी दाढ़ें उभर रही हैं ,कि आग महशर की जल रही है , 
फना के शोले निकर रहे हैं ,जो इक जहां को जला रहे हैं , 
मेरा सहारा है न ठिकाना ,करम हो मुझपर ,करम हो मुझपर , 
तुम्हारे साए में सारे आलम ,सरों को अपने झुका रहे हैं .II 25 II 
वो धृष्ट राष्ट्र के बेटे ,और उनके साथी जहां के राजा , 
पितामा भीषम ,औ द्रोनाचारज ,वो कर्ण रथवान आ रहे हैं , 
हमारी जानिब के ऊंचे अफसर ,सिपाहसालार नामवाले , 
तम्हारे कालिब में आ रहे हैं ,तुम्हारे तन में समां रहे हैं.II 26 II 
तुम्हारे खूंखार मुंह के अन्दर हैं ,सफ ब सफ हौलनाक दाढ़ें, 
मैं देखता हूँ कि,अहले आलम सब अपनी हस्ती मिटा रहे हैं . 
पहुँच कर जबड़ों की चक्कियों में ,सर उनंके पिस कर हुए हैं चूरा , 
खला में दांतों के इनमे अक्सर फंसे हुए लड़खड़ा रहे हैं .II 27 II 
दहन तुम्हारे चमक रहे हैं ,और उनमे यूं कौंधते हैं शोले ,
जहां के सब शूरवीर ,खुद को ,उन्हीं के अन्दर गिरा रहे हैं ,
वो इस तरह जा रहे हैं ,कि जैसे नदियों के तेज धारे,
किसी समंदर के मुंह के अन्दर सब अपनी हस्ती मिटा रहे हैं .II 28 II 
दहन के शोलों में कूदते हैं ,ये तेज रफ़्तार लोग सारे ,
फ़िदा सभी तुम पे हो रहे हैं ,ये मौत के मुंह में जा रहे हैं ,
नहीं ये इन्सां ,ये हैं पतंगे जो इश्को -मस्ती में वालिहाना ,
अजल के शोलों पे उड़ रहे हैं ,फ़ना से जो लौ लगा रहे हैं .II 29 II 
मजे से लब अपने चाटते हो तुम ,इक जहाँ को निगल निगल कर ,
जुबां से शोले निकल रहे हैं ,हरेक को लुक्मा बना रहे हैं ,
तुम्हारी ताबो -तपिश से विष्णु ,तमाम आकाश है दहकता ,
तुम्हारी किरनों के तेज जल्वे ,जमाने भर को जला रहे हैं .II 30 II 
हो देवताओं के देवता तुम ,तुम्हें नमस्कार ,कुछ बता दो ,
तुम्हारी इस पुर जलाल सूरत में किसके जल्वे समां रहे हैं ,
तुम्हारी हस्ती अजल से पहले ,बताओ मुझको कि कौन हो तुम ,
ये कैसे इसरार हैं तुम्हारे ,जो मुझको हैरां बना रहे हैं .II 31 I
-अर्जुन की मुनाजात ख़त्म -
भगवान का इरशाद - 
कजा हूँ मैं ,कजा हूँ मैं -कि दर पाए फना हूँ मैं , 
जहाँ की हस्तो बुद को -मिटने आ रहा हूँ मैं , 
ये शूरवीर लश्करी -जो मिल रहे हैं जंग पर , 
तो न हो ये सबके सब -हलाक कर चुका हूँ मैं .II 32 II 
तू अर्जुन उठ हो नेकनाम -दुश्मनों को घेर कर , 
ब जोर छीन ताजो तख़्त -हमसरों को जेर कर , 
ये मर चुके ,ये मर चुके -फ़ना मैं इनको कर चुका , 
तू बाएं हाथ वाले उठ -वसीला बन ,न देर कर.II 33 II 
मैं कर्ण भीष्मऔर द्रोण -इन्हें हलाक़ कर चुका ,
ये जयद्रथ ,ये जंगजू -समझ हरेक मर चुका ,
तू जीत जायेगा न डर-उदू से अपने जंग कर ,
तू मार इन्हें ,ये मर चुके -सफ़र जहाँ से कर चुके.II 34 II 
संजय ने कहा -
सुनी जब ये गुफ्तार भगवान की-लगी साहबे ताज को कपकपी ,
जुबां लड़खड़ाई गला रुक गया -झुका ,जोड़कर हाथ कहने लगा .II 35 II 
-अर्जुन की मुनाजात -2 .
ज़माना करता है अय ऋषिकेश ,जिसकी हम्दो सना तुम्हीं हो , 
ख़ुशी से गाते हैं गुन तुम्हारे ,कि सबके परमात्मा तुम्हीं हो . 
तम्हीं से डर डर के राक्षस सब ,दशों दिशाओं में भागते हैं , 
करें नमस्कार सिद्ध मिलकर ,जिसे वो सबके खुदा तुम्हीं हो .II 36 II 
बड़े हो ब्रह्मा से मरतबे में ,कि खुद ही ब्रह्मा के तुम हो मूजिब ,
करें नमस्कार क्यों न सारे कि जाते- ला इंतिहा तुम्हीं हो ,
तुम्हीं हो सत भी तुम्हीं असत भी ,तुम्हीं हो नित भी तुम्हीं अनित भी ,
जगन्निवास और महात्मा तुम देवों के देवता तुम्हीं हो.II 37 II 
तुम्हीं हो बरतर खुदाए अव्वल ,पुरुष कदीमी ,पनाहे आलम ,
तुम्हीं सजावारे इल्मो इरफां,अलीमे राज आशना तुम्हीं हो ,
तुम्हीं से फैला जहान सारा ,तुम्हीं हो सबका मुकामे अफजल ,
है जिस से भरपूर सारी दुनिया ,अनंत रूपी खुदा तुम्हीं हो .II 38 II 
तुम्हीं जहां के हो बाप दादा ,तुम्हीं हो ब्रह्मा तुम्हीं हो यम भी , 
तुम्हीं वरुण हो तुम्हीं हो अगनी ,तुम्हीं हो चाँद और हवा तुम्हीं हो , 
तुम्हें नमस्कार ,फिर नमस्कार ,फिर नमस्कार ,मेरे दाता, 
तुम्हें नमस्कार हों हजारों ,खुदाए इज्जो -अला तुम्हीं हो .II 39 II 
तुम्हें नमस्कार हाजिराना ,तुम्हें नमस्कार गायबाना ,
तुम्हें नमस्कार हर तरफ से कि कुल में जल्वानुमा तुम्हीं हो ,
तुम्हारी कुव्वत की कोई हद है न जोरो ताकत की इंतिहा है ,
तुम्हीं से कायम है सारा आलम ,कोई नहीं दूसरा ,तुम्हीं हो .II 40 II 
कभी कहा मैंने कृष्ण तुमको ,कभी कहा मैंने दोस्त यादव ,
मैं बेतकल्लुफ यही समझता रहा कि यार -आशना तुम्हीं हो ,
इसे समझ लो मेरी मुहब्बत ,इसे समझ लो मेरी जहालत ,
न पहले अफसोस ,मैंने समझा कि शाहे अर्जो-समां तुम्हीं हो .II 41 II 
जो बैठते ,उठते खाते पीते ,जो जागते सोते खेलते में ,
हुई हों गुस्ताखियाँ तो बख्शो कि जाते -ला इंतिहा तुम्हीं हो ,
कभी अकेले ,कभी सभा में ,कहा हो कुछ दिल्लगी में तुमको ,
तो पुरखता की खता को बख्शो ,कि हस्तीए बेखता तुम्हीं हो .II 42 II 
हैं जितने साकित ,हैं जितने सय्यार सभी जहानों के हो पिता तुम , 
तुहीं को शायां है सारी इज्जत ,कि मुर्शिदो -रहनुमा तुम्हीं हो, 
नहीं तुम्हारी मिसाल कोई ,किसे फजीलत है तुम से बढ़कर, 
न जिसकी ताकत का तीनों आलम में है कोई दूसरा ,तम्हीं हो.II 43 II 
इसीलिए सिजदा कर रहाहूँ तुम्हारे आगे झुकाए सर को ,
कि जिसको जैबा है सिजदा करना ,फकत मेरे किब्रिया तुम्हीं हो ,
पिदर नवाजिश करे पिसर पर ,सजन सजन पर ,पिया पिया पर ,
दया करो तुम भी मुझ पे भगवन ,कि बह्रे -लुत्फो -अता तुम्हीं हो.II 44 
तुम्हारा मैंने वो रूप देखा न जिसको देखा था मैंने पहले ,
मैं खुश भी हूँ ,और मैं गमजदा भी ,मुकामे बीमो -रजा तुम्हीं हो ,
मुझे दिखादो ,मुझे दिखादो ,वही वो पहले सी अपनी सूरत ,
जगन निवास ,अब दया हो मुझ पर कि देवों के देवता तुम्हीं हो.II 45 II 
मुकुट लगाया हो ,गुर्ज उठाया हो ,हाथ में हो तुम्हारे चक्कर ,
वो रूप पहले सा देख लूँ मैं ,कि देर से आशना तुम्हीं हो ,
दया करो मुझपे ,फिर दिखाओ वो मूरती चार हाथों वाली ,
तुम्हारे हैं गो हजार बाजू ,कि विश्वरूपी खुदा तुम्हीं हो .II 46 II 
-अर्जुन की दूसरी मुनाजात ख़त्म -


-भगवान ने फरमाया - 
सुन अर्जुन अब मेरी दया कि,ये तुझ पे बिल्जरूर है , 
कि मैंने अपने योग से ,दिखा दिया जहूर है , 
न जिसको देखा आजतक ,किसीने भी तेरे सिवा , 
वो अव्वलीं ,वो दायमी ,ये विश्वरूप नूर है .II 47 II 
कुरु के खानदान में ,मिली है तुझको सरवरी , 
दिखाया तुझको अपना रूप ,है ये बन्दा परवरी , 
न वेद,जप से मिल सके ,दान तप से मिल सके , 
न यग ,न कर्मकांड से ,दिखायी दे सके हरी .II 48 II 


हिरासो खौफ छोड़ दे ,न जार हो ,न जार हो ,
न हौलनाक रूप से ,मेरे तू बेकरार हो ,
ले मेरी शक्ल देख ले ,तू जिस से आशना भी है ,
ये वहमो खौफ दूर कर ,ख़ुशी से हमकिनार हो .II 49 II 
संजय ने कहा -
ये कहकर महा आत्मा ने वहीँ -दिखाई वही पहली सूरत हसीं ,
गया खौफ ,सब आन की आन में -तसल्ली से जान आ गई जान में.II 50 II 


अर्जुन का इकरार -
जो अर्जुन ने देखा ,तो भगवान की-वही पहली सूरत थी इंसान की ,
कहा अब मेरा दिल ठिकाने लगा -मुझे होश भगवान आने लगा .II 51 II 
भगवान का इरशाद -
फिर अर्जुन से भगवान कहने लगे -कि,तूने जो अब मेरे दर्शन किये ,
सदा देवताओं का अरमां रहा -ये दर्शन कहाँ उनको हासिल हुआ .II 52 II 
मुझे तूने देखा है ,जिस तौर से -यही तौर मुमकिन नहीं और से ,
ये दीदार यग से ,न तप से मिले -न दान और वेदों के जप से मिले .II 53 II 
अगर मेरी भगती में यकसू रहे -मेरा ज्ञान हो ,और मुझे देख ले ,
हकीकत का इरफां भी हासिल हो फिर -मेरी जाते -आली में वासिल हो फिर II 54 II 
मेरा भक्त हर काम मेरा करे -तअल्लुक किसी से ,न नफ़रत उसे ,
करे मुझको मकसूद अपना ख्याल -तो अर्जुन वो पाए मुझी से विसाल .II 55 II 


-ग्यारहवां अध्याय समाप्त -














































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