Sunday, July 10, 2011

सत्रहवां अध्याय :श्रद्धात्रय विभाग

श्रद्धात्रय विभाग -ऐतकादे सहगाना - 

अर्जुन का सवाल - 
जो यग करने वाले हैं ,अहले यकीं-मगर शाश्तर पर जो चलते नहीं , 
तो फरमाइए वो सतोगुन पे हैं -कि आमिल रजोगुन,तमोगुन पे हैं .II 1 II 
भगवान का जवाब - 
कहा सुन के भगवान ने ये सवाल -मुताबिक है फितरत के ईमां का हाल , 
कि ईमां के अन्दर भी हैं तीन गुन-सतोगुन ,रजोगुन ,तमोगुन तू सुन .II 2 II 
कि जो जिसकी फितरत का आहंग है -वही उसके ईमां का रंग है , 
कि इंसां खुद ईमां की तफ़सीर है -अकीदा ही इन्सां की तस्वीर है.II 3 II 
सतोगुन तो पूजें ,खुदा ही को बस -राजोगुन मगर यक्ष और राक्षस , 
तमोगुन के बन्दे है ,सबसे अलग -कि वो भूत प्रेतों को देते हैं यग.II 4 II 
जो ताप में उठाते हैं रंजो -तनब-उलट शाश्तर के करें काम सब , 
वो मक्कार ,खुदबीं हैं और सख्तकोश-भारी उनमे है ,कुव्वते-हिर्सो जोश .II 5 II 
करें वो दुखी पांच तत का बदन -मुझे भी ,जो इस तन में हूँ खेमाजन , 
बजाहिर तो हर चन्द इन्सां है वो -जो अज्म देखो तो शैतां है वो.II 6 II 
गिज़ा जिसके शायक हैं सब ,उसकी सुन -करें फर्क इसमे यही तीन गुन ,
यही गुन इसी तरह देंगे बदल -इबादत ,रियाजत ,सखावत के फल .II 7 II 
गिज़ा जिस से सेहत हो और जिंदगी -बढे जोशो ताकत ,खुशी खुर्रमी ,
मुकव्वी हो ,पुर रोगन ,और खुश गवार -सतोगुन के शायक को है उस से प्यार .II 8 II 
सलोनी हो ,खट्टी कि कड़वी गिज़ा -जली ,चटपटी ,गर्म या बे मजा ,
गिज़ा ऎसी खाएं रजोगुन के लोग -उन्हें रंज हो ,दुख हो ,या तन का रोग .II 9 II 
जो बासी हो ,बूदार गंदी गिज़ा -जो बदजायका हो या जूठी गिज़ा ,
ये खाना तमोगुन के बन्दों का है -कि खाना जो गन्दा है ,गंदों का है.II 10 II 
वही है सतोगुन का यग बिल्जरूर -न हो फल की ख्वाहिश का जिसमे फितूर ,
अमल शाश्तर की रिआयत से हो -इबादत ,इबादत की नीयत से हो .II 11 II 
अगर यग किया फल की ख्वाहिश के साथ -ख्याले नुमूदो -नुमायश के साथ ,
तो,अर्जुन नहीं ये सतोगुन का यग -रजोगुन का है ,ये रजोगुन का यग .II 12 II 
जो करते हैं यग शाश्तर के खिलाफ -न अन्नदान ,जिसमे न मंतर हों साफ ,
न हो दक्षिणा ,औं जौके -यकीं -तमोगुन के यग के सिवा कुछ नहीं.II 13 II 
जो पूजा करे देवताओं की तू-बिरहमन हों ,आलिम हों ,या हों गुरू ,
अहिंसा ,तजर्रुद,सफा ,रास्ती -बदन की रियाजत यही है ,यही II 14 II
सुखन वो जो सच्चा हो ,और बे खरोश -मुफीदे खलायक हो ,फिरदौस -कोश,
मुक़द्दस कुतब की तिलावत मुदाम -जुबां की रियाजत इसी का है नाम .II 15 II
सुकूं दिल में हो ,लब पे हो खामुशी-हलीमी ,ख्यालों में पाकीजगी , 
रहे नफ्स पर जब्त और दिल हो राम -इसी शै का मन की रियाजत है नाम .II 16 II 
जो यकदिल ,यकीं से इबादत करे -वो तन ,मन जुबां से रियाजत करे , 
न हो फल के ख्वाहिश पे आमादगी -सतोगुन की रियाजत यही है ,यही .II 17 II 
रियाजत दिखावे की गर मन को भाए -कि लोगों में इज्जत हो ,पूजा कराये , 
रियाजत वो चंचल है ,नापायदार -कर इसको रजोगुन -रियाजत शुमार .II 18 II 
वो तप जिस में जिद्दी उठाता है कष्ट -वो तप जिसका मकसद हो औरों का कष्ट , 
जहालत का तप का तप उसको गिरदान तू-तमोगुन रियाजत इसे मान तू .II 19 II 
इसे जानकर फर्ज खैरात दें -जो हकदार हो ,जिस से खिदमत न लें , 
मुनासिब हो वक्त और मौजूं मुकाम -सतोगुन सखावत इसी का है नाम .II 20 II 
हो अहसां के बदले की ख्वाहिश अगर -सखावत में फल पर लगी हो नजर , 
अगर बेदिली से कोई दान दे -रजोगुन सखावत उसे जान ले .II 21 II 
अगर नामुनासिब है वक्त और मुकाम -उसे दान दें जिसको देना हराम , 
जो ले उसकी जिल्लत करें ,दिल दुखाएं -तमोगुन सखावत उसी को बताएं .II 22 II 
जो है "ॐ तत्सत "मुक़द्दस कलाम -सह गूना है ये ब्रह्म का पाक नाम , 
इसी से बिरहमन हुए आशकार -इन्हीं से हुए यग्ग और वेद चार .II 23 II 
इबादत ,सखावत ,रियाजत के काम -मुवाफिक जो हैं शाश्तर के तमाम , 
वो सब ब्रह्म दां-मर्दुमे -पारसा -हमेशा करें ॐ से इब्तिदा .II 24 II 
जहां में है मतलूब जिसको निजात -समर से नहीं कुछ इसे इक्तिफात , 
इबादत रियाजत ,सखावत करे -मगर हर्फे "तत"मुंह से पहले कहे .II 25 II 
हकीकत यही है ,हकीकत है "सत"-सदाकत यही है सदाकत है "सत " , 
कि दुनिया में जो भी भला काम है -सुन अर्जुन कि उसका "सत "नाम है .II 26 II 
यही सत समझ उस अकीदत को जो -इबादत ,रियाजत ,सखावत में हो , 
करें उस खुदा के लिए जोभी काम -तो उस काम का भी यही "सत "है नाम .II 27 II 
हवन .दान में हो अकीदत न शौक -रियाजत में ईमां ,अमल में न जौक ,
इन अफआल का फिर "असत "नाम है -यहाँ है न उनका वहां काम है .II 28 II 


-सत्रहवां अध्याय समाप्त -













2 comments:

  1. बहुत बहुत साधुवाद इस प्रयास पर | पहली बार इस ब्लॉग पर आई हूँ | बहुत अच्छा लगा यहाँ आकर |

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  2. badi muskil se aapko dhoondh paya

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