अक्षरब्रह्म -हस्तीये लाज़वाल -
अर्जुन का सवाल -
फिर अर्जुन ने पूछा ये बागवान से-कि पुरुषोत्तम ,अब मुझसे फरमाइए ,
है ब्रह्म और अध्यात्म क्या मुद्दआ -हैं कर्म और अधिभूत ,अधिदेव क्या.II 1 II
अधियग है क्या चीज बतलाइये -मकीं तन में है कौन फरमाइए ,
जिसे दिल पे काबू है मरते हुए -मधूकुश तुम्हे कैसे पहचान ले .II 2 II
भगवान का जवाब -
है बाह्म हस्ती आली ,और बेजवाल -तो अध्यात्म अश्या की फितरत का हाल ,
वो कुदरत हुई ,जिससे मख्लूब सब -तो है कर्म ,खल्के -जहां का सबब .II 3 II
अधिभूत फानी ,वजूदे जहां -पुरुष है अधिदेव रूहे-रवां ,
अधियग ,सुन ऐ फख्रे-अहले वजूद -मैं खुद हूँ ,कि मेरी है तन मन नुमूद .II 4 II
जब इन्सां जहां से गुजरता हुआ -मेरी ही करे याद मरता हुआ ,
तो फिर इसमे शक का नहीं एहतमाल-उसे मर के हासिल हो मेरा विसाल.II 5 II
जब इन्सां बदन को करे खैरबाद-करे आखिरी वक्त जिस शै को याद ,
तो अर्जुन ,उसी शै से वासिल हो वो -लगाई थी लौ ,जिस से हासिल हो वो .II 6 II
मुझे याद अर्जुन ब हर रंग कर -लिए जा मेरा नाम और जंग कर ,
फ़िदा मुझ पे कर दानिशो -दिल तमाम -मेरा वस्ल पायेगा तू लाकलाम .II 7 II
अगर योग की मश्क हो मुस्तकिल -किसी गैर का जब ख्वाहाँ न दिल ,
हो पुरनूर -आली पुरुष का ख्याल -तो हासी उसी से हो अर्जुन विसाल .II 8 II
जो करता है यादे खुदाए अलीम -पनाहे जहां ,बादशाहे -कदीम ,
जो सूरज सा पुरनूर ,ज़ुल्मत से दूर - खफी से खफी ,मावराए शऊर .II 9 II
जो भगती करे योग से मुस्तकिल -जो मरने पे रखता है मजबूत दिल ,
प्राण अपने दो अबरुओं में जमाये-तो पुरनूर आली पुरुष को वो पाए.II 10 II
सुन अब मुख़्तसर मुझसे वो राहे योग -तजर्रुद में शौक में जिसके योग ,
जहां बे गरज अहले संन्यास जाएँ -जिसे वेद -दां गैर फानी बताएं .II 11 II
बदन के अगर बंद सब दर करे -जो मन है उसे दिल के अन्दर करे ,
जमे इस तरह योग से उसका ध्यान -कि इन्सां के बस में रहे उसके प्रान.II 12 II
जिसे 'ओम 'कहते हैं ,नामे खुदा -वो इक रुक्न का हर्फ़ जीता हुआ ,
मेरे ध्यान में जिसका हो इख्तिताम -मिले उसको मरते ही आला मुकाम .II 13 II
सदा मेरा पैहम जिसे ध्यान है -तो मिलना मेरा उसको आसान है ,
मुझे दिल से अर्जुन भुलाता नहीं- किसी गैर से दिल लगाता नहीं .II 14 II
महा आत्मा मुझसे पाकर विसाल -रहें पुरसुकूंलेके ओजे कमाल ,
हुलूल औ तनासुख ,न दौरे हयात -फना और मुसीबत से पायें निजात .II 15 II
कि ब्रह्मा की दुनिया तक अहले जहां -तनासुख के चक्कर में हैं बेगुमां,
मगर जिसको हासिल हो मुझसे विसाल -बरी है ,तनासुख से ,कुंती के लाल .II 16 II
जो वाकिफ है राजे -लैलो-नहार -करे वक्त ब्रह्मा का ऐसे शुमार ,
हज़ार अपने युग हों ,तो एक उसका दिन -हज़ार अपने युग की फिर इक रात दिन .II 17 II
हो ब्रह्मा के दिन जब सहर की नुमूद -तो बातिन से ज़ाहिर हो बज्मे शुहूद ,
मगर जिस घड़ी आये ब्रह्मा की रात -तो बातिन में छुप जाए कुल कायनात .II 18 II
ये मखलूक पैदा जो हो बार बार -हो गुम ,रात पड़ने पे बे इख्तियार ,
सुन अर्जुन ,जो ब्रह्मा का दिन हो अयां-हो फिर मौजे हस्ती का दरिया र वां .II 19 II
परे गैब से भी है इक जाते गैब -वो हस्ती ,फना का नहीं जिसमे ऐब ,
किसी की न कुछ बात बाक़ी रहे - फकत इक वही ज़ात बाक़ी रहे .II 20 II
वो हस्ती जो बातिन है और बेजवाल -करें उसकी मंजिल को आला ख्याल ,
पहुँच कर जहां से न लौटें मुदाम -वही है ,वही मेरा आली मुकाम .II 21 II
ये दुनिया है जिसकी बसाई हुई -हरेक शै है ,जिसमे समाई हुई '
अगर चाहे तू उस खुदा का विसाल -रख उसकी मोहब्बत का दिल में ख्याल .II 22 II
सुन ,अय नस्ले भारत के सरताज ,सुन -बताता हूँ अब वक्त के तुझको गुन,
कि कब मर के लौट आयें योगी यहीं -वो मर के कालिब बदलते नहीं .II 23 II
अगर दिन हो या मौसमे -नारों नूर -उजाले की रातें हों ,मह का ज़हूर ,
हो शश माही सूरज का दौरे शुमाल -मरे इसमे आरिफ तो पाए विसाल .II 24 II
अन्धेरा हो पाख और धुन्दलका हो खूब -हो शश माह सूरज का दौरे जुनूब ,
कि हो रात का वक्त ,जब जान जाए -तो योगी यही चाँद से लौट आये .II 25 II
अन्धेरा कभी हो ,उजाला कभी -सदा से जगत के हैं रस्ते यही ,
उजाले में जब जाए वापस न आये -अँधेरे में जाता हुआ लौट आये .II 26 II
जो इन रास्तों से न अनजान हो -वो योगी परेशां न हैरान हो ,
सुन अर्जुन ,है जब तक तेरे दम में दम -तू रह योग में अपने साबित कदम .II 27 II
मिले वेद के पाठ करने से पुन्न -हैं बेशक बहुत दान ,यग ,तप के गुन,
मगर इन से बाला है ,योगी की बात -अजल से वो पाए मुकामे निजात .II 28 II
-आठवां अध्याय समाप्त -